पिछले दिनों एक पोस्ट लिखी...दूरियाँ जो घंटों में नापी गई...फिर एडिनबरा, स्कॉटलैण्ड की यात्रा का वृतांत राजस्थान पत्रिका के इंदौर संस्करण से 9 अगस्त, 2011 में प्रकाशित हुआ....मगर थे दोनों इसी आलेख के भाग...हर जगह पूरा छपना संभव नहीं होता..अतः टुकड़े टुकड़े दिये गये...पूरा और अधिक विस्तार से अब पढ़ें:
विचार बना कि जब यॉर्क, यू.के. तक आ ही गये हैं तो दो दिनों के लिए ऐतिहासिक नगरी एडनबर्ग, स्कॉटलैंड भी हो आया जाया. इच्छा जाहिर करने पर सबसे पहले यह बताया गया कि इस शहर को लिखते एडनबर्ग हैं मगर कहते एडनबरा है. मान गये और सीख लिया एडनबरा बोलना, ठीक वैसे ही जैसे बचपन से स्कूल में मास्साब सिखाते रहे कि कनाडा की राजधानी ओटावा और कनाडा पहुँच कर पता चला कि उसे आटवा बुलाते हैं. अच्छा है कि हमारा नाम लिखते भी समीर लाल हैं और बुलाते भी समीर लाल है, नहीं तो एक समझाईश का काम और सर पर आ टपकता. बताया गया कि यॉर्क से ४ घंटे दूर है.
दंग हूँ इस नये फैशन पर जिसमें दूरियाँ घंटों में नापी जाने लगी हैं. वैसे है १६१ मील याने लगभग २५९ किमी.
खैर, कार में सवार हो एडनबरा पहुँच ही गये. ऑनलाईन बुक करते समय दो गेस्टहाऊस इस लिए रिजेक्ट कर दिये थे कि वो दूसरी मंजिल पर थे और तीस सीढ़ियाँ चढ़कर जाना (वहाँ गेस्टहाऊसेस घरों को बदल कर बनाये गये हैं अतः लिफ्ट नहीं होती) हमारी जैसी काया के संग अगर टाला जा सके तो ही बेहतर. जो गेस्ट हाऊस बुक किया था, वो था तो ग्राउन्ड फ्लोर से ही मगर उसमें बाहर से न हो कर अंदर से तीस सीढ़ियाँ चढ़कर दूसरे मंजिल पर कमरे थे. ग्राउन्ड फ्लोर पर रेस्त्रां और रिसेप्शन और प्रथम तल पर मालिक का घर. ले दे कर किसी तरफ हाँफते फुफकारते चढ़ ही गये तो शाम हो चली थी, अतः फिर उतरे नहीं कि अब कल सब घूमा जायेगा. खाना तो साथ था ही, वो ही पूड़ी, करेले की सब्जी और पुलाव. सच्चे भारतीय, फ्री की चाय कमरे में ही बना कर दो बार पी ली और भोजन कर के सो गये.
अर्थशास्त्र के पितामह कहे जाने वाले एडम स्मिथ का शहर, फोन के अविष्कारक ग्राहम बेल का शहर..सुबह नींद खुली तो मौसम कुछ ज्ञानी ज्ञानी सा होने का अहसास देता रहा. हवा का असर होगा. याद आई हरिद्वार की सुबह, अक्सर बहुत धार्मिकता का अहसास करा जाती थी.
