दुआ, प्रार्थना, शुभकामना,
मंगलकामना, बेस्ट विशेस आदि सब एक ही चीज के अलग अलग नाम हैं और हमारे
देश में हर बंदे के पास बहुतायत में उपलब्ध. फिर चाहे आप स्कूल में प्रवेश लेने जा
रहे हों, परीक्षा देने जा रहे हों, परीक्षा का
परिणाम देखने जा रहे हों, बीमार हों, खुश हों, इंटरव्यू के लिए
जा रहे हों, शादी के लिए जीवन साथी की तलाश हो, शादी हो रही हो,
बच्चा होने वाला हो, पुलिस पकड़ के ले जाये, मुकदमा चल रहा हो,
या जो कुछ भी आप सोच सकें कि आप के साथ अच्छा या बुरा घट सकता है, आपके जानने वालों
की दुआयें, उनकी प्रार्थना, उनकी शुभकामनायें आपके
मांगे या बिन मांगे सदैव आपके लिए आतुर रहती हैं और मौका लगते ही तत्परता से आपकी
तरफ उछाल दी जाती हैं.
भाई जी, हमारी दुआयें आपके साथ हैं. सब अच्छा होगा या
हम आपके लिए प्रार्थना करेंगे या आपकी खुशी यूँ ही सतत बनी रहे, हमारी
मंगलकामनायें. आप अपने दुख में और अपनी खुशी में मित्रों और परिचितों की दुआयें और
शुभकामनायें ले लेकर थक जाओगे मगर देने वाले कभी नहीं थकते.
उनके पास और कुछ हो न हो, दुआओं और
प्रार्थनाओं का तो मानो कारु का खजाना होता है- बस लुटाते चलो मगर खजाना है कि कम
होने का नाम ही नहीं ले रहा.
अक्सर दुआ प्राप्त करने वाला लोगों और परिचितों की आत्मियता
देखकर भावुक भी हो उठता है. अति परेशानी या ढेर सारी खुशी के पल में एक समानता तो
होती है कि दोनों ही आपके सामान्य सोचने समझने की शक्ति पर परदा डाल देते हैं और
ऐसे में इस तरह से परिचितों की दुआओं से आत्मियता की गलतफहमी हो भावुक हो जाना
स्वभाविक भी है.
असल में सामान्य मानसिक अवस्था में यदि इन दुआओं का आप सही
सही आंकलन करें तब इसके निहितार्थ को आप समझ पायेंगे मगर इतना समय भला किसके पास
है कि आंकलन करे. जैसे ही कोई स्वयं सामान्य मानसिक अवस्था को प्राप्त करता है तो
वो खुद इसी खजाने को लुटाने में लग लेता है. मानों की जैसे कर्जा चुका रहा हो. भाई
साहब, आप मेरी मुसीबत के समय कितनी दुआयें कर रहे थे, मैं आज भी भूला
नहीं हूँ. आज आप पर मुसीबत आई है, तो मैं तहे दिल दुआ करता हूँ कि आप की मुसीबत
भी जल्द टले. उसे उसकी दुआ में तहे दिल का सूद जोड़कर वापस करके वैसी ही कुछ तसल्ली
मिलती है जैसे किसी कब्ज से परेशान मरीज को पेट साफ हो जाने पर. एक जन्नती अहसास!!
जब आपके उपर सबसे बड़ी मुसीबत टपकती है जैसे कि परिवार में
किसी अपने की मृत्यु, तब इस दुआ में ईश्वर से आपको एवं आपके परिवार
को इस गहन दुख को सहने की शक्ति देने की बोनस प्रार्थना भी चिपका दी जाती है मगर
स्वरुप वही दुआ वाला होता है याने कि इससे आगे और किसी सहारे की उम्मीद न करने का
लाल लाल सिगनल.
दुआओं का मार्केट शायद इसी लिए हर वक्त सजा बजा रहता है
क्यूँकि इसमें जेब से तो कुछ लगना जाना है नहीं और अहसान लदान मन भर का. शायद इसी
दुआ के मार्केट सा सार समझाने पुरनिया ज्ञानी ये हिन्दी का मुहावरा छाप गये होंगे:
’हींग लगे न
फिटकरी और रंग भी चोखा आये’
दरअसल अगर गहराई से देखा जाये तो जैसे ही आप सामने वाले को
दुआओं की पुड़िया पकड़ाते हो, वैसे ही आप उसके मन में आने वाले या आ सकने
वाले ऐसे किसी भी अन्य मदद के विचार को, जिसकी वो आपसे आशा कर
सकता था, खुले आम भ्रूण हत्या कर देते हो और वो भी इस तरह से कि
हत्या की जगह मिस कैरेज कहलाये.
जब कोई आपकी परेशानी सुन कर या जान कर यह कहे कि आप चिन्ता
मत करिये मैं आपके लिए दुआ करुँगा और मेरॊ शुभकामनाएँ आपके साथ है तो उसका का सीधा
सीधा अर्थ यह जान लिजिये कि वो कह रहा है कि यार, आप अपनी परेशानी
से खुद निपटो, हम कोई मदद नहीं कर पायेंगे और न ही हमारे पास इतना समय और
अपके लिए इतने संसाधन है कि हम आपके साथ आयें और समय खराब करें. आप कृपया निकल लो
और जब सब ठीक ठाक हो जाये और उस खुशी में मिठाई बाँटों तो हमें दर किनार न कर दो
इसलिए ये दुआओं की पुड़िया साथ लेते जाओ.
ऐसे ही सरकार भी जब जनहित की योजनायें घोषित करती है - जिसमें पैसे आपके ही लगने है और उसी के आधार
पर आगे लाभ प्राप्त करना है, तब घोषणा करते हुए उनका ओजपूर्ण अंदाज भी कुछ
ऐसा ही दुआओं और प्रार्थना वाला नजर आता है. इसका सार उनके भाषण के शुरुआती ब्रह्म
वाक्य में ही नजर आ जाता है जब वे कहते हैं कि गरीब को सहारा नहीं, शक्ति चाहिये.
और बस मैं सोचने को मजबूर हुआ कि चलो, अब सरकार भी हम
आम जनों जैसे ही दुआ करने में लग गई है और अधिक जरुरत पड़ने पर आपको और आपके परिवार
को शक्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना में.
याने कि अब आप अपने हाल से खुद निपटिये और सरकार आपकी
मुसीबतों से निपटने के लिए दुआ और उस हेतु आपको शक्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना
करेगी.
मौके का इन्तजार करो कि जब ये ही लोग पाँच साल बाद आपके पास
अपनी चुनाव जीतने की मुसीबत को लेकर आयें तो आप सूद समेत तहे दिल से दुआ देना,
बस!!
वोट किसे दोगे ये क्यूँ बतायें! ये तो गुप्त मतदान के
परिणाम बतायेंगे.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के
दैनिक सुबह सवेरे में रविवार नवम्बर २४, २०१९ में प्रकाशित:
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2 टिप्पणियां:
अति उत्तम लेख
सही कहा। हमारे यहाँ तो फिल्म भी कहती हैं कि इन्हे दवा नहीं दुआ की जरूरत है इसलिए शायद लोग सोचते होंगे कि अगर दुआ ही काम आनी है तो सबसे पहले वही क्यों न सरका ली जाये।
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