जाने कितना नुकसान कर बैठा मैं हिन्दी साहित्य का इन पिछले चार दिनों में मात्र. सब माफ कर देंगे, सब मेरे अपने हैं मगर नहीं माफ करेगा मुझे तो हिन्दी साहित्य का इतिहास. वो मुझसे वैसे भी नहीं सध पाता.
न जाने क्या क्या निबंध, आलेख, शोध पत्र, संस्मरण आदि लिखे इन चार दिनों में और मिटा दिये मगर शीर्षक सहेज लिये कि शायद भविष्य में काम आयें.
आजकल यूँ भी पहले शीर्षक और फिर विषय वस्तु लिखी जाती है नये फैशन में. पहले विषय वस्तु के आधार पर शीर्षक निर्धारित होता था मगर वो पुराना जमाना था पुरनियों का.पुरानों की इज्जत करने वाले अब बचे भी नहीं. परसाई जी भी कह गये हैं कि बुजुर्गों को पूजनीय बना कर पूजागृह की शोभा बढ़ाने के लिए बैठा दिया जाता है. इसलिए जरा पुराना कहलाने से बचता हूँ और नये जमाने के साथ कदमताल करने का प्रयास रहता है. बस, और क्या! इसीलिये बचा लिए शीर्षक.
आप भी देखिये न..आगे इन पर एक एक करके फिर से लिखता रहूँगा शीर्षकानुसार:
- निबंध: महाकुंभ के कुंभी
- गंगा में पावन डुबकी-संस्मरण
- दाना चुगते मानस के राजहंस-निबंध
- जी हजूर!
- ठेले पे मेला : किसने किसको झेला (हास्य विनोद)
- दर्जा सभ्यता
- सरकारी मेहमान : हमारे जजमान
- लाईव रिपोर्टिंग : नॉट सो लाईव-समाचार विश्लेषण
- गला मिलन समारोह
- छुक छुक गाड़ी टू परयाग
- बिना तिलक के पण्डे
- तालियों की कराहट
- बिन चहा (चाय) भजन नइ होवै
- रिक्शे की सवारी: यात्रा वृतांत
- रेत में नौका विहार का आनन्द: डूबने का खतरा नहीं
- आस्था के दीपक का प्रवाहित होना: एक चिंतन
- हँसमुख लाल की खिलखिलाहट
- मइया तेरो बिकट प्रताप: एक मौलिक आरती
- कागज के श्रृद्धा सुमन
- शोध पत्र: चमकाऊ भाषण- एक कला या विज्ञान
- विवेचना: मच्छर दंश: प्रेम प्रदर्शन या हमला
- दो दिवस का एक युग: पौराणिक कथा
- जासूसी कथा: कँघी गुमने का रहस्य
- इलाहाबाद के पथ पर, वो तोड़ती थी पत्थर: २००९ में पनुः आंकलन
- संगम- क्या मात्र तीन नदियों का: विमर्श
- इलाहाबाद- राजनैतिक और धार्मिकता के केन्द्र के बाद-सन २००९ में सिंहावलोकन
- गुल्लक कै पैसे: उसके कैसे- एक तुकबन्दी
- घुटना टेक: छात्र जीवन का एक संस्मरण
- शीर्षासन में देखी दुनिया जैसा: एक विचित्र अनुभव वृतांत
- कव्वों की भीड में हंस या हंसों की भीड़ में कव्वा - एक मोरपंखी मुकुटधारी की रिपोर्ट
- मंदिर से अजान: बदलते फैशन पर एक विशेषज्ञ की राय
- साधना का महत्व: ज्ञानवार्ता
- इलाहाबाद से हरिद्वार जाती गंगा में नौका विहार
- शेषनाग की शैय्या के खाली स्थान पर लंबलेट: एक थ्रिलर
- हाशिये पर ढकेलती: उंगली वाली बंदूक - एक कविता
- तुम्ही अब नाथ हमारे हो: एक स्वीकारोक्ति.
इन्तजार करियेगा इनका. आते रहेंगे समय बे समय. मैं लिखूँ या कोई और-क्या फरक पड़ता है. कुछ शीर्षकों के लिए तस्वीरें इक्कठी करने का काम भी शुरु कर दिया है. एक तो रंजना भाटिया जी के यहाँ से चुरा ली है और बाकी गुगल से. बाकी का जुगाड़ भी हो ही जायेगा.
