उम्र के दीप में उनका स्वार्थ -समीर लाल ’समीर’ |
आज आखर कलश पर भी मेरी दो रचनाएँ प्रकाशित हैं और एक गज़ल मेरे मन की पर अर्चना चावजी द्वारा गाई. |
रविवार, अक्तूबर 31, 2010
पीपल का पेड़
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83 टिप्पणियां:
उनका स्वार्थ
मेरा खुश रहना
भोग लगाया जाता रहा
बहुत कोमल भाव है। सुंदर।
अवाक
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़....
बहुत सुंदर रचना.
आपकी इस रचना पर जो मुझे कहना है वह रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों द्वारा कहूंगा
भक्ति है यह
ईश-गुण-गायन नहीं है
यह व्यथा है
यह नहीं दुख की कथा है
यह हमारा कर्म है, कृति है
यही निष्कृति नहीं है
यह हमारा गर्व है
यह साधना है--साध्य विनती है।
बहुत सोचने को मजबूर करती हैं आपकी पोस्ट्स -
एक टूर लगाकर आते हैं सरजी, आखर कलश पर भी।
सूरज से जलते हुए तन को मिल जाए,
जैसे तरुवर की छाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
जब से शरण तेरी आया,
मेरे राम, मेरे राम...
जय हिंद...
बहुत सुंदर रचना....भावपूर्ण पंक्तियाँ
बाऊ जी,
नमस्ते!
काश हमारे बुज़ुर्गों को भी ये सम्मान मिल पाता!
अभिभूत हुआ!
आशीष
--
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
bahut hi utkrisht bhaw hain
पीपल का पेड़,मात्र पेड़ नहीं प्रतीक हुआ करता था एक सभ्यता का... और आपने इसे एक नया मुकाम दिया है!!
वाह-वाह क्या बात है....शानदार अभिव्यक्ति...
यह तो गौरव की बात है -कितने आश्रय खोजियों के आश्रयदाता युवा पीपल का पेड़ !
घर के बड़े लोग इस सम्मान के हक़दार भी है
उम्र के दीप में
कम हुआ तेल
और मैं
अपने ही घर में बना दिया गया
मंदिर की मूरत
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
regards
समीर भाई( न जाने क्यों इस अभिव्यक्ति पर तो आपको समीर जी से समीर भाई कहने का मन हो आया।) हो सकता है आपने कविता उसी मंतव्य से लिखी हो,जो टिप्पणीकार समझ रहे हैं। पर मेरा मन और कवि मन कहता है कि यह कविता उम्र के एक खास पड़ाव पर पहुंचने पर महसूस करने वाले भाव की कविता है। जहां यह सम्मान सम्मान नहीं बल्कि तिरस्कार ज्यादा होता है। जहां आपको सबकुछ बुर्जुगियत के नाम पर चुपचाप सहते रहना होता है। आपकी कविता में भी -अवाक- शब्द इस बात का परिचायक है।
यह मेरा नजरिया है हो सकता है गलत हो। बधाई और शुभकामनाएं।
कैसे लिख लेते हैं आप इतनी अच्छी और बेहतरीन कवितायेँ? :)
यही नियति है पीपल के पेड़ की..
wah sameer ji wah....
आपकी यह रचना अलग अलग अर्थ देती है ...जहाँ एक ओर महसूस होता है कि लोगों के मन में सम्मान कि भावना है वहीं यह भी एहसास होता है कि सम्माननीय बना कर एकांतवास की सजा दे दी है ...जब तक पेड़ छाया देगा तब तक पूजनीय और जब वह खुद ठूंठ रह जायेगा तब ? ?
पता नहीं कहाँ तक आपके भावों को समझ पायी ...पर इसमें वेदना झलकी ...
पीपल को जाना ही है एक दिन,
यही है नियति,
जिंदगी के अंतिम पड़ाव में,
नसीब तो है सुख,
स्वार्थ से ही सही,
वो कहा नहीं ?
कई पीपल के पेड़,
जिन्हें कोई,
पूछता तक नहीं,
कई बूढ़े है,
वृध्राश्रम में.
दुविधा है,
स्वीकार करने में,
अंतिम सत्य ?
या है कोई शिकायत ?
दिल मेरा,
जाने अब और,
चाहता है क्या ?
आप को अगर,
जान ही लेनी है,
कविताई से,
तो क्यों न,
प्यार से मारे,
आप,
और पा लें सुकू ,
वो जो कहते है,
मिलता है,
मरने के बाद ही ...
