पिछले दिनों सड़क मार्ग से नजदीक के एक गांव में गया था. उसी दौरान इस एक घंटे की ड्राईव वाली सड़क यात्रा का एक वृतांत लिखा जो कि अगर पूरा यहाँ प्रस्तुत करुँ तो शायद आपको पढ़ने में उससे ज्यादा समय लग जाये, अतः उस वृतांत में से फिलहाल लगभग २% अंश:
नजर पड़ती है ठीक सामने वाली सफेद कार में ३२/३५ साल का कोई लड़का है. अभी कुछ देर पहले मेरे बाजू वाली लेन में था, जाने कैसे मौका लगा कि सामने आ गया. शायद मैने ही मौका दे दिया हो या वो ज्यादा स्मार्ट रहा हो तो मौका निकाल लिया हो. कब जान पाया है कौन इस बात को जीवन में. गाड़ियाँ धीरे धीरे सरक रही हैं और वो अपने बाजू बाजू कार में बैठी लड़की को बड़े ध्यान से देख रहा है. इतना अधिक ध्यान से कि उसे होश ही नहीं रहा और अपने आगे वाली गाड़ी के पीछे से टक्कर दे मारी. लो, एक तो वैसे ही ट्रेफिक अटका था, ये एक और आ गये. ५/७ मिनट को तो मामला फंस ही गया. झगड़ा और गाली गलौच तो इस बात पर यहाँ होती नहीं. बस, शालीनता से दोनों कार वाले उतरेंगे, सॉरी सॉरी का मधुर गीत गायेंगे. एक दूसरे के इन्श्यिरेन्स की जानकारी, फोन नम्बर, लायसेन्स प्लेट आदि अदला बदली करेंगे और ये चले. बाकी काम इन्श्यूरेन्स कम्पनी और पुलिस मिल कर करेगी. (भारत वाली मिली भगत नहीं, सही वाली) मेरे मन में बस यूँ ही आया कि यह बंदा जब इन्श्यूरेन्स क्लेम लिखायेगा तो कारण क्या देगा? पक्का झूठ बोलेगा कि जाने कैसे ब्रेक तो मारा था मगर ब्रेक नहीं लगा. ब्रेक की तो जुबान होती नहीं कि बोल दे कि ये भाई साहब झूठ बोल रहे हैं. ये लड़की देखने में व्यस्त थे, ब्रेक मारा ही नहीं तो मैं लगता कहाँ से? और मुझ प्रत्यक्षदर्शी से कोई पूछने से रहा और पूछे भी तो मुझे क्या लेना देना है-कोई मेरी गाड़ी तो टकराई नहीं तो मैं क्यूँ इन दो की झंझट में फंसू. भारत का तजुर्बा है. खैर, ब्रेक की तो जुबान ही नहीं होती, मैंने तो कितने ही जुबानधारियों को रसूकदारों के आगे मजबूरीवश मूक बने उनके झूठ को सच बना पिसते देखा है.
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ये बंदे इतना क्या मगन हो जाते हैं लड़कियाँ देखने में कि सामने की गाड़ी से एक्सिडेन्ट कर बैठते हैं. मैने आज तक इतने जीवन में कभी किसी से ऐसा किस्सा नहीं सुना कि हाई वे पर जा रहे थे, ये बाजू की कार से निकली, हमने एक दूसरे को ध्यान से देखा. फोन नम्बर उछाले और अफेयर हो गया. फिर, हाई वे पर चलते एक दूसरे को देखकर अफेयर हो जाने की संभावना से कहीं ज्यादा संभावना इस बात की है कि आप चले जा रहे हैं और आसमान से बिजली गिरी और आप मर गये या आप हाई वे पर कार भगाये जा रहे हैं. आप को हार्ट की बिना किसी पूर्व शिकायत के हार्ट अटैक आ गया, आपने किसी तरह गाड़ी किनारे लगाई मगर जब तक एम्बूलेन्स आदि पहुँचती, आप गुजर गये. बाद में मित्र रिश्तेदार जरुर नम आँख लिए बात करते दिख जायेंगे कि अगर समय पर ईलाज पहुँच गया होता या दवा मिल गई होती तो भैय्या बच जाते. मगर ज्यादा बलवति संभावनाओं का ज्ञान होते हुए भी कोई व्यक्ति जिसे हार्ट की पूर्व शिकायत न हो, अपनी गाड़ी में सॉरबिट्रेट या ऐसी जीवन रक्षक दवा रख कर नहीं चलता मगर लगभग नगण्य संभावना वाली घटना की आशा बांधे बाजू की कार में लड़की को देखते हुए जाने कितने सामने की कार से एक्सिडेन्ट कर बैठते हैं. ऐसा एक दो बार नहीं, अनेकों बार हुआ है. शायद, मानव स्वभाव हो मगर है बड़ा रिस्की और ऐसा होता हमेशा ही दिख जायेगा.
