एटीएम में नोट नहीं,
अगली बार वोट नहीं.
हमेशा की तरह राष्ट्रीय
चिंतन हेतु तिवारी जी सुबह सुबह नुक्कड़ की पान की दुकान पर आ चुके हैं और यही नारा
लगा रहे हैं. हमेशा की तरह आज भी वह भड़के
हुए हैं कि चलो, १५ लाख न दिये तो न सही. वो तो हमें लग ही रहा था कि वोट के चक्कर में फेंक रहे हैं. उसका तो हम इनसे अगली बार
हिसाब मांगेंगे. आने दो दरवाजे पर. मगर हमारा पैसा, हमारा खाता और एटीएम
से कुछ निकल ही नहीं रहा है. कैशलेस इकनॉमी की बात करते
करते ये तो कैशलेस एटीएम टिका गये. मुहावरा बदल दिया है इन
सबने मिलकर. आज इन्सान दर दर की जगह
एटीएम एटीएम भटकते रहे, कहता है.
वे कहने लगे कि इनके चलते
आज हमारी हालत नन्दू के समान हो गई है. उसके तो खाते में
पैसे होते नहीं हैं और उधारी सर तक चढ़ी है. जब कोई अपनी उधारी
वापस मांगता है, तब उसे तो मस्त बहाना मिला
हुआ है. सबसे कह देता है कि बस!! जैसे ही एटीएम में कैश आयेगा, निकाल कर दे दूँगा. देनदार भी क्या कहे, उसे भी पता है कि एटीएम में पैसा ही नही है. कल हमको दूध वाले को पैसा देना था, हमने कहा कि भई, एटीएम में कैश आ
जाने दो तो दे देंगे. दूधवाला कहने लगा कि क्या
तिवारी जी, आप भी नन्दूबाजी पर उतर आये? बताओ, इस सरकार के चलते हमारी
इज्जत दौ कौड़ी की रह गई है. वरना भला किसी की मजाल होती
कि हमारा नाम नन्दू से जोड़ कर देखता.
नन्दू को तो क्या है. एटीएम में कैश हो या न हो, उसका तो कुछ निकलना नहीं है. उसके तो खाते में ही कैश नहीं है. एटीएम में जब से कैश खत्म हुआ है वो तो सरकार का अंध भक्त
हो गया है. हर समय कहता फिर रहा है कि
जो साठ साल में नहीं हुआ वो इस चार साल में कर दिखाया. अगली बार फिर यही सरकार. दिन भर बैठा व्हाटसएप करता रहेगा कि ६० साल में क्या नहीं
हुआ. इन चार साल में क्या हुआ है
वो तो कुछ बताने लायक है नहीं, तो पहले क्या नहीं हुआ..वही बखाना जाये वाली सोच में जुटा है. सारी भक्त मंडली वही कर रही है.
वैसे सोचो तो बात सही भी है, पिछले साठ सालों में कभी ऐसा मौका ही नहीं आया कि आपका पैसा
और आप ही न निकाल पायें अपने बैंक से. एटीएम को आये हुए भी
माशाअल्ला बरसों बीते. कभी न सुनते थे कि शहर भर
के एटीएम खाली हो गये.
शहर भर से कैरोसिन गायब
होते देखा है, पैट्रोल गायब होते देखा है, शक्कर गायब होते देखी है और यहाँ तक कि ईमान भी गायब होते
देखा है, नेताओं को गायब होते तो खैर
हमेशा ही देखा है मगर कैश गायब हो जाये, ऐसा पहली बार हुआ है. वाह!! क्या विकास किया है? मान गये. इतिहास याद रखेगा.
तिवारी जी गुस्से में बड़बड़ा
रहे हैं कि अब अगले चुनाव में वोट गायब होते हुए देखना!! समझे कमलु!
तभी किसी ने कहा कि सुना है
नगर निगम चौक वाले एटीएम से कैश आ रहा है. सुन कर लगा कि कैश न
हुआ मुआ पानी हो गया है कि फलां नल से आ रहा है बस.
तिवारी जी ने रिक्शा
रुकवाया नगर निगम चौक जाने के लिए तो वो कहने लगा कि बाबू जी, कैश लेंगे, है न?
तिवारी जी बोले अबे कैश ही
होता तो काहे जाते वहाँ? एटीएम से इश्क तो है नहीं ..कैश ही तो निकालने जा रहे हैं.
और अगर वहाँ पहुँचते तक
उसमें कैश खत्म हो गया तो? रिक्शा वाला पूछ रहा है.
तो क्या, कहीं भागे तो जा रहे नहीं हैं. जब आ जायेगा कैश मशीन में, तब दे देंगे. तिवारी जी ने कहा.
रिक्शा वाला बोला..नहीं पंडित जी, हमारे साथ नन्दूबाजी
न करिये..हम गरीब मानस. हमसे न हो पायेगा. हमारे पेट पर लात न
मारिये.
तिवारी जी फिर नन्दू के साथ
अपना नाम जोड़े जाने पर तिलमिलाये से ख़ड़े हैं.
पान की दुकान पर रेडियो पर
मन की बात आ रही है: अब देश में न कोई नन्दू
होगा और न कोई तिवारी..अब होगा तो बस देशवासी!! सब एक बराबर!!
याने..सब के सब फुकरे!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक
सुबह सवेरे में तारीख २२ अप्रेल, २०१८ को:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
2 टिप्पणियां:
बहुत खूब!! जिस तरह आपने नन्दूबाजी शब्द की रचना की और उसे बहुत प्रासंगिक तरीके से व्यंग में उपयोग किया , सराहनीय है |
अभिनन्दन तथा आपकी आगामी रचनाओं के इंतज़ार में......
बहुत खूब!! जिस तरह आपने नन्दूबाजी शब्द की रचना की और उसे बहुत प्रासंगिक तरीके से व्यंग में उपयोग किया , सराहनीय है |
अभिनन्दन तथा आपकी आगामी रचनाओं के इंतज़ार में......
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