सोमवार, मार्च 12, 2012

अतिथि- तुम कब जाओगे..मात्र फिल्म नहीं, एक हकीकत!!

कहते हैं कि दर्द अपनों संग बांट लेने से कम हो जाता है, सो बांट ले रहे हैं वरना बांटने जैसा कुछ है नहीं.

कुछ माह पूर्व भारत से फोन आया था. उस तरफ से आवाज आई कि कैसे हैं भाई साहब..ठीक थे सो बता दिया कि ठीक हैं. उसने बताया कि वो भारत में मेरे पड़ोस वाले शर्मा जी का भतीजा है और कनाडा आ रहा है तीन चार दिन रह कर चला जायेगा फिर चार महिने बाद परिवार को लेकर आयेगा. कोई आश्चर्य नहीं हुआ. अधिकतर लोग ऐसा ही करते हैं. फिर शर्मा जी तो पुराने मित्र ठहरे हमारे तो औपचारिकतावश हमने इनसे कह दिया कि अब तीन चार दिन के लिए कहाँ भटकोगे. घर पर ही रुक जाओ. उसने भी उतनी ही औपचारिकतावश थोड़ा सकुचाते हुए बात मान ली. कहता था कि आपकी बात नहीं मानूँगा तो चाचा जी गुस्सा हो जायेंगे. सिर्फ आपको ही जानता हूँ कनाडा में.

फिर अन्य बातों के बाद उसने कहा कि आपके घर तक आऊँगा कैसे? उनके कनाडा पहुँचने का दिन रविवार था तो हमने कह दिया कि एयरपोर्ट पर हम आ जायेंगे आपको लेने. बहुत खुश हो गया वह, उसकी बाँछे खिल गई. यूँ भी ऐसे न जाने कितने ऐसे मेहमानों को एयरपोर्ट से ला चुका हूँ जिनसे पहली बार एयरपोर्ट पर ही मिला हूँ...अब उसकी बारी थी- पूछने लगा कि आपके लिए कुछ लाना है क्या भाई साहब या भाभी से पूछ लिजिये, उनके लिए कुछ लाना हो तो. अब क्या कहते- कह दिया कि नहीं, कुछ विशेष तो नहीं चाहिये. सोचा कि दिल्ली से डोडा मिठाई और ड्यूटी फ्री से बॉटल तो खुद ही लोग समझ कर ले आते हैं, उससे ज्यादा क्या बोलना. हमेशा ही तो गेस्ट आते हैं. कभी बोलना कहाँ पड़ता, अपने आप ही लेते आते हैं बेचारे....सो फोन बन्द और हमारा इन्तजार शुरु रविवार का.

ईमेल से उसने फोटो और अपनी फ्लाईट वगैरह बता दी थी, तो रविवार को उसे एयरपोर्ट पर देखते ही पहचान गये.एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही साकेत (यही नाम है उसका) ठंड से कांपने लगा. मैने उससे कहा कि गर्म जैकेट निकाल लो अपने सामान से. ठंड बहुत है.

वो कहने लगा कि दिल्ली में तो बहुत गर्मी थी और यहाँ इतनी ठंड का अंदाजा नहीं था.. तो गरम कपड़े लाया ही नहीं है. खैर, कार में हीटिंग तेज कर दी. सोचा कि कल उसे बाजार लेते जायेंगे तो खरीद लेगा.

घर पहुँचते ही उसने भाभी जी को पैर छूकर और सुन्दर बता कर प्रसन्न कर दिया. बातूनी ऐसा कि पूछो मत!! लगातार बात करता जाये. एक बार जो शुरु हुआ तो बन्द होने का नाम ही नहीं ले रहा था..तुरंत घुलमिल गया. भाभी जी मैं प्याज काट देता हूँ. मैं चिकन बना देता हूँ और न जाने क्या क्या..प्याज तो क्या कटवाते मगर उस चक्कर में चिकन तुरंत बनाना पड़ा क्यूँकि पत्नी ने तो शर्मा जी सुनकर शाकाहारी भोजन बनाया था.

उनको कमरा दिखा दिया गया. बाथरुम दिखा दिया. नहाने घुसा तो पूरे एक घंटे नहाता रहा और जब वो निकला तो मुझे लगा कि शैम्पू और बॉडी वाश से मानो नहाया न हो, पी गया हो. एकदम नई नई बोतलों में आधे से भी ज्यादा समाप्त. मेहमानों के बाथरुम में वैसे भी नया ही रखा जाता है. शैविंग क्रीम भी बंदे ने तबीयत से लगाई और ऑफ्टर शेव से तो जैसे डुबकी लगा कर निकला हो. पूरा बाथरुम गमक रहा था. खुद से मेरे ड्रेसिंग रुम में आकर परफ्यूम लगा लिया वो भी वो वाला जो मैं खुद भी कभी कभार पार्टी आदि में जाने के लिए इस्तेमाल करता हूँ.

फिर टहलते हुए पहुँच गया मेरे बार तक. अरे वाह, आप तो बहुत शौकीन हैं भाई साहब. कौन कौन सी रखे हैं? और बस, ब्लैक लेबल की बोतल उठाकर प्रसन्नता से गिलास बनाने लगा. मुझसे भी पूछा कि आपके लिए भी बनाऊँ? बनाना तो था ही हाँ कर दी. फ्रिज से बरफ, सोडा निकाल कर शुरु हो गये.