इसे कविताई न समझे,
बस एक विचार ,
मात्र ...
लिखते रहिये ....
पुरानी जमाने के :-
नदी किनारे गावँ रे
पीपल झूमें मोरे आंगनाँ
ठंडी ठंडी छावं रे
से नये जमाने की सम्वेदनाऑं को दर्शाती आपकी कविता एक पूरे समाज के "सभ्य" हो जाने की कहानी को बेबाक कहती ह। साधुवाद!
पीपल का पेड़ छाया दे घनी घनी ....
हर घर में है,
एक पेड
पीपल का।
आज,
कह नहीं रहा,
बॉंच रहा,
अपनी दशा,
यहॉं,
आपकी कलम से।
हर घर में है,
एक पेड
पीपल का।
आज,
कह नहीं रहा,
बॉंच रहा,
अपनी दशा,
यहॉं,
आपकी कलम से।
जो पेड़ हमें छाया देता है, स्थिर सा खड़ा रहता है जीवन भर। सुन्दर झिझोंड़ती पंक्तियाँ।
bahut achcha likhe hain.
घर के एक बड़े बुज़ुर्ग की तरह ... बहुत सुंदर रचना समीर जी ...
jis bageeche ko maali ki tarah sinch kar hara bhara kiya ho..kabhi kabhi uss ghar ki hariyali banaye rakhne ke liye maali ko peepal ka ped ban ka jeena padta hai...lekin ye zaruri bhi nahi... bahut achchi kavita ..meri pasand...
We all derive our own meanings from poetry.... i liked it as it gives a hint of loneliness ..
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
bahut gahari rachana ...bahut-bahut badhai..
Aap hameshahee ni:shabd kar dete hain!
अवाक
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़....।
भावमय करती पंक्तियां ।
वाह ..
बहुत अच्छी प्रस्तुति !!
कभी नीम का पेंड देखा था, आज पीपल का पेंड पढ़ा... बहुत ही अच्छा लगा...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
Ishaon isharon men bahut kuchh kah gaye aap. Badhayi.
---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
Ishaon isharon men bahut kuchh kah gaye aap. Badhayi.
---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़....
--
इसमें क्या शक है!
आप तो ब्लॉगिंग के पुरोधा हैं!
--
सुन्दर अभिव्यक्ति!
उम्र के दीप में
कम हुआ तेल
और मैं
अपने ही घर में बना दिया गया
मंदिर की मूरत
उनका स्वार्थ
मेरा खुश रहना
बहुत गहरी बात कह गए आप इस कविता में आज .....आर पार निकल जाने वाली कविता कही आज आपने !
जनाब समीर लाल साब ....उनका स्वार्थ
मेरा खुश रहना ...रिश्ते कितने अपरिचित और स्वार्थमय होगये है पर सीधी सीधी चोट की है भारी हतोड़े का वार है जो कोई समझे .पूरी कविता कम से कम हर ५० की वय पार को अपनी ही कहानी लगेगी और कोई नोजवान भी सीख ले तो सोने में सुहागा .
bhut shandar lekhan hai aapka ... mere blog par apka margdarshan mera saubhagya hai ... shubhkamanayen... apka hare bhare ped lagao ka logo maine bhi laga liya hai .... shubhkamanayen
bahut bariya hai
अवाक
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़....
bahut sundar kavita.. hatprabh kar diya is vimb ne..
aapki kavita se mujhe kuch panktiyaan yaad aa gayi..aur yaad aa gaya 'neem ka ped' ..
munh ki baat sune har koi
dil ka dard na jane koy
aawajon ke baajaron mein
khamoshi ko na pehchane koy!
उम्र के दीप में
कम हुआ तेल
और मैं
अपने ही घर में बना दिया गया
मंदिर की मूरत
बहुत सुंदर रचना...
पीपल का पेड़ हो जाना भी गर्व की बात है।...भावमयी रचना।
बेहद सुंदर और संवेदनशील अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
तू शीतल छाय़ा
तू घर की माया
तू ही छल बल
तू ही पीपल :)
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़....
Sunder hi nahi Ati Sundar
अवाक
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़.
वाह बहुत भावपूर्ण.
बिल्कुल नवीन कल्पना, बेहद सुंदर और खूबसूरत पीडा उकेरती रचना.
रामराम.
ओह....
यह प्रखर पैनापन ...
आप जैसे सिद्ध के हाथों ही संभव है...