मैं जब भी घर से कहीं किसी और शहर कुछ दिन के लिए जाता हूँ तो मेरी आदत है कि सामान रखने के पहले इत्मिनान से बैठ कर लिस्ट बना लेता हूँ फिर सामान मिलान करके रखता हूँ ताकि कुछ छूट न जाये. हर बार नये अनुभव प्राप्त होते हैं तो लिस्ट बढ़ती घटती रहती है. अभी अभी नये प्राप्त अनुभवों से लिस्ट में कुछ सामान और जोड़ दिये है, शायद आगे काम आये अगर कहीं बुलाये गये. दो दिन के लिए तीन दिन का सामान ले जाना हमेशा ठीक रहता
है उस हिसाब से:
तीन शर्ट, तीन फुल पेण्ट, एक हॉफ पैण्ट (नदी स्नान के लिए), एक तौलिया, एक गमझा (नदी पर ले जाने), एक जोड़ी जूता, एक जोड़ी चप्पल, तीन बनियान, तीन अण्डरवियर, दो पजामा, दो कुर्ता, मंजन, बुरुश, दाढ़ी बनाने का सामान, साबुन, तेल, दो कंघी ( एक गुम जाये तो), शाम के लिए कछुआ छाप अगरबत्ती, रात के लिए ओडोमॉस, क्रीम, इत्र, जूता पॉलिस, जूते का ब्रश, चार रुमाल, धूप का चश्मा, नजर का चश्मा, नहाने का मग्गा, बेड टी का इन्तजाम (एक छोटी सी केतली बिजली वाली, १० डिप डिप चाय, थोड़ी शाक्कर, पावडर मिल्क, दो कप, एक चम्मच), एक मोमबत्ती, माचिस, एक चेन, एक ताला, दो चादर, एक हवा वाला तकिया.
बाकी इलेक्ट्रॉनिक आइटम की सूची अलग से है.
मुझे तो लगता है कि लिस्ट पूरी है, कुछ छूटा हो तो बताना.
खैर, यह सब तो ठीक है लेकिन जाने इसी दौरान यह कविता कलम का सहारा लेकर उतर आई. थोड़ी गंभीर है, अतः निवेदन है कि जरा डूब कर भाव समझने का प्रयास करें. सोचता था कि इस कविता को अलग से प्रस्तुत करुँगा मगर दो मूड और एक पोस्ट की तर्ज पर प्रस्तुत कर ही देता हूँ:
मैं हाशिये पर हूँ
इसलिये नहीं कि
मुझे हाशिये में रहना पसंद है
इसलिये नहीं कि
मुझमें ताकत नहीं
इसलिये नहीं कि
मैं योग्यता
नहीं रखता..
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा!!
-समीर लाल ’समीर’
92 टिप्पणियां:
Main haashiye par hoon...
bahut sundar..
intezar rahega aage ki post ka.
Jai Hind
अच्छा हुआ आपने शिर्षक लिख दिये.. लेख तो कोई भी लिख देगा... :)
टायलेट सोप तो छोड़े दिए -कहीं कहीं यह भी नहीं दीखता ! और एक आईटम छोडे -बेतहाशा बढ़ रही जनसंख्या का भी तो ख्याल रखिये --यह भारत है ! (यौन स्वातंत्र्य को बढ़ावा देते आईटम -नीली गोलियाँ आदि -इसलिए कह रहा हूँ कुछ विदेशियों के सूटकेसों में मैंने यह सब देखे हैं आप क्यों छुपा रहे हैं ? मेरा तो ममन लहक उठता है की काश मेरा वह स्वर्णावसर कब आएगा जब ऐसा कोई दिन/रात मुझे भी नसीब होगा ! प्रौढ़ता दस्तक देने आयी और अभी तो .आह !)
बहरहाल खूब पानी भिगा भिगा चमरौधियाये हैं ! लोग छोडेगे नही !
हाँ ,बन्दर के हाथ में न तो उस्तरा दिखा है न कप में चाय ! बहरहाल हज्जाम तो हम खुद थे ! मगर उसके पास कप तो है मेरे पास वह भी नहीं था !
शीर्षक, चित्र, आपकी लिस्ट, सब पूरी देख ली...कुच नहीं छूटा है।
कविता का क्या कहूं...बस इतना कहने को मन कर रहा है कि अभी किसी ने वो कलम नहीं बनाई जिससे वो लकीर खीची जा सके जिससे आपको हाशिये के पार धकेला जा सके। यदि ऐसा करने के प्रयास भी होते हैं तो यकीन मानिये हमें तो विश्वास है कि हाशिये के पार की दुनिया ही ज्यादा सुकून वाली होगी।लिखते रहें.....हमारे साथ ही बहुत लोग तकते रहते हैं।
इन शीर्षकों पर लिखने के लिये क्या अतिथि लेखक का प्रावधान नहीं रखेंगे?
