ऐसा कहते हैं कि नेता पैदा होते हैं, बनाये
नहीं जाते.
कहना ऐसा चाहिये था कि नेता के घर नेता पैदा
होते हैं, बाकी के सिर्फ जुगाड़ से बन सकते हैं.
क्या ये वैसा ही नहीं है जैसे व्यापारी के घर
में व्यापारी पैदा होते हैं. अमीर के घर अमीर. वकील के घर अक्सर वकील, किसान के घर
किसान, बाहुबलि के घर बाहुबलि और गरीब के घर गरीब? अपवाद तो खैर हर तरफ होते ही
हैं.
नेता के घर पैदाईश हो जाये तो आप नेता बना दिये
जाते हैं. कभी कभी तो पीढ़ी दर पीढ़ी.
नेता के घर पैदा होना तो खैर श्यूर शॉट तरीका है
ही मगर नेता के घर में परिवार के सदस्य की हैसियत से एंट्री मिल जाना भी नेता बना
देता है. फिर चाहे नेता की पत्नी के रुप में हो, बहु के रुप में हो या दामाद के
रुप में.
इसका विस्तार तो अब इतना अधिक हो गया है कि
नेता के घर के ड्राईवर, पीर, बावर्ची, भिश्ती, खर और बॉडीगार्ड
भी नेता बन जाने की आहर्ता रखने लगे हैं.
मान्यता तो यह भी है कि अच्छे दोस्त परिवार के
सदस्य के समान ही होते हैं, तो वो इस श्रेणी में नेता के परिवार का हिस्सा बन कर
नेता हो लेते हैं. अब अच्छे दोस्त की परिभाषा कृष्ण सुदामा वाली रही नहीं. आजकल तो
जिसके पास जितना ज्यादा पैसा, वो उतना अच्छा दोस्त. अक्सर तो असली भाई, बहन से
ज्यादा सगा अमीरी की खनक वाला दोस्त होता है.
वैसे तो यही मुख्य मार्ग है नेता हो जाने का
किन्तु जिस प्रकार मंजिल तक पहुँचने का एक मुख्य मार्ग होता है तो कभी कभी कोई
पहाड़ी रास्ता लेकर, किसी नाले से तैर कर और कच्ची पगडंडी पकड़ कर भी मंजिल तक पहुँच
जाता हैं. यह मार्ग अति जटिल होते हैं. उदाहरण स्वरुप जेबकतरई से अपना कैरियर शुरु
कर चोरी, डकैती और गुंडागीरी की राह से गुजरते हुए बाहुबली की हैसियत से भी नेता
बना जा सकता है. बना क्या जा सकता है, बन ही रहे हैं नित नियमित. हालत ये हो गये
हैं कि जिनके पीछे कभी पुलिस घूमा करती थी, आज उनके आगे पुलिस चल रही है. गुंडई जब
नेतागीरी में तब्दील होती है तो यह बदलाव हो ही जाता है.
गुंडई से याद आया कि आजकल संतई से भी नेतागीरी
की राह मिल जाती है. गुंडई हो या संतई, या तो जेल ले जाकर छोड़ती है या संसद. अपवाद
तो फिर यहाँ भी हैं.
एक बार मैने एक बड़े नेता से पूछ लिया था कि
आपके जमीनी कार्यकर्ता तो आपको बहुत चाहते हैं. आपकी हर रैली में झंडा उठाकर चलते
हैं. आपके जिन्दाबाद के नारे लगाते नहीं थकते. आप तो इनको पक्का आगे ले जाओगे. यही
अगले नेता होंगे?
नेता जी मुस्कराये और धीरे से कान में
फुसफुसाये कि अगर इनको नेता बना देंगे तो फिर झंडा कौन उठायेगा? नारे कौन लगायेगा?
कभी कभी किसी अमीर व्यापारी के कर्मचारी भी बॉस
के दिखावटी अपनत्व के भुलावे में आ कर यह भ्रम पाल बैठते हैं कि एक दिन बॉस के
बराबर हो जाऊँगा..बस!! वैसा ही कुछ भ्रम पाले लाखों की तादाद में कार्यकर्ता झंडा
उठाये, नेता जी की जिन्दाबाद के नारे बुलंद कर रहे हैं. पुनः, अपवाद स्वरुप कुछ
कर्मचारी वाकई कमाल कर जाते हैं वैसे ही कुछ कार्यकर्ता नेता बन भी जाते हैं. मगर
यह उसी भ्रम को और मजबूत करने का साधन मात्र है. इसे नियम न मान बैठना.
नेतृत्व की क्षमता नहीं, नेता की ममता आपको
महान नेता बनाती है.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार
दिसम्बर ३०, २०१८
को:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (31-12-2018) को "जाने वाला साल" (चर्चा अंक-3202) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सच्ची और सटीक बात व्यक्त की है
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