राम त्यागी शिकागो से क्या आये और ऐसी इन्टरनेशनल ब्लॉगर मीट कर गये कि तबसे अब तक समय का ही आकाल पड़ गया है.
व्यस्तता की हद ऐसी कि अपना प्रिय टिप्पणी दर्ज करने का भी शौक पूरा नहीं कर पा रहा हूँ तो मिलन कथा क्या लिखूँ. वैसे मिलन का पूरा वृतांत तो राम लिख ही चुके हैं मय तस्वीर के तो फिर से क्या बखाने सिवाय इसके कि राम का आना एक यादगार शाम दे गया. उनको घेरा मूलतः इसलिए था कि मुलाकात के बहाने हिन्दी ब्लॉगर से मिलन में कविता सुनाने का मौका हाथ लग जाता है.
राम हालांकि जरा देर से पहुँचे किन्तु मौका तलाशते उन्हें हम अपने घर की बार में ले गये. सोच रहे थे कि एक दो पैग हो जायें तो शुरु करें. बंदा हल्के सुरुर में मना भी नहीं कर पायेगा और पूरा ठीक से समझ भी नहीं पायेगा तो वाह वाह के सिवाय क्या करेगा. कवि सम्मेलनों में भी जब कठिन कविता समझ नहीं आती तो भी लोग खुद को बुद्धिजीवियों की कटेगरी में लाने के प्रयास में वाह वाह करने लगते हैं.
मगर पासा थोड़ा उल्टा पड़ा. हम सुनाना शुरु करते उसके पहले ही, पहले पैग के बाद ही भाई जी शुरु हो गये. कहने लगे समीर भाई, आपके लिए एक कविता लिखी है और जब तक हम कुछ कहते, सुनाने भी लगे. हमारी तो अटकी ही थी कि अभी हमें भी सुनाना है, इसलिए वाह वाह करना ही था मगर वाकई की वाह वाह वाली कविता ही उन्होंने सुनाई.
बस, एक कविता के बाद मंच हमने खींच लिया अपनी तरफ और शुरु हुए चाँद वाली मार्मिक रचनाओं के साथ माहौल बनाने के जुगाड़ में. उद्देश्य यह भी था कि दो दिन बाद किसी कार्यक्रम में कुछ मुक्तक पढ़ना था तो उसकी टेस्टिंग भी हो जाये तो वो भी सुनाये. राम का चेहरा भाँपते रहे, मोहित हो कर सुन रहे थे और वाकई वाली वाह वाह कर रहे थे. इसलिए फिर खाना भी मन लगा कर खिलाया और फिर गाड़ी से स्टेशन भी छोड़ा. इस बीच मौका छान बीन कर राम ने पुनः एक रचना सुनाई.
शाम बड़ी मजेदार गुजरी. वादा रहा है कि आगे राम आते रहेंगे और परिवार के साथ भी पधारेंगे. हम तो खैर शिकागो जायेंगे ही.
कुछ तस्वीरें:
राम के उदगार और कविता (हम अकेले क्यूँ झेलें, आप भी झेलिए)
हमारे मुक्तक:विवाहोत्सव के लिए
एक वर की तरफ से
जब से तेरा साथ मिला है, मन कहता कि अंबर छू
दिल की हर धड़कन को कैसे, गीत बना देती है तू
सप्त पदी के वचन लिए थे, इक दिन हमने तुमने जो
उन को ताजा कर जाती है, सांसो की तेरी खूशबू.
एक वधु की तरफ से
बाबू से मैने सीखा था, कैसे दुख को पीना है
अम्मा से मैने सीखा था, कैसे रिश्ते सीना है
जबसे तेरा साथ मिला है, मैने ये भी सीख लिया
वक्त भला कैसा भी आये, हमको हँस कर जीना है.
एक हमारी तरफ से :)
मैं जब भी गीत रचता हूँ, ये आँखें भीग जाती हैं
तुझे जब याद करता हूँ, ये आँखें भीग जाती हैं
मैं हँसता हूँ तुझे ही भूलने की कोशिशों में, पर
ठहाकों में भी देखा है, ये आँखें भीग जाती हैं.