यही आदत होती है और हम जीवन रुपी गाड़ी चलाते समय भी इससे छुटकारा नहीं पा पाते. ऐसी वस्तु की लालसा पाले अपना ध्यान भटका लेते हैं जो हमारे लिए है ही नहीं या जो हमारा उद्देश्य कभी थी ही नहीं या जिसे पाने की संभावना लगभग नगण्य है मानो मृग मरिचिका सी भटकन और इस चक्कर में अपने मुख्य उद्देश्य से, मंजिल से तो कभी संबंधों से एक्सिडेन्ट कर बैठते हैं और फिर सफाई में दोष ब्रेक जैसे किसी भी मूक पर मढ़ देते हैं. पता है वो कभी बोलेगा ही नहीं. मगर अंततः नुकसान हमारा ही होता है, भले ही कोई इन्श्युरेन्स कम्पनी मानिंद त्वरित भरपाई कर भी दे लेकिन प्रिमियम में वृद्धि के माध्यम से वसूला तो आपसे ही जायेगा.
संभल कर चलाना
जीवन की इस गाड़ी को
जरा सी चूक
और
कोई भी टकराहट
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
-समीर लाल ’समीर’
बताईयेगा कि क्या इसे पढ़ कर आपको उस वृतांत के कुछ और हिस्से पढ़ने की उत्सुक्ता है तो कभी प्रस्तुत किया जाये वरना वो किताब उपन्यासिका की शकल में छप कर तो आ ही रही है जल्दी एकाध महिने में. कॉपी बुक करना है क्या ट्रेलर पढ़कर?. :)
108 टिप्पणियां:
बुक कर दीजिये......लौटती डाक से ले लेंगे......
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
20% में आनंद आ गया तो फिल्म क्यों नहीं देखेंगे बधाई
हा।, ट्रेलर पसंद आया। पूरा वृतांत (कुछ और हिस्से ही नहीं) पढ़ने की उत्सुक्ता है। अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
हम तो सोचे बैठे कि यौनकुंठा भारत में ही जड़ जमाए है। अच्छा हुआ कि आपने कनाडा की भी पोल खोल दी।
संभल कर चलाना
जीवन की इस गाड़ी को
जरा सी चूक
और
कोई भी टकराहट
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
क्या कहूँ आपको,
ट्राफिक में फसे परेशानी में भी उस एक्सीडेंट में आपने जीवन का मर्म देख लिया कविता का एक एक शब्द खरे सोने जैसा है नजाने कितनी जिंदगियों की प्रयोगशालाओं में यथार्थ बनकर निकला होगा ......आपने इस २० % से तो बहुत ललचा दिया है ....हमारी कॉपी तो बुक ही करलिजियेगा :)
बहुत ही रोचक रही आपकी आज की पोस्ट!
--
उपन्यास के प्रकाशन पर अग्रिम धन्यवाद!
--
कापी बुक कराने की क्या जरूरत है?
आप थोड़े दिन में भारत आ ही रहे हैं!
--
छपने वाला उपन्यास और बिखरे मोती ले आना मेरे लिए!
तुम्हारा बड़ा भाई होने के नाते इतना तो हक है मेरा!
'हम जीवन रुपी गाड़ी चलाते समय भी इससे छुटकारा नहीं पा पाते'
या शायद इस तरह के खतरे और बढा लेते हैं. जीवन रूपी गाड़ी हिचकोले ज्यादा लेती है और ब्रेक तो लग ही नहीं पाता है.
ट्रेलर तो काफी अच्छा लगा
हे भगवान सब जगह दुर्घटना का एक ही कारण, लड़की देखना, पता नहीं ये आदमी जात कब सुधरेगा :)
परसों हमारे तीन कलीग्स गणपति पंडाल के दर्शन में १७ घंटे की लाईन लगे थे जिसमें एक लड़की और दो लड़के थे, कल लड़की बोली कि इन दोनों ने १७ घंटे में बहुत लड़कियाँ छेड़ीं (मुझे छोड़कर), और सारी मुंबई की खूबसूरत लड़कियों को भी वहीं आना था, पता नहीं मुंबई के सारे हैंडसम लड़के कहाँ चले गये थे नहीं तो हम भी देख लेते :)
सब जगह एक ही हाल है..
