तितली
उस रोज ऊगी थी
बगीचे मे मेरे
गुलाब को चूमते..
आ बैठती थी काँधे पर मेरे
अपनापन पहचान
बगीचे की खुशबू से..
अब बड़ी हुई
और उड़ चली
आज शाम
रंगबिरंगी ईठलाती..
इन्तजार मेरा कहता है कि
कह सुबह वो
फिर लौटेगी उपवन मे मेरे...
कौन जाने!!
कि महज एक सोच
हर उन बुजुर्ग आँखों की...
-समीर लाल ’समीर’
31 टिप्पणियां:
यह तितलियाँ तो बस आँखों में ही बस पाती हैं ।
सुन्दर!
Bahut gahan soch utari hai kalam se hardik badhai....
Bahut sunder Sameer ji
वाह ...बहुत सुन्दर ....
इंतज़ार रहना चाहिए ... आशा बनी बनी रहनी चाहिए ...
कुछ तितलियाँ जरूर लौटती हैं बुजुर्गों के पास ...
Kya Baat Hai! Antim Pankti Ne Kavita Mein Jaan Daal Dee Hai .
बहुत खूब समीरजी
उम्मीदों की कश्ती को डुबोया नहीं करते .
बहुत खूब समीरजी
उम्मीदों की कश्ती को डुबोया नहीं करते
तितलियाँ उड़ जाती हैं - पर एक बार लौटती हैं वहाँ जहाँ बड़ी हुई थीं .
समीर भाई
अदभुत
मार्मिक
हर बुजुर्ग की उम्मीद।
किस्मत वालों की आस पूरी होती है।
इंतज़ार और उम्मीद ज़िंदगी जीने के प्रेरणा देती है
बहुत ख़ूबसूरत रचना है
नीरा
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।मेरे पोस्ट पर आप आमंश्रित हैं।!
कल सुबह वो
फिर लौटेगी उपवन मे मेरे...
कौन जाने!!
कि महज एक सोच
हर उन बुजुर्ग आँखों की...
..फिर भी इंतज़ार तो रहता है लेकिन तितली को बुजुर्ग की बात समय रहते समझ नहीं पाती ..
मर्मस्पर्शी रचना ..
कल सुबह वो
फिर लौटेगी उपवन मे मेरे...
कौन जाने!!
कि महज एक सोच
हर उन बुजुर्ग आँखों की...
..फिर भी इंतज़ार तो रहता है लेकिन तितली को बुजुर्ग की बात समय रहते समझ नहीं पाती ..
मर्मस्पर्शी रचना ..
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तितली का आना उन रंगों की याद दिलाता हैं जो कहीं खो गए हैं------
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बहुत बढ़िया जनाब :)
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हर सुबह का इंतज़ार तितली को भी है कि वह जाये उपवन में मिले अपने प्रिय से।
बहुत दिनों बाद आपकी टिप्पणी देखी। आप आजकल रहते कहां हैं?
बहुत दिनों बाद आपकी टिप्पणी देखी। आप आजकल रहते कहां हैं?
तितली के माध्यम से बुजुर्गों का इंतज़ार अपनों के लिए...
कह सुबह वो
फिर लौटेगी उपवन मे मेरे...
कौन जाने!!
कि महज एक सोच
हर उन बुजुर्ग आँखों की...
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति, बधाई.
सुंदर प्रस्तुति।
बहुत सराहनीय प्रयास कृपया मुझे भी पढ़े | :-)
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तितली रूपी रचना तितली के समान सुंदर लगी।
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