खिड़की के बाहर दिखता ऊँचा टीलानुमा पहाड़ और उस पर ट्रेकिंग करते लोग. मुश्किल से ७ बजा होगा और कुछ लोग तो लगभग टीले की चोटी पर पहुँचने ही वाले थे. पता किया तो ज्ञात हुआ कि लगभग ३.३० घंटे लगते हैं ट्रेकिंग में मतलब जो टीले के उपर पहुँचने वाले हैं वो ३.३० बजे रात से लगे होंगे इस कार्य को अंजाम देने में. अब ये तो अपने अपने शौक और शरीर हैं, हमारा तो ऐसे शौकों और इनको पालने वाले प्राणियों को दूर से नमन. हमारी तरफ से दुआएँ है कि आप कभी भारत पधार कर माऊन्ट एवरेस्ट चढ़े, हमारा क्या ले लोगे. ट्रेकिंग का जायजा खिड़की से लेकर स्नान ध्यान से फुरसत हो नीचे रेस्त्रां में नाश्ता किया गया, कमरे के किराये में शामिल था सुबह का कान्टिनेन्टल नाश्ता, तो दबा कर के कर लिया ताकि लंच की जरुरत ही न पड़े (आपको पहले ही बता दिया था न कि सच्चा भारतीय हूँ)
गेस्ट हाऊस के सामने से ही बस चल रही थीं. पता करके डे पास ले लिया. अब जितनी बार दिन भर में मन करे, बस पकड़ो, बदलो और घूमो. बस ने एडनबरा के किले के नीचे वेवरली (Waverley) पुल पर लाकर उतार दिया. गजब का जमघट. लगातार आती जाती बसों का रेला. मात्र ५ लाख की आबादी वाला शहर, देखकर लगा मानो वो सारे ५ लाख तो इसी एरिया में घूम रहे हैं, घास पर जोड़ा बना बना कर लेटे, बैठे, आलिंगनबद्ध और तरह तरह की भाव भंगिमाओं मे सभी यहीं चले आयें है कि समीर लाल आ रहे हैं, एक झलक मिल जायेगी. पता चला कि जितनी आबादी है, उतने ही टूरिस्ट भी हर वक्त यहाँ इस शहर में मौजूद रहते हैं और इस शहर को विश्वपटल पर सैलानियों के बीच अपने उपन्यास से इतना प्रचलित करने वाला, जिनके १८१४ में लिखे एतिहासिक उपन्यास वेवरली के नाम पर इस पुल का नाम वेवरली रखा गया और उससे सटा हुआ एक बहुत बड़ा स्मारक और पार्क उन्हीं के नाम उनकी ऊँची मूर्ति के साथ बना हुआ है, सर वाल्टर स्कॉट. हालात यह कि उसके बाद उनके लिखे कई उपन्यास वेवरली सिरीज़ के नाम से जाने जाते रहे और उनके प्रचार के लिए हर उपन्यास पर लिखा जाता रहा कि ’बाई द ऑथर ऑफ वेवरली’. इस उपन्यास के चलते प्रिन्स रिजेन्ट जार्ज ने १८१५ में सर स्कॉट को अपने महल में भोज पर आमंत्रित किया क्यूँकि वो वेवरली के उपन्यासकार से मिलना चाहते थे. आज भी सारी टूरिस्ट बसों में गाईड भगवान का दर्जा देते हुए उनका नाम उदघोषित करते हैं कि टूरिस्ट के बीच इसे प्रचलित कर हमें रोजी रोटी मुहैया कराने वाला सर वाल्टर स्कॉट. मन में विचार आया कि उपन्यास का नाम वेवरली क्यूँ रखा तो पता चला कि जिस पैन से उन्होंने उपन्यास लिखी थी, वह स्कॉटलैण्ड की पैन बनाने वाली कम्पनी वेवरली के द्वारा निर्मित थी.
कभी सोचता हूँ कि काश!! देश की तो छोड़ो, मोहल्ले में भी अपने साथ ऐसा हो जाये और पुल की जगह पुलिया का ही नामकरण हो ले तो उसका नाम पड़ेगा ’देख लूँ तो चलूँ’ , हा हा!! नाम तो बुरा नहीं है और हो भी तो क्या, हमारा तो पहला उपन्यास यही है. वैसे वेवरली को आधार माना जाये तो मेरा उपन्यास तो पैन से लिखा ही नहीं गया, सीधे डेल कम्प्यूटर की बोर्ड से निकला तो उसका नाम पड़ता ’डेल’ और फिर सोचो, पुलिया का नाम ’डेल पुलिया’ कैसा लगता भला? और रही भोज आमंत्रण की बात, तो वो तो हमें ही इस काम को अंजाम तक पहुँचाने के लिए न जाने कितने लोगों को देना पड़ेगा.