सामान में चश्मों के दो दो सैट किये जायें
सिर्फ केतली से काम नहीं चलने वाला, बिजली कहां रहती है? कुछ और भी व्यवस्था की जाये
सही चीज बताई गुरु पहले शीर्षक सोच लो फ़िर लिख लो अपन को भी अपनी इश्टाईल में उड़न तश्तरी जैसा परिवर्तन लाना पड़ेगा। वैसे सही है क्या लिखना है शीर्षक से समझ में आ जाता है।
हाशीया.... अति उत्तम ।
मैथली जी
धन्य हो जायेगा यह ब्लॉग जिस दिन आप जैसा अथिति लेखक मात्र एक वाक्य लिख देगा इसमें से किसी भी शीर्शःअक पर मेरे ब्लॉग पर.
इन्तजार रहेगा वैसे.
सादर
समीर
बहुत खूब ..बहुत रचनाएँ रच डाली आपने तो..हाशिए पर होना और उसकी अभिव्यक्ति लाज़वाब ...
बी.पी.की गोली छुट गई है(दवाइयों की किट) आज कल इसके बिना सफ़्रर करना खतरे से खाली नही है, रास्ते मे भी नही मिलती, अभी मैं स्वयं भुगत गया था केरल गया था तो,इन आवश्यक चीजों का ध्यान रखना चाहिए।
शीर्षकों पर लिखना एक नए लेखन को जन्म दे देगा। मगर हम तो शीर्षक बाद में लिखते हैं। रचना तलाशनी पड़ेगी।
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा!!
दिस इज़ द राईट चॉईस बेबी! अहा!!
बी एस पाबला
कविता का "सच मुच" सही और सुंदर अभिव्यक्ति हैं ।
आप की लिस्ट मे "डंडा" नहीं हैं "स्पेयर द रोड " नहीं चलता
प्रबुद्ध गुरु के
प्रबुद्ध चेले
चले इलाहबाद
हुए झमेले
आयोजक चुप हैं
संचालक चुप हैं
सबके अपने अपने
मंतव्य पूरे हुए
जो साहित्यकार
ना बन पाये
ब्लॉग पकड लिये हैं
और ब्लॉगर से
साहित्यकार
बन कर ही
नाम वर बनिये
यहाँ भी इलाहाबाद!! नहीं जी माल कुछ और है, लेबल कुछ और...क्या बात है!! फिर से कायल कर दिया :)
थोड़ा लिखना ,,,,ज्यादा समझना...
इसलिये नहीं कि
मुझे हाशिये में रहना पसंद है
इसलिये नहीं कि
मुझमें ताकत नहीं
इसलिये नहीं कि
मैं योग्यता
नहीं रखता..
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा!!
बहुत खूब, समीर जी !
नहाने का साबुन
सिर में लगाने को तेल
कान खुजाने को इयर बड
यह सब छूट गया है
प्रणाम
सूची तो अच्छी बन पड़ी है.कई लोगोंने सलाह दे ही दी है. अब हम आइटम बढ़ाना नहीं चाहते. कविता भी बहुत अच्छा सन्देश देती है. मौनी बाबा ध्यान दें.
SAMEER JI,aap apni suvidha ke anusar likhen. pahle shirshak banayen chahe pahle samgri likh kar phir shirshak lagayen, koi phark nahi padta. humen to aapse aur aapke lekhan se pyar hai. dhanywad.
SAMEER JI,aap apni suvidha ke anusar likhen. pahle shirshak banayen chahe pahle samgri likh kar phir shirshak lagayen, koi phark nahi padta. humen to aapse aur aapke lekhan se pyar hai. dhanywad.
गुरुदेव,
पहली बात तो आपका ये बंदर आपकी लिस्ट के एक-एक शीर्षक को बड़ी गौर से पढ़ रहा है...
दूसरी बात, ये कश्ती पहले दिख जाती तो हम भी प्रयागराज जाकर हिंदी चिट्ठों की चर्चा में अपने अवांछित विचारों से महानुभावों को पका आते...
तीसरी बात बिल्ली से...बोल फिर जाएगी कभी किसी ब्लागर मीट में...