यहाँ वैसे भी ड्रिंक्स के साथ ज्यादा स्नैकिंग की आदत नहीं होती मगर अब वो- भाभी जी, जरा दो चार अंडे की भुर्जी बना दिजिये तो मजा ही आ जाये. क्या बढ़िया खाना महक रहा है. इतनी खुशबू से ही पता लग रहा है कि आप बहुत अच्छा खाना बनाती है और फिर भाई साहब की काया तो खुद गवाही दे रही है कि आप कितना लजीज बनाती होंगी. ये लो, बात बात में हमें मोटा भी बोल गया.

उधर उनकी भाभी जी अपनी तारीफ सुनकर भरपूर प्रसन्न. कौन महिला न होगी भला. खूब रच कर अंडे की भुजिया बनी. तब तक उन्हें ड्रिंक्स के साथ भारत में पकोड़े खाते थे, भी याद आ गया सो वो भी मांग बैठे. प्याज, मिरची, पालक के पत्ते की भजिया तली गई.

शाम ७ बजे से पीना शुरु किया तो रात ग्यारह बज गये. हम तो दो से ज्यादा पी नहीं पाते मगर वो मोर्चा संभाले रहे जब तक की बोतल में बस हमारे अगले दिन के लिए दो ही पैग न बचे रह गये.

तब खाना खाया गया. तारीफ कर करके भरपूर खाया. पत्नी ने भी तारीफ सुन सुन कर घी लगा लगा कर गरम गरम रोटियाँ खिलाईं. तब वो सोने चले.

अगले दिन की मैने छुट्टी ली हुई थी. जब तक मैं सो कर उठा वो ठंड में ही बाहर टहलने निकल गया था. मैने सोचा कि इतनी ठंड में कैसे निकल पाया होगा बेचारा मगर वो लौटा तो मेरा ब्रेण्ड न्यू, खास पार्टियों के लिए खरीदा स्पेशल जैकेट पहने था. साथ में ही मेरी गरम टोपी, और दस्ताने भी पहने हुए थे. आते ही पूछा भाभी, कैसा लग रहा हूँ? भाई साहब मोटे दिखते जरुर हैं मगर उनका जैकेट देखिये मुझे कितना फिट आया है. खुद को मोटा तो वो कहने से रहा.

फिर नाश्ता- भाभी जी, बस, अंडा पराठे बना दो तो मजा आ जाये. साथ में दूध कार्नफ्लेक्स. फिर मैने उससे पूछा कि बाजार चलें. कुछ तुमको खरीदना हो तो खरीद लो. मुझे लग रहा था कि जैकेट परफ्यूम वगैरह तो खरीदना होगा ही उसे. मगर वो कहाँ जाने वाले. कहने लगा कि अब दो दिन को तो हैं मात्र. क्या खरीदें, क्या बेचें. यूँ भी यहाँ सब इतना मंहगा होता है कि हम यहाँ खरीदने लगे तो दीवाला ही निकल जायेगा.

रात देर हो गई थी तो उम्मीद थी सुबह बैग वगैरह खोलेगा- तब मिठाई ड्रिंक वगैरह निकालेगा. मगर सुबह क्या दिन भर खाते, हमारे साथ जगह जगह घूमते शाम हो गई, कहीं कॉफी पी गई तो कहीं बर्गर तो कभी आईसक्रीम मगर उनका पर्स नहीं निकला- उस पर से तुर्रा यह कि कितना मँहगा है, हम तो बर्बाद हुए जा रहे हैं. दुनिया में दाम खर्चने की बजाय मात्र सुनकर बर्बाद होते उस पहले शक्स को देखा - सब जस का तस. उस पर से तारीफ भी करते जाये कि आप लोगों ने भारत की संस्कृति को बचा कर रखा है यहाँ भी. मेहमान को तो पे ही नहीं करने देते. अरे, करोगे, जब न करने देंगे कि छीन कर पे कर दें??

रात वोडका की बोतल उठा ली कि रोज स्कॉच पीना ठीक नहीं. आज वोदका पीते हैं. मैने तो वो ही बची स्कॉच के दो पैग किनारे कर लिए. और इन्होंने पुनः पूरी श्रृद्धा और लगन से बोतल खत्म करते हुए दो पैग हमारे लिए छोड़ दिये. कभी हरी मटर तल कर तो कभी कोफ्ता तो कभी मटन कबाब- जैसे कि मेनु घर से बनाकर निकला हो- डिमांड और तारीफ कर कर बनवाता रहा और छक कर खाता रहा.

अगले दिन मेरे बाथरुम से आकर शैम्पू भी ले गया कि वहाँ खत्म हो गया है.