सर वाल्टर स्कॉट के दर्शन कर के भीड़ भाड़ से कटते बचते चल पड़े किले की ओर. सामने ही दिख रहा था. सामने लेकिन उपर..पता चला कि २०० तो सीढ़ियाँ चढ़नी है और फिर पहाड़ के बीच से चढ़ाईदार सड़कों पर करीब ३ किलोमीटर चल कर. रास्ता सुनते सुनते ही गला सूख आया. विकल्प पता किये गये और एक टूरिस्ट पैकेज खरीद कर उसकी खुली छत वाली बस में सवार हो लिए. बड़ा आराम मिला और जानकारी तो इतनी सारी गाईड ने दी कि सब घुलमिल गई. हर बिल्डिंग का एक इतिहास, हर सड़क से लेकर पत्थर, नाले, पेड़, पौधे, पक्षी तक ऐतिहासिक. नेता के सारे साथी नेता. संगत की बात है. बस ने घुमाते फिराते रॉयल कैसल के मिख्य द्वार पर उतारा. थोड़ा ही चलना पड़ा मगर वो भी काफी था. किले की दीवार से बाद में झाँक कर वो जगह भी देखी, जहाँ से हम पैदल आने वाले थे. कलेजा मूँह में आ गया कि अगर पैदल उपर आने का निर्णय ले लिया होता तो शायद आधे रास्ते से ही बिल्कुल उपर निकल गये होते. सलाह है कि टूरिस्ट बस के पैसे खर्च करो, मजे से घूमो. जानकारी भी गाईड से मिलेगी, घूमेंगे भी ज्यादा और आराम भी रहेगा. कोई खास मंहगा भी नहीं है. कहीं भी उतरो, घूमो और आने वाली अगली टूरिस्ट बस पकड़ो. सुबह जो पास लिया था वो सिटी बस का होता है सिर्फ शहर घूमने को. टूरिस्ट स्पॉट की बस अलग होती है.
वैसे एडनबरा अपने सालाना ४ सप्ताह के उत्सव के लिए विख्यात है जो अगस्त के पहले सप्ताह से शुरु होता है. उस समय सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ता है. उमड़ा तो खैर हर वक्त रहता है, उस वक्त शायद और ज्यादा हो जाता हो. सालाना उत्सव कई सरकारी और गैर सरकारी उत्सवों को मिलाकर आयोजित किया जाता है जिसमें विशाल पर्फोर्मिंग आर्ट उत्सव, बुक फेस्टीवल, अंतर्राष्ट्रीय उत्सव, मिलेटरी टेटू उत्सव आदि शामिल रहते हैं. स्कॉटलैण्ड की पारम्परिक वेशभूषा में बैगपाईपर बजाते हुए खड़े लोग और उनके साथ सैलानी अपनी तस्वीर खिंचवाते हर जगह दिख जायेंगे.