चौथी बात...आपके हाशिए पर रहने की...सूरज हमेशा दियों की भीड़ में हाशिए पर ही रहेगा...चाहेगा भी तो भी भीड़ का हिस्सा नहीं बन सकेगा...
जय हिंद...
गूगल रीडर से आप का लेख पढ़ रहा था.. अचानक आप का चेहरा स्मृति से लोप हो गया.. याद ही नहीं आ रहा था कि आप ्सिर्फ़ मूँछ रखते हैं या साथ में दाढ़ी भी रखते हैं.. या दोनों सफ़ाचट..कुछ लौका नहीं रहा था.. बड़ी घबराहट होने लगी.. कूद के आप के ब्लाग पेज पर आ कर आप की तस्वीर देखी तो तसल्ली हुई.. (सोच रहा हूँ कि आगे से आप की तस्वीर वाला लाकेट गले में डाल कर रखा करूँ. जब ज़रूरत पड़ी देख लिया)
आप को भी किड़वा काट लिया है ये देख कर दुख हुआ.. आप के स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से कामना करता हूँ..
Chahe ek fehrist ke taurpe likha kyon ho, aapka har lekhan baandh leta...rozmarra ke jeeven kee baten bhi padh ke aanand aa jata hai..
Padya rachna to haihi sundar...mere paas alfaaz nahee hote, kya likhun?
इधर हम भी मुंतजिर हैं...
क्या पता समीर भाई कौन हाशिये पर रहा ........... पर आपने बहुत अपने ठेठ अंदाज में लपेट लिया सब को ........... जोरदार है मजेदार है ............
आपके शीर्षक मौलिक हैं या नही? आजकल एक बार अपनी पोस्ट मे जिक्र होते ही कापी राईट हो जाता है. अत: डिस्कलेमर दिया जाना चाहिये.:)
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा!!
आप मुस्करा रहे हैं और हम बोरिया बिस्तर समेट रहे हैं. जमे रहिये, यहां रहना मुबारक.
रामराम.
बिन चहा (चाय) भजन नइ होवै.......
is par jaldi likhiye
"तुम्ही अब नाथ हमारे हो: एक स्वीकारोक्ति.म्ही अब "
तुम्ही अब नाथ हमारे हो।
लेकिन सब से भारे हो ।;)
लेकिन सब को प्यारे हो।
ब्लोगरों के राजदुलारे हो।
समीर जी, यह तो रहा ’तेरा तुझ को अर्पण" की तरज पर आपके लिए।
रही लिस्ट तो वह पूरी ही लग रही है।;))
आपकी रचना बहुत बढिया है। इन्सान जब मौन होता है तो वह सच मे हाशिये पर चला जाता।आप की यह रचना अर्थ समजने के लिए नही महसूस करने के लिए है। बहुत गहराई तक उतर गई।
जै हो समीर जी यूँ ही मुस्कुराते रहिये एक चुप और सौ सुख अब इन्तज़ार है अगले शीर्शक का बधाई
vaah aap to kumbh ho aaye lagta hai...meri list to banne se pahale hi kho jati hai...
अरे अरे बोतल तो भुल ही गये? क्या वो रास्ते मै ही खरीदोगे... चलिये घुम आईये तब तक हम आप की कविता का आध्यन करते है... राम राम जी की
पोस्टों के विषय सप्लाई करने के लिये धन्यवाद। यह पोस्ट बुकमार्क कर ली है। जब कुछ नहीं बनेगा तो ये विषय गाढ़े में काम आयेंगे!
वैसे इतने कम सामान में हम यात्रा नहीं कर सकते। :)
la-javaab ! very befitting titles !
tashtari ji,
allahabad aa rahe ho kya? agar aa rahe ho to ek baar prayagraj express bhi pakad le, subah tak new delhi pahunch jaaoge.
इ लो यह यहाँ आ गए चाह (चाय )पीने ..:)शीर्षक तो जबरदस्त है .जब आगाज यह है तो अंजाम भी देखेंगे ..अभी तो या पंक्तियाँ बेहद पसंद आ गयी हमें ...
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा!!
बहुत सही ..बहुत खूब ..
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा!!
इस तरह हाशिये पर रहना ...मतलब पूरी ऊँचाई एक साँस में चढ़ लेने की तैयारी ...!!
पामोलिव की तरह...आप का भी जवाब नहीं...आपकी इस उर्वर खोपडी को बारम्बार सलाम...धाँसू पोस्ट.
नीरज
इसे कहते हैं शीर्षकों की ब्लॉग पोस्ट !