चार दिन चार महिने से गुजरे. चौथे दिन मन तो किया कि बस से एयरपोर्ट भेज दूँ मगर जैकेट मेरी पहने था. सोचा कि एयरपोर्ट में घुसने के बाद तो जरुरत रहेगी नहीं तो लौटा देगा वरना गई जैकेट हाथ से. चलते चलते मफलर भी लपेट लिया जो पत्नी ने शादी की सालगिरह पर मुझे दिया था. दस्ताने और टोपी तो खैर पहने ही था मेरी वाली. पत्नी उसके लिए गिफ्ट खरीद लाई थी. उसे भी कार में रख हम दोनों चल पड़े उसे छोड़ने.

एयरपोर्ट पर सामान चैक इन कराया. चरण स्पर्श - वंदन और ये चले साकेत शर्मा जी. हमें ठगे से उनको जाते देखते रहे और दूर तक नजर आती रही मेरी वो प्यारी जैकेट. छोड़ कर लौटने लगे तो देखा कि गिफ्ट तो पत्नी ने उसे दिया ही नहीं. हाथ में ही पैकेट थामी थी.

मैने पूछा तो बता रही थी कि सोचा था कि अगर जैकेट और मफलर वापस दे जायेगा तो ही दूँगी. मैं भी उसकी होशियारी पर प्रसन्नता जाहिर करने के सिवाय क्या करता. कुछ तो बचा. मुझे मालूम है जब भारत जाऊँगा-तब भी उसका पर्स जब्त ही रहेगा कि भाई साहब, अब आपके डालर के सामने हम क्या निकालें. यूँ भी आप बाहर से आये हैं, हमें पे थोड़े न करने देंगे.

विदेश में रहने वालों के लिए यह मंजर बहुत आम है- यहाँ वो आयें तो अतिथि और हम वहाँ जायें तो डॉलर कमाने वाले!! दोनों तरफ से लूजर और यूँ भी अपनी जमीन से तो लूजर हैं ही!!!

बस, घर लौट कर कुछ यूँ अपने आप रच गया:

nashta

मैं उस पर ज़रा क्या मेहरबान हो गया

अपने ही घर में खुद का, मेहमान हो गया

वो झूम झूम कर नहाया ऐसे सुबह सवेरे

कतरे भर पानी के लिए मैं परेशाँ हो गया.

अंडे की भुर्जी खाने की जिद थी नाश्ते में

डायटिंग का फैसला मेरा यों कुरबान हो गया

खाने की प्लेट देखिये, सदियों की भूख हो

देखा जो ये नजारा, तो मैं हैरान हो गया

वो जब चला तो सूट भी मेरा पहन चला

खातिरदारी में ’समीर’ आज नीलाम हो गया..

-समीर लाल ’समीर’

Indli - Hindi News, Blogs, Links

91 टिप्‍पणियां:

Amit ने कहा…

समीर दद्दा बड़े दिनों के बाद मज़ा आया साथ में कुछ कड़वे अनुभव भी याद आ गए. खैर जैसा कि आपने कहा कि हम लोग तो हुए न डॉलर कमाने वाले और रुपयों में तो लाखों में जो कमाते हैं. :) यहाँ के खर्चो को न पूछियेगा. इंतज़ार है अगले अनुभव का.

राजीव तनेजा ने कहा…

विदेश में बसने वालों के लिए तो ऐसे मेहमानों को झेलना रोज़मर्रा की बात होगी..
तेरी हर आहट पे बस 'आह'निकले और ये आहट जो अगर कदमताल बन सुर ताल के साथ निकले लगे तो बस...फिर जां ही निकले
बस...फिर जां ही निकले
बढ़िया कटाक्ष ...

Ashish Pandey "Raj" ने कहा…

हाय हुसैन हम न हुए !!!
काश !!हम पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी के भतीजे साकेत शर्मा होते और आप जैसे कद्रदानों के वहाँ मेहमानी काटने का मौका मिलता ....
भरपूर व्यंग्य ,हर वाक्य गहरी कसावट के साथ बुना हुआ...आभार!!!

Ashish Shrivastava ने कहा…

हम भी सोच रहें है कि कनाडा का एक चक्कर और लगा ले!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप मेहमान नवाज हों तो मेहमान को फिक्र क्यो होने लगी। वैसे ऐसे मेहमानों को किसी होटल-मोटल में ठहराना अच्छा।

निवेदिता ने कहा…

mama ji bahut hi bariya likha hai or bilkul sachi baat hai .

निवेदिता ने कहा…

mama ji bahut hi bariya likha hai or bahut hi sachi baat hai .

वाणी गीत ने कहा…

ऐसे अतिथि कम नहीं होते , क्या देश से बाहर , क्या देश से भीतर !
उनकी खातिरदारी में जरा कमी की तो कंजूस का ख़िताब देकर आपको बदनाम और कर दें !