किले के द्वार पर ही मिलेटरी टेटू उत्सव के लिए स्टेडियम की तैयारी चल रही थी. किले ऊँचाई पर बने होने के सिवाय कोई खास आकर्षित नहीं करता. जिसने भी भारत में राजस्थान, मैसूर, आगरा आदि के किले देखें हैं, उनके लिए यह किला खिलौना ही नजर आयेगा. इंगलैण्ड, स्कॉटलैण्ड आदि में तो खैर जो हो रॉयल ही होगा. खाना तक तो रॉयल डिनर करके खाते हैं, तो रॉयल के नाम पर इस किले को देखना और उस पर से वो रॉयल बेन्केट हॉल, जिसमें रॉयल डिनर आयोजित किये जाते थे, वो किसी वाय एम सी ए के डिनर हाल से ज्यादा न निकला. नाम है, तो घूमे, इतिहास सुना, किले के अंदर चैपल भी देखी जिसमें पहले रानी साहिबा रहती थी. आजकल आप उसे बुक करके उसमें अपनी शादी करवा सकते हैं. फायदा ये है कि एक तो रॉयल चैपल में ब्याहे जाने की प्रमाणपत्र मिलेगा और गेस्ट लिस्ट छोटी सी रहेगी क्यूँकि उसमें कुल जमा २० मेहमानों की ही जगह है तो उससे ज्यादा क्या बुलवा लोगे.
वहाँ से थक कर निकले, तो सामने ही स्कॉच टेस्टिंग का सेंटर था. एक दो छोटे छोटे शॉट टेस्ट किये और एक बोतल खरीद भी ली. स्कॉच के लिए स्कॉटलैण्ड यूँ भी विख्यात है और इसके स्कॉच टेस्टिंग सेन्टर सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं. फिर बस पकड़ी और जो सारा शहर घुमाते, बताते, रॉयल पैलेस, म्यूजियम, लायब्रेरी, यूनिवर्सिटी, जानवरों का बाजार, अर्थशास्त्री एडम स्मिथ के नाम का हॉल, शरलॉक होम्स वाले सर आर्थर कोनन डोयल के बारे में बताते, बाजार होते हुए शाम तक वापस ले आई वेवरली पुल पर. बाजू में ही बेस्ट होटल ऑफ द वर्ल्ड ’द बलमोरल है. यूँ तो सस्ते से सस्ता कमरा भी वहाँ पर ३५० यूरो का है मगर देखने के क्या पैसे. देखना जरुर चाहिये. ठहरे तो गेस्ट हाऊस में हैं ही, सोना ही तो है. कोई लोरी तो सुनाने से रहा ’द बलमोरल’ में.
एक खासियत और हम भारतीयों की, जिस दूसरे देश के शहर में जायेंगे, खाने के लिए भारतीय रेस्त्रां तलाशने लगते हैं. भले ही भारत में इटालियन पिज़्ज़ा, बर्गर, चाईनीज़, ग्रीक खाने भागें मगर देश से निकलते ही भारतीय रेस्त्रां की तलाश शुरु. सो हमने भी खोज लिया ’ताजमहल रेस्त्रां’. भारतीय खाना खाकर लौट आये गेस्ट हाऊस, वो सुबह वाले पास से बस पकड़ कर.
अगली सुबह पुनः वही कान्टिनेन्टल स्टाईल फ्री का नाश्ते भरपेट किया और चैक आऊट कर निकल पड़े अपनी कार से कुछ बाजार करने और उसके बाद रॉयल यॉच (The Royal Yacht) देखते हुए, जो अब एडनबरा के समुन्द्र में खड़ा है किन्तु कभी महारानी का जल निवास हुआ करता था. उसके आस पास बहुत सुन्दर मॉल भी है लेकिन बाजार चूँकि पहले ही कर चुके थे, अतः उसमें जाकर समय गंवाने का कोई फायदा नहीं था. यूँ भी यूरोप में खरीददारी कुछ जरुरत से ज्यादा ही मंहगी है.
शाम घिरने से पहले निकल पड़े यॉर्क के लिए वापस लेकिन इस बार समुन्द्र के किनारे किनारे चलने वाले मार्ग से. सुन्दर प्राकृतिक सौदर्य निहारते, फोटो खींचते खिंचाते !!!
75 टिप्पणियां:
अपने लोग,अपने गाँव,अपने शहर,और अपने देश की खूशबू ही और होती है जो बस जाती है ...दूर से भी एहसास कराती है...
vah sir keya photo keya post
nice
समीर जी,
जब कभी चढाई की समस्या आती है
तो हमें याद कर लिया करे, शायद कुछ राहत मिले?
