कल ही पोता लौटा है दिल्ली से घूम कर. अपने कुछ दोस्तों के साथ गया था दो दिन के लिए.
सुना उपर अपने कमरे में बैठा है अनशन पर कि यदि मोटर साईकिल खरीद कर न दी गई तो खाना नहीं खायेगा. जब तक मोटर साईकिल लाने का पक्का वादा नहीं हो जाता, अनशन जारी रहेगा.
माँ समझा कर थक गई कि पापा दफ्तर से आ जायें, तो बात कर लेंगे मगर पोता अपनी बात पर अड़ा रहा. आखिर शाम को जब उसके पापा ने आकर अगले माह मोटर साईकिल दिला देने का वादा किया तब उसने खाना खाया.
खाना खाने के बाद वो मेरे पास आकर बैठ गया. मैने उसे समझाते हुए कहा कि बेटा, यह तरीका ठीक नहीं है. तुमको अगर मोटर साईकिल चाहिये थी तो अपने माँ बाप से शांति से बात करते, उन्हें समझाते. पोता हंसने लगा कि दादा जी, यह सब पुराने जमाने की बातें हो गई. आजकल तो बिना आमरण अनशन और भूख हड़ताल के कोई खाने के लिए भी नहीं पूछता. यही आजकल काम कराने के तरीका है. इसके बिना किसी के कान में जूं नहीं रेंगती. सब अपने आप में मगन रहते हैं. मुझे तो यह तरीका एकदम कारगर लगता है.
मुझे लगा कि शायद मैं ही कुछ पुराने ख्यालात का हो चला हूँ, नये जमाने का शायद यही चलन हो.
खैर, मैने उससे दिल्ली यात्रा के बारे में जानना चाहा.
उसने बाताया कि दो दिन में से एक दिन तो फिल्म, क्रिकेट मैच और दोस्तों के साथ चिल आऊट करने में निकल गया. हालांकि मैनें उससे जानने की कोशिश की कि चिल आऊट कैसे करते हैं, मगर वह टाल गया. मैने भी जिद नहीं की इसलिए कि कहीं मेरी अन्य अज्ञानतायें भी प्रदर्शित न हो जायें. क्रिकेट मैच ट्वेन्टी ट्वेन्टी वाला था, एकदम कूल. चीअर गर्लस, वाईब्रेशन, गेम सब का सब डेमssकूssल.
मुझे फिर लगा कि जमाना कितना बदल गया है. हमारे समय में मैच माहौल में गर्मी पैदा कर देते थे और हर दर्शक एक गर्मजोशी के साथ मैच देखा करता था और आज- हून्ह- कूssल.
वो आगे बताता रहा कि रात में एक क्लब में दोस्तों के साथ चिल आऊट किया और फिर दूसरे दिन, दिल्ली का सेलेक्टेड टूर लिया. समय एक ही दिन का बचा था तो सेलेक्टिव होना पड़ा. सिर्फ राज घाट, जंतर मंतर इंडिया गेट और संसद भवन देखा गाईड के साथ.
मुझे भी दिल्ली गये एक अरसा बीत चुका था तो मैने सोचा कि चलो, इसी से आँखों देखा हाल सुन कर यादें ताजा कर लूँ. इसी लिहाज से मैं पूछा बैठा कि गाईड ने क्या क्या बताया?
आजकल के बच्चे इतने शार्प होते हैं कि अपने फोन में सारी तस्वीरें भी ले आया था. उसी को दिखाते हुए उसने वर्णन देना शुरु किया कि यह राजघाट है जहाँ सारे नेता इन्क्लूडिंग प्रधान मंत्री और फारेन के नेता भी अपना काम शुरु करने के पहले दर्शन के लिए जाते हैं, जैसे आप मंदिर जाते हो न, वैसे ही. फिर फोटो में उसने दिखाया कि यहाँ से सन २००६ में कुत्ते घुसे थे और कुत्तों के द्वारा पूरा चैक करने के बाद यहाँ से यू एस के राष्ट्रपति बुश. उन्होंने नें भी भारत में काम शुरु करने के पहले यहाँ के दर्शन किये थे.