एक और बात है जो भी बंदा बीमा कंपनी से झूठ बोलकर क्लेम करता है उसका क्लेम जल्दी पास होता है क्योंकि वह सत्य के नजदीक लगता है और जो सही बोलकर क्लेम लेता है उसका क्लेम लटक जाता है, क्योंकि बीमा कंपनी को लगता है कि ये हमें लूट रहा है।
वैसे हम तो पूरी उपन्यासिका को पढ़ना चाह रहे हैं, जल्दी से हमारी भी प्रति बुक कर लीजिये...
हम जीवन रुपी गाड़ी चलाते समय भी इससे छुटकारा नहीं पा पाते. ऐसी वस्तु की लालसा पाले अपना ध्यान भटका लेते हैं जो हमारे लिए है ही नहीं
ऐसी वस्तु की लालसा पाले अपना ध्यान भटका लेते हैं जो हमारे लिए है ही नहीं या जो हमारा उद्देश्य कभी थी ही नहीं...
मनन करने योग्य है ...
उपन्यास पढने की इच्छा तो है ....
वैसे कार के शीशे से पीछे आती कार में बहुत दिनों बाद चौराहे पर किसी के दिख जाने का जिक्र आपकी एक कविता में भी है ...:):)
दुर्घटना न होती,तो यात्रा-वृतांत का लुत्फ ही कुछ और होता।
हो बड़े धोखे हैं इस खेल में,
बाबूजी धीरे चलना,
प्यार में ज़रा संभलना...
पढ़ना चाहेंगे, नेकी और पूछ-पूछ...
जय हिंद...
लडकी अच्छी हो तो एक बार क्या.. बार बार टकरा जाएँ...:)
छापो उपन्यास और एक कोपी हमारे लिए एडवांस बुकिंग...
सफ़ेद गाड़ी वाला इन्डियन रहा होगा । यह ताका झांकी का काम हमी करते हैं ।
वैसे जब इतनी शालीनता से सब निपट जाता है तो चिंता काहे की । यहाँ तो गाड़ी टच हुई नहीं कि शुरू हो गई जंग ।
लेकिन जीवन की गाड़ी में ताका झांकी मुसीबत बन सकती है ।
ये बढिया रहेगा मेरे जैसों के लिए--- जो मोटी किताब देखते ही साईड में सरका देते हैं .....आभार अंश के लिए....
ट्रेलर मजेदार है। दो फीसदी में इतनी रोचकता है तो पूरा वृत्तांत कयामत ही होगा :) और, यह सवाल तो अबूझ पहेली है कि ये बंदे इतना क्या मगन हो जाते हैं लड़कियाँ देखने में :)
बहुत सटीक संदेश, इस पोस्ट के माध्यम से। यहाँ तो जाम लगा रहता है और दिल है कि मानता नहीं।
भई सड़क पर चलते चलते आपने बहुत कुछ सिखा दिया..
इन्तेज़ार रहेगा पूर्ण प्रस्तुति का .
मनोज खत्री
ट्रेफिक वाला मामला दिलचस्प लगा ! एक्सीडेंट के बाद की शालीनता प्रभावित करती है ! यहां तो साले बहनोई तक उतर चुकते हैं इतनें में !
उपन्यासिका के लिये अग्रिम बधाई :)
ट्रेफिक वाला मामला दिलचस्प लगा ! एक्सीडेंट के बाद की शालीनता प्रभावित करती है ! यहां तो साले बहनोई तक उतर चुकते हैं इतनें में !
उपन्यासिका के लिये अग्रिम बधाई :)
"मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ये बंदे इतना क्या मगन हो जाते हैं लड़कियाँ देखने में..."
2% पढ़कर पूरे लेख के 2% हिस्से पर नज़र पड़ी… मेरे जैसों के लिए यह प्रश्न उठता है…
अब उत्तर मैं 2% में दूँ तो इतना कहूँगा कि नालायकों को कोई काम धाम होता नही, होता भी है तो लड़की देखकर बेकार हो जाते हैं… बस इसीलिये :P
100% जानना है तो ई-मेल से सूचित करूँगा :P
उपन्यासिका से ही काम चलायेंगे :) फुटकर में बता बता कर आप पूरे वृतांत का अंत कर डालेंगे…
जीवन की गाडी पर आपका फलसफा और संस्मरण की पोटली -जोरदार है !
हओ
हमाई कापी बुक कर देना गुरु
एक्सीडेंट हो गया रब्बा रब्बा
वैसे पुराने दिन की तरफ़ लौटिये
ज़वाब मिल जाएगा
लडकी देख के कौन मगन नहीं होगा ..आप भी कैसी बात करते हैं ...वैसे आज एक पोस्ट लिख रहा था इन्सुरेंस वालों की लूट पर - ये भी कम लुटेरे नहीं हैं
वैसे ट्राफिक का हाल कनाडा में उतना बुरा नहीं है ...