Kunwar Kusumesh ने कहा…

आप तो समझदार हैं और होशियार भी,कैसे चूक गए.वैसे आपकी wife ने गिफ्ट रोककर ज़ियादा समझदारी का परिचय दिया.एक सबक तो मिलना ही चाहिए ऐसे चालाक लोगों को.

poonam ने कहा…

behtreen

उम्मतें ने कहा…

मेरे ख्याल से वो भतीजा / मित्र पुत्र होने का धर्म निबाह गया :)

हम भारतीय एक आम धारणा पाल कर चलते हैं कि जो कमाने बाहर गया / प्रवासी हुआ उसे धन की क्या कमी :)

1981 में , मैं जब नौकरी के वास्ते घर से बाहर निकला तो गाँव के लोग मेरी बचत पूंजी यूं गिनते थे कि जैसे मैं हवा खाकर जीता हूं और मेरी पूरी की पूरी तनख्वाह बचा लेता हूं :)

बहरहाल जो भी हुआ उसमें आप लूजर नहीं है चाहे कनाडा में या फिर भारत में ! आपकी सम्पन्नता को लेकर लोगों का नज़रिया चाहे कुछ भी हो ! ये महत्वपूर्ण है कि आपने नकदऊ ज़रूर खोये पर शिष्टाचार / सुसंस्कृत होना नहीं !

उम्मतें ने कहा…

और हां आलेख को हिकारत / गुस्से / झुंझलाहट और दुःख के मिले जुले भावों के साथ पढ़ा फिर सोचा कि हम भारतीय ऐसे छलावों के दरम्यान / साथ कब तक जीते रहेंगे !
आपकी तकलीफ को रत्ती रत्ती एकदम बराबर फील किया , यही आलेख की सफलता है !

Arvind Mishra ने कहा…

गजब गजब ....आँखों देखा आप सुना रहे थे और दिल इधर बैठा जा रहा था -


"यूँ भी ऐसे न जाने कितने ऐसे मेहमानों को एयरपोर्ट से ला चुका हूँ जिनसे पहली बार एयरपोर्ट पर ही मिला हूँ"

ये लाईन कुछ रहस्यमयी नहीं है भाई! ?

संध्या शर्मा ने कहा…

ईश्वर बचाए ऐसे मेहमानों से फिर भी जब इनसे पाला पड़ता है तो हम संकोच में इनकी सारी मांगें पूरी करते जाते हैं पर ये जरा भी संकोच नहीं करते, जो भी हो किस्सा बड़ा ही मज़ेदार है... बहुत अच्छा व्यंग्य... आभार

Rahul Singh ने कहा…

एक नहीं दो पोस्‍ट लिख लें, लेकिन हमारे कनाडा पहुंचते तक आपकी यह उदारता बनी रहे.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

:-)

अगर के संस्मरण/लेख सच्चा है तो सहानुभूति...........
और यदि दुनिया देख कर दिमाग में उपजा है तो
बा-अदब सलामी....
:-)

सादर.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अभी से उसके जाने की खुशी क्‍यों मना रहे हैं, वह तो सपरिवार वापस भी आएगा, चार महिने बाद! उसी का चिंतन भी करिए। तब क्‍या होगा? वैसे बढिया रही।

दीपिका रानी ने कहा…

हा हा हा... मज़ा आ गया विवरण पढ़कर.. सारी भड़ास निकाल ली है आपने कलम से, अगर बात सच्ची है तो। आपकी प्रस्तुति का अंदाज़ बहुत मज़ेदार लगा।

vijay kumar sappatti ने कहा…

महाराज आपकी जय हो , आपके आतिथ्य की जय हो , हम भी आना चाहते है .. कृपया टिकिट भी भिजवाने की महाकृपा करे. हम भारत से सिर्फ प्यार लायेंगे आपके लिये , बस यही बचा है हमारे पास भैय्या जी .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

ऐसे लोग ही बदनाम करते हैं अतिथि की परिभाषा को और हतोत्साहित कर देते हैं मेजबान को. ये अतिथि नहीं **मैन हैं.

Unknown ने कहा…

माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम!

Stuti Pandey ने कहा…

पढ़ना शुरू किया तो हंस रही थी, नीचे आते आते गुस्से से लाल पीली, और फिर वो डॉलर वाली बात सुन के तो रोना सा ही आ गया. हमलोग जैसे डॉलर में कमाने का हर्जाना भरते ही रह जायेंगे :(

Girish Kumar Billore ने कहा…

समीर भाई वो तो सब ठीक है पर आप अब आते हैं अतिथि की तरहा बताओ
अथिति अब (जबलपुर) कब आओगे..?

Girish Kumar Billore ने कहा…

जे सच्चाई मेरे क़रीब से निकली है
खुद से मेरे ड्रेसिंग रुम में आकर परफ्यूम लगा लिया वो भी वो वाला जो मैं खुद भी कभी कभार पार्टी आदि में जाने के लिए इस्तेमाल करता हूँ

Girish Kumar Billore ने कहा…

और जे वाली सच्चाई भी भोग चुका हूं
" कहीं कॉफी पी गई तो कहीं बर्गर तो कभी आईसक्रीम मगर उनका पर्स नहीं निकला- उस पर से तुर्रा यह कि कितना मँहगा है, "

PD ने कहा…

हम तो चचा ऐसे मामलों में बहुत बेशर्म हैं. कोई ऐसा मिल जाता है तो खींसे निपोर कर तब तक हँसते रहते हैं जब तक की सामने वाला खीज कर अपना बटुवा ना निकाल ले. :D

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

...मैं तो कहता हूँ कि उसने फिर भी गनीमत की नहीं तो शॉपिंग जाने की आपकी सलाह मानकर यही कहता कि आप मेरे ऊपर क्यों इत्ता खर्च कर रहे हो ?