बहुत सुन्दर जगह है, वैल मेन्टेन्ड, ग्रीन और क्लीन. फिर हम लोग जंतर मंतर गये. ये देखो तस्वीर.
मैने बस उसका ज्ञान जानने के हिसाब से पूछ लिया कि जंतर मंतर क्या है?
फिर क्या था- दादा जी, आप इतना भी नहीं जानते कि यह अनशन स्थल है. यहाँ अन्ना हजारे आमरण अनशन पर बैठे थे और भारत सरकार के दांत खट्टे कर दिये थे. ये देखो, इस जगह अन्ना हजारे बैठे थे और ये.. इस तरफ सारा जन सैलाब था. इस वाले रास्ते से नेता उनसे मिलने आने की कोशिश कर रहे थे. इस तरफ से पब्लिक ने उन नेताओं को खदेड़ा था. सरकार को झुकना पड़ा. उनकी मांगें माननी ही पड़ी.
मैने उससे कहा कि वो तो सही है बेटा मगर इसे बनवाया किसने था और किस लिए. पोता बोला वो तो गाईड ने बताया नहीं मगर यह जगह फेमस इसीलिए है. सब फोटो खींच कर लाया था मगर यंत्रों की एक भी नहीं. मानों वो सिर्फ सजावट के लिए लगे हों तो उनकी क्या फोटो खींचना- सिर्फ इम्पोर्टेन्ट जगहों की खींची.
फिर संसद भवन भी देखा जहाँ देश भर से चुने हुए भ्रष्ट आकर भ्रष्टाचार को अंजाम देने की योजना बनाते हैं. इतने जरुरी काम में खलल न पड़े इसलिए आम जनता को बिना पास के अंदर जाने की इजाजत नहीं है. हर तरफ सिक्यूरिटी लगी है जबरदस्त. इन सारे चुने हुए लोगों का स्टार स्टेटस है. उन्हें देखते ही प्रेस वाले टूट पड़ते हैं. कैमरे चमकने लगते हैं. मैं तो उनको दूर से ही देखकर बहुत इम्प्रेस हुआ.
मैं अपने इम्प्रेस्ड पोते को ठगा सा देख रहा था और वो इससे बेखबर मुझे अपने फोन से फोटो दिखाये जा रहा था.
पोता जब बहुत लाड़ में होता है तो अपने पापा को डैड और मुझे डैडू कहता है. नये जमाने का है.
कहने लगा डैडू, आपको पता है कि यह इंडिया गेट है. यह इसलिए फेमस है कि यहाँ पर विख्यात मॉडल जेसिका के मर्डर केस में मीडिया और जनता ने मिल कर केन्डल लाईट विज़िल किया था. जिसके चलते ही पूरा केस साल्व हुआ. न्यायपालिका को हिला कर रख दिया था जनता ने. फिर एक दिन उसी मीडिया की फेमस मिडीया कर्मी और राडिया धर्मी को जनता नें यहीं से नारे लगा लगा कर खदेड़ा. जनता के बदलते मिजाज का गवाह है यह गेट. व्हाट ए गेट, ह्यूज!!! फिल्म वालों के लिए भी बेहतरीन लोकेशन है, कितनी सारी फिल्मों में यहाँ की शूटिंग की है.
रात को जब लाईटिंग होती है, तो क्या गजब का लगता है यह गेट. कितने सारे लोग पहुँचते हैं यहाँ चिल आऊट करने रात में..ग्रेट नाईट आऊट!!!
लुक!!! डेहली इज़ सो फेसिनेटिंग.
दादा जी, चलो न!! हम लोग दिल्ली में ही सेटल हो जायें............. क्या सोच रहे हैं?..................क्या ख्याल है...मैने ने तो सोच लिया है बस.........एक बार ये पढ़ाई पूरी हो जाए........