सुन्दर. बहुत ही सुन्दर.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर
अपने ही घर में बना दिया गया
मंदिर की मूरत उनका स्वार्थ
मेरा खुश रहना
बहुत सुन्दर
उम्र के दीप में
कम हुआ तेल
और मैं
अपने ही घर में बना दिया गया
मंदिर की मूरत
मन की बेबसी..और दर्द को अर्थपूर्ण शब्दों में बांधा है...
कल ही किसी से में कह रही थी की उम्र के इस पड़ाव पर एक अजीब सी उदासीनता अपने प्रति महसूस करती हूँ , और लगता है की इसे स्वीकार करने की आदत डाल लेना चाहिए....बिना पलक झपके
मुस्कुराते हुए
सौम्य शान्त मुद्रा
अवाक
मैं .....
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़...
समीर जी इन शब्दों मैं शायद एक इंसान की पूरी ज़िंदगी समाई हुई है.
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति .........
6.5/10
उम्र के एक ख़ास पड़ाव पर ऐसे ही मनोभाव से हर एक को रूबरू होना पड़ता है. छोटी सी रचना गहरी अभिव्यक्ति समेटे हुए है.
बूढा पीपल घाट का बति्याए दिन रात
जो गुजरे पास से सिर पे धर दे हाथ।
अति सुंदर रचना, धन्यवाद
peepal ke ped ki mahatta vaha bhi haijankar bahoot achchha laga.....
वाह समीर जी
क्या बात है
_________________________________
एक नज़र : ताज़ा-पोस्ट पर
पंकज जी को सुरीली शुभ कामनाएं : अर्चना जी के सहयोग से
पा.ना. सुब्रमणियन के मल्हार पर प्रकृति प्रेम की झलक
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अनायास ही रहीम का एक दोहा याद आ गया -
'रहिमन निज मन की विथा मन ही राखो गोय ,
सुनि अठिलैहें लोग सब बाँटि न लैहे कोय .'
-
* दीपावली मंगलमय हो !
sundar abhivyakti he
badhai kabule
बहुत गहरी बात कह दी………………निशब्द कर दिया।
आपकी सवेदना मे शामिल.........
अवाक
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़..
उम्र के साथ साथ इंसान क़ि नियति ऐसी ही होती जाती है ... कोने में पड़े मेज़ क़ि तरह या मूक खड़े पीपल क़ि तरह .... बहुत संवेदनशील ....
छोटे छोटे शब्द गहरी गहरी बातें...तभी आप ब्लॉग जगत के अनूठे रचनाकार हैं...बधाई.
नीरज
जैसे उम्र के दीपक में तेल कम होने का भाव इस पीपल में दर्शाया है वैसे ही अगर मानव के जीवन रूपी दीप में तेल कम होने के साथ ही उनके सम्मान और उनके प्रति भावों में भी ऐसी ही श्रद्धा का प्रादुर्भाव हो तो शायद ये जीवन कभी दुखी न देखे किसी को और न करे किसी को
बेहतरीन रचना !
पेड़ के वजाय यदि हम अपने बड़े बूढों को सम्मान दें तो कितना अच्छा हो ...
उम्र के दीप में
कम हुआ तेल
और मैं
अपने ही घर में बना दिया गया
मंदिर की मूरत
बढिय़ा पोस्ट। बार-बार पढऩे को जी चाह रहा है।
bahut hee bhavuk umdaa rachnaaa hai..badi baareeki se likha gay bhaav..peepal ke ped se samaanta ..vaah...
उम्र के दीप में
कम हुआ तेल
और मैं
अपने ही घर में बना दिया गया
मंदिर की मूरत
kitni sachchi rachna... sachmuch bahut sunder!
उनका स्वार्थ
मेरा खुश रहना
भोग लगाया जाता रहा
बहुत सोचने को मजबूर करती हैं आपकी पोस्ट्स -
bahut hi gehre bhaav hai...
"उनका स्वार्थ
मेरा खुश रहना
भोग लगाया जाता रहा"
"अवाक
मैं
घर का
पूज्य
पीपल का पेड़...."
बड़े-बूढों की अधिकतर यही स्थति होती है. अवाक और बच्चों को देख ही प्रसन्न होना या प्रसन्न होने का अभिनय करना.
- विजय
... shubh diwaali !!!
आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
हम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.
बहुत सुन्दर!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!
पीपल का प्रत्येक पल ऑक्सीजन की हलचल है।
गगनांचल में देखिए बलॉग की दुनिया का नक्शा : नक्शे में आपके नैननक्श
.... ये धमाका तो जोरदार रहा .... सटीक अभिव्यक्ति....आभार ....
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