वैसे यह घटना वाकई हुई थी आपके साथ ? मुझे तो नहीं लगता !

डॉ टी एस दराल ने कहा…

हा हा हा ! बहुत मज़ेदार किस्सा .
शुक्र है , अतिथि ने ३-४ दिन का वायदा तो निभाया .
वैसे डॉलर के बारे में तो अक्सर यही सोचा जाता है .
आखिर एक के पचास जो मिलते हैं .

अन्तर सोहिल ने कहा…

शुक्रिया कीजिये, अगले ने चार दिन कहकर चार दिन ही रुका
अपन होते तो भाभी जी के हाथ का खाना 15-20 दिन खाये बिना विदा ना होते :)

प्रणाम स्वीकार करें

mridula pradhan ने कहा…

bahut mazedar 'aapbeeti'likhi hai aapne.

राजेश उत्‍साही ने कहा…

तो यह था आपका आने वाले अतिथियों के नाम संदेश। सचमुच पढ़कर फिल्‍म भी आंखों में घूम गई।

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सही लिखा है आपने .. देश हो या विदेश .. वो दिन चले गए .. जब घर के अनाज से अतिथियों की भरपूर खातिरदारी की जाती थी .. अब तो चारो ओर के खर्चे से बने दबाबपूर्ण बजट में मेहमानों का स्‍वागत करने की भी सीमा हो गयी है .. मेहमानों को संतुष्‍ट कर पाना आसान नहीं !!

अशोक सलूजा ने कहा…

समीर जी , अंदाज़े-व्यंग में ...एक दर्द भरी
सच्चाई !
भविष्य में बचाव के लिए!
शुभकामनाएँ!

P.N. Subramanian ने कहा…

जानदार. आईंदा जब कोई आने की बात कहे तो ईमेल से इस व्यथा को भिजवा दिया करें. फिर भी बेशर्म निकल ही आयेंगे.

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

समीर जी अब लग रहा है , की हम भी अगली फ्लाईट से कनाडा पहुच जाये .

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

...वो झूम झूम कर नहाया ऐसे सुबह सवेरे..कतरे भर पानी के लिए मैं परेशाँ हो गया..... ख़ुशी इस बात की है की अथिति अंत तक आपके ही रहे.... ! सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार...

राज भाटिय़ा ने कहा…

समीर जी अभी आप ने टेली फ़ोन के बारे मे नही लिखा, मुझे लगता हे यह कहानी हम सब की ही हे, थोडा बहुत तो सहन हो जाता हे, लेकिन जब कोइ हद कर दे तो दिल मुर्झा जाता हे, ऎसी बात नही.... अच्छे लोग भी आते हे, लेकिन नमूने ज्यादा आते हे, जो अपनी बातो से समझते हे कि हम मुर्ख हे, जब कि हम उन्हे अच्छी तरह से पहचान जाते हे, आप का यह लेख पढ कर मुझे बहुत सी पुरानी बाते याद आ गई, बहुत से लोग याद आ गये, अब आप जब भारत जायेगे तो भी वो अप को ही रगडा लगायेगा..:) देख लेना, यह मैरा अपना अनुभव हे.

रंजू भाटिया ने कहा…

:) वाकई ऐसे आतिथि से तो तोबा है ....हकीकत ही फिल्म के रूप में बनी होगी ..:)

shikha varshney ने कहा…

:):) अथिति देवो भव्:.मजा आया पढकर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तो भईया इसी लिए तो सब कहते हैं की समीर भाई की खातिरदारी का अपना अलग ही मज़ा है ...
ऐसे मेजबान भगवान सभी को दे ... मैं तो अभी से अपना प्रोग्राम बनाना शुरू कर रहा हूँ ...

kalp verma ने कहा…

hahahhaha....maza aa gaya....

Pallavi saxena ने कहा…

हा हा ...होता है होता है, अब आपने इतना कुछ लिख दिया है,कि लगता है एक बार हमें भी कनाडा आना ही होगा ;)

रचना ने कहा…

पहली बार आप के आलेख पर आपत्ति दर्ज करा रही हूँ ।
आप का निष्कर्ष "विदेश में रहने वालों के लिए यह मंजर बहुत आम है- यहाँ वो आयें तो अतिथि और हम वहाँ जायें तो डॉलर कमाने वाले!! दोनों तरफ से लूजर और यूँ भी अपनी जमीन से तो लूजर हैं ही!!!" निहायत छोटी सोच का परिचायक लगा
क़ोई भी भारत से आप के यहाँ अगर आता हैं तो आप से पूछ कर ही आता होगा और क्युकी आप आप ने कहा ये आम बात हैं की भारतीये विदेशो में बसे भारतीयों के यहाँ जा कर अतिथि बन जाते हैं तो ये पहला प्रकरण नहीं होसकता । यानी आप स्वयं भी कहीं ना कहीं इसके लिये जिम्मेदार हैं । आप को जब पता हैं भारत से आने वाले गरीब टुट पुन्जिये हैं तो आप को उन्हे न्योता देने की जगह उन से सम्बन्ध ही तोड़ लेना चाहिये ।

हम कितना भी गरीब सही पर जमीर अभी जिन्दा हैं समीर भाई , आशा हैं नाराज नहीं होगे और हो तो क्षमा कर दे पर ये कमेन्ट देना जरुरी था ।

मै अपनी बात भी बता दूँ की मै तो भारत में भी किसी रिश्ते दार के घर नहीं रुकती , होटल में ही रहना पसंद करती हूँ
कनाडा आती तब भी वहीँ करती ।

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...