अब चढाई कैसी भी हो, नो टेंशन,
पूरे विवरण का इंतजार कर रहे है, हम तो।
Ek hi saans men pura padh daala ...bahut acha ..photo bhi bahut badhiya...badhai bahut2 badhai..
फ़ुल मौज चल रही है,बैगपाइपर के साथ स्कॉच का मजा। :)
बढ़िया रही यह सैर भी !
स्कोट लैंड घुमाने के लिए आपका आभार !
नाम कितना भी सरल हो , पूछने का शौक रखने वाले तो कुछ भी पूछ सकते हैं :), व्यंग्य-बाण चलाने का कोई मौका चूकते नहीं हैं आप !
आपके उपन्यासों की संख्या बढती रहे ..शुभकामनायें !
रोचक वर्णन, सुन्दर तस्वीरें !
हमें तो मौका जाने कम मिले, आपकी लेखनी के माध्यम से ही स्कॉटलैंड की सैर करके आनन्दित हो लिए। आभार।
पुलिया का नाम डेल की जगह डेला या ढेला पुलिया ज़्यादा बेहतर रहता...ये प्रचारित कर दिया जाता कि जो भी पुलिया पर चढ़कर ढेला (पत्थर) मारेगा, उसे सबाब (पुण्य) मिलेगा और उसकी मन की मुराद पूरी होगी...साथ ही भक्त सैलानियों की सुविधा के लिए पास ही विशेष ढेला प्रसाद काउंटर खोल लिया जाता...कमाई का बढ़िया ज़रिया बन जाएगा...
गुरुदेव शुक्र है आज आपने दो इंच पहले ही अपनी पोस्ट रोक ली वरना राजीव तनेजा भाई के रिकार्ड खतरे में पड़ जाते...
श्रीकृष्णजन्माष्टमी की बधाई...
जय हिंद...
आप तो ब्लॉग जगत में बहुत पुराने हैं. कृपया अपनी राय अवश्य दें. सचिन को भारत रत्न क्यों?
http://sachin-why-bharat-ratna. blogspot.com
आपके बहानें हम भी घूम लिए.धन्यवाद.
बहुत सुन्दर यात्रा वृतान्त ... एक नई जगह के बारे में जानकार अच्छा लगा .. साथ में तसवीरें भी आकर्षक हैं ...
आपका यात्रा प्रसंग पढ़कर लगता है कि हमने भी घर बैठे ही सैर कर ली!
आपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
बहुत बढ़िया लगा! आपके पोस्ट के द्वारा मेरा स्कॉट्लैंड घूमना हो गया! बहुत सुन्दर चित्र!
यात्रा वृतांत रोचक था.
आभार.
आजकल आप 'राहुल सांकृत्यायन' बने हुए हैं.घूम-घूम के जायका ले रहे हैं और हम सबका दिल जलाय रहे हैं !
सुन्दर यात्रा-वृत्तान्त !
वैसे फोटो खिंचवाने के मामले में आपका जवाब नहीं। :)
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लो जी, मैं तो डॉक्टर बन गया..
क्या साहित्यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?
जहाँ घूम आए जी?
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा।
बहुत ज़्यादा रोचक होती है आपकी हर बात।
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कल 24/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बढ़िया सैर, बहुत मन है यहाँ जाने का. देखे हैं कब जाते हैं.
