आज जुगलबंदी का
विषय ’हवा’ था. हवा जब आक्सीजन सिलेंडर से हवा हो जाती है तब गोरखपुर जैसी हृदय विदारक
घटना घटित होती है जिसमें ६२ बच्चे अपनी जान से हाथ धो बैठेते हैं और कारण पता
चलता है कि सिलेंडर सप्लाई करने वाली कम्पनी को पेमेंट नहीं किया गया था अतः
सिलेंडर भरे नहीं गये. ऐसे में जब पेमेंट के आभाव में सिलेंडर से हवा गायब हो सकती
है तो हमें ही लिखने के कौन से पैसे मिले जा रहे हैं.. जो हवा विषय पर लिखते वक्त
हमारे आलेख से हवा गायब न हो सके..कम से कम यहाँ हवा गायब होने से किसी बच्चे की
जान तो नहीं जायेगी और जुगलबंदी में शिरकत की रस्म अदायगी भी हो जायेगी.
अमरीका में रहना अलग
बात है और भारत में रहना अलग
अमरीका जैसे
देशों में रहना एक विज्ञान है, यहाँ रहने के
अपने घोषित और स्थापित तरीके है, जो सीखे जा सकते
हैं ठीक उसी तरह जैसे कि विज्ञान की कोई सी भी अन्य बातें- किताबों से या
ज्ञानियों से जानकर. कैसे उठना है, कैसे बैठना है,
कैसे सोना है, कैसे बिजली का स्विच उल्टा ऑन करना है, कब क्या करना है, सड़क पर किस तरफ चलना है- सब तय है.
मगर भारत में
रहना- ओह!! यह एक कला है. इस हेतु आपका कलाकार होना आवश्यक है. और कलाकार बनते
नहीं, पैदा होते हैं.
भारत में रह पाना,
वो भी हर हाल में खुशी खुशी- इस कला को कोई
सिखा नहीं सकता- इसे कोई सीख नहीं सकता. यह जन्मजात गुण है- वरदान है.
बिजली अगर चली
जाये तो- दुनिया के किसी भी देश के वाशिंदे बिजली के दफ्तर में फोन करके पता करते
हैं कि क्या समस्या है?.... बस भारत एक ऐसा
देश है जहाँ..घर से निकल कर ये देखते हैं कि पड़ोसी के घर भी गई है या नहीं?
अगर पड़ोसी की भी गई है तो सब सही- जब उनकी
आयेगी तो अपनी भी आ जायेगी..इसमें चिन्ता क्या करना!! फोन तो पड़ोसी करेगा ही बिजली
के दफ्तर में.
ऐसी मानसिकता पैदा
नहीं की जा सकती सिखा कर- यह बस पैदाईशी ही हो सकती है!!
भारत में हम सभी
पैदा एक कलाकार हुए हैं. अभ्यास से कला को मात्र तराशा जा सकता है. गुरु अभ्यास करा
सकता है मगर कला का बीज यदि आपके भीतर जन्मजात नहीं है तो गुरु लाख सर पटक ले,
कुछ नहीं हासिल होगा. यूँ भी सभी अपने आप में
गुरु हैं तो कोई दूसरा गुरु कौन और क्या सिखायेगा?
होनहार बिरवान के,
होत चीकने पात...
कितनी सटीक बैठती
है हम कलाकारों पर..भारत में रहने की कला हर वहाँ पैदा होने वाले बच्चे के चेहरे
पर देखी जा सकती है – बिल्कुल चीकने
पात सा चेहरा. पैदा होते ही फिट- धूल, मिट्टी, गरमी, पसीना, मच्छर, बारिश, कीचड़, हार्न भौंपूं की आवाजें, भीड़ भड्ड़क्का,
डाक्टर के यहाँ मारा मारी और इन सबके बीच चल
निकलती है जीवन की गाड़ी मुस्कराते हुए. हँसते खेलते हर विषमताओं के बीच प्रसन्न,
मस्त मना- एक भारतीय.
फिर तो दुश्वारियों
की एक लम्बी फेहरिस्त है–नित प्रति
दिन-स्कूल के एडमीशन से लेकर कालेज में रिजर्वेशन तक, नौकरी में रिकमन्डेशन से लेकर विभागीय प्रमोशन तक, अपनी सुलझे किसी तरह तो उसी ट्रेक में फिर अगली
पुश्त खड़ी नजर आये और फिर उसे उसी तरह सुलझाओ जैसे कभी आपके माँ बाप ने आपके लिए
सुलझाया था- चैन मिनट भर को नहीं फिर भी प्रसन्न. हँसते मुस्कराते, चाय पीते, समोसा- पान खाते, सामने वाले की खिल्ली उड़ाते हम. ऐसे कलाकार कि भगवान भी भारतीयों को देखकर
सोचता होगा- अरे, ये मैने क्या बना
दिया?
आप खुद सोच कर
देखें कि कला और कलाकारी की चरमावस्था- जो मेहनत कर पढ़ लिख कर तैयार होते हैं वो
सरकारी नौकरी करते हैं और जो बिना पढे लिखे किसी काबिल नहीं वो उन पर राज करते हैं. यही पढ़े लिखे लोग
उन्हें चुन कर अपना नेता बनाते हैं और बात बात में उनसे मुँह की खाते हैं फिर भी
हे हे कर मुस्कराते हुए उनकी ही जी हुजूरी बजाते हैं.
इस कलाकारी को
मानने मनवाने के चक्कर में विज्ञान तो न जाने कहाँ रह गया बातचीत में. तभी शायद
कहा गया होगा कि एक कलाकार को तो वैज्ञानिक बनाया जा सकता है, पढ़ा लिखा कर, सिखा कर- बनाया क्या जा सकता है, बनाया जा ही रहा है हर दिन- भर भर हवाई जहाज भारत से आकर
अमरीका में सफलतापूर्वक बस ही रहे हैं. मगर एक वैज्ञानिक को जिसमें कला के बीज
जन्मजात न हो, कलाकार नहीं
बनाया जा सकता. कहाँ दिखता है अमरीका का जन्मा गोरा बन्दा भारत जाकर बसते?
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के अगस्त २०, २०१७ में प्रकाशित
http://epaper.subahsavere.news/c/21463059
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-08-2017) को "सभ्यता पर ज़ुल्म ढाती है सुरा" (चर्चा अंक 2704) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बुरे दिन आ गए ब्लॉगिंग के।
आनंद आ गया आपके इस रोचक आलेख को पढ़कर, कलाकारी के और नमूने देखने हों तो धार्मिक उत्सवों में देख सकते हैं, जहाँ लोग पूजा करने कम पंडाल देखने और गोलगप्पे खाने जाते हैं. वाकई मेरा भारत महान अर्थात भारतवासी महान..
ये तो है कि कलाकार आसानी से जी लेते हैं भारत में ...
w2aah bahut khoob behtareen rachna
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