पढ़ना है जी पूरा वॄत्तांत, 2% से अपना काम नहीं चलना।
बाकी एक्सीडेंट वाली बात पर सौ प्रतिशत सहमत हैं आपसे।
समीर जी,ट्रेलर पढ़कर पूरी किताब पढ़ने का मन हो आया। पर छपी किताब। जैसे ही छपे,प्रकाशक को कहिए एक प्रति राजेश उत्साही को व्हीपीपी से भेज दें। मैं आपको आश्वासन देता हूं कि व्हीपीपी जरूर छुड़वा लूंगा। शुभकामनाएं।
मजाल के मनोवैज्ञानिक शोध केंद्र के अनुसार तो, मनुष्य जो प्रत्यक्ष नहीं कर पता, उसे अप्रत्यक्ष रूप से कर के काम चला लेता है. हकीकत में न सही, ख्यालों में ही सही.. तो दरअसल वो टकराना लड़की से चाहता है, अब वो संभव नहीं हो पाता तो कार को ठोक कर ही भाई काम चला लेता है ..
अग्रिम बधाइयाँ , स्वीकार कीजिए ।
एक बार मैं भी टकरा चुका हूं बिजली के खम्भे से.. और जवानी में तो यह आम बात है... ही ही...
संबंधों की कविता बेहद शानदार है...
@ मैंने तो कितने ही जुबानधारियों को रसूकदारों के आगे मजबूरीवश मूक बने उनके झूठ को सच बना पिसते देखा है>>>>>>>> पता नहीं किस दिन मज़बूरी की मार हटेगी और जुबान में धार आएगी
@ हाई वे पर चलते एक दूसरे को देखकर अफेयर हो जाने की संभावना से कहीं ज्यादा संभावना इस बात की है कि आप चले जा रहे हैं और आसमान से बिजली गिरी और आप मर गये>>>>>>>>>> महाराज ज्ञान बांटते हुए इतना हारर सीन क्यों क्रियेट कर दिया, बगल वाली बिजली की बजाये उपरवाली बिजली की तरफ देखना पड़ेगा
@ऐसी वस्तु की लालसा पाले अपना ध्यान भटका लेते हैं जो हमारे लिए है ही नहीं या जो हमारा उद्देश्य कभी थी ही नहीं या जिसे पाने की संभावना लगभग नगण्य है मानो मृग मरिचिका सी भटकन और इस चक्कर में अपने मुख्य उद्देश्य से, मंजिल से तो कभी संबंधों से एक्सिडेन्ट कर बैठते हैं
बिल्कूल सही कहा क्या करे हम इन्सान है जो चीज मिल नहीं सकती कुछ उसे पाने की लालसा कर कुछ उसके सपने देख कर ही खुश हो लेते है |
ladki dekh kar agar koi magan na ho to ye fir sochne wali baat honee chahiye.........na ki aapke kahe anusaar..........:D
Samir sir!! ek complimentry copy mere liye bhi........:P
aakhir Indian hain na, jab muft me baat ban sakti hai to paise kharch kyon karen.!!
waise aapki saare post me ek alag tarah ka lutf milta hai.......
ek complain fir se, ham jaise naye logo ko aap nahi padhoge to kaun aayega...:P
जीवन के समीकरण को प्रस्तुत करती कविता अच्छी लगी...
एक प्रति मेरे लिए भी सुरक्षित करे...
धन्यवाद व शुभकामनाएं...
कभी कम्पयूटर की उलझी तारों से, कभी ट्रैफिक से
रिश्तों पर आपकी बातें कितनी सच्ची और प्रेरक लगती हैं।
प्रणाम स्वीकार करें
ट्रेलर अच्छा लगा.
अच्छा वृतांत...मुझे बुक कराने की क्या जरुरत. सबसे अच्छे वाले अंकल एक कापी तो मुझे भिजवा ही सकते हैं.
सही कहा समीर जी आपने....