वो बोलता जा रहा है तो मैं अपने ही ख्यालों में डूबा था कि वाकई, बहुत दिन हो गये दिल्ली गये. कितना कुछ बदल गया है इतने सालो में.
दीवार पर टंगा
कलेन्डर
हनुमान जी के चिरे
सीने से झांकते
सीता-राम......
और
तलाश नई तारीखों की...
मुई!! मिलती ही नहीं...
जाने कौन पुराना हुआ...
मैं,
कलेन्डर
या तारीखें!!
कोई समझाओ मुझे!!
-समीर लाल ’समीर’
94 टिप्पणियां:
dilli ki achchi hava lagi hai...buri hava se bach gaya pota...mubarak ho...kanadai pota hava khane aaya tha isliye sab theek tha...jis din rahe aa gaya aante-daal ka bhav samajh aa jayega...aur daidu aap to dilli ko achchi tarah jante hain aisi galti bhool ke bhi naa kijiyega...jab tak ann ka mission kamyaab na ho jaye...vaise chill out karne ke liye jagah buri bhi nahin hai...
समीर जी, आपने तो आज की हकीकत बयान कर दी. इस सिम्बोलिक पोस्ट के सहारे उस युवा पीढ़ी की जिस पर भारत को नये युग में ले जाने का दायित्व है..
चलिए नाती तो अपने डैडू को दुनियादारी के ट्रेंड्स सिखा रहा है -बधायी !
पोते ने दिल्ली की असलियत जल्दी ही जान ली। जीनियस है।
जादू के असर जैसा जंतर-मंतर.
दिल्ली की हकीक़त और युवापीढ़ी के बेखबर सपने दोनों का खुबसूरत तालमेल बैठाया है बच्चे ने जो कहा वो बिलकुल ठीक था वो तो वही ब्यान करेंगे न जो वो देख रहें हैं बहुत सुन्दर विवरण |
हम तो दिल्ली में रहते हुए भी ऐसी दिल्ली कम ही देख पाते हैं.... कल IPL देखने गए थे फॅमिली के साथ... चिल तो नहीं किया :-) लेकिन एन्जॉय खूब किया!
ye bhaai saahib "DAIDOO"apne daddu kaa hi apbhrnsh roop hai jise daduaa bhi kah diyaa jaataa hai ,jiase jeejaa ko "jeej"/jeeju kah diyaa jaataa hai ,
samajh achchhi hai pote kee samkaaleen hai ,
ham aur aap ,
puraaane kaaleen hain .
veerubhai .
divaar par tangen hain puraane kelendar se -
nai taareekhen batlaane me asmarth .
veerubhai .
चिल ...कूल ...
बच्चे कहते हैं तो कई बार मैं भी पूछ लेती हूँ , इसमें कूल जैसी क्या बात है ..
जंतर मंतर के मंतर पर आत्ममंथन चल रहा है ...देखें किसका जंतर किसके मंतर से बनता है ...जनता का या सरकार का :)
आदरणीय समीर जी
नमस्कार !
पोते ने जो कहा वो बिलकुल ठीक था
यही है दिल्ली की हकीक़त
...............बहुत सुन्दर
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
जाट देवता की राम-राम,
आप का पोता हमारे पास में ही घूम रहा था, हमें पता भी नहीं चला,
आप से एक अनुरोध अगर आप अपने पोते को बाइक दिलवाते हो तो उसे मेरा ब्लाग मत पढने देना, नही तो आपका पोता आप के पास कम व भारत भर में ज्यादा घूमता रहेगा। दिल्ली को भी भूल जायेगा।
पोता वाकई दिल्ली गया था क्या?
आप ने सारी सचाइयाँ परोस दी हैं इस माध्यम से।
गुरुदेव,
लगता है जेट ऐज आ गया है...उन्नीस मार्च को पोते राजा ने लंदन में जन्म लिया...और एक महीने का होते ही अकेले दिल्ली घूम भी आया...वाकई आजकल के बच्चों में गजब का कॉन्फिडेंस है...
