धूप में फिल्मी हीरोईनों को छाता लगा कर निकलते
देख बचपन में बड़ा अचरज होता था कि बारिश की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं, इतनी
बढ़िया धूप खिली है फिर यह मोहतरमा छाता लगा कर क्यूँ चली जा रही हैं. थोड़ा बड़ा हुए
और ज्ञानियों की संगत मिली तो ज्ञान चक्षु स्वतः खुल गये. लक्स से नहा कर निकली इन
हीरोइनों की कोमल एवं गुलाबी त्वचा को धूप से नुकसान पहुँच सकता है इस हेतु
सावधानी बरतते हुए धूप में छतरी लगा कर निकलती है. हमारे जैसे श्याम वर्णिय और
शहरे की धज्जियाँ उधडी सड़कों से समान त्वचा वाले के लिए ऐसा कुछ सपने में भी सोच
पाना संभव न होता अगर ज्ञानियों की संगत न मिलती तो. वरना हर बात इन्सान खुद पर
लागू करके ही तो सोचता है. कौन सा नेता किसी और को ईमानदार मान सकता है जब तक वो
हर बात खुद पर लागू करके देखता रहेगा. यह इन्सानी स्वभाव है. सारे नजरिये इन्सान
खुद के अनुरुप खुद को सामने रख कर बनाता है.
ऐसे में जब बात अपने विरोधी दल के शिखर पुरुष की
करना हो और कोई सीधा आरोप लगाने को न मिले, तब इसे तंज कहो या झेंप, इसके सिवाय और
क्या रास्ता बचता है कि कोई भी ऐसा मुहावरा गढ़ दो जिसका न सर हो न पैर...जैसे ’ये
तो बाथरुम में नहाने भी जाते हैं तो रेन कोट पहन कर कि कोई छींटा न पड़ जाये’ अब
बताओ, नहाने जाना कोई मजबूरी है क्या? किसे दिखाना है कि नहाने गये कि नहीं जो रेन
कोट पहन कर जायें? वो भी तब जब इतने उच्चासीन हों कि जेड़ सिक्यूरिटी के चलते खुद से
खुद को देख पाना भी मुश्किल हो. सिक्यूरिटी का रक्षा कवच ऐसा कि छत पर भी नहा लें
तो भी चिड़िया तक न देख पाये.
अगर वो आपके लिए विरोधी है तो उनके साथियों और
चहेतों के लिये आप भी विरोधी ही हैं..उन्हीं में से कोई बोल उठा –’शायद खुद डायपर पहन कर टायलेट जाते होंगे इसलिए
ऐसा मुहावरा सूझा’
बहुत समय से साहित्य जगत के लोग व्यंग्य और बेहूदगी
का अंतर खोजने में लगे हैं. साधुवाद इस वाकिये को जिसने इस खोज को नतीजे तक
पहुँचाया.
व्यंग्य स्वस्थ मन से कही गई बात मे शब्द की व्यंजना शक्ति द्वारा निकलनेवाला अर्थ और बेहूदगी, खीज और
झेंप मिटाने के लिए कही गई बेतुकी बात और फिर कह कर उस पर खुद ही हो हो हँसना ताकि
साथियों को पता चले कि अब उनको भी आपके समर्थन में हँसना और ताली बजाना है.
-समीर लाल ’समीर’
3 टिप्पणियां:
'व्यंग्य स्वस्थ मन से कही गई बात मे शब्द की व्यंजना शक्ति द्वारा निकलनेवाला अर्थ और बेहूदगी, खीज और झेंप मिटाने के लिए कही गई बेतुकी बात और फिर कह कर उस पर खुद ही हो हो हँसना ताकि साथियों को पता चले कि अब उनको भी आपके समर्थन में हँसना और ताली बजाना है.'
सटीक विश्लेषण!!
बढिया व्यंग्य है समीर जी!
बहुत ही बढिया व्यंग!
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