समीर जी ये बात गलत है सारा दोष आपने लड़कियों के नाजुक कन्धों पर धर दिया :)
कभी कभी बॉस और ऑफिस को याद करके भी ऐसे एक्सीडेंट होते हैं ,हमारी कार तो ऐसे ही ठुकी थी पिछले दिनों :)
वैसे उपन्यास की एक कॉपी हमारी भी बुक कर ली जाये रोचक लग रही है :)
बहुत ही रोचक प्रसंग्……………ट्रेलर अच्छा है।
हमें तो कार के काफिले का टायटल अच्छा लगा कि मानो मो कुम्भ के स्नान को जा रहे हों कि गंगा जी का पानी कम हो जाएगा। आपकी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता को भला कौन रोकेगा। आप तो एक बुक ही कर लो। दिल्ली तो आ ही रहे हैं तभी ले लेंगे।
शब्दों के जाल में बाँधे रखना आपकी लेखनी का ही कमाल है |
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
बहुत ही सुन्दर शब्दों से रची बेहतरीन रचना ।
kitane jalim hai sab log are vah ladki hi khoobsoorat thi iska bhi to jikra karo.....aur mamla bina lag-lapete ke nipat gaya na?fir kya dikkat hai bhai...vaise aapne bataya nahi ladki use dekh rahi thi ya kahi aur???? par maja aaya.....
`मैने ही मौका दे दिया हो या वो ज्यादा स्मार्ट रहा हो तो मौका निकाल लिया हो'
आखिर उम्र का भी तो तकाज़ा होता है ना..... लो, लगा दी टक्कर :)
कोई भी टकराहट
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
क्या बात है समीर जी, कुछ तो बात है...
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ये बंदे इतना क्या मगन हो जाते हैं लड़कियाँ देखने में कि सामने की गाड़ी से एक्सिडेन्ट कर बैठते हैं.
लगता है बुजुर्गियत अपने पूरे शबाब पर है वर्ना.....ये कोई पूछने वाली बात है भला?:)
रामराम.
संभल कर चलाना
जीवन की इस गाड़ी को
जरा सी चूक
और
कोई भी टकराहट
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
ना जाने ये चंद पंक्तियां उपनिषदों के वाक्यों जैसी क्यों लग रही है?
रामराम.
उम्दा...हमेशा की तरह.
मृगमरीचिका >>>
सही कही....
क्या बात है समीर भाई..... खत देख कर मजमून समझ आ रहा है ..... अभी से बुक कर दो भैया हमारी कापी तो ....
हमारी भी एक बुक कर लीजये .............रोचक पोस्ट ..
Aapki rachana me to poore jeevan kaa saar maujood hai....
संदेश देती रचना। आपकी एक लघुकथा का नायक याद आ गया जो पीछे दिखने/देखने वाले दर्पण में .....!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
ट्रेलर तो बढ़िया है ...ज़िंदगी के फलसफे को खूब बयाँ किया है कविता में ...
ज़िन्दगी के फ़ल्सफ़े को समझाते हुए अच्छी रचना !
खूबसूरती तो होती ही है देखने की चीज... अब वक्त ऐसा हो तो एक्सीडेंट होना लाजिमी है. पर पर ऐसा नहीं है एक्सीडेंट दूसरी तरह के भी होता है... चमत्कार भी होते हैं... हम तो इसी भरोसे हैं :)
1. यहाँ जब गाड़ी ठुक जाए तो लोग आपस में एक दूसरे से नज़दीकी रिश्ता बनाने लगते हैं, अच्छा है वहाँ बात दोस्ताने में निपट जाती है.
2. लड़कियों को सिर्फ घूरते ही नहीं, उसपर अपना अधिकार भी समझने लगते हैं. कोई दूसरा अगर उसी को देखता हुआ दिख जाए तो ऐसे देखते हैं मानो किसी ने उनकी बहन को देख लिया हो, उस नज़र से, जिस नज़र से वो घूर रहे थे उस लड़की को.
3. किताब की बात बताकर एक ग़लती की ठाकुर साहब अपनी तिजोरी खोलकर दिखा दी. यहाँ जॉन ग्राइशम की किताबें भी 50 रुपये में हर सिग्नल पर बिकती हैं.
4. कविता दिल को छूती है!
चलिए trler तो अच्छा लगा .... अब देखते klimex कैसा होगा ....
(क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html
मुझे तो ऐसा वृत्तांत बहुत ही अच्छा लगता है...एकदम जीवंत
पूरा भी पढ़ सकते हैं...बहुत ही रोचकता से लिखा है
समीर जी इस उम्र मै हम ओर आप क्या कम थे ? अब बच्चो को क्यो रोके जी यही तो दिन है, फ़िर अगर लडकी सुंदर थी तो उस छोरे का क्या क्सुर जी,देख ही रहा था, तो देखने दो लडकी को भी अच्छा लग रहा होगा:)
bahut badhiyaa
बात तो सही है.. ऐसा तो भारत में बहुत होता है.. अजी हमें ही देख लीजिये.. सुबह ऑफिस जाते हैं तो आजू-बाजू देखते हुए :)
पर वो तभी करते हैं क्योंकि कार ड्राईव हम नहीं कर रहे होते हैं.. :D
वैसे इस छोटी सी घटना को आपने ज़िन्दगी से जोड़ा.. बहुत ही अच्छा लगा..