जय हिंद...
बहुत सार्थक एवं विसंगतियो पर प्रखर प्रहार करने वाली व्यंग्य रचना है , बधाई
हॉं। चीजें बदल गई हैं। आमूलचूल। हम रामनवमी पर पूजन-अर्चन करते थे। आज लार्ड रामा का बर्थ डे सेलिब्रेट होता है।
बहुत अच्छा गुरुदेव !! शब्दों का खेल में तो आप की महारथ है ही थोड़े से शब्दों में न जाने क्या क्या कह जाते है | चलिए ये अच्छा हुआ की पोते के बहाने ही सही पर आप दिल्ली में सेटल हो जाये तो हमारे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात होगी | आपकी लेख में मौज मस्ती व वर्तमान की वास्तविकता की झलक भी है !!!! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
पोते ने एक ही दिन में इतना कुछ देख लिया और व्यावहारिक बातें सीख भी लिया.. फिर भी दादाजी को शिकायत!! :-)
pote ne aapki chaah ko shabd de diye
ये चिल आउट तो अंत तक लेख में आउट ही रहा ।
बहुत सुन्दर आलेख।
दुनिया बदल गयी प्यारे...आगे निकल गयी प्यारे...अरे भाई निकल के आ घर से...आ घर से...
सब कुछ वैसा का वैसा है जैसा हमारे ज़माने में था अब सिर्फ उन्हें देखने का नजरिया बदल गया है...कूल हो गया है...यू बैटर अंडरस्टैंड दिस ओल्ड मैन... :-)
नीरज
बेहतरीन व्यंग्य....खुशदीप जी की टिपण्णी पढकर आनंद आया
pote ke sohbat me raha jai...dadda...
na..tarikh..na calander..na aap......
purane honge....
pranam.
bahut hi achchhi post ,aaj ke bachchon ki bhasha aur mansikta ka achchha chitran ,,,,phir bhee mujhe to ye jaan kar bahut khushee huee ki pota Hindustan men basna chahta hai .
आज के जेट युग के बच्चे हैं हैं यह ...हमसे अधिक यह अब माहौल को समझ जाते हैं और अपने तरीके से हमें भी समझा जाते हैं .....दिल्ली की हकीकत के साथ यह हकीकत भी इस पोस्ट के जरिये आपने खूब बेहतरीन ढंग से लिख डाली ...
ये दिल्ली है दिलवालों की. यहाँ आके ही लगता है की घर आ गए.
नई पीढ़ी की नई परिभाषाएं....
कभी जेंटलमैन्स गेम जेंटलमैन कपड़ों में खेला जाता था...
हर चीज़ में 360 डिग्री का टर्न आया है...समझते रहें दादा जी...
शब्द वाणों का तीर सही निशाने पर लगा है आपका. एक महीने के बच्चे के मुख से कठिन से कठिन शब्द इतनी सरलता से कहलवा लिये. आपकी महिमा अपरम पार है.
समीर भाई ... जैसे जैसे जीवन की संध्या नज़दीक आती जाती ही मान कहीं न कहीं पुरानी बातों में दौड़ता रहता है ... पुराने कालेंडर में घूमता रहता है .... ऐसी कविताएँ मत लिखा करो यार ... बस अभी अभी दिल्ली से लौटा हूँ .... तुमने वापस पहुँचा दिया फिर से ...
नई पीढी के ज्ञान से इतना तो हमें पता चल ही गया कि पुराने हम हो रहे हैं ।
ekdam lajabab post....
जाने कौन पुराना हुआ...
मैं,
कलेन्डर
या तारीखें!!
वाकई बहुत कुछ बदल गया.आपकी पोस्ट ने आशा जगा दी है अब मैं भी इंतज़ार कर रही हूँ कि मेरे बच्चे भी बोलें कि मम्मा चलो दिल्ली में सेटल हो जाएँ.
sameer saab !
pote ki hardik badhai !maza aaya padh kar !
saadar !
idea bura nahi hai sir ji :)
rachna hamesha si asardaar hai !