अच्छी बात ये की इनकी कापी राइट की घोषणा नहीं की !
वरिष्ठ ब्लॉगरों के कई रूपों के दर्शन हो गये इलाहाबाद सम्मेलन की कृपा से ।
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा . त्रासदी तो है...पर आप तो मुख्रर है.
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा
उनके कृत्यों पर
hoon !!! gahri baat hai
behterin....
hum bhi ganga naha aaiye !!
इलाहाबाद की महिमा न्यारी है भैये… :) अच्छे-अच्छों को…
मुझे तो लगता है आप और ताऊ दोनों आपस में सलाह करके ही पोस्ट का विषय निर्धारित करते हो :)
मंतव्य जाहिर हो तो व्यक्तव्य आ ही जायेंगे. अब तो मंतव्य जाहिर हो चुका है इंतजार है व्यक्तव्यों का.
Sameer जी ये मफलर तो आप भूल ही गए लिस्ट में ....!!
और ये शीर्षक तो बड़े धांसू धांसू रखे हैं ..."जासूसी कथा: कँघी गुमने का रहस्य ", ' तालियों की कराहट ", कागज के श्रृद्धा सुमन .......!!!!!
हाँ तस्वीर (रामप्यारी) हैंड्स अप वाली तो लाजवाब है .....!!
लिस्ट रोचक है और कविता दिलचस्प...!
अरे आह अरे वाह।।
शीर्षक सूची देखकर विमल उर्फ जाएं तो जाएं कहॉं याद आई... उसमें लेखक शोध विषयों की सूची देता हे इसी तरह की :))
आपकी दूसरी सूची देखकर अपनी गुम हुई कंघी याद आई :)
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा!!
अरे वाह समीर जी, यह तो आपने मेरे मुँह की बात छीन ली। लेकिन आपको तो मैने दो-दो हाथ करते भी देखा। ख़ुद मन्द-मन्द मुस्कराते हुए... :)
मैं जब भी घर से कहीं किसी और शहर कुछ दिन के लिए जाता हूँ तो मेरी आदत है कि सामान रखने के पहले इत्मिनान से बैठ कर लिस्ट बना लेता हूँ फिर सामान मिलान करके रखता हूँ ताकि कुछ छूट न जाये. हर बार नये अनुभव प्राप्त होते हैं तो लिस्ट बढ़ती घटती रहती है. main bhi aisa hi karta hoon.... par list badh hi jaati hai.... kai baar to jahan jaana hota hai wahan pahunch kar badh jaati hai....
kavita badi achchi..... lagi....
saadar
namaskar...
apka
mahfooz...
Ek film dekhi thi,jisme gudgudakar nayak kee jaan le lee gayi.....
Achanak abhi usi ka smaran ho aaya....
vyangkaar aise hi to hua karte hain,shayad isliye yah khyaal me aaya,nahi???
गुरुदेव तो आप भी ऐसा ही करते है ? मै भी जब कोई विषय वस्तु ध्यान आती है उसका शीर्षक लिख लेता हूँ और फिर कभी उस पर पोस्ट लिखता हूँ | अब ताऊ के किस्सों को ही लो किसी बात पर याद आते है यदि उसका शीर्षक लिख कर नहीं रखा तो बाद में याद ही नहीं आते |
are aap hashiye par nahin front page par to/centre men hain.
bahut badhia laga padhkar.
पहले तो आपकी लिस्ट के बारे में आप बाल्टी लेना भूल गए हैं !!! और आपके शीर्षक बहुत ही प्यारे हैं प्रतीत होता है उनमे कई मनोरंजक कई ज्ञानवर्धक और कई भावनात्मक लेख हैं !!!
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा!!
बहुत सुन्दर मौन का कारण समझाया !!!
शुक्र है हाशिये पर तो आप अकेले है . या कहे हाशिया आप के लिए काफी है
शीर्षक तो बढिया चुने गए- विषय का इंतेज़ार है। फ़ोटू में ज्ञानदत्त पाण्डेयजी कि नैय्या भी दिखाई दे रही है:)
ये बढ़िया रहा, समीरजी.सब को काम धंधे पर लगा दिया.
वैसे लिस्ट बनाने की आदत अच्छी है.
अब हम तो बिना हाशिये का मतलब जाने बोल रहे हैं वाह, वाह.
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि
मैं बस मौन रहा और
उनके कृत्यों पर
मंद मंद मुस्कराता रहा !!
