आपदा लाख कहर बरपाये लेकिन साथ में अथाह
ज्ञान का सागर भी लाती है. चाहे पढ़े लिखे हों या अनपढ़, सब आपदा की मार से ज्ञानी
हो जाते हैं. शायद हमारे समय स्कूल में इसीलिए पीटा जाता होगा कि बिना मार खाये ज्ञानी
न हो पाओगे.
दिन में दो बार हाथ धोने वालों को इस
आपदा की मार ने सिखाया कि दो बार नहीं, हर घंटे में बार बार धोना है और जिस तरीके
से तुम जीवन भर हाथ धोते आये हो, उससे हाथ साफ ही नहीं होते. व्याहटसएप से लेकर हर
सेलीब्रेटी यह बता रहा है कि हाथ में कैसे साबुन लगाओ, कैसे ऊँगलियों के बीच में
भी मलो और कैसे धोओ और कैसे पोछों? जो सर्दियों में २० सेकेन्ड में संपूर्ण स्नान
करके भाग आते थे, वो आज हर घंटे में २० सेकेन्ड तक हाथ धोने का ज्ञान बांट रहे
हैं. बच्चे इस उम्र में हमें हिकारत भरी नजरों से देख रहे हैं कि कितना गलत हाथ
धोना सिखाये हो बचपन से.
घंसु जो आज तक बीबी का मकबरा और
ताजमहल में अंतर नहीं कर पाता था वो भी तस्वीर देख कर बता रहा है कि अरे!! यह तो
चीन का व्हुआन शहर है, जहाँ से कोरोना छोड़ा गया.
पान के ठेले पर बैठे हुए पीपीई पर
ज्ञान देता हुआ ये वो ही घंसु है जिसके चाचा को एक बार तपेदिक के लिए जब अस्पताल
में आईसोलेशन वार्ड में भरती किया गया तो डॉक्टरों के देखकर पूछ रहा था कि क्या
बारिश होने वाली है. सब रेनकोट क्यूँ पहनें हैं?
जिन्हें आज तक मास्क का एक मात्र
उपयोग डकैती डालते वक्त अपनी शिनाख्त छिपाना पता था वो ही आज एन ९५, सर्जिकल मास्क
और सिंगल लेयर मास्क का अंतर समझा रहे हैं. हमें घर पर बनी मास्क पहने देखकर घंसु
मुस्करा कर कह रहे हैं कि इसे पहन कर अगर आप यह सोच रहे हो कि कोरोना से बच जाओगे,
तो आप बहुत बड़ी गलतफहमी में जी रहे हैं और फिर पान की दुकान से लाईटर जला कर हमसे
कहने लगे कि इसे फूँको. फूँकते ही लाईटर बुझ गया और घंसु चहक उठे कि देखा!! जिस
रास्ते से फूँक बाहर आ रही है, उसी रास्ते वायरस भी अंदर जा सकता है.
यह सुन कर बाजू में बैठे तिवारी जी
परेशान हो लिए. कहने लगे कि अगर फूँक बाहर नहीं आयेगी तो सांस अंदर कैसे जायेगी?
ऐसे में भले कोरोना से बच जायें मगर दम घुटने से यूं ही मर जायेंगे?
लॉकडाऊन और सोशल डिस्टेंसिंग का
फायदा बताने लोग घर से निकल कर पड़ोसी के बरामदे में आपस में सटे बैठे चाय का आनद
उठा रहे हैं.
घंसु ने एक और ज्ञान की बात बताते
हुए कहा कि चाहे कोई बीमारी हो जाये, बस ये कोरोना न होये. इज्जत मटिया मेट हो
जाती है. लगता है मरीज न होकर चोर हों. सारे शहर में खबर फैलती है कि एक और
व्यक्ति पोजिटिव पकडाया और उसे अब मेडीकल कालेज ले जाया जा रहा है.
कोई तो इतना ज्ञानी हो लिया कि करोना
के दौरान व्हिसकी कैसे मूँह में घुमा घुमा कर पियें ताकि दाँत और मसूडों में छिपे
कोरोना को मारते हुए व्हिसकी गले में बैठे कोरोना को नेस्तनाबूत करते हुए पेट में
चली जाये और कैसे पीने के पहले उसे जोर से महक लें ताकि नाक में बैठा कोरोना भी
वीर गति को प्राप्त हो.