समीर जी!
जैनरेशन का अन्तर यही होता है!
आने वाली पीढ़ी जाने वाली पीढ़ी को पुराना बताती ही है!
--
पोस्ट के साथ रचना भी बहुत सुन्दर लगाई है आपने!
nayee peedhi ki nigahon se delhi ke naye darshan hue par purani ki kasak ....sunder...
nayee peedhi ki nigahon se delhi ke naye darshan hue par purani ki kasak ....sunder...
`जब तक मोटर साईकिल लाने का पक्का वादा नहीं हो जाता, अनशन जारी रहेगा.'
ये सब जवान पोट्टों के चोचले है, दादा ने आदत बिगाड जो दी :)
बहुत बढ़िया बिंदास अभिव्यक्ति .... आभार
दादाजी...यह हमारा बनाया हुआ प्रोडक्ट ही तो है...बहुत प्यारा... कूल ड्यूड है.... :)
pretty cool post, dilli ki yaad dila di :-(
BTW, ab aap chillax kijiye!
सच है शब्दों के माध्यम से आपने जो जादू बिखेरा वो काबिले तारीफ़ है,
मै इस फेर में नही पड़ना चाहता कि आपका पोता दिल्ली घूमने गया के नही?
क्यों की श्री दिनेश राय द्विवेदी जी ने अपनी टिप्पणी में शायद यही प्रश्न किया है,मेरे इस कथन को कृपया आप अन्यथा ना लें, क्यों की मै अपनी मानसिकता पहले ही प्रदर्शित कर चुका हूँ....
Not a bad idea!!
यह फर्क पीढ़ी बदल जाने भर का नहीं है,जल्दी-जल्दी इतना कुछ बदला जा रहा है कि हम एक दिन आईने में अपने को ही नहीं पहचान पाएंगे !
आपने आज की पीढ़ी के नज़रिए से महानगर का सही आकलन किया है !
डैडू पोता तो बहुत समझ दार हे, चलिये जल्दी से दिल्ली मे बस जाये, हम जरुर मिलने आयेगे
जाने कौन पुराना हुआ...
मैं,
कलेन्डर
या तारीखें!!
कोई समझाओ मुझे!!
सुन्दर कविता. अब बच्चे जगहों का ऐतिहासिक नहीं, सामयिक महत्व जानकर ही संतुष्ट हो जाते हैं शायद. सुन्दर पोस्ट.
आज कल बच्चों को बस कूल ही कूल अच्छा लगता है ...बढ़िया लेख ...जंतर मंतर की खासियत अच्छी लगी नयी नज़र से :)
समीरलाल जी, एक बार फिर आपके लेखन के कायल हुए हैं...कितनी बड़ी और गंभीर बात आपने सादगी से कह दी है.
आपने दिल्ली की याद दिला दी....करीब डेढ़ साल्स इ दिल्ली से दूर हूँ....अपने अब तक के जीवन के ११ साल बिठाये हैं मैंने वहाँ....वहीं जवान भी हुआ था.....कसक सी उठ गयी दिल्ली जाने की....
बहुत मुस्किल समझाना है सरजी......
पर दिल्ली मे सेटल होने की बात नई पिडी सोंच रही है.... बहुत है..
आज सुबह ही दिल्ली से आयी हूँ, दो दिन के लिए गयी थी। वैसे मुझे दिल्ली हमेशा ही अच्छी लगती है लेकिन इस बार मौसम भी सुहाना था और पता नहीं क्यों बहुत ही अच्छी लग रही थी दिल्ली। मन कर रहा था कि इन सड़कों पर पैदल घूमा जाए।
बहुत सुन्दर आलेख ...वैसे ये हाल सिर्फ़ दिल्ली का ही नहीं अधिकतर बड़े शहरों का है .....सादर !