आभार
मैने आज तक इतने जीवन में कभी किसी से ऐसा किस्सा नहीं सुना कि हाई वे पर जा रहे थे, ये बाजू की कार से निकली, हमने एक दूसरे को ध्यान से देखा. फोन नम्बर उछाले और अफेयर हो गया.
गोया लब्बो लुआब ये कि आपको अब अफ़सोस हो रहा है कि आपने ऐसी टक्कर क्यों ना मारी कभी हाईवे पर ...
ये तो होना ही था.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
समीर जी ट्रेलर बहुत ही रोचक लगा मेरे लिए तो एक कॉपी बुक कर ही दीजिए! आपके इस लेख से एक बात पर काफी देर तक सोचा .. वो ये कि तब शायद आधी फीसदी तक दुर्घटनाएं इन्ही कारणों के लिए होती होगी. :-) मेरे ख्याल से सड़क परिवहन साईन बोर्ड में एक और नयी साईन बोर्ड लगनी चाहिए जिसमे इस चीज़ में सावधानी बरतने के लिए नियम दर्शाये जाये! मगर इससे कोई फायदा नहीं होगा.... देखने में रोक कभी नहीं लगती...... ;-)
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
बहुत बढ़िया लेखन।
हीहीहीहीहीही तभी तो हम साईकल भी चलाते हैं तो ड्राइवर रखते हैं।
ट्रेलर बहुत ही रोचक लगा!!!
पूरा उपन्यास पढ़ने की उत्सुक्ता है।
हाँ समीर भाई हमारे लिये भी किताब बुक कर दीजिये। जिसका ट्रेलर इतना सुन्दर हो वो किताब कितनी सुन्दर होगी...? कविता भी बहुत अच्छी लगी।
कॉपी तो बुक कर ही लो, ट्रेलर तो सही ट्रैक पर है..
आगे इस कथानक का किसी से नैन-मटक्का हो जाये, तो नहीं कह सकता ।
जीवन जब निशिदिन दाँव पर ही लगा है, एक दाँव यह भी सही !
वईसे नम्बर आदान प्रदान की वईसे खूब कहीं, हमारी पीढ़ी में इतना हाई वोल्टेज़ होता ही कहाँ था कि लाइन दे सकें ?
जो कुछ पनपता था वह इतने इन्सुलेशन के नीचे पलता रहता था कि दुनिया को दो प्राणों के बीच बह रही अँडरकरेन्ट की भनक ही नहीं लगती थी । इसे वर्तमान ज़नेरेशन का स्पार्क मान लो भाई, कुड़कुड़ाते क्यों हो.. जलकुकड़े ?
:) ही :) ही :) ही !
मेल से पोस्ट पढ़ने वालों और टिपिया कर आपका हौसला बढ़ाने वालों की टिप्पणी क्यों नहीं छपती ? आपसे चोरी से नैन-मटक्के करने की हम्मैं गलतफ़ैमिली हो जाती है । कॉपी तो बुक कर ही लो, आगे देखा जायेगा ।
आपने कभी 'यूँ ' देखा है किसी लड़की को ??
आप क्या जाने डूब कर देखने कितना मजा है.ब्रेक लगाना भूल जाए आगे वाले की गाडी ठोक दे या ठुक जाए तब होश आये,वाह क्या फीलिंग रहती होगी.
अच्छा हुआ लड़का नही बनाया भगवान ने मुझे.आये दिन जमानत के लिए 'वहाँ' आना पड़ता 'सबको'
और हॉस्पिटल भी ,तबियत पूछने. आये दिन पब्लिक इतना ठुकाई करती मेरी.
हा हा हा
हां जिंदगी की गाडी को कितने लोगो ने ठोका कि गिनती भूल गई.
कुछ तो खूबसूरत धरा है ईश्वर ने इसमें कि लोग बस खुद को भूल इसे देखने में डूब जाते हैं और धडाम ....
हा हा हा इसका अपना मजा है.
आप तो लिखिए.किताब फ्री में दे तो अपनी भी बुक कर लीजिए.
वैसे ...अपने देश में गाड़ी जरा सी टच भी हो जाये तो बड़ा मजा आता है. मेरी गालियों का ज्ञान बढाने के लिए मैं 'उन' सब की तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ.आपके 'वहाँ'बच्चे क्या ख़ाक सीखेंगे सिवाय 'सॉरी' 'सॉरी' के.धत्त
'हम तो सोचे बैठे कि यौनकुंठा भारत में ही जड़ जमाए है। अच्छा हुआ कि आपने कनाडा की भी पोल खोल दी।' शिक्षामित्र जी! इब्ब ए बी कोई बात हुई पास की गाड़ी से कोई खूबसूरत लड़की गुजर रही है और कोई लड़का नजर भर देख रहा है तो 'यौन कुंठा'???