-समीर लाल ’समीर’
अब सुन भी लें उस दिन की रिकार्डिंग में हमारे मुक्तक:
बाकी उम्मीद कर रहा हूँ कि जल्द ही काम से फुरसत मिले, तो ब्लॉग पर नियमित हुआ जाये.
78 टिप्पणियां:
आह ! ... मेरा काम बढ़ गया अब मुझे कल एक कार्टून बनाना पड़ेगा...
जय श्री राम ।
बढ़िया लगा समीर पुराण ।
लेकिन सबसे बढ़िया लगा आपका दूसरा मुक्तक ।
तीसरे में ट्रेक क्यों बदल दिया जी ।
बहुत खूब सर, क्या बात है. पीता नहीं हूँ. लेकिन देखकर ही सुरूर आ गया. काश हम भी कभी आपसे मिल सके. अब मुझ जैंसे का वहां आना तो नामुमकिन है. आप कभी इंडिया उत्तराखंड आये तो जरुर बताना. सर
मुझे कविताओं में उतनी रूचि नहीं है,अत: चिट्ठा पढ़ने के लिए खुद से जबरदस्ती करनी पड़ रही थी. माफ़ कीजियेगा.
वाह गुज़री खूब मिल बैठे दीवाने दो -और पैगों के बीच की दिखती दूरी भी कितनी बड़ी दूरी है!
माहौल बना है । अहा इसी माहौल में कवितायें बहें ।
तो समीर जी किसको भूलने के लिये ये एक दो ... पैग का सहारा ले रहे हैं :)
वैसे दो पैग के बाद वाले फ़ोटू नहीं लगाये :) उनका इंतजार है।
मुक्त कंठ से वाह वाह वाह
मुक्तकों के लिए वाह वाह वाह
पैग की बात ही निराली है
एक झटके में जाम खाली है
मुलाकत का रोचक वर्णन....तीनों मुक्तक बहुत अच्छे लगे....सुन्दर प्रस्तुति
सुरूर में कविता बाजी अच्छी तरह से होती है ... यह मुझे मालूम नहीं पर ब्लागिंग मीट का समाचार सुखद लगा. ..आभार
वाह! मजा आ गया.
सारी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं ! और आपकी लेखन शैली तो हमेशा से ही लाजवाब है ! बहुत सुन्दर !
गुरुदेव,
शुक्र है आपको अवधिया जी के किस्से की तरह राम भाई के पीछे दौड़ नहीं लगानी पड़ी...एक ब्लॉगर के पीछे दूसरा ब्लॉगर बेतहाशा दौड़ा जा रहा था...किसी ने पूछा, क्यों भाई क्या कुछ चुरा कर भागा है...जवाब मिला...नहीं कमबख्त ने अपनी पोस्ट तो पढ़वा ली, मेरी पोस्ट पढ़ने की बारी आई तो भाग रहा है...
जय हिंद...
जिस दिल मे होते भाव बहुत,
अक्सर वही दिल ही गाता है।
जिस दिल मे होता दर्द बहुत,
वह सबके संग बह जाता है।
हर हाल मे बस जो मुसकाए,
वही ऐसे गीत.. सुनाता है ।
-परमजीत बाली
अच्छी प्रस्तुति!
अपने को बुद्धिजीवियों की कैटेगिरी में लाने के लिए.....वाह!वाह!
शुभकामनाएं....
वाह वाह.
सही है...
इन मुक्तकों का परिणाम तो झेल चुका हूं।
गज्जब है भाई गज्जब है.
वाकई मजेदार।
राम भैया से तो परसों ही बात हुई थी.
मजा आ गया सुनकर. और मजा आ गया सचित्र जानकारी पाकर....
अगर आप और राम पैग हैं तो (कवियों के) बिचमें भाभाजी को घसीटने की जरूरत नहीं थी :) उन पर (कविता का) अत्याचार क्यों? (संदर्भ तीसरी तस्वीर)
हमें तो उलजलुल बातें ही आती है, कविता की समझ नहीं, अतः जय राम जी की... :)
अरे ये वर वधु के पीछे आप कहाँ से आ गए ।
Waah-waah !!