@देखे = देखते
बढ़िया रहा यह यात्रा विवरण ...फोटो शानदार है
नमस्कार सर! बहुत सुन्दर...सर मैनें आपसे आपके हिन्दी यात्रा वर्णनों का मांगा था शोध में शामिल करने के लिए अपने परिचय के साथ अपने सभी हिन्दी यात्रा संस्मरणों का URL और यदि पुस्तकाकार हों तो उसका परिचय मेल कर दें, आपकी कृपा होगी...साभार
-ग़ाफ़िल
नमस्कार सर! बहुत सुन्दर...सर मैनें आपसे आपके हिन्दी यात्रा वर्णनों का मांगा था शोध में शामिल करने के लिए अपने परिचय के साथ अपने सभी हिन्दी यात्रा संस्मरणों का URL और यदि पुस्तकाकार हों तो उसका परिचय मेल कर दें, आपकी कृपा होगी...साभार
-ग़ाफ़िल
राहुल सांकृत्यायन जी ने ठीक ही कहा है -'सैर कर दुनिया की गाफ़िल ज़िन्दगानी फिर कहाँ !'
आपके लेख बार बार पढ़ने पर भी नई ताज़गी का ही एहसास कराते हैं...मतलब कि बासी बिल्कुल नहीं लगते :)...
achchha warnan , photo bhee sundar hain .
चलिए आपके साथ हमने भी घूम लिया . रोचक वृतांत.
समीर भाई इतना गज़ब का संस्मरण क्यों लिखते हो यार ... अब खर्चा करवाओगे वहाँ भी देखने जाने का ...
wahji bahut hi badiyaa jaankaari.bahutbadiyaa chitraon ke saath shaandaar lekh.badhaai aapko.
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद /मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /आभार /
हां, ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा... कहा जाता है। बढिया यात्रावृत्त के माध्यम से स्काटलैंड की यात्रा कराने के लिए आभार॥
यात्रा वृतान्त के माध्यम से हमारा भी भ्रमन हुआ
अमेरिका में भी सेन-जोन्स को सेनोजे कहते हैं। अच्छा और रोचक संस्मरण।
दिलचस्प यात्रा वर्णन । पहले भी पढ़ा था । इस बार तस्वीरें देखकर और भी आनंद आया ।
यात्रा वॄतांत लिखने का ये आपका रोचक अंदाज है कि बीच में छोडकर भाग नही सकते, शुभकामनाएं.
रामराम
ये पूंगीबाज के साथ फ़ोटो खिचवाये हैं? लगता है सरकार की पूंगी इसी ने बजा रखी है.:)
रामराम.
बड़े इंटेलेक्चुअल इलाके हो आये...हुजूर...हमें भी एडिनबरा घुमा दिया...और लौटते हुए जो फोटो खींचे...चेपे नहीं...
रोचकता से लिखा है यात्रा वर्णन ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
खूबसूरत अंदाज़े बयाँ इस शहर का आपने दिया ,इस की इतिहासिकता ,अर्थ शाश्त्र और विज्ञान के झरोखे से भी आपने उकेरी ,डिजिटल होने का एहसास दे गया यह खूबसूरत "एडिनबरा "आभार समीर लाल जी . .बेहतरीन जानकारी दी है आपने बहुत अच्छी पोस्ट . जय ,जय अन्ना जी ,जय भारत .
सद-उद्देश्यों के लिए, लड़ा रहे वे जान |
कद - काठी से शास्त्री, धोती - कुरता श्वेत |
बापू जैसी सादगी, दृढ़ता सत्य समेत ||
ram ram bhai
सोमवार, २२ अगस्त २०११
अन्ना जी की सेहत खतरनाक रुख ले रही है . /
http://veerubhai1947.blogspot.com/
.
.आभार .....इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार ./ http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com
Tuesday, August 23, 2011
इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार .
जिस व्यक्ति ने आजीवन उतना ही अन्न -वस्त्र ग्रहण किया है जितना की शरीर को चलाये रखने के लिए ज़रूरी है उसकी चर्बी पिघलाने के हालात पैदा कर दिए हैं इस "कथित नरेगा चलाने वाली खून चुस्सू सरकार" ने जो गरीब किसानों की उपजाऊ ज़मीन छीनकर "सेज "बिछ्वाती है अमीरों की ,और ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था जिसने खड़ी कर ली है जो गरीबों का शोषण करके चर्बी चढ़ाए हुए है .वही चर्बी -नुमा सरकार अब हमारे ही मुसलमान भाइयों को इफ्तियार पार्टी देकर ,इफ्तियार का पुण्य भी लूटना चाहती है ।
अब यह सोचना हमारे मुस्लिम भाइयों को है वह इस पार्टी को क़ुबूल करें या रद्द करें .उन्हें इस विषय पर विचार ज़रूर करना चाहिए .भारत देश का वह एक महत्वपूर्ण अंग हैं ,वाइटल ओर्गेंन हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com//......
गर्भावस्था और धुम्रपान! (Smoking in pregnancy linked to serious birth defects)
Posted by veerubhai on Sunday, August 21
२३ अगस्त २०११ १:३६ अपराह्न
अति सुन्दर. मजा आ गया. आपका लेख भोपाल के "पत्रिका" में भी छपा था. समीरलाल के नाम से. and not UFO
शानदार चित्रों के साथ जानदार यात्रा वृतांत ..सुन्दर...
हमारा नाम लिखते भी समीर लाल हैं और बुलाते भी समीर लाल है
कुछ लोग...हमारा नाम लिखते भी रश्मी हैं और बोलते भी रस्मी हैं...:(
आपके साथ-साथ हम भी घूम लिए...फ्री की चाय का स्वाद भी ले लिया..:)
सभ्यताओं के बारे में जानना अच्छा लगता है, बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया आपने।
यात्रा का बहुत रोचक चित्रांकन, बहुत अच्छा लगा आपके संस्मरण के साथ घूम कर, शुभकामनाएँ समीर जी.
आपके यात्रा संस्मरण काफी इन्फोर्मटिक होते है. अलग अलग देशों में जाना और उनके बारे में जानना बहुत ही सुखद अनुभव होता है.
कम फोटो के साथ ज्यादा विवरण पढ़ कर मजा आया...ज़िन्दगी के मजे ले रहे हो बॉस...और हाँ ताज महल रेस्तरां...दुनिया की लगभग सभी जगहों पर मिल जाएगा...चाहे अमेरिका हो, जापान हो, चीन हो या ईरान हो...ये सच है, विदेशों में भारतियों को भारतीय खाना कुछ ज्यादा ही याद आता है..
नीरज
वैवाहिक वर्षगाँठ पर ढेरों शुभकामनाएँ!
आपको और भाभी जी को वैवाहिक वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनायें .
विवाह की वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनायें .
स्काच के साथ स्काटलैंट की रोचक सैर का पूरा आनन्द आया ।
वैवाहिक वर्षगांठ पर हार्दिक बधाईयाँ...
Aapka yatra prasang padhaa hai .
yun to hum bhee gaye hain
Edenburgh lekin aapke vistrit
yatra varnan ne jo-jo humse chhoot
gayaa thaa uskee kamee ko door kar
diyaa hai . Dhanyawaad .
badhan me badhne vale din ki hardik shubhkamnayen .
BLOG PAHELI -2
हम्म आपने मुझे एक बार बतलाया था.....सुबह चार बजे रों घूमने जाता हूँ.रोज घूमने वाले सीढियां चढने से इतना घबराते हैं?केसल तक जाने के लिए जरा सा पैदल क्या चलना पड़ा इस आर्टिकल में इसके एक एक शब्द में से आपके हांफने की आवाज आ रही है अब तक.