हिंया बूढ़े खूंसट ...?? छोडिये भी.
जो स्वाभाविक है उसमे कोई हर्ज नही.
यदि हम वेलमैनर्ड हैं सभ्य हैं,तो देखने में क्या बुरा है? छूना मना है देखना मना नही है ईश्वर की हर खूबसूरत रचना को देखना,सराहना,सहेजना कत्तई बुरा नही.ये मेरे अपने व्यक्तिगत विचार हैं.मेरे पति और मैं साथ निकलते हैं तो बात करते हैं-'देखो वो औरत कितनी प्यारी लग रही है.वो आदमी कितना स्मार्ट है या कैसा चल रहा है लड़कियों की तरह'हा हा हा
'जिन्हें'जिसे देखना है वो तो देखेंगेईच,छिप छिप कर देखेंगे अपनों की नजर से नजर चुराकर.इसलिए.....
ऐसिच हूँ मैं तो
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
सर ऐसा भी नहीं है कि केवल युवा वर्ग के लड़के ही ऐसी हरकत करते हैं...इसमें हर वर्ग के लोग शामिल हैं...कई बार लड़कियां भी इसके लिए जिम्मेदार होती हैं...
बहुत ही सुन्दर, शानदार और रोचक रही आपकी ये पोस्ट! हमेशा की तरह उम्दा प्रस्तुती! गाड़ी की कतार का चित्र कमाल का है! बहुत अच्छी लगी रचना!
कोई भी टकराहट
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
हाँ आपकी इस पोस्ट ने मुझे अमेरिका मे हुये अनूप के एक्सीडेन्ट की याद दिला दी। मगर इस बहाने बहुत अच्छा जीवन दर्शन का सन्देश दिया है। धन्यवाद ,शुभकामनायें
aap nirantar nayi unchainyon ko chhote rahen..yahi kamna hai...panktiyaan...jeevan ka saransh hai .. :)
ट्रेलर का तो लक्ष्य ही 'मार्केटिंग' होता है। और ट्रेलर यदि समीरजी का हो तो बात ही क्या। सो, एक प्रति हमरी भी बुक कर ही लीजिएगा।
बात तो आपकी सौ फिसिदी साचा है... लेकिन एक शायर का शेर याद आ गया ..
दिल लगाने कि कशिश से बाज़ आता कौन है.
इश्क आतिश ही सही , दामन बचाता कौन है.
भारत वाली मिली भगत नहीं, सही वाली.सचमुच बिलकुल सचमुच वाली बात है.माफ किजे कुछ देर तो आपका पोस्ट भूल कर एक आटो पर लिखा याद आया .
सो के सो बेईमान
फिर भी भारत महान
श्रीमान सुना है हम तीसरी बड़ी शक्ति बनने जा रहे है .सोच यह थी यदि वही ईमानदारी जो आपने लिखी है यहाँ भी हो तो क्या हो .खेर हमेशा की तरह आज भी सफर की साधारण सी घटना को अहसास और शब्दों के सुंदर तालमेल में पिरो कर खूबसूरत किस्सा पेश किया है.कविता में वापिस लोटा आये आयें उसी मुकाम पर जहाँ से अक्सर आप चलते हैं
संबंधों की..
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
बतोर नजराना किसी का शेर लिख रहा हूँ
वोह तो बता रहा था कई रोज का सफर
ज़ंजीर खेंच कर जो मुसफिर उतर गया
ट्रेलर तो रोचक है । राह चलते चलते आपने बहुत कुछ सिखा दिया । भई हमारे लिये तो फिल्म की टिकट अभी से बुक कर लीजिये ।
" aapne is ada se likha ki maano vo najar ke samne hi ho raha ho ..behad pasand aayi trailor...jab trailor itani hai to ...picture kaisi rahegi ....ye housfull hi jayegi sir ...."
----- eksacchai{aawaz }
http://eksacchai.blogspot.com
kya abhee booking chalu hai?
बहुत बढ़िया प्रस्तुतीकरण . आपके पुस्तक का इंतजार रहेगा .
best wishes for ur coming publication!
regards,
Good post and this mail helped me alot in my college assignement. Thank you for your information.
जिंदगी को कितनी सूक्ष्मता से देखते हैं आप। काश, ऐसी गहन दृष्टि मुझमें भी होती।
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प्यार का तावीज..
सर्प दंश से कैसे बचा जा सकता है?