आह !
वाह समीर भाई वाह!क्या बात है?
अग्रज के साथ राम का मिलन .. पढकर अच्छा लगा .. बहुत बढिया मुक्तक .. पर सुन नहीं सकी !!
आपने हमे भी कैलिफोर्निया ब्लागर मीट की याद दिला दी । बहुत बहुत बधाई । विदेश मे अपनो का मिलना कितना सुखद लगता है इसका अनुभव ही अलग है ।अभार्
वाह वाह वाह
आत्मीय मिलन का सुन्दर वर्णन, सुन्दर प्रस्तुति .....यह ब्लोगर मिलन के साथ-साथ दो दीवानों का आत्मीय मिलन भी रहा ....बधाईयाँ !
अच्छी रही मुलाक़ात और लगे हाथ दोनों ने एक दूसरे को कविता भी सुना डाली. :)..बहुत खूब
वाह वाह !
पीने के बाद भी शर्मा रहे हैं जैसे !
bahut badhiyaa
वाह जी वाह मुलाकात से मुतक तक सब बढ़िया रहा.
ब्लागर मिलन होते रहें बस, किसी बहाने से सही।
बाबू से मैने सीखा था, कैसे दुख को पीना है
अम्मा से मैने सीखा था, कैसे रिश्ते सीना है
जबसे तेरा साथ मिला है, मैने ये भी सीख लिया
वक्त भला कैसा भी आये, हमको हँस कर जीना है.
bahut sundar aur laazwab rahi poori post .rachna ki panktiyaan dil ko chhoo gayi .
ब्लोगर मिलानों के दौर यूं ही चलते रहें!
मुझे भी पसंद आई ये पोस्ट....बधाई.
अरे समीर जी, ई का किया , सीक्रेट को बाहर कर दिया ...:-)
वैसे विडियो जितना झिलाऊ है , मुक्तक उतने ही दिल को छूने वाले :)
आजकल जिंदगी इधर भी बहुत व्यस्त है, और तबीयत भी पूरे हफ्ते डाउन रही ...आज वापस घर जा रहा हूँ ...
बाद वाले फोटो का मुझे भी इन्तजार है...
रोचक
पसन्द के चटके के साथ
कविता तो बाद में सुन लेंगे
लेकिन
पहले और दूसरे पैग के बीच वाली तस्वीर में किनारे वाले लार्ज पैग को देख आनंद आ गया :-)
यह पैग किसका था ?
..ठहाकों में भी देखा है, ये आँखें भीग जाती हैं.
...वाह! दिल जीत लेने वाली पंक्तियाँ. उम्दा पोस्ट.
muktak sun kar maja aaya.
अच्छा अच्छा तो टलियाने और टल्ली कर देने के पीछे का राज ये था ......इस राम मिलन को कौन ना आतुर होगा । आईये आईये हम भी भांग का गोला तैयार किए बैठे हैं .......आप पैग लगा कर आईयेगा । फ़िर आपके मुक्तक को अपने जोगीरा के साथ कंपोजीशन करके एक ठो नयका रिमिक्स कराएंगे ......उ जो कंबीनेशन होगा न ..उ त बस धमाले मचा देगा । कहिए का ख्याल है ...।
हां पता है आप जवाब मेलिया करके दीजीएगा ...और हां हम यहीं हैं ..आप सबके बीच हर पल हमेशा ....बस रावण जैसे दस ठो माथा के लिए खुराक तैयार कर रहे हैं ..जल्दीए रिलीज होगा सब ...अरे सिनेमा जी ..और का....????
ye bataao udantashtri kiski bani.
बढिया लगा आप दोनों से एक साथ मिलना। राम त्यागी जी से फोन पर तो बात हुई थी लेकिन उनके सुदर्शन व्यक्तित्व को आज देख भी लिया। आप दोनों यूं ही मिलते रहें और हमें बस सुनाते रहें।
अब तो काजल जी के कार्टून के लिए वेटिया रहे हैं ...