"पहले विषय वस्तु के आधार पर शीर्षक निर्धारित होता था मगर वो पुराना जमाना था पुरनियों का.पुरानों की इज्जत करने वाले अब बचे भी नहीं. परसाई जी भी कह गये हैं कि बुजुर्गों को पूजनीय बना कर पूजागृह की शोभा बढ़ाने के लिए बैठा दिया जाता है"
बन्दर की फोटो बहुत जोरदार लगी कही ये ज्ञानजी के गोलू पांडे जी तो नहीं है .
उपरोक्त विचार बहुत ही सटीक है ....बहुत ही गहरे भावः है .. आभार
रोचक लेख---सुन्दर फ़ोटो---बढिया कविता--सब कुछ अच्छा।
पूनम
समीर भाई जे जो इलाहाबाद वाली गाडी है अब कब तक और चलेगी जी
भौत कन्फ़्यूज़िया रहा हूं...! खैर, मिश्र जी का मिशन भेडाघाट पूरा करवाने आ
रहे हैं न एक और बात अपने कुछ जमूरे ब्लागिन्ग नहीं कर रहे हैं पता चला
कि जब वो लिखने पे उतरतें हैं उनकी धडकन तेज़ हो जाती है लोग कह न दें
"आज़ साम्प्रदायिक ताकतें फ़िर "
कोई बात नहीं इस बहाने पता तो चला कि जिस तरह प्रयागराज जाने वाली
ज़्यादातर ट्रेनें जबलईपुर से होकर गुज़रतीं हैं ठीक उसी तरह..........वाला मामला है
बहरहाल धांसू पोस्ट के लिए आभार
अब मैने टंकी पे....... का इरादा तज दिया ठीक है न गुरु
समीर भाई , आपकी व्यथा मैं समझ रहा हूँ । हम लोगों भी नहीं सोचा था कि यह इलाहाबाद इस तरह से हम लोगों की ज़िन्दगी में आयेगा लेकिन आ ही गया । तरह तरह से लोग प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं । ज़रूरी गैरज़रूरी सब तरह के बयान आ रहे हैं । अभी यह सिलसिला चलता रहेगा और फिर सब सहज गति से चलने लगेगा । अभी तो ऐसे कई शीर्षक लोगों के मानस मे मचल रहे हैं । इन सब के बीच creative writing का नुकसान हो रहा है । लेकिन अब ऐसा सब जगह होने लगा है ।
चलिये आप अपने मन की इस भीतर की यात्रा को स्थगित कीजिये और लेखन की यात्रा पर निकल पडिये .. अच्छी अच्छी कवितायें लिखिये कुछ ऐसा जिसे लोग आपके बाद भी याद रखें और चाहकर भी आपको हाशिये पर न रख सकें ।
आपने तो हर चीज की लिस्ट बना डाली--बाकी ब्लागर क्या करेंगे----
रोचक पोस्ट्।
हेमन्त
DHO KE RAKH DIYA SAMEER JI ! ANAND-VRISHTEE, AHAA !
आपकी लिस्ट में भी मज़ा आ रहा है।
क्या लिस्ट बनाई है ....सब कुछ तो समेत लिया आपने ...
आपकी कविता बहुत कम शब्दों में सब कुछ कह गई। बाकी आलेख तो बोनस में रहा।
आपकी कविता पढ़कर श्रद्धेय दादा रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता की वो पंक्तियां याद आ गईं । समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध ।
बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ गह दिया है आपने । हम में से हर कोई जो कि हाशिये पर है वह अपने ही कारण है । हम हाशिये से निकलने के लिये स्वयं ही तो प्रयास नहीं कर रहे । हम स्वयं ही तो सहमती दिये हुए हैं कि हम तो हाशिये पर ही बने रहना चाहते हैं । पिछली कविता के ही तरह ये भी गुनने वाली कविता है । समीर लाल नाम के कवि को मुंडलियों और कुंडलियों से बाहर आकर गम्भीर प्रयास करते देख सुखद लग रहा है । आपकी ये कविताएं एक नये प्रारूप को तय कर रही हैं । प्रारूप जिसमें हर बार निशाना अपने पर ही साधा जा रहा है । आज एक सेमीनार में बैठा था तो वहां पर ये ही बात शहर के पुलिस अधीक्षक ने कही । उन्होंने कहा कि हम स्वयं ही तो यथास्थिति से विद्रोह नहीं कर रहे । हमने तो स्वयं ही उसकी रजामंदी दे रखी है ।
बधाई एक अच्छी रचना के लिये ।
जहां तक आपके शीर्षकों का प्रश्न है तो क्या आपने उसका कापीराइट करवा लिया है । यदि नहीं किया है तो फिर मान कर चलें कि उसमें से कई सारे चोरी हो चुके हैं । और उन पर आपको कुछ ही दिनों में बाकायदा लेख मिलने वाले हैं । यदि आपने कापीराइट करवा लिये हैं तो ये बतायें कि एक शीर्षक को कितने में खरीदा जा सकता है । उसी प्रकार जिस प्रकार फिल्म वाले लोग नाम को पंजीयन करवा के बाद में अच्छे दामों पर बेचते हैं ।
अच्छी पोस्ट के लिये बधाई ।
समीर जी की घोषणाएं पढ़ ली। अब हाशिए पर नहीं रहना आपको। राजनेताओं से प्रेरित तो नहीं आपकी घोषणाएं।
बाबा समीरानन्द जिन्दाबाद!
