कई लोग फेस बुक पर इस तरह
लाईक करते नजर आते हैं मानो कोई नेता रोड़ शो में सबका हाथ हिला हिला कर अभिवादन कर
रहा हो. देखा पहचाना किसी को नहीं, हाथ हिलाया सबको. इनका संघर्ष मात्र
इतना सा है कि आप देख लो कि यह सक्रिय हैं और आपको पसंद करते हैं.
एक सज्जन है उनके बारे में
दावे से कह सकता हूँ कि या तो वो कोई टू डू टास्क टाईप की लिस्ट मेन्टेन करते हैं
कि किस दिन किस की वाल पर जाना है या फिर तोते से नाम की पर्चियाँ कढ़वाते हैं, तोता जिनके नाम निकाल दे, उन्हीं के वाल पर निकल लिये और धड़धड़ाते हुए सबसे नई पोस्ट
से लेकर पिछली बार की लाईक की आखिरी पोस्ट तक लाईक करते चले गये.७ मिनट में १७ आलेख वो भी ५००-५०० शब्दों वाले लाईक किये और ये चले. इनका नाम लिमका बुक में फास्टेस्ट रीडिंग में दर्ज होना
चाहिये.
उनकी बेइन्तहा लाईक देखकर
कई बार लगने लगता है कि सही उम्र के मोड़ पर मिले होते तो मोहब्बत हो गई होती. इतना भी भला कोई किसी को चाहता है क्या?
इनसे उपर की पायदान पर वे
फेसबुकिया बैठे हैं जिनकी वाल आपके भरोसे चलती है. वे मात्र शेयर में भरोसा रखते
हैं. जो पोस्ट दिखी, बस शेयर. आपको भी अच्छा लगता है कि उनको इतना अच्छा लगा कि
शेयर किया है अपने चहेतों के बीच और जाकर देखिये तो शेयर पर एक भी लाईक नहीं. इनकी
वाल लदी रहती है शेयर्ड पोस्टों से और यह निर्लिप्त भाव से उस बोझ को बढ़ाते चलते
हैं. आपने नेताओं के साथ ऐसे समर्थक को जन प्रचार के वक्त डोर टू डोर अपने पहचान
वालों के यहाँ ले जाकर मिलवाते देखा होगा जो दरवाजा खोल कर मिल तो लेते हैं, मगर
उनके चेहरे के भाव साफ कहते हैं कि चलो, मिल लेते हैं मगर हमसे कोई आशा न रखना.
फिर वो दिग्गज
हैं जिनकी लिए किसी ने इमोटिकॉन बनाये होंगे. वे निश्चित ही पोस्ट पढ़ कर ही
इमोटिकॉन चिपकाते होंगे, वरना खुशी में नाचने वाला, चिंतन में आँख घुमाने वाला और
गुस्से में लाल मूँह वाला इमोटिकॉन चिपकाना भी आसान काम नहीं. यह मात्र अपने को
जमीन से जुड़ा नेता दिखाने की कोशिश मात्र है बिना टिप्पणी लिखने की मेहनत किये
हुए. जैसे वो सारे राज्य सभा के सदस्य. जनता के प्रतिनिधी, जनता के प्रतिनिधियों
के द्वारा चुने हुए या उनके द्वारा नामित हुए वाले.
फिर आते हैं असल ग्राऊण्ड
ट्रोडन..जमीन से जुड़े नेता. पूरा कायदे से पढ़ेंगे, पढ़ कर सारगर्भित टिप्पणी करेंगे
और अपने द्वार पधारने का निमंत्रण भी देंगे. सुधार के सुझाव भी छोड़ जायेंगे. नमन
है इनको निश्चित ही मगर इनकी आड़ में कई लिख कर दिखने जैसा कट पेस्ट लगाने वाले कि
बहुत खूब, उम्दा, सतीक, बेहतरीन...आदि वो लोग हैं जो मात्र इस लिए चुनाव जीत जाते
हैं कि फलानी पार्टी के हैं और उस पार्टी की लहर क्या सुनामी चल रही है..इनसे
सतर्क रहना चाहिये थोड़ा सा..बहुत नहीं.
कुछ तो अध्यात्म के उस
अंतिम मुकाम पर पहुँचे पीर हैं जो हर घटित होने वाली घटना को मात्र साक्षी भाव से
निहारते रहते हैं. वे फेसबुक पर होते हुए भी नहीं हैं. देखते सब कुछ हैं मगर बस
साक्षी भाव से. न लाईक करते हैं न कमेंट और न ही शेयर. यह महामना इन सब से बहुत
उपर उठ चुके हैं. कभी व्यक्तिगत तौर पर मिलो तब जान जाओगे जब ये कहेंगे कि हाँ,
देखी थी तुम्हारे पोते की फोटो, बहुत प्यारा है या फिर कि काफी जगह घूम आयेहो इन
छुट्टियों में...यात्रा वृतांत अच्छा था. ये फेसबुक की अनजान कुंदराओं में बैठे
फेसबुकिया बाबा हैं. अक्सर किसी प्रदेश के गवर्नर या कभी कभी देश के मुखिया बनने
की भरपूर गुजांइश लिए लोग.
एक और होते हैं जो टैग करते
हैं, मगर हम उनके बारे मॆं कुछ नहीं कहेंगे क्यूँकि यह काम अलग अलग उद्देश्यों से
किया जाता है, हर बात में राजनिती नहीं होती. बात तो हमने निर्दलियों की भी नहीं
की.
ये फेसबुक है कि राजनीत का
अखाड़ा...हम भी कहाँ की लेकर बैठ गये..आप तो बस कमेंट करो जी!!
आज मार्च १६,२०१७ के भोपाल से प्रकाशित
सुबह सवेरे में
http://epaper.subahsavere.news/c/17556138
9 टिप्पणियां:
बिलकुल दुरुस्त फ़र्माया आपने -हम सहमत हैं 105% .
Behtreen
मस्त ... तरह तरह के फेस्बुकिया ...
फेसबुकिये कैसे-कैसे....
सटीक आकलन!
अच्छी व्याख्या .......हँसाते हुए धरातली वास्तविकता से परचित कराया आपने
आपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी कल रविवार 19 मार्च 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।
चर्चाकार
"ज्ञान द्रष्टा - Best Hindi Motivational Blog
बढ़िया।
जमाना ही फेसबुकियों का हैं कोई करे तो क्या करें
सटीक पोस्ट
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