इस दुनिया में बहुत सारे
ऐसे काम होते हैं जो कितनी भी अच्छी तरह से सम्पन्न किये जायें वो थैन्कलेस ही
होते हैं. उनकी किस्मत में कभी यशगान
नहीं होता.
ऐसा ही हाल एटीएम का भी है.
कई बार तो एटीएम की हालत
देखकर लगता है कि जिस तरह से मौत को यह वरदान प्राप्त है कि उस पर कभी कोई दोष
नहीं आयेगा..दोषी कभी एक्सीडॆन्ट, कभी
बीमारी तो कभी वक्त का खत्म हो जाना ही कहलायेगा जिसकी वजह से मौत आई...वैसे ही एटीएम को यह शाप मिला होगा कि चाहे गल्ती किसी की
भी हो- बिजली चली जाये, नोट खत्म हो जायें, चूहा तार कुतर जाये..दोष एटीएम पर ही मढ़ा
जायेगा.
नोट निकालने वाला हमेशा यही
कहेगा..धत्त तेरी की...ये एटीएम भी न..चलता ही नहीं.
भले ही नोट निकालने वाला
अपना पिन नम्बर गलत डाल रहा है और जब एटीएम अपने कर्तव्यपरायणता का परिचय देते हुए
कार्डधारक को बताता है कि पिन मैच नहीं कर रहा...तो बजाये दिमाग पर जोर डाल कर सही पिन याद करने के, कार्डधारक उसी गलत पिन को पुनः ज्यादा जोर जोर से बटन पर
ऊँगली मार मार के डालता है मानो एटीएम ने समझने में गल्ती कर दी हो...अब एटीएम करे भी तो
क्या करे...गलत पिन पर पैसा दे दे तो
लात खाये और न दे तो ...
अंततः जब अनेक गलत पिन झेल
लेने के बाद, यह सोचकर कि कोई जेबकतरा तो तुम्हारा कार्ड उड़ाकर तुम्हारे पैसे
निकालने की कोशिश तो नहीं कर रहा है, एटीएम बंदे का कार्ड जब्त करके उसे बैंक की शाखा से संपर्क करने को कहता है तो बंदा
क्रोधित होकर एटीएम में फंसा कार्ड निकालने के लिए एटीएम को ऐसा पीटता और झकझोरता
है मानों एटीएम डर के कहेगा- सॉरी सर, गल्ती से आपका कार्ड जब्त कर लिया था..ये लो आपका कार्ड और साथ में ये रहे आपके पैसे जो आप
निकालने की कोशिश कर रहे थे और हाँ, ये १००० रुपये अलग रखिये बतौर मुआवजा क्यूँकि
आपको मेरी वजह से इतनी तकलीफ हुई..
इतना तो समझो कि इस बेचारे
एटीएम का क्या कसूर? तुम्हारी सुविधा और तुम्हारे धन की सुरक्षा के लिए ही तो ये
सब उपाय किये हैं और तुम हो कि इसे पीट रहे हो.. इसे पूर्व जन्म में किसी
पाप की एवज में शाप का परिणाम नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
हद तो तब हो गई जब हाल ही
में एक एटीएम मशीन, जिस पर ’आऊट ऑफ आर्डर” लिखा था, को एक बुजुर्ग से
कुछ यूँ डाँट खाते देखा..कि पहले बैंक जाते थे तो बाबू मटरगश्ती करके हैरान करते थे, कभी चाय पीने गये हैं..कभी पान खाने..और अब मशीन का जमाना हुआ तो
सोचा तुम विदेश से आये हो तो मुश्तैदी से काम करोगे मगर बस, चार दिन ठीकठाक से काम किया और अब तुमको भी वही हवा लग गई? हें..काम धाम करना नहीं और जब
देखो तब ’आऊट ऑफ आर्डर’...अरे, और कुछ नहीं तो बड़े बुढ़ों का तो सम्मान करो.
मैंने मशीन पर नजर डाली तो
ऐसा लगा मानो सर झुकाये बस अब सिसक कर बोलने को ही है कि हे मान्यवर, मैं तो आज भी आपकी सेवा करने को
तत्पर हूँ मगर मैं नोट छापता नहीं, बस नोट बाँटता हूँ..पहले बैक मुझमें नोट तो
डाले तब तो मैं आपको नोट दूँ...और सरकार है कि बड़े
साईज के ऐसे नोट छाप लाई है कि बैंक चाह कर भी मुझमें नोट नहीं डाल पा रहा है...
अब किसकी गल्ती गिनायें..जब
से आया हूँ, सभी बैंको को कतारमुक्त कराया. आपका धन आपके मुहल्ले के नुक्कड़ पर खड़े हो कर २४x७ हर मौसम में आपको उपलब्ध
कराया, तब किसी ने भी धन्यवाद न कहा और आज एक संकट काल से गुजर रहा हूँ तो पुनः
वही दोषारोपण कि गल्ती मेरी है.
खैर, आप मुझे ही डाँट लिजिये..चाहे तो एकाध तमाचा भी जड़ दें..कम से कम आपका मन तो शान्त
हो जायेगा..
-समीर लाल ’समीर’
5 टिप्पणियां:
मस्त.
मेरी जुगलबंदी यहाँ है -
http://raviratlami.blogspot.com/2016/11/blog-post_20.html
कई, कई क्या अधिकतर शंकालू तो उसके द्वारा प्रदान किए गए नोटों को बार-बार गिने बगैर वहां से हटते भी नहीं
Khoob Likha Hai Aapne !
बेचारी मशीनें !
मस्त ... बेचारी मशीन का कोई तो है दुनिया में ... वो सहानुभूति रखता है ... जियो समीर भाई ...
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