भइया!
शीर्षक पढ़ने में ही हालत बिगड़ गयी अपनी तो
पोस्ट पढ़ेगे तो पता नही क्या होगा?
वैसे सनकियों के लिए छोटा इलाज तो बरेली में होता है। उससे बड़े के लिए आगरा भी कोई दूर नही है।
सबसे अच्छे ब्लॉगर्स के अच्छे चित्र, फिर आपकी यह अच्छी सी कविता देखकर, पढ़कर अच्छा लगा। आपने अपनी सूची में अच्छाई नहीं लिखी। उसे साथ ले जाना मत भूलिएगा।
घुघूती बासूती
aapke lekh ne to mera sir chakra diya, aapki kabiliyat aur kayiliyat se achi tarah se parchit ho chuki hu, aapke lekho ka intazaar rahega. rahi baat tatasky connection ki to yah tv cable connection hai jaise sky tv vaise tatasky.
मर्म की बात होठ से न कहो,
मौन ही भावना की भाषा है।
अकेलापन या मौन चुनाव होता है किसी ऐसे का, जिसके सामने संभावनाओं की बहुतायत हो – उसका चुनाव जो स्वतंत्र है।
समीर भाई
आप मंद ~ मंद मुस्कुराते हुए
कितने अच्छे लग रहे हैं
यही सोच रही हूँ :)
और आपके सारे शीर्षकों पर
आलेख पढ़नेका
बेसब्री से इंतज़ार रहेगा -
बहुत स्नेह के साथ
- लावण्या
और अण्डे!!! उन्हें भी तो लिस्ट में होना चाहिए था...
हम सब समझ रहे हैं कि आप क्या समझ कर ये सब लिखे हैं :)
Jai ho...
List wala idea achha hai...
अरे छोडिये इन ब्लॉग बनाम चिट्ठा वालों को और इनकी मीट को हम अपने ्पने ब्लॉग पर ही भले ।
हाशिये पर आप होंगे तो बाकी तो कागज के बाहर..................!
waah.. main haashiye par hoon...dil jeet liya aapne..
aur kya khinchai ki hai apne hi andaaz mein :)
वाह बहुत ही सुंदर पोस्ट ! शानदार और दिलचस्प कविता लिखा है आपने !
आपके व्यंग बेहद पैने, सटीक ,हल्के फ़ुल्के और भावपूर्ण होते हैं.व्यंग से मात्र हास्य का ही सृजन नहीं होता.हास्य तो साधन है,(Means).अंत (Ends) गंभीर होता है. जैसा कि आपकी कविता नें सिद्ध कर दिया.
परसाई जी की गद्दी चलाने को आप उपयुक्त हैं. पता नहीं अलाहाबाद वालों को परसाई जी साहितिक लगते या नहीं, आपके बारे में विचारणीय होंगे.
वैसे आप का पेन छूट गया है.कलम के इस हथियार का औचित्य तो हर जगह है. वैसे अलाहाबाद ले जाने के लिये इसकी ज़रूरत नहीं होगी.
मैं इसलिये हाशिये पर हूँ क्यूँकि मैं बस मौन रहा और उनके कृत्यों पर मंद मंद मुस्कराता रहा!! -समीर लाल ’समीर’
Sameer ji,
ye to bade logon ki bhasha lagti hai.
jo log bahut kuchh hote hain vo isi bhasha ka istemaal karte hain . aap haasiye par nahin hain haasiya aap se hai. badhai!!
apki sbhi list sheershk durust hai
यह विषयो का टोटा है तो आपके पास विषयो की खान हर दिन हर फन के दर्शन होगे।
समीर जी ! आपकी उड़न तश्तरी तो बडी
तेज उड़ती है ! तरह तरह के दृश्य जाल
दिखा कर आप हाशिये पर हो जाते है ,
तो उन लोगों का क्या होगा जो लोग उडान
भर रहें है ...............
