बचपन में हमसे बीबीसी रेडिओ और अखबार पढ़ने को
कहा जाता था खासकर संपादकीय ताकि भाषा का ज्ञान समृद्ध हो. वाकई बड़ी सधी हुई वाणी
रेडिओ पर और जबरदस्त संपादकीय और समाचार होते थे अखबारों में. अखबारों में वर्तनी
की त्रुटियाँ कभी देखने में न आतीं. कभी किसी शब्द में संशय हो तो अखबार में छपी
वाली वर्तनी को सही मानकर लिख लेते थे और हमेशा सही ही पाये गये.
वक्त बदल गया. समाचार पत्र खबरों के बदले सनसनी
परोसने लगे. पहले तो वाक्यांशों और मुहावरो का प्रयोग कर कर के बात का बतंगड़ बनाने
में महारत हासिल की, फिर हिन्दी अखबार कहने को हिन्दी के रह गये और अंग्रेजी
देवनागरी में इस तरह मिला जुला कर लिखी जाने लगी तो घबड़ाहट में अकहबार लेना बंद कर
दिया, कहीं बच्चे ये पढ़ न लें. क्या होगा उनके भाषा ज्ञान का? मगर जब चारों तरफ
कीचड़ बजबजा रहा हो तो घर की खिड़की बंद कर लेने से कचरा दिखना तो जरुर बंद हो
जायेगा मगर बदबू झीरियों से घूस ही आयेगी देर सबेर.
कल कुछ समाचार पढ़ रहा था. जहाँ एक ओर हिन्दी का
जबरद्स्त प्रयोग वहीं साथ में अंग्रेजी का मिश्रण. बानगी देखें:
अग्निदग्धा चल बसी, सोसाईड नोट मे लिखा कि दहेज
के लिये इन-लॉ करते थे टॉर्चर
बच्चों में कुपोषण के निवारण हेतु दिये
एक्स्पर्टस ने दिए जबरदस्त टिप्स
ब्लॉक हुए नाले, हो रहे ओवरफ्लो – पूरी बस्ती में बदबू का सामराज्य
एग्जाम डेट घोषित मगर बिजली गुल रहती है सारी
सारी रात
सर्द भरी हवा ने छुटाई बच्चों की किटकिटि,
प्रशासन इग्नोर कर रहा है स्कूल टाईम बदलने की मांग
अंखियों से गोली मारे गर्ल प्रिया प्रकाश
वारियर- गुगल की मोस्ट सर्चड २०१८
राजधानी में मच्छरों से हाईटेक जंग की तैयारी-
स्मार्ट सिटी पोल पर लगे सेंसर बताएंगे कहां हैं किस प्रजाति के मच्छर (कौन जाने
प्रजाति जानकर करेंगे क्या..सिर्फ दलित मच्छरों को मारने की तैयारी में हैं क्या?)
हालत यह हो गये हैं कि अब यह सब मंजूर भी है पाठकों
को और हम जैसे लोग भी इसे न जाने कब अपने लेखन में उतार चले, पता ही नहीं चला.
खासकर मेरे आलेखों में तो इनकी छाप जमकर उतर आई है. शायद कनाडा में रहते रहते दिन
भर अंग्रेजी में बात करने के बाद लिखते वक्त उन अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल
बिना दिमाग पर जोर डाले लेखन की शैली बन गया है.
ऐसे ही कुछ स्थानीय भाषा का सनसनी में प्रयोग
भी देखते बनता है आजकल के अखबारों में. मैं मध्य प्रदेश से ताल्लुक रखने वाला
अक्सर वहाँ के स्थानीय समाचार पढ़ते पढ़ते विचारों में ऐसा महसूस करने लगता हूँ जैसे
जबलपुर में किसी पान की दुकान पर खड़ा हूँ, देखें:
इनामी बदमाश ने हवलदार को धोबी पछाड़ पट्क्कनी मारी
और हुआ फरार
५० रुपये की उधारी के चलते विवाद, रॉड से सिर
खोला
सिपाही ने जड़ा कन्टाप
मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस में
सिरफुटौव्वल
जीते बागियों से मानमन्नुवल, घर वापसी की
हुँकार
मजनू अभियान में ७५ शहोदों को पक़ड़ पुलिस नें
बनाया उनके सर पर चौगड्ड़ा
बंदरों ने जनसंपर्क पर निकले नेता जी को खदेड़ा
हार का ठीकरा बागियों के सिर फोड़ा
वैसे कुछ वाक्यांश और मुहावरे जो हम यहाँ यूँ
तो शायद ही कभी प्रयोग करें मगर समाचार पत्र उनकी याद दिलाते रहते हैं, इसके लिए वो निश्चित ही साधुवाद के पात्र हैं:
सईंया भये कोतवाल कि भईया, अब डर काहे का
(विधायक का भतीजा खुलेआम चला रहा है जुएं की फड़)
पूत के पांव पालने में दिखते हैं- बालक कौटिल्य
है भारत का गुगल बाबा
हर शाख पर उल्लु बैठा है (इसका समाचार क्या
बतायें, वो तो आप सब जानते ही हो)
उल्टी गंगा बही- अर्थशात्रियों को अर्थशास्त्र
पर सलाह दे रही है सरकार
ईंट से ईंट बजा कर रख दी – (इसके तो ढेर सारे
समाचार हैं)
आईना दिखना – (जनता ने आखिर आईना दिखा ही दिया)
सूपड़ा साफ होना – पूरे देश से कांग्रेस का सूपड़ा साफ (२०१४) (आने वाले समय में शायद
नाम बदल जाये मगर मुहावरा यही चलेगा समाचार पत्र में)
वैसे हाल ही में किसी मित्र ने बताया कि सूपड़ा
साफ होना भले ही समाचार पत्र पार्टी की हार जीत से जोड़ कर देखते हों मगर इसका सही
अर्थ है:
’सूपड़ा या सूपड़ा सरकंडों,सीकों
आदि का बना हुआ एक प्रसिद्ध उपकरण जिससे अनाज फटका जाता है. यह अनाज ,दालों
और राई,जीरा जैसे मसालों में से छिलके,तिनके और उनके
थोथे दानों को अलग करने के काम आता था. इसको काम लेना किसी कला से कम नही होता था.
अनाड़ी छिलकों के साथ अच्छे स्वस्थ बीजों को भी उडा़कर कचरे में मिला देता,
ऐसे
में सूप में कुछ नही बचता. ऐसी ही स्थिति किसी भी क्षेत्र में आ जाने को 'सूपडा़
साफ़ होना 'कहते हैं’
ज्ञान प्रसाद अच्छा लगा मगर फिर उठ कर आईने में
देखा तो आईना बोल उठा ’ओ जनाब, सूपड़ा साफ होने पर लिख रहे हो तो तस्वीर खुद की
लगाना और उदाहरण अपने बालों का देना, पूरा सूपड़ा साफ होने को है.’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार
१६ दिसम्बर, २०१८ के अंक में:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
6 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-12-2018) को "हमेशा काँव काँव" (चर्चा अंक-3188) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-12-2018) को "हमेशा काँव काँव" (चर्चा अंक-3188) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-12-2018) को "हमेशा काँव काँव" (चर्चा अंक-3188) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत शानदार 👌
मजा आया पढ़कर बहुत ही शानदार पोस्ट
बढ़िया लिखा है। जैसा हम बोलते हैं, वैसा ही तो लिखेंगे। इसमें कोई बुराई नहीं है, मेरी समझ से।
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