तिवारी जी बताने लगे कि वो तो अभी
हल्दी खरीद कर ही आये थे. फिर उन्होंने हल्दी का काढ़ा कैसे बनायें और अपनी इम्यूनिटी
बढ़ा कर कोरोना को ठेंगा कैसे दिखाये, विषय पर प्रवचन दिया. तब तक पुलिस की वैन आ
गई. सब भाग लिए. तिवारी जी धोती पहने थे तो भाग न पाये. खूब लट्ठ पड़े और करहाते
हुए घर लौटे. घंसु ने तुरंत फोन करके उनको ज्ञान दिया कि जो हल्दी काढ़ा बनाकर पीने
के लिए ले गये हो, उसी को लेप बना कर लगाने के काम में कैसे लाईये ताकि सूजन और
दर्द जाता रहे.
आपदा के चलते ज्ञान बाँटने की हालत
ये हो गई हैं कि विश्व के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्राध्यक्ष बिना डॉक्टरों की
सलाह के कोरोना की दवा बताये दे रहा है और वैज्ञानिकों से डेटोल और सेनेटाईज़र से
लंग्स की सफाई करने के तरीके इजाद करने को कह रहा है. घबराहट में डेटोल कम्पनी को
सामने आकर बताना पड़ रहा है ये सिर्फ बाह्य उपयोग के लिए है.
अब तो बस इन्तजार है कि लॉकडाऊन हटे
और उन विश्व ज्ञानियों से भी मुलाकात हो जो अभी व्हाटसएप यूनिवर्सिटी में ज्ञान की
वर्षा कर रहे हैं. डर ये है कि यदि ऐसे ही लॉकडाऊन चलता रहा और ज्ञान की वर्षा
होती रही, तो ज्ञान की बाढ़ की ऐसी आपदा न आ जाये, जिसके सामने कोरोना की आपदा भी
बौनी लगने लगे.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल २६, २०२० के
अंक में:
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#जुगलबंदी
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12 टिप्पणियां:
हाहाहा,
ये कहिये कि कोरोना वायरस है, यदि कोई इन्सान जैसा होता तो ज्ञानियों ने उसे अभी तक अधमरा कर दिया होता.....
बढ़िया... मज़ेदार व्यंग्य
इसमेंसबजी वाले से लेकर धोबी तक ज्ञान बाँट जाते है और मेडिकल मैन मुँह देखता रहता है , आखिर ये शिक्षा किस मेडिकल कालेज में मिलती है । बढ़िया व्यंग्य ।
सही तो है जब सिर पर चोट पड़ती है अक्ल आती है
व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी में ज्ञान का बाढ़ तो इतनी ज्यादा है कि पढ़ते पढ़ते हम डूब जाते हैं बाढ़ में. जब से कोरोना तब से तो जैसे नदी में नहीं समुद्र में ज्ञान का बाढ़ आ गया है. बहुत मजेदार हास्य.
बहुत खूब , घंसू -और तियारी जी पिनरवातरण ने आपके लेख में 'सोने में सुहागा' ला दिया। अगले लेख के इन्तजार में
खुल गया ज्ञान का कपाट।
रचनाओं का रूप हो गया विराट।
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सुन्दर आलेख।
सबका अलग अलग ज्ञान और मैं तुझसे कम नहीं तू मुझसे होड़ लगी पड़ी है ।
ये ग्यानी हर बार प्रगट हो जाते हैं ... और हर बात का इलाज होता है इनके पास ...
गज़ब लिखे हो भाई जी ...
अब तो बस इन्तजार है कि लॉकडाऊन हटे और उन विश्व ज्ञानियों से भी मुलाकात हो जो अभी व्हाटसएप यूनिवर्सिटी में ज्ञान की वर्षा कर रहे हैं. सही है, चुनाव के समय राजनीतिक, बजट पेश होने के बाद अर्थशास्त्री, क्रिकेट खेल के दौरान विशेषज्ञ बनते आ रहे हैं लोग, कोरोना काल मे अपने ज्ञान का उपयोग क्यों न करें? अच्छा व्यंग्य.....
सर्वाधिक ट्रैफिक होता है इधर बधाई
बहुत सुंदर, भैया हमारे अंदर भी बहुत समय बाद ज्ञान छलक रहा है। हम भी अब बाटेंगे।
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