समीर जी आप दिल्ली आ रहे है बहुत ख़ुशी की बात है. स्वागत है आपका. इस पोस्ट में बहुत कुछ समेटा है आपने. बधाई.
फिर संसद भवन भी देखा जहाँ देश भर से चुने हुए भ्रष्ट आकर भ्रष्टाचार को अंजाम देने की योजना बनाते हैं. इतने जरुरी काम में खलल न पड़े इसलिए आम जनता को बिना पास के अंदर जाने की इजाजत नहीं है.
बिलकुल सही कहा आपने ...आज के समय की वास्तविकता बयान कर दी ....
वाकई बहुत बदल गई है दिल्ली या हमने ही उसे बदल दिया...और यह तस्वीर का दूसरा रुख है जिसने पहले रुख को धुंधला ही नहीं बिल्कुल मिटा दिया.....
आदरणीय समीर जी
नमस्कार !
यही है दिल्ली की हकीक़त
........बहुत सुन्दर.........
दादा--दादू --और अब डैडू । अब दिल्ली में सब पोते ऐसे ही बोलते नज़र आयेंगे ।
भविष्य की कहानी ।
दिल्ली की सही खिल्ली उड़ाई है भाई ।
लेकिन बेहद सटीक लेख है ।
वैसे दादू बनकर कैसा लग रहा है --लगता है उसका अभ्यास करना शुरू कर दिया है ।
आपकी पोस्ट के अंदर कई सन्देश छुपे हैं. यह सच है कि नई पीढ़ी दुनिया को अपनी नज़र से देखती है. वर्तमान में जीती है. लेकिन जिस स्थल को देख रहे हैं उसके इतिहास के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं होना. जिस व्यक्ति से मिल रहे हैं उसकी पृष्ठभूमि में रूचि न होना कोई शुभ संकेत नहीं है. व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए भूत, वर्तमान और भविष्य तीनो काल में दिलचस्पी होनी चाहिए.
---देवेंद्र गौतम
नयी पीढ़ी का ज्ञान और गति दोनों तेज़ हैं....
Pota sahi hai....agrim dili (Dilli nahi) mubarakbaad....
राम और सीता अभी भी झाँक रहे हैं, यह देखने के लिये कि क्या हो गया है तारीख को।
वाकई ऐसी ही है दिल्ली ? आ जाइए यहीं जैसी भी है ऐसी ही चलेगी भाई जी !!
itna kuchh badal gaya sach me? apke lekh se pata chala....sunder lekh.
सुंदर पोस्ट
hum to is baat se hi khush hay ki dilli itni pasand aayi daidu ko.dilli ka aana janna to banaarahe ga.
kumkum(didi)
समीर अंकल..फिलहाल दिल्ली छोडें और टोरोंटो की बात करें.
जेट-एज की वार्ता द्वारा
बहुत ही काम की बातें कर गए आप तो...!
कैलेण्डर पर बनी तारीखों के उलझाव में
खुद को ढूँढना ही मुनासिब जान पड़ता है .
अभिवादन स्वीकारें .
बिलकुल सही बयां किया है आपने दिल्ली के बदलते हालात का............वैसे बहुत ही नेक ख्याल है दिल्ली में सेटल होने का.
.आदरणीय भाई साहब , भावनापूर्ण ओजमयी रचना के लिए बधाई
http://nageshpandeysanjay.blogspot.com/
such interaction of new gen with india is again a proof of vitality of this holy land............
आज तो हिन्दी के हिन्दुस्तान में छा गये है दोनों दादा पोते,
भतीजे को आशीर्वाद व आपको नमस्कार,
कूल :)
किन दोस्तों के साथ रहता है पोता?,मोटरसाईकिल ले ली क्या?,दिखने में तो कूल है ही शार्प पोते का सिलेक्शन भी बुरा नहीं ....तो फ़िर डैडू ने क्या सोचा है?,कब सेटल होना है दिल्ली में....
