मौका है भारत से सात समंदर पार कनाडा में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार
के लिये आयोजित समारोह का. अब समारोह है तो मंच भी है. माईक भी लगा है.टीवी के
लिये विडियो भी खींचा जा रहा है. मंच पर संचालक, अध्यक्ष, मुख्य अतिथि विराजमान है और साथ ही अन्य
समारोहों की तरह दो अन्य प्रभावशाली व्यक्ति भी सुसज्जित हैं. माँ शारदा की तस्वीर
मंच पर कोने में लगा दी गई है और सामने दीपक प्रज्ज्वलित होने की बाट जोह रहा है.
कार्यक्रम पूर्वनियोजित समय से एक घंटा विलम्ब से प्रारंभ हो चुका है.
संचालक महोदय सब आने वालों का जुबानी और मंचासीन लोगों का पुष्पाहार से स्वागत कर
चुके हैं. अब वह मुख्य अतिथि महोदय से दीप प्रज्ज्वलित कर हिन्दी के प्रचार एवं
प्रसार कार्यक्रम की विधिवत शुरुवात का निवेदन कर रहे हैं.
मुख्य अतिथि ने अपनी टाई बचाते हुए दीपक प्रज्ज्वलित कर दिया है.
हिन्दी द्वैदीप्तिमान होने लगी है. उसका प्रकाश फैलने लगा है. मुख्य अतिथि वापस
अपना स्थान ग्रहण कर चुके हैं. अध्यक्ष महोदय अपना उदबोधन कर रहे हैं. हिन्दी के
प्रचार और प्रसार कार्यक्रम के अध्यक्ष बनाये जाने के लिये आभार व्यक्त करते हुए
आयोजकों का नाम ले लेकर गिर गिर से पड़ रहे हैं.
वहीं मंच पर विराजित सूट पहने मुख्य अतिथि, जो कि भारत में मंत्रालय के हिन्दी विभाग में
उच्चासीन पदाधिकारी हैं और यहाँ किसी अन्य कार्य से भारत से पधारे हैं एवं उन दो
मंचासीन प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक के संयोजन से मंच पर महिमा मंडित हो रहे
हैं, अपने चेहरे से पसीना पोंछ रहे हैं.
उनको पसीना आने के दो मुख्य कारण समझ में आ रहे हैं. पहला, गर्मी के मौसम में वो ऊनी सूट पहने हैं और दूसरा,
मंच से बोलने का भय. दोनों ही कारण स्वभाविक हैं.
भारत से आने वाले अधिकारियों द्वारा यहाँ के किसी भी मौसम में गरम सूट
पहनना तो एकदम सहज और सर्व दृष्टिगत प्रक्रिया है, इससे मुझे कोई आश्चर्य भी नहीं होता. और दूसरा मंच से बोलने का भय,
वह भी मौकों और अभ्यास के अभाव में सामान्य ही है. वहाँ भारत में भी
दफ्तर में यह न सिर्फ बिना बोले ही काम चला लेते हैं बल्कि बिना लिखे भी. मात्र
दस्तखत करने में महारत हासिल है और उसका इस मंच से कोई कार्य नहीं, तो पसीना आना स्वभाविक ही कहलाया.
उनकी हालत देखकर कार्यक्रम के प्रथम स्तरीय संयोजक, जो कि संचालक की हैसियत से मंचासीन हैं, मंच के आसपास घूमते द्वितीय स्तरीय संयोजक को इशारा करते हैं और वो
द्वितीय स्तरीय संयोजक उपस्थित श्रोताओं के पीछे घूमते तृतीय स्तरीय संयोजक को
इशारा करता है जो कि भाग कर कनैडियन एयरफ्लो पंखे का इन्तजाम कर मंच के बाजू में
लगा देता है.
पंखे से चलती अंग्रेजी हवा से, जहाँ एक ओर मुख्य अतिथि महोदय राहत की सांस ले रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हिन्दी को प्रचारित, प्रसारित और
प्रकाशित करती दीपक की लौ लड़खड़ाते हुए अपने अस्तित्व को बचाने का भरसक प्रयास कर
रही है. आखिरकार उसकी हिम्मत जबाब दे गई.
हिन्दी का प्रचार और प्रसार थम गया. दीपक में अंधेरा छा गया. संचालक
महोदय दीपक की तरफ भागे. अध्यक्ष का भाषण एकाएक रुक गया. पंखा बंद कर उस अंग्रजी
हवा को रोक दिया गया. माचिस से जला कर दीपक पुनः प्रज्ज्वलित हुआ. हिन्दी का
प्रचार एवं प्रसार पुनः प्रारंभ हुआ. हिन्दी प्रकाशित हुई.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार को बाधित करने का जिम्मेदार वह तृतीय
स्तरीय संयोजक द्वितीय स्तरीय संयोजक से डांट खाकर किनारे खड़े खिसियानी हंसी हंस
रहा है.
कार्यक्रम सुचारु रुप से चलता जा रहा है. सभी भाषण हो रहे हैं. कुछ
कवितायें भी पढ़ी जा रहीं हैं और अंत में मुख्य अतिथि द्वारा हिन्दी के प्रचार प्रसार
में विशिष्ठ योगदान देने वाले पाँच लोगों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जा
रहा है, जिस पर लिखा है:
इन रिक्गनिशन ऑफ योर कॉन्ट्रिब्यूशन टूवर्डस हिन्दी………..
( In Recognisition of your
contribution towards Hindi.)..
इसके आगे मुझसे पढ़ा नहीं जा पा रहा है. मैंने हिन्दी का ऐसा प्रचार और
प्रसार पहले कभी नहीं देखा शायद इसलिये.
कार्यक्रम समाप्त हो गया है. माँ शारदा की तस्वीर को झोले में लपेट कर
रख दिया गया है. दीपक बुझा कर रख दिया गया है. अब अगले साल फिर यह दीप प्रज्जवलित
हो हिन्दी का प्रचार, प्रसार करेगा और हिन्दी
को प्रकाशित करेगा.
तब तक के लिये जय हिन्दी.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के
दैनिक सुबह
सवेरे में
मंगलवार जनवरी
२८, २०२०
में प्रकाशित:
ब्लॉग पर पढ़ें:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
3 टिप्पणियां:
Excellently presented paradox of stage dignitaries on any topic, in the instant case it on हिंदी प्रचार और प्रसार.
Great!!!!
प्रि सम्पादक महोदय !
"हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा " अत्यंत सामयिक, हृदय स्पर्शी लेख पढकर मन ने कहा की आपको इसी बहाने बधाई और शुभकामनाएं दूँ | बहुत अच्छा काम आपने अपने सर पर ले लिया है बस इसे विराम न दें |यही मेरी कामना है _ श्याम त्रिपाठी हिन्दी चेतना कैनेडा २२ वर्षों से .........
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को "आया ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक - 3602) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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