अहंकार का दौर है. हालात यूँ बदले कि जब एक साहित्य रत्न से नवाजे गये उच्च
श्रेणी के साहित्यकार से मुलाकात हुई तो उन्हें कविता की शुरुवात पूर्ण विराम लगा
कर करते देखा.
आज तक पंक्ति के अंत में
पूर्ण विराम देखते आये थे. यही बचपन से पढ़ाया लिखाया
गया था. आश्चर्य हुआ कि इतना नामी
साहित्यकार आखिर पंक्ति की शुरुवात पूर्ण विराम से कैसे कर रहा है? पूछने का मन तो हुआ मगर साहित्य रत्नों से प्रश्न पूछने के
न तो संस्कार हैं और न ही अनुमति. ये सब साहित्यकार साहित्य
रत्नों से नवाजे जाते ही मानो आर टी आई से बाहर हो जाते हैं. न तो आप उनसे ये पूछ सकते हैं कि किस बात पर नवाजे गये और न
ही यह कि आज तक आपका साहित्य के प्रति क्या योगदान रहा है?
वैसे आर टी आई लगा भी दिया
जाये तो साहित्य रत्न से नवाजे जाते ही ये सब अपने बारे में न तो कुछ बोलते हैं और
न ही बताते हैं. समय ही नहीं होता. न लिखने का वक्त मिलता है और न पढ़ने का वक्त. इतने समारोह अटेंड करने पड़ते हैं कि उसी में साहित्य के
गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते ही पूरा दिन निकल जाता है. फिर नवांकुरितो को सलाह देने के बहाने अपने गुट में शामिल
करते चलने में भी भरपूर परिश्रम की आवश्यक्ता होती है.
ऐसे व्यस्तता के दौर में
महोदय लिख रहे हैं, वही काफी है. भले ही पूर्णविराम से पंक्ति की शुरुवात कर रहे हैं तो क्या?
समरथ को नहीं दोष गोसाईं...अमिताभ बच्चन छेद वाली बनियान पहन कर आ जाते थे तो हमारे
जमाने में वही फैशन बन जाता था. हो सकता है पूर्ण विराम से
लेखन की शुरुवात का ही फैशन चल निकले इन नामचीन महोदय चलते. बड़े लोगों का अन्दाज कुछ तो अलग होता ही है तभी तो बड़े कहलाते
हैं. यही विचार कर चुप्पी साधे
बैठे रहे.
फिर जब आज एक समारोह में
माननीय ने कहा कि प्रश्न पूछना ही अज्ञान के अंधकार को दूर करने का एक मात्र उपाय
है और आज की नई पीढ़ी प्रश्न पूछने से कतरा रही है. वो भयभीत है कि उनकी अज्ञानता के
बारे में दूसरे न जान जायें. यह सुन कर एकाएक मेरी हिम्मत जागी.
उस शाम उनके घर जाकर अपनी
शंका का समाधान चाहा तो जबाब सुनकर दंग रह गया. कहने लगे कि मेरे लेखन का स्तर ही
ऐसा है कि जहाँ आकर सारी कलमें थम जाती हैं मेरी कलम वहाँ से बात शुरु करती है.
इसलिए मैं पूर्णविराम शुरु में लगाता हूँ कि अब तक जो कुछ भी पढ़ा सुना हो उसके आगे
की बात सुनो..यही तो वजह है कि ....
बस!! फिर वह अन्य
नवांकुरितों के साथ व्यस्त हो गये और हमने उनका छोड़ा अधूरा वाक्य खुद ही पूरा कर
लिया मन ही मन...
यही तो वजह है कि हमें
साहित्य रत्न से नवाजा गया है...
कुछ न कुछ अलग सा नहीं
करोगे तो बस!! लिखते रह जाओगे ..कुछ अलग करो मितरों!!
9 टिप्पणियां:
Badhiya!!
हा हा... बढ़िया!!!
कोई अनपढ़ सम्मान भी है तो वो मैं बाई हूक ऑर क्रूक, लेना चाहूँगा :)
बढ़िया :)
:) बहुत खूब ।
उडन तशतरी जी प्रणाम।
टिप्पणी शब्द पढ कर फिर से पुराना दिन याद आ गया ;)
Bahut khub likha aapne.bahut bahut badhai...
बहुत बढ़िया
बहुत बढ़िया
बहुत खूब ।
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