आपका कोई जवाब नहीं महाराज ! क्या ख़ूब बात कही!
मुझे नहीं लगता है कि हालात इतने भी खराब है। कई युवा है जो ये बात जानते है कि राजघाट क्या है। और, अगर वो ये बात नहीं जानते हैं तो ग़लती माता-पिता और शिक्षकों की हैं। सुधार की ज़रूरत उन्हें भी है जो शिक्षा दे रहे हैं।
अब आ ही जाइये ....ख्याल नेक है :)
अपने कमरे में बैठा है अनशन पर कि यदि मोटर साईकिल खरीद कर न दी गई तो खाना नहीं खायेगा. जब तक मोटर साईकिल लाने का पक्का वादा नहीं हो जाता, अनशन जारी रहेगा.
हा हा हा हा ... यही तरीका सोलिड है आज तो !
बहुत ही बढ़िया, रोचक, उम्दा संस्मरण !
नई पीढी के सोंचने और करने का ढंग भिन्न होता है .. बहुत सही लिखा !!
क्या आप सच्चे हिन्दू हैं .... ? क्या आपके अन्दर प्रभु श्री राम का चरित्र और भगवान श्री कृष्ण जैसा प्रेम है .... ? हिन्दू धर्म पर न्योछावर होने को दिल करता है..? सच लिखने की ताकत है...? महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवा जी, स्वामी विवेकानंद, शहीद भगत सिंह, मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद जैसे भारत पुत्रों को हिन्दू धर्म की शान समझते हैं, भगवान शिव के तांडव को धारण करते हैं, जरूरत पड़ने पर कृष्ण का सुदर्शन चक्र उठा सकते हैं, भगवान राम की तरह धर्म की रक्षा करने के लिए दुष्टों का नरसंहार कर सकते हैं, भारतीय संस्कृति का सम्मान करने वाले हिन्दू हैं. तो फिर यह साझा ब्लॉग आपका ही है. एक बार इस ब्लॉग पर अवश्य आयें. जय श्री राम
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जरा सोचिये उपरोक्त सारी बाते आपका दिल स्वीकार करता है. पर हिन्दू खुद को हिन्दू कहने में डरता है, वह सोचता है की कही उसके ऊपर सांप्रदायिक होने का आरोप न लग जाय, जबकि हिन्दू धर्म है संप्रदाय नहीं. हमारे इसी डर ने हमें कमजोर बनाया है.
जरा सोचे -- कश्मीर में हमारी माँ बहनों की अस्मिता लूटी जा रही है. हम चुप हैं.
रामजन्मभूमि पर हमले हो रहे हैं........ हम चुप हैं.
हमारे धार्मिक स्थल खतरे में हैं और हम चुप हैं..
इस्लाम के नाम पर मानवता का खून बह रहा है . हम चुप हैं.
हम आतंकी खतरे के साये में हैं..... हम चुप हैं..
मुस्लिम बस्तियों में हिन्दू सुरक्षित नहीं हैं. हम चुप हैं..
दुर्गापूजा, दशहरा, गणेश पूजा सहित सभी धार्मिक जुलुस, त्यौहार आतंक के साये में मनाये जाते हैं और हम चुप है.
क्या यह कायरता हमें कमजोर नहीं कर रही है.
जागिये, नहीं तो जिस तरह दिन-प्रतिदिन अपने ही देश में हम पराये होते जा रहे हैं. एक दिन भारत माता फिर बाबर और लादेन के इस्लाम की चंगुल में होगी.
हमारी कायरता भरी धर्मनिरपेक्षता भारत को इस्लामिक राष्ट्र बना देगी.
धर्म जोड़ता है, आप भी जुड़िये.
भारतीय संस्कृति की आन-बान और शान और हिंदुत्व की रक्षा के लिए अपने अन्दर के डर को निकालिए.
आईये हमारे इस महा अभियान में कंधे से कन्धा मिलाकर दिखा दीजिये, हम भारत माँ के सच्चे सपूत हैं.. हम राम के आदर्शों का पालन करते हैं. गीता के उपदेश को मानते हैं.