जाने क्या बनाते हैं वो....
और आपकी पोस्ट तो हमेशा की तरह बेमिसाल है...
"जबसे तेरा साथ मिला है, मैने ये भी सीख लिया
वक्त भला कैसा भी आये, हमको हँस कर जीना है."
ओहो ओ मारिया ओ मारिया
Punajbi Me Ek Geet Hai Ki Bin Peete Chadh Gayi Mainu...Ki Dil Mere Naal...Naal...Naal...Le Gayi Hoye....
Yaad Aa Gaya
यह रचना विषय को धारदार बनाने के लिए भाषिक संयम की अनूठी मिसाल है। जहाँ कई वाक्यों की बात कम से कम वाक्यों में कहीं जा सके, कथन स्फीत न होकर संश्लिष्ट हो ;वहां भाषिक संयम स्वतः आ जाएगा।
हम तो बस असली वाली ही कहेंगे…।
वाह!! वाह!!
आदरणीय समीरजी.... सुंदर कविता के साथ.... यह मीटिंग बहुत अच्छी लगी..... मैं भी ब्लॉग पर नियमित होने की कोशिश कर रहा हूँ.....
वाह! वाह्!
महाराज! ध्यान रहे ये सच्ची मुच्ची वाली वाह वाह है, बुद्धिजीवियों वाली नहीं :)
अब पता चला सरजी कि आपने घर में बार क्यूं बना रखा है। लेकिन इस बार आप का फ़ार्मूला आप पर ही चल गया।
वाह वाह नहीं करेंगे जी, पता नहीं कौन सी समझ ली जाये।
अच्छा रहा यह राम मिलन ...होता रहे ...शुभकामनायें ...!!
जबसे तेरा साथ मिला है, मैने ये भी सीख लिया
वक्त भला कैसा भी आये, हमको हँस कर जीना है.
वाह वाह वाह , जीवन में उतारने वाली बात ।
ब्लॉगर कम यह तो एक कवि की दूसरे कवि से मिलने का समारोह रहा..बढ़िया गीत....धन्यवाद समीर जी आपने तो सबको कविता सुना दी....वैसे दूर विदेश में दो सच्चे साहित्य प्रेमी का मिलन सम्मेलन बढ़िया रहा..कविता सहित सुंदर रिपोर्टिंग...धन्यवाद
राम को ब्लोग पर देख कर बहुत अच्छा लगा. रामजी! आप तो एकदम स्मार्ट,डेशिंग,यंग है भई और बहुत कुछ हमारे 'टीटू' जैसे दिखते है.
पर दादा ! ये क्या फोटोज लगाए 'चिन्ने चिन्ने'से?
इनलार्ज ही नही होते.
yunnnnnnnnnnn पूरे मोनिटर पर फैल जाने वाले लगाने थे ना.
आप लोग कितने 'लकी'हैं आपस मे मिलते हैं,बतियाते हैं.एक दुसरे को अपनी कविताये सुना-सुना कर जाने किन किन जन्मों के बदले भी ले लेते हैं.
हमें मिलोगे तो हजारों जन्मो के बदले एक बार में ही ले लेंगे.इतना पकाएंगे.
पर शायद .....
तीनों मुक्तक अच्छे लगे.
राम को आराम से सुनूंगी.
'मैं जब भी गीत रचता हूँ, ये आँखें भीग जाती हैं
तुझे जब याद करता हूँ, ये आँखें भीग जाती हैं '
पर.....
'मैं कागज पर पांच अक्षर उकेरती
एन ए एन एन यु-'नन्नू'
और तडप राधे और यशोदा की'जी' लेती हूँ ,
शब्दों का खेल नही दिल से कहती हूँ,उसके बिना क्या जीती मैं ??
हर पल मरती रहती हूँ
इतनी कायर नही कि इस दुनिया को छोड़ जाऊँ .
कैसे जीती उसके बिना मैं?