गुस्ताखी माफ़ ! आप मेरे ब्लॉग
पर आये ,कविता की तारीफ किये ,लिखना
सार्थक हो गया ! आपका बहुत बहुत ,
धन्यवाद
कविता निहायत ही अच्छी है उसके लिये साधुवाद।
बाकी का फ़िलर भी पठनीय है। कभी पुल के इस पार आकर भी देखें इलाहाबाद। दो पुल जमुना पर हैं और चार गंगा पर और नावें तो हजारों हैं। एक तो आपने देख भी ली है।
समीर जी, इन पौराणिक रचनाओं को प्रदर्शित करने की बधाई ,आभार
समीर जी,
पोस्ट बहुत ही खूब -- हाशिये पर कविता--धाँसू और सही, इसके ज़िम्मेदार हम ही.
यार ' उड़न छू लाल ' सब tippiyan तो बटोर ही लेते हो (देते भी तो खूब हो ) , अब सभी संभावित शीर्षकों पर भी कब्ज़ा करने के फिराक में हो ? बाकी सब ले जाओ पर मेरीजेल में सुरंग ? ' सिंहावलोकन ' पर नज़र ना डालना गुरु वह आजकल हमारे ' ट्रेडमार्क ' के अर्न्तगत आता है .इन एडिसन टू ' राजसिंहासन '.....' नामवर ' नाम के शेर ' सिंह ' buddhaay गए अब हमहीं गब्बर सिंह के बाप हैं .हमारा नाम ना जानते हो तो अपने ' जुगल ' से जुगाली कर लेना ,जान जाओगे.
बाकी यार हाशिये वाली कविता ? सकारण गंभीर हो गए हम भी . ऐसा न करो गुरु .ये सब गंभीर बातें चन्द मनहूसों के लिए छोड़ दो जो हाशिये पे रहें तो बिलबिलाने लग जाएँ .उम्मीद है की लायिणा के बीच की बात समझ जाओगे . ना समझो तो ज्ञानदत्त जी के पास चले जाना . परसाई जी के जाबाल पुत्रों को गंभीरता वैसे भी शोभा नहीं देती बिना व्यंगावाली :)
बाकी हमेशा की तरह मस्त हो 'उड़न खटोले ' पर बिचरण करते रहो .तिप्पियाँ और शाबाशियाँ बांटते .
बाकी लिखते मस्त हो ! तो लगे रहो यार ! और जीते रहो मस्ती में . सारे हासिये पे रहें तुम्हारे दुश्मन !
Sameer ji yakeen maniye blog par aapki visit dekh ke man prasann ho jata hai, shayad aapne sahi tad liya wo Kavita dobara aapki hi prateeksha me lagai thi..
Jai Hind.
स्वागत है आपका हाशिये पर. अकेला काफी बोर हो रहा था मैं. वैसे शीर्षक पेटेंट करा लीजिये क्योंकि दो चार दिन में ही इनमें से कई मौलिक होकर यहाँ-वहां नज़र आने वाले हैं.
Aap jo bhi likh den, hit hota hai.
Kavita khood achchi lagi.
अगर मुझे कभी आपका लिखा हाशिये पर दिखा
तो मैं उस पृष्ठ को क्लोक वाईज 90 डिग्री घुमा कर आपको पहले कर दूंगा.
इस पंक्ति को आप पोस्ट का निचोड़ न समझे, ये श्रद्धा है मेरी आपके लिए.
- सुलभ
वाह, लेखों और निबंधों की सूचि तो एकदम मस्त है, मिटा काहे दिए इन पर लिखने के बाद, और कुछ नहीं तो पोस्ट ठेलने के लिए बिढ़िया मसौदा हो जाता कई दिनों के लिए! :D
सामान की सूचि में कमर पट्टिका यानि कि बेल्ट नज़र नहीं आ रही, भूल न जाईयेगा। पिछले वर्ष मैं भूल गया था तो लफ़ड़ा होते-२ रह गया था, ही ही ही!! :D
बहुत ही उम्दा लेख सर और बहुत ही ऊँची बात कही आपने।
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