कल 14/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .. धन्यवाद!


सार्थक ब्‍लॉगिंग की ओर ...

kshama ने कहा…

Baap re baap! Bhagwaan bachaye aise mehmaan se!

Unknown ने कहा…

Canada main hi nahi sab jagah aaisa hi hota hai...

jai baba banaras....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा और भावप्रणव प्रस्तुति!

समय चक्र ने कहा…

*देहली में तो गर्मी ज्यादा थी यहाँ कनाडा में इंतनी ठण्ड की उम्मीद न थी *

*फिर टहलते हुए पहुँच गया मेरे बार तक. अरे वाह, आप तो बहुत शौकीन हैं भाई साहब. कौन कौन सी रखे हैं? और बस, ब्लैक लेबल की बोतल उठाकर प्रसन्नता से गिलास बनाने लगा. मुझसे भी पूछा कि आपके लिए भी बनाऊँ? बनाना तो था ही हाँ कर दी. फ्रिज से बरफ, सोडा निकाल कर शुरु हो गये.*

हा हा ऐसे अतिथि न आये तो अच्छा है ... पर "अतिथि देवो भव" की भावना भी रखना भी खासा साबित हो जाता है ... आभार

मन के - मनके ने कहा…

’अतिथि तुम कब जाओगे’ जो बिना तिथि के आएं.
हम सभी समाजिक-प्राणियों की यह एक समाजिक त्रासदी है, कि,जीवन में कभी ना कभी अतिथि गिरी भुगतनी पडती है.
अच्छा लगा---’वो जब चला,तो सूट भी मेरा पहन चला
खातिरदारी में ’समीर’ आज नीलाम हो गया.

मन के - मनके ने कहा…

’अतिथि तुम कब जाओगे’ जो बिना तिथि के आएं.
हम सभी समाजिक-प्राणियों की यह एक समाजिक त्रासदी है, कि,जीवन में कभी ना कभी अतिथि गिरी भुगतनी पडती है.
अच्छा लगा---’वो जब चला,तो सूट भी मेरा पहन चला
खातिरदारी में ’समीर’ आज नीलाम हो गया.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

Naari ho ya aari ho. Aaptti darz karne ke bajay rachna karna seekho. Varna to abhiman karti rahna, ghamand se phool kar kuppa ho jana, aisi neeyat hai ti niyati yahi rahegi. Saari dunia ko apne tarikon ke pallu se baandh kar kyon chalana chahati ho ???

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चार दिनों में इतना पुण्य कमा लिया है कि सात जनम चलेगा। आप जहाँ भी जाये, पूरा आतिथ्य मिले।

Shah Nawaz ने कहा…

हा हा हा... ज़बरदस्त! बंदा कुछ ज्यादा ही समझदार निकला.... :-) :-) :-)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यही शुक्र मनाइए की चार दिन बाद चला गया ... :):)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हाय राम ...ये कैसे मेहमान थे ....

वैसे ऐसे मेहमान सच में देश के बाहर देश में दोनों जगह देखने को मिल ही जाते हैं.....
हम कब आयें .... मैं तो कनाडा में ही हूँ... :)

विष्णु बैरागी ने कहा…

इसे कहते हैं एक टिकिट में दो शो। आपका अफसाना, दूसरों के लिए हिदायतनामा। कहते हैं कि अक्‍लमन्‍द वह होता है जो दूसरों की मूर्खताओं से सबक ले। उम्‍मीद है, आपके कारण कई लोग अक्‍लमन्‍द बन जाऍंगे।

हॉं, अपनी अगली पोस्‍ट में मेरी तारीफ जरूर कर दीजिएगा। मैं हिन्‍दुस्‍तान छोड कर आपके पास नहीं ही आ रहा हूँ। पक्‍का वादा।

रचना ने कहा…

अविनाश वाचस्पति
आप अपने को लेखक मानने का भ्रम पाल कर जी रहे हैं , जीते रहे
Netiquette से आप अनभिज्ञ हैं जानती हूँ .

जेंडर बायस युक्त हैं आप का कमेन्ट और आप शायद इस से भी अनभिज्ञ हैं की इस प्रकार के कमेन्ट देना अब कानून अपराध हैं जहां आप पूरे नारी जाति पर ऊँगली उठा रहे हैं
जिसका ब्लॉग हैं वो जवाब देने में समर्थ हैं और क्युकी उसके ब्लॉग पर मोडरेशन के बाद भी ये कमेन्ट पुब्लिश किया गया हैं तो इसमे उसकी सहज सहमती हैं मै जानती हूँ . इसको कायरता भी कहते हैं

Arvind Mishra ने कहा…

हैरत है लोग इतने परवर्टेड सोच के हो सकते हैं कि एक बेहतरीन निर्मल हास्य को भी नकारात्मक तरीके से लेते हैं -
अविनाश भाई से सहमत!

