मेरी कविता
बदल दी है मैने
उन सब बातों के लिए
जो तुमको मान्य न थी...
मेरी कविता
बदल दी है मैने
उन सब बातों के लिए
जो सबको मान्य न थी...
मेरी कविता
बदल दी है मैने
उन सब बातों के लिए
जो समाज को मान्य न थी...
मेरी कविता
बदल दी है मैने
उन सब बातों के लिए
जो मजहब को मान्य न थी...
मेरी कविता
बदल दी है मैंने
उन सब बातों के लिए
जो आलोचकों को मान्य न थी..
मेरी कविता- इन सब मान्यताओं की
निबाह की इबारत बनी
अब मेरी कहाँ रही
वो बदल कर ढल गई है
एक ऐसे नये रुप में जो
काबिल है साहित्य के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशन में
प्रकाशित किए जा सकने के लिए
मेरी कविता अब इस नये रुप में
काबिल है साहित्य के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से
सम्मानित किए जा सकने के लिए..
-कर दो न प्लीज़, अब और कितना बदलूँ मैं!!
-समीर लाल ’समीर’
45 टिप्पणियां:
आपने लिखा....हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें; इसलिए बुधवार 01/05/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
इतनी बदली कवितायेँ कि कुछ अपना -सा ना रहा . लिखा था मैंने भी कवितायेँ आजकल वाद की ड्योढ़ी पर अटकी हैं :)
अब स्वान्त:सुखाय भी नहीं रह गयी.. राजकवि और जनकवि में कुछ तो अन्तर होना चाहिये..
लेकिन इतना बादल दी गयी तो फिर अपनी कहाँ रही कविता ? गहन अभिव्यक्ति
बिना कैची चलाए प्रकाशन करवाना हो तो हमसे संपर्क करें :)
लिखते रहिये ...
बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुति,आभार.
और कितना बदलूं . यक्ष प्रश्न.
गहरा कटाक्ष ...
शायद इसीलिए कहते हैं की कवि को बदलना नहीं चाहिए ...
अब कितना बदलूं मै..................अब बदलने की जरूरत कहां है, अब तो सारे सम्मान झोली में गिरे ही समझिये ।
अद्भुत
छीने सबने शब्द बराबर,
अब सब कहते, खुलकर गाओ।
kavita mein nihit jo vyangya hai vah nihaayat hee jhakjhorta hai .
Bahut umda .
बढ़िया..
्गहरा वार करती रचना
आज की ब्लॉग बुलेटिन गुम होती नैतिक शिक्षा.... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अब मेरी कहाँ रही
वो बदल कर ढल गई है
एक ऐसे नये रुप में जो
काबिल है साहित्य के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशन में
प्रकाशित किए जा सकने के लिए
मेरी कविता अब इस नये रुप में
काबिल है साहित्य के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से
सम्मानित किए जा सकने के लिए..
-कर दो न प्लीज़, अब और कितना बदलूँ मैं!!
बदलते बदलते हम स्वरुप को सचमुच अनजाना कर डालते हैं ....
अब बदलने को कुछ नहीं रहा .......... मैं तो बिल्कुल नहीं
मैं बदल गया तो कविता की असलियत बदल जाएगी ....
bahut sunder likhe hain.....
बहुत बढ़िया कटाक्ष.......
तीर सीधा जिगर के पार......
सादर
अनु
अपने लिए , जीये तो क्या जीये !
अच्छा है कविता भी औरों की हुई।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ...बेचारा कविता.
बहुत सुंदर प्रस्तुति ...बेचारा कविता.
बात तो अधेरों से रोशनी में आने की थी, फिर औरों के कहे बदलने की मजबूरी क्यों -'अप्प दीपो भव'!
इसमें क्या शंका, अब तो बिलकुल पक्का !
लाजवाब रचना |
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
Bahut khub...
Sadar
बेहद गहन भाव .... अनुपम प्रस्तुति
सादर
कवितायेँ बदल जाएँ तो जाने दीजिये खुद न बदलिए ! ले जाने दीजिये सभी सम्मान ,लालच न कीजिये !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postजीवन संध्या
latest post परम्परा
बहुत बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति ,,,
RECENT POST: मधुशाला,
कविता कभी नहीं बदलती अपने मन की कह ही देती है... गहन भाव...आभार
ज्यादा बदलने का जमाना भी नही है, बहुत सुंदर रचना.
रामराम.
मेरी कविता
बदल दी है मैने
उन सब बातों के लिए
जो तुमको मान्य न थी...
बहुत सुन्दर ... आभार
मेरी कविता
बदल दी है मैने
उन सब बातों के लिए
जो तुमको मान्य न थी...
बहुत सुन्दर ... आभार
बदलाव तो ना चाहते हुए भी होगा..
कुछ अपने आप होगा..
कुछ स्वयं करना पड़ेगा..
वर्ना इस बदलते मौसम में
पुरानें जूते काम ना देगे।
इन नयी पगडंडियों पर
चलने के लिये..
कुछ तो नया पहनना होगा।
सब कुछ बदल रहा है तो कविता भी क्यों न बदले.
Badlaav ki yah abhi vaykti bahut achchhi lagi...badhai..
अभी तो आपने ही बदली है....जरा सरकारी बाबू औऱ प्रकाशन वाले जुगाड़ु साहित्यकार जी को तो कहने दो ना...हमारे कहने से क्या होगा..बदल गई...अच्छी कविता...बेहतरीन लाइन...क्या खूब लिखी है...वगैरह वगैरह....ये तो हम कहने के आदी हैं....
परोक्ष में कविता के रूप में आप बदले पर क्यों,,,,,यहाँ यह बदलाव अखर रहा है ।।
गूढ़ अर्थ.. लोकेषणा की चाह में मंतव्य बदल जाते हैं। गंतव्य बदल जाते हैं। कवि तो वो है जो समाज को चुनौती दे। बहुमत नहीं सच के साथ खड़ा हो। बहती धारा के विपरीत भी जाने का साहस रखे। मान्यताओं की परवाह किसे है..
गजब की पंक्तियां -
मेरी कविता- इन सब मान्यताओं की
निबाह की इबारत बनी
अब मेरी कहाँ रही
bahut babut badhiya rachna.. Padh kar samajh nahi aya, ki shabdon ke khel or komal kataaksh par hansoo, ya shabdo me chhipi bhavna ke samman me 2 minute maun rakhoo..
Itni virodhi bhaavnaon ko ek hi kavita se jagaane ke liye dhanyawaad :)
ज्यूरी के बारे में पता कीजिये...और मेम्बर्स को खरीद लीजिये...सो सिंपल...बदलने की क्या ज़रूरत है भाई...
अची कविता हे ! मेरे ब्लॉग पर भी पधारे !
http://hiteshnetandpctips.blogspot.com
आपका ब्लॉग बहुत मजेदार हे ! में आपके ब्लॉग से जुड़ गया हु आप भी मेरे ब्लॉग पर पधारे ! जो तकनिकी को समर्पित हे जिसके आप शयद सोकिन हे !
http://hiteshnetandpctips.blogspot.com
bahut sundar post...
मेरी कविता---अब मेरी कहां रही
समीर जी,’एकला चलो---
bahut achi rachna ..........apki ek pustak padhi wo bhi bahut achi lagi main bhi ek ca final student hu pustak se pta chala aap bhi ek ca ho ..wakai aapki rachanae bahut achi lagi
deepak
एक टिप्पणी भेजें