शनिवार, अप्रैल 22, 2017

हद है ये कैसा राज पाट ..जिसमें लाल बत्ती भी न हो?


बत्ती उतरी कार से, मंत्री जी झुंझलायें
ये वीआईपी कार है, कैसे यह बतलायें
कैसे यह बतलायें, कोई तो राह बताओ..
मंत्री न हो आम, कोई तो साख बचाओ..
मैं बोला कि आप अब कर दो एक कमाल
बैठो छत पे कार की, पहन के टोपी लाल!!
-समीर लाल ’समीर’

किसी जमाने में कुण्डली बांच कर पंडित जी बताया करते थे कि तुम्हारी कुण्डली में राज योग है. १६ अश्वों के रथ में सवार होकर एक दिन चक्रवर्ती सम्राट बनोगे.
सम्राटों को जमाना तो खैर लद गया मगर राज पाट और राज योग तो फिर भी जारी रहा.
कुछ बरसों पूर्व हरिद्वार में एक पंडित मेरी हथेली थामे मेरा भाग्य बांच रहा था...राज योग है..एक दिन लाल बत्ती की गाड़ी में घूमोगे. खजाने में हजारों हजार के नोट भरे होंगे. फिर इस भविष्यवाणी के साथ मुस्कराते हुए पंडित जी बोले- तब हमको ही अपना राज ज्योतिष रखना...ऐसा प्रसन्न किया पंडित ने कि उसके चढ़ावे में मांगे गये उस समय के वैध्य हजार के नोट के २१ नोट मूँगफली के दाने के समान नजर आये.
मगर अब क्या बतायें?
आशीष था..खजाने में हजारों हजार के नोट भरे होंगे....इसे तो नोट बन्दी ने ऐसा खारिज किया गया कि जित्ते जमा थे वो भी जार जार रोये कि क्यूँ जमा हुए? बेहतर होता कि खर्च ही हो लिए होते..अब तो उनका धोबी के गधे सा हाल हो गया है..न घर के न घाट के...घर में रखें तो कोहराम..बैंक में जमा करें तो कोहराम... मन किया कि उसी पंडित को बुलवायें और कहें चलो, इसे भी समेटो और अब कभी अपना चेहरा न दिखाना? मगर फिर शाप न दे दे...यह डर भी तो होता है पंडित से डील करने में..संस्कार डीएनए गढ़ देते हैं..इसलिए चुप रहे कि जब लाल बत्ती मिल जायेगी तो इस नुकसान की भरपाई कर लेंगे दो हजार वालों से...पंडित हर बार थोड़े न गलत साबित होगा?
मगर बुरे दिन फिसलपट्टी के समान होते हैं..संभलने का मौका ही नहीं देते,,,फिसलाते ही चले जाते हैं जब तक की मन भर न फिसला लें.. आज सुनते हैं कि अब लाल बत्ती से भी गये!! अब वो भी नसीब न होगी,,,
हद है ये कैसा राज पाट ..जिसमें लाल बत्ती भी न हो?
एक जमाने में कहते थे कि क्लर्क से प्रमोटेड..नामित आईएएस..जब कोई बिल पास करता है तो टोटल खुद से लगा कर देखता है..यही अंतर होता है असली आईएएस और नामित आईएएस में..असली काम करता है और नामित काम करने लग जाता है. बिना लाल बत्ती वाला मंत्री..टोटल ही लगायेगा...नई योजना तो भला क्या ला पायेगा...योजना बनाने का समय ही कहाँ बच रहेगा?
लाल बत्ती एक कॉन्फीडेन्स देती है पावर का..बिना इस कॉन्फीडेन्स के तो भला हनुमान भी जान पाते क्या कि वो उड़ सकते हैं? उन्हें भी बताया गया था कि सर, आपके पास लालबत्ती है..आप उड़ सकते हैं..तब जाकर वो उड़े थे..संजीवनी लाने वरना तो लक्ष्मण जी तभी नमस्ते हो लिए होते..
मगर अब न होगी लाल बत्ती तो न होगी!!
आदत पड़ जायेगी लाल बत्ती वाले पावर को बिना लाल बत्ती वाले पॉवर से रिप्लेस करने की..बाकी का सारा ढोल मजीरा...कमांडो..सब तो हैं ही..बस लाल बत्ती ही तो बुझी है.
वैसे भी लाल बत्ती..रेड लाईट..याद दिलाती है या यूं कहें कौंधाती है रेड लाईट एरिया का ख्याल...अंतर क्या है...कहीं तन बिकता है तो कहीं वतन बिकता है...
अपवाद तो दोनों तरफ हैं..उस रेड लाईट एरिया में भी तो मूँगफली बेचने वाले होते हैं..और इस रेड लाईट एरिया में..कुछ फकीरी की नुमाईश लगाने वाले भी दिखाई पड़ ही जाते हैं..
मगर अपवादों से दुनिया नहीं चलती..
अपवाद चिन्हित होते हैं और वास्तविक दुनिया अपवादों से इतर परिभाषित!!

-समीर लाल ’समीर’
#vyangyakijugalbandi
#व्यंग्यकीजुगलबंदी

भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में प्रकाशित
http://epaper.subahsavere.news/c/18459983


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5 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

Ghazab kaa Lekh

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

हाय रे विधाता,तरस आता है बेचारों पर !

Dr. Shailja Saksena ने कहा…

Bure din phisalpatti se hote hai...waah! badhiya vyangya!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-04-2017) को

"जाने कहाँ गये वो दिन" (चर्चा अंक-2623)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Anita ने कहा…

लाल बत्ती गयी, लालफीताशाही भी जा रही है..देश वाकई नया बन रहा है