अब मालूम हुआ सुबह चार बजे बेड पर ही घुमते हैं इस साइड से उस साइड हो लिए...मन खुश अब सबको को बता सकेंगे 'हम रोज चार बजे घुमते हैं........... बस .घड़ी के कांटे की तरह हा हा हा
वैसे फोटो यदि हाल की है तो..... पहले से हल्के लग रहे है .जरा टमी है अभी.किन्तु 'भारतीय' को खूब बखाना है आपने जगह जगह तो जान लीजिए तोंद तो खाते पीते घर के लोगो की निशानी है.यह एक भारतीय होने के नाते आप तो जानते ही हैं.हम सब 'भारतीय भी जानते है.इसलिए दबा कर खाइए.फालतू का टेंशन नही लेने का.हा हा हा (वो तो घरवाले लेते रहते हैं)
'............कि समीर लाल आ रहे हैं, एक झलक मिल जायेगी.' हा हा हा देख लो जबकि इनमे से कोई नही जनता होगा कि 'यह' शख्स हिंदी ब्लोगिंग का सुपर स्टार है (इत्ता तो चल जाएगा ?? :) )
.......अच्छा लिखा है ओनेस्त्ली...मैंने पूरा पढा है.एक बहाव है जो बहा ले जाता है.आपके लिखने में??? अरे! नही मेरे पढ़ने में हा हा हा अब नही लिखूंगी.सब मारेंगे मुझे.जो खरीदे हो न? बचा कर रखना......हम दोनों के लिए.
Beautiful narration.
बेहद रोचक संस्मरण लिखा है समीर जी. एडिनबरा की सैर करा दी हमें भी. कुछ तस्वीरें और डालनी चाहिए थीं, नहीं क्या?
सुन्दर यात्रा वृतान्त ... एक नई जगह के बारे में जानकार अच्छा लगा
घर बैठे दुनिया जहां की सैर करा रहे हैं सर जी। इस आलेख को दोबारा पढ़ना होगा।
घर बैठे एडनबरा की सैर करवाने लिए आपका धन्यवाद...
thank you so much for this literal n pictorial trip of Scotland... :)
now just waiting... :)
isi bahane sundar tasveron ko niharte aur padhte-padhte hamen bhi Scottland ghumna behad achha laga..
..sundar prastuti ke liye aabhar!!
जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
जी करता है आपका नाम 'यायावर' या 'आवारा बादल' कर दिया जाए।
"उड़न जी" की पोस्टों पर मैं न तो कमेन्ट कर पा रहा हूँ न ही लाईक कर पर रहा हूँ ओवर!! "उड़न जी" इसे सक्षम करें ओवर!!
बहुत रोचक और ख़ूबसूरत पोस्ट..
दादा! ये स्कर्ट वाले पुरुषों के साथ फोटू खिंचाना? नया शौक???!!!!
आशीष
कहाँ-कहाँ घूम आते हैं आप.
sameer ji sari photos me bagpipar ke pas khade hai . thoda hath hi aajma lete .
सुबह नींद खुली तो मौसम कुछ ज्ञानी ज्ञानी सा होने का अहसास देता रहा. हवा का असर होगा. याद आई हरिद्वार की सुबह, अक्सर बहुत धार्मिकता का अहसास करा जाती थी.
ऐसे ही कई वाक्य हैं जो आप के भारत प्रेम का और एक स्पेशल स्टइल का अहसास करा जाते हैं । स्कॉटलैन्ड की सैर और सर वॉल्टर स्कॉट, वैलेस्ली और उसकी उत्पत्ती सब कुछ बहुत रोचक ।
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
सर मैं पहली बार टिप्पणी कर रहां हूं आपके पोस्ट पर
मुझे जैसे पता चला आपके ब्लाग के बारे में वैसे ही आज मैने आपकी एडनबरा यात्रा वृतांत पढ़ी।
काफी अचछा हैं । आपसे प्रेरित हुआ एडनबरा और आप दोनो ही लाजवाब हैं लेखनी मासाल्लाह।
वैभव शिव
चर्चा में आज नई पुरानी हलचल
आपकी चर्चा न न आर्यव की चर्चा भाई।
रोचक वर्णन
स्कोट लैंड घुमाने का सुक्रिया ..........
भावों के दरिया से,लहर सी उठती एक कहानी,जो दिल को छूती सी
padhte-padhte hum bhi ghum aaye... :)
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