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत बढ़िया समीर जी ! आनंद आ गया ! वैसे आपकी cost पर मज़ा लेना गुस्ताखी है ! लेकिन जिस तरह से आपने अपना दर्दे दिल बयाँ किया है चहरे की मुस्कान को और विस्तीर्ण कर गया ! बधाई एवं शुभकामनायें !

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

बढिया रही समीर जी बधाई...,

भाई लोगों अब समझ जाओ कि समीर साहब के यहाँ क्या ऐश है और लाइन लगा लो अपनी भी... बाद में लेख लिखेंगे तो लिखते रहें परवाह किसे है। कनाडा घूमने का ऐसा मौका फिर न मिलेगा....

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव, ​
​ये क्या लिख दिया आपने...ऐसी खातिर देखकर तो बिना काम ही कई और साकेत आपके पास कनाडा आने की तैयारी करने लगेंगे...​
​​
​वैसे वहां शहर में क्या कनाट प्लेस जैसी कोई जगह नहीं है...​
​​
​जय हिंद...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

ऐसे अतिथि से तो भगवान् ही बचाए...आप तो जैकेट और मफलर में ही निपट गए यूँ समझें जान बची और लाखों पाए...ऐसा हादसा आप के साथ ही नहीं होता हर उस इंसान के साथ होता है जो शरीफ है...शराफत इंसान को कहीं का नहीं रहने देती...कुछ लोग इसे छोड़ छाड़ के मस्त रहते हैं और कुछ इस से चिपके दुःख पाते हैं...:-)

"कहीं दुनिया में नहीं इसका ठिकाना ऐ "दाग"
छोड़ कर मुझको कहाँ जाय शराफत मेरी

नीरज

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

:) umda... aabhar

कविता रावत ने कहा…

badiya lagi mehman nawaji ki yah prastuti... main to yahi kahungi.
"achhe mehmaan usi ke
jo khaye piye aur khiske"

rashmi ravija ने कहा…

हमने तो बड़े ध्यान से एक-एक चीज़ें नोट कर लीं...शैम्पू..परफ्यूम...बढ़िया खाना..जैकेट ..मफलर...आइसक्रीम -बर्गर...घुमाना-फिरना ...क्या बात...आजमाना पड़ेगा..
लगता है...बन्दे को पढ़ने और संगीत का शौक नहीं था...नहीं तो आपकी लाइब्रेरी से कुछ किताबें और सी.डी. कलेक्शन से कुछ सी.डी. ही उठा लाता.. :)

Vaanbhatt ने कहा…

बधाई...आपने भारतीय संस्कृति को वाकई बचा के रक्खा है...अतिथि देवो भव...आजकल ये भारत में ही गायब हो गयी है...विदेश में भारतीय एक-दूसरे के दुःख-सुख में फिर भी काम आ जाते हैं...यहाँ वाकई कंधे कम पड़ने वाली स्थिति है...एक समय था जब कन्धा देना नसीब की बात थी...आज सब अंतिम संस्कार में भी चढ़े घोड़े पर आते हैं...शक्ल दिखाई और गायब...फिल्म का किरदार तो बेचारा सीधा-साधा गंवाई इंसान था...पर ये शर्मा जी तो जरुरत से ज्यादा चंट निकले... आपकी जैकेट के लिए मै अफ़सोस व्यक्त करता हूँ...आशा है ऐसे लोगों से बच कर आप भारतीय परंपरा को कनाडा में जिलाए रक्खेंगे...खातिरदारी में सहर्ष नीलाम हो जाइये...

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

ese mejbaan ho to 4 mahine kyaa 4 saal gujaar lenge ham

Anita kumar ने कहा…

ये तो सचमुच बड़ी त्रासदी हो गयी। आशा करते हैं अगली बार जब कोई अतिथि आयेगा तो आप अपनी अलमारी को ताला लगा कर रखेगें…:)

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

परसाई जी का आलेख याद आ गया। उन्होने अंत तक हर दर्द को हंसते हंसते लिखा था आपने थोड़ी झुंझलाहट में। कल्पना और भोगने में शायद यही अंतर है।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

परसाई जी का आलेख याद आ गया। उन्होने अंत तक हर दर्द को हंसते हंसते लिखा था आपने थोड़ी झुंझलाहट में। कल्पना और भोगने में शायद यही अंतर है।

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

aise mehmano se pala padna sahi me dukhdai hai.

Ruchi Jain ने कहा…

ekdum sahi kaha aapne, ajkal ke jamane mai yhi hota hai..

Shanti Garg ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना....

मेरे ब्लॉग
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Pratik Maheshwari ने कहा…

हाहा ये तो बड़ी दर्द-विदारक घटना है!
सही में तो नहीं हुआ ना आपके साथ? :P

PRAN SHARMA ने कहा…

UMDA VYANGYA KATHA KE LIYE AAPKO
BADHAAEE .