Malik, bahut dino se ichchhha ho rahi hai ki aap se chaat karrooon.........
but unfortunately i m available on gtalk or yahoo only.........if u do have any id on that then plz PM me on galvin1234@gmail.com
अगर यह ट्रेलर था तो फिल्म बहुत मजेदार होगी..आप किताब छपवाइए..हम खरीद कर पढेंगे। खरीद कर पढंगे का आश्वासन इसलिए काहे कि आधा भारत अभी भी मांग कर पढ़ता है।
सटीक विश्लेषण...हमारे लिए भी उपन्यास की बुकिंग हो जाय....आभार.
वृत्तांत रोचक है... उपन्यास आ रहा है ये जानकार ख़ुशी हुई.
अपने भाटिया जी तो मौका देख वीडियो लगा देते हैं.
कविता उम्दा कही आपने.
ये लड़कियों को घूरने का रोग वहाँ भी है. हम तो सोचते थे कि ये हमारे कुंठित समाज में ही है.
canada mein bhi to aadmi hi rahte hain. ladkiyon ko ghoorne ka vayras poore vishwa mein hai.
आपकी ड्राइव के तो क्या कहें समीर जी :) मुझे तो शक होता है कि ड्राइव करते वक्त आप ठीक सामने भी नजर टीकाकार रखते है अथवा नहीं !मगर इंदुपूरी गोस्वामी जी की टिपण्णी मजेदार लगी !
यह इत्ती सारी गाड़ियाँ आप कहाँ भेज रहे हो, सब कतार में.
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'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !
शायद मैने ही मौका दे दिया हो या वो ज्यादा स्मार्ट रहा हो तो मौका निकाल लिया हो. कब जान पाया है कौन इस बात को जीवन में.
एकदम सही।
अजी आप नही न समझेंगे इन बातों को कि कैसे खोया जाता है लडकी देखते देखते पिर प्रीमियम बढता है तो बढे ।
bahut badhiya sameer ji ..........
बढियाँ लेख |
मैं भी यही सोचता हूँ की लड़के गाड़ी चलाते हुए क्यों अपना ध्यान इधर-उधर लगते हैं , गला टेढ़ा कर के बाइक चलते हुए मोबाइल पर बात करना क्यों पसंद करते हैं ?
यात्रा वृत्तांत के माध्यम से ही सही आपने यह भी बता दिया कि केवल गाड़ियाँ ही क्षतिग्रस्त हुई हैं, यदि सावधानी और ज्यादा हटी दो निश्चित मानिए एक बड़ी दुर्घटना भी घाट सकती है, इस लिए ड्राइविंग के समय , नो ताक-झाँक, नो लापरवाही. - विजय
समीर जी, इस प्रविष्टि को अवश्य पढ़ें
आपकी गाड़ी हाइवे पर बिना ट्रैफिक में फंसे पूरी स्पीड से दौड़ती रहे और कौन किसे देख रहा है, पर नजर रहे, लेकिन नजर भटके नहीं. ललित शर्मा जी ने खाता खोला और मुझे सेन्चुरी का मौका मिला, तो की-बोर्ड पर आया, वरना पोस्ट और टिप्पणी पढ़ना ही काफी हो जाता था. शुभकामनाओं सहित.
bahut acha laga vratant aage padhne ki jigyasa bani ha kayon nahi padhna chahege jarur chahege..
sameer laal ji
aap kuch likho or tippani dene ki jagah bache aisa to kabhi hoga nahi ...isliye aaj 100 ke baad hi sahi hamara pahla number lag hi gaya to jo man hai kahenge jaroor..
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
kuch nahi acha in panktiyon ko likhne ke baad ...yun kaho jeevan saar hai
kitni baten kah gaye aap ek hi pankti mein
javab nahi laajavab
daad hazir hai kubool karen
बड़ी से बड़ी कीमत
चुकाने के बाद भी
छोड़ जाती है
अपने निशान..
जो नासूर बन दुखते हैं
पूरी यात्रा में..
sahi kaha ,chitra bahut lubhavne hai aur saath hi aapka aankhon dekha haal bhi .
बारिशों को बारिश कर दें !
बारिशों को बारिश कर दें !
इस जीवन रूपी गाड़ी का जवाब नही ।
दिलचस्प रहा आपका अनुभव . मुझे भी पढ़ कर अच्छा लगा. यह भी मालूम हुआ की वहां दो गाड़ियों के टकराने पर भी तकरार की नौबत नहीं आती ,लेकिन हमारे इधर ....? वाकई हमें वहां से भी कई अच्छी बातें सीखने को मिल सकती हैं. उपन्यासिका के लिए अग्रिम बधाई और शुभकामनाएं .
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