स्वामी विवेकानंद ने विदेश में जाकर अकेले हिंदुत्व का डंका बजा दिया... हम भी तो हिन्दू हैं.
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आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर अपनी आवाज़ बुलंद कीजिये...
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बांयें.
इस ब्लॉग के लेखक बनने के लिए. हमें इ-मेल करें.
हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
नम्र निवेदन --- यदि आप धर्मनिरपेक्ष हिन्दू बनते है तो यहाँ पर आकर अपना समय बर्बाद न करें. पर चन्द शब्दों में हमें यह जरूर बताएं की सेकुलर और धर्मनिरपेक्षता का मतलब आपको पता है. यदि पता न हो तो हमसे पूछ सकते हैं. हम आपकी सभी शंकाओ का समाधान करेंगे.
इसको अवश्य पढ़े....
इनका अपराध सिर्फ इतना था की ये हिन्दू थे
सचमुच, दिल्ली कितनी बदल गई है।
Hmmmm ya kuchh aur idlli banayein jis se dilli ki chehal pehal aur rela kam ho jaye... aapki is post ka link news paper k zariye mila aur ek jana pehchana naam akhbaar me dekh kar khushi huyi :)
दिल्ली का असली दर्शन तो हमने आज किया है....आभार !!
आपकी बातों से यह बात साबित होती है कि जैसा ज्ञान बच्चो के समक्ष परोसा जाता है वैसा ही वे धारण कर लेतें हैं.जंतर मंतर की यदि हिस्ट्री बताई जाती गाईड द्वारा तो बच्चा वह भी याद रखता.
अब आप कब सेटल हो रहे हैं देहली में?
क्या खुशदीप भाई ने पोते के बारे में सच कहा ?
मै भी तो सोचूं पोता एकदम से युवा कब हुआ.
yahi to hai real delhi... aaj ke wakt ki dilli pote ki aankhon se.
aapki yeh post maine hindustan news paper mei padi thi...bahut khoob likha hai...aaj ki puri hkikat byan hoti hai....aabhar
सही है.. दिल्ली में चिल आउट करने का मतलब जानने की कोशिश की ज़रूरत नहीं है.. वह तो जग जाहिर है..
पुराने तो हम ही होते हैं.. मुआं कैलेंडर तो कम्ब्बखत हर साल नया हुआ जाता है..
जनाब ..संसद भवन भी देखा जहाँ देश भर से चुने हुए भ्रष्ट आकर भ्रष्टाचार को अंजाम देने की योजना बनाते हैं. इतने जरुरी काम में खलल न पड़े इसलिए आम जनता को बिना पास के अंदर जाने की इजाजत नहीं है...सारा लेख ही सामयिक है पर इससे बड़ी तल्ख़ हकीकत क्या है .शुक्रिया
"फिर संसद भवन भी देखा जहाँ देश भर से चुने हुए भ्रष्ट आकर भ्रष्टाचार को अंजाम देने की योजना बनाते हैं. इतने जरुरी काम में खलल न पड़े इसलिए आम जनता को बिना पास के अंदर जाने की इजाजत नहीं है. हर तरफ सिक्यूरिटी लगी है जबरदस्त"
कित्ता समझदार हॆ..आते ही समझ क्या कि अन्दर क्या होता हे :)
जेन एक्स के लिए तो दिल्ली एकदम फंडू चिल आउट प्लेस है...
yuva peedhee kee aankhon me sapne hain to sath hee samajhdaaree bhee hai.nai peedhee ka belaus andaaj bha gya.
नमस्ते समीर जी,
दिल्ली ही नहीं पूरा का पूरा इंडिया ही फेसीनेटिंग है। हम भी उस आकर्षण से ज्यादा देर तक बच नहीं पाए।
पोस्ट हमेशा की तरह बहुत ही मज़ेदार लगी।
बहुत सुन्दर
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