क्या और कैसे बतलाऊं'
आपने जो लिखा नही जानती वो साहित्यकारों के शब्दों के खेल है
पर मेरे लिए?????????ये वो सब नही है दादा!
समीर भाई ... ये राम भारत मिलन लग रहा है ... पेग के साथ ....
इतनी मस्त मीट के समाचार के बाद ... भावुक रचना .. जवाब नही आपका ...
मुलाकात के बहाने हिन्दी ब्लॉगर से मिलन में कविता सुनाने का मौका हाथ लग जाता है....तब तो आपसे मिलना दिलचस्प रहेगा समीर जी.
bahut khoob....aapki nazm ke to ham deevane hain...
ghar ka beer-bar dekh kar to peene walon ke dil machal gaye honge.
Ram ji to "Simte se, sharmaye se.." lag rahe hain.
Three of you are looking gorgeous in the pic.
Nice poem ! Nice post !
मैं हँसता हूँ तुझे ही भूलने की कोशिशों में, पर
ठहाकों में भी देखा है, ये आँखें भीग जाती हैं.
वाह, वाह!... मन झुम उठा समीर जी!....
... समीर भाई पोस्ट में कुछ अधूरापन लग रहा है क्योंकि इंटरनेशनल मीट सिर्फ़ दो पैक में खत्म कैसे हो सकती है !!!!!
अच्छी प्रस्तुति!
Jaishriram.
bahut badhiya laga ji
dhanyabad
"जबसे तेरा साथ मिला है, मैने ये भी सीख लिया
वक्त भला कैसा भी आये, हमको हँस कर जीना है. "आत्मीय मिलन और आत्मीय मुक्तक ! अच्छा लगा
sundar varnan!!
aur shandaar Muktak ke liye badhai!!.........
जबसे तेरा साथ मिला है, मैने ये भी सीख लिया
वक्त भला कैसा भी आये, हमको हँस कर जीना है.
- बहुत सुन्दर.
झेलाने का शुक्रिया।
--------
भविष्य बताने वाली घोड़ी।
खेतों में लहराएँगी ब्लॉग की फसलें।
अरे वाह समीर जी हम तो सोच रहे थे २ के बाद तीन ....तीन क बाद चार ....और फिर कविताओं का गुब्बार .....पर यहाँ तो राम जी की अ....अ....अ....ज्यादा सुनाई
दी .....
पर आपके मुक्तकों से सारा मलाल जाता रहा .....
जब से तेरा साथ मिला है, मन कहता कि अंबर छू
दिल की हर धड़कन को कैसे, गीत बना देती है तू
सप्त पदी के वचन लिए थे, इक दिन हमने तुमने जो
उन को ताजा कर जाती है, सांसो की तेरी खूशबू.
वह .....गज़ब का लिखते हैं आप .....!!
अगले संकलन का इन्तजार है अब तो ....!!
Bahut maza aa gaya muktak sunkar
भई समीर जी, सब कुछ ठीक है पर ये पैग बैग। ना भई ना। माफ कीजिएगा। ये सब ठीक नहीं।
humko haskar hi jeena hai bahut sundar hai, ek kavitaa par aane ke liye dhanyavad or umeed karte hai ki aap aage bhi padharte rahenge or hamara margdharshan karenge
kya baat hai sameer ji..
kya baat hai sameer ji
kya baat hai sameer ji
kya baat hai sameer ji
दो ब्लॉगरों का कनाडा में मिलन आज की रात
आज की रात । औसा ही कुछ रहा होगा माहौल । आपका तीसरा मुक्तक बहुत पसंद आया ।
Waah kya khoob muktak kahein hain... padhne se zyada sunne mein mazaa aya :)
.
--Gaurav
Jai Sameer ...Hum bhee kehte hain sada se --
Bahut dino ke baad aayee hoon , kuch vyast rahee -- per aap ka lekhan + other social activities etc are as usual
That gives me pleasure to see how nice & hospitable you are & how inviting for others in your lovely home. God bless you & Sadhna bhabhi ji -- Hope the family is well.
warmest rgds & All good wishes for a wonderful 2011 ahead ....
God bless ,
- Lavanya
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