रंजना ने कहा…

भगवान् बचाएं ऐसे ऐसे अतिथियों से...

lekin पीड़ा में भी आपने हास्य रस की जो फुहार छेड़ी है..बस वाह वाह वाह..

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

उर्दू की एक कहावत है -माले मुफ़्त दिले बेरहम!

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Are aap to bure phanse ...kamaal hai log sharmaate bhi nahi aisa karte huye...kuch logon ki aadat vastav men bahut kharaab hoti hai vo 2,3 men hi sab kuch lutkar le jaana chahte hain bhagvaan bachaye aise mehmaanon se agar ye sachchhi ghatna hai to mujhe aap dono se bahut hamdardi hai aage se koi aaye aaye to bol dena aap baahar gaye huye hain...

Rajput ने कहा…

बहुत मस्त लिखा है , कनाडा को प्रोग्राम जल्दी ही बनाना पड़ेगा .:)
जरा पता तो दीजिये ;)

बेनामी ने कहा…

बहुत ही उम्दा लिखा आप ने ,माफ़ कीजिये लेकिन आप की परेशानी आप ने इतनी तबियत से लिखी के पढ़ कर मज़ा आ गया :)

http://oshosatsang.org/ ने कहा…

प्रिय मित्र, अतिथि तो नहीं बन कर आ रहे आपके,घर-जबलपूर, पर उस पवान नगरी को ह्रदय में जरूर बसायेगे....आप से नहीं मिलने का दूख भी होगा....पर उस खूशबु को छू...चूम को आपको प्‍यार करे लेगे। क्‍योंकि हम कुछवाड़ा जाना है

स्‍वामी आनंद प्रसाद मनसा

Deepak Sharma ने कहा…

सच में सच अब आगे भी और सोचे और लिखने का प्रयास जारी रखे बाकि होसला देने के लिए हम है...

anupam goel ने कहा…

बहुत ही रोचक शब्दों में अपनी भावना (और कुंठा) निचोड़ी है आपने।
सही मायनों में तो यह "अतिथि" नहीं बल्कि आपके साथ "अती थी"।
वैसे,आपके अनुभव से सहानुभूति है, लेकिन पढ़ कर मजा आया।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

isliye to ham kisi ke atithi bnne se katrate hain ....dilli gaye to manu ji kahte hmara ghar nahin hai .....Ramesh ji kahte ab ham agar Guwahati aaye to gurudware mein rahna hoga kya .....? sach bhi hai agar aap kisi ko rakh sakte hain to hi kisi ke mehman baniye ....

aapka ye aalekh sabhi ke liye slaah bhi hai ....

गुड्डोदादी ने कहा…

समीर बेटा जी
आशीर्वाद
ऐसा ही हुआ
मेरे छोटे भाई को ग्रीन कार्ड की अनुमति आगई शर्तें उनकी (|)१० लाख पेशगी भारत से चलने से पहले (२) टिकट उसके और बच्चों के ,(३)गाड़ी मर्सेडीज़ (४)पेट्रोल पम्प उसके नाम पर (५) बच्चों की पढाई मेरे सर पर खर्चे के नाम १५ डालर सप्ताह के खाना ताजा तीनो समय (६) भारत में चार मंजिला बना कर दे और एक फ्लैट उसमेसे खारीद कर चाबी भी उनके हाथ में कमाकर भार पैसा ले लेजायेगा बच्चे मेरे पास उनकी शिक्षा कालेज की मेरे सर पर हाथ जोड़ दिए वही रहें जब हम भारत में जाएँ रोटी तक खर्चा खुद ही करते हैं

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

सहानुभूति...
वाकई दर्द भरी दास्तान है...
अगली बार सतर्क रहिएगा.

***Punam*** ने कहा…

बढ़िया अनुभव है.....!!!
कुछ खट्टे.....
मीठे कम.....
क्यूँ कि चीनी है कम....
और रोचक प्रसंग भी....
साथ ही औरों को हिदायत भी....!!
लेकिन हम कुछ भी ऐसा नहीं करेंगे.....!!
शायद कुछ और लोग भी
मेरे साथ सहमत हों....!!
हम सबके लिए भी
आपकी ऐसी ही उदारता
बनी रहेगी तो
अंडे की भुर्जी.....
हमें भी मिलेगी....!!

Unknown ने कहा…

मुफ्त का चंदन घिस मोरे नंदन..... बहुत बढिया !! अगर घर में छोटे बच्चे हों तो वो ऐसे चाचा लोगों को छठी का दूध याद दिला देंगे :))

indra ने कहा…

मुफ्त का चंदन घिस मोरे नंदन..... बहुत बढिया !! अगर घर में छोटे बच्चे हों तो वो ऐसे चाचा लोगों को छठी का दूध याद दिला देंगे :))

Unknown ने कहा…

मुफ्त का चंदन घिस मोरे नंदन..... बहुत बढिया !! अगर घर में छोटे बच्चे हों तो वो ऐसे चाचा लोगों को छठी का दूध याद दिला देंगे :))

Unknown ने कहा…

मुफ्त का चंदन घिस मोरे नंदन..... बहुत बढिया !! अगर घर में छोटे बच्चे हों तो वो ऐसे चाचा लोगों को छठी का दूध याद दिला देंगे :))