बुधवार, अक्तूबर 07, 2009

ये क्या हो रहा है?

अब फुरसत हुए तो इत्मिनान से बैठकर सोचता हूँ.

आज कल जो हालात हुए हैं, मजहब के नाम पर जो दंगल मचा है, उसे देख कुछ कहने को मन है:

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ,  इंसान की जरुरत है..

-समीर लाल ’समीर’

बस, इस पर इतना ही. बाकी तो मौन साधा हुआ है. सब समझदार हैं फिर भी न जाने क्यूँ?

paani

अभी एक दो दिन पहले ही कहीं पढ़ता था कि कविता क्या है?

बहुत से बड़े बड़े धुरंधर कवियों से लेकर बुद्धिजीवी साहित्यकारों ने इस विषय पर अपनी अपनी विचारधारा कविता और दीगर माध्यमों से रखी है.

मैने भी कोशिश की कि अपनी तरफ से कविता पर भी कुछ कहें. सबने कहा है तो हम भी कहें. जो कहा वो आप भी पढ़िये. साहित्यकर तो हैं नहीं फिर भी कोशिश करने पर रोक तो है नहीं सो कर दी.. आप बताओ कि कैसी है?

कविता क्या है ?

कविता है,

शब्दों मे व्यक्त
भावों की अभिव्यक्ति
जीने की शक्ति
समाज की संरचना
मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार

कविता  है
मन के भाव
कड़ी धूप में
पेड़ की छांव
संजोये हुए अहसास
और गहरे अँधेरे में
चमकती हुई आस

कविता है
संस्कृति की वाहक
भ्रांतियों की निवारक
और क्षुब्ध ह्रदय में
चेतना की कारक
कविता है
एक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहराई

कविता
मिटाती है संशय
बढ़ाती है
आदि से अंत का परिचय
जगाती है निश्चय
और
अमावस में
लाती है सूर्योदय
कविता है
पूर्ण सॄष्टि
लौकिक और
अलौकिक दृष्टि

इसका रचयिता कवि

कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता

-समीर लाल ’समीर’

नोट: ४ तारीख का कार्यक्रम बहुत बढ़िया से हो गया. जल्द ही रिपोर्ट देते हैं.

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92 टिप्‍पणियां:

निशांत मिश्र - Nishant Mishra ने कहा…

समीर जी मैंने अपने एक-दो कमेंट्स में यह चिंता ज़ाहिर की है की यदि कानून-व्यवस्था तक इन बातों की भनक लग गयी तो हिंदी ब्लॉगिंग के लिए खतरा पैदा हो सकता है लेकिन कोई समझ नहीं रहा है.

हमेशा की तरह आपकी कविता बेजोड़ है.

M VERMA ने कहा…

'आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..'
सही कहा है, यदि इंसान मय इंसानिय्रत मिल जाये तो खुदा या भगवान की जरूरत ही नही है.
साधुवाद कविता की तमाम सम्भावनाओ को कविता के माध्यम से व्यक्त करने के लिये. बखूबी समेटा है.
'कविता
मिटाती है संशय'

Gyan Darpan ने कहा…

बस, इस पर इतना ही. बाकी तो मौन साधा हुआ है. सब समझदार हैं फिर भी न जाने क्यूँ?

गुरुदेव इस मुद्दे पर आपकी व्यथा समझी जा सकती है ! पता नहीं इन उन्मादी लोगो को कभी सद् बुद्धि आएगी की नहीं !

राजीव तनेजा ने कहा…

बहुत ही बढिया तरीके से आपने कविता को परिभाषित किया....तालियाँ

वाणी गीत ने कहा…

कविता हंसाती है..गुदगुदाती है..रुलाती है..कविता की कविता में सुन्दर और विस्तृत व्याख्या ..!!

बेनामी ने कहा…

समीर जी! आप नें सटीक शब्दों में कविता को परिभाषित किया। आनन्द आ गया। बधाई स्वीकार करें

पंकज सुबीर ने कहा…

कविता को ठीक प्रकार से परिभाषित किया है आपने । और कविता में ही किया है ये बड़ी बात है । 4 तारीख के कार्यक्रम के लिये अब अधिक इंतजार न करायें जल्‍द ही सचित्र झांकी का अवलोकन करवायें ।

श्यामल सुमन ने कहा…

कभी खुशी और कभी वेदना कभी सुमन का तीर।
कविता क्या है पढ़ लें इसको लिखा यहाँ समीर।।

सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता


बहुत सही तरीके से अभिव्यक्त कर पाये हैं आप. बहुत शुभकामनाएं और ४ तारीख वाले कार्यक्रम के बारे मे जानने की प्रबल उत्कंठा है. हो सके तो विडियो जरुर लगायें.

रामराम.

विवेक रस्तोगी ने कहा…

समीर जी आज आपने भी इस मुद्दे पर लिख दिया मतलब कि वाकई मामला बहुत गंभीर हो चुका है। आपका इतना लिखने से ही सबको समझ जाना चाहिये। अगर घर के बुजुर्ग दुखी हैं मतलब मामला बहुत गंभीर है।

कविता की परिभाषा बेजोड़ है।

Khushdeep Sehgal ने कहा…

इंसानियत का धर्म...

बेशक मंदिर,मस्जिद ढाह दो,
बु्ल्ले शा ये कहता...
पर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो,
जिस दिल में ईश्वर रहता...

कविता...
मौत तू एक कविता ह,
इस कविता का मुझसे वादा है...
मिलेगी मुझसे इक दिन ज़रूर...

जय हिंद...

seema gupta ने कहा…

कविता
मिटाती है संशय
बढ़ाती है
आदि से अंत का परिचय
जगाती है निश्चय
और
अमावस में
लाती है सूर्योदय
कविता है
पूर्ण सॄष्टि
लौकिक और
अलौकिक दृष्टि

बेहद सुन्दर शब्द आलोकिक ज्ञान से भरे हुए.......
regards

Deepak Tiruwa ने कहा…

Aap ki baat se mera bhi pura ittefaq hai
naturica par suniyeकविता -mix

Arvind Mishra ने कहा…

अच्छा परिभाषित किया आपने कविता को मगर यह भी कभी ध्यान दिया की कविता आपको और आपके होने को भी परिभाषित करती रही है निरंतर और उसी ने मुझे आपके अंतस से जोड़ा !
कविता को परिभाषित करना कवि के लिए कुछ ऐसा ही है की चल बच्चे तूं क्या बूझें मोहि ...मैं बूझून्गी तोहि ..!

Mithilesh dubey ने कहा…

समीर जी क्या कहने आपके, आपने बड़ी सरलता से अपनी बात कह दी। मैं आपसे से बिल्कुल सहमत हूँ

रंजू भाटिया ने कहा…

कविता की सुन्दर परिभाषा रच दी है आपने ..चार तारिख को हुए प्रोग्राम की रिपोर्ट का इन्तजार है

mehek ने कहा…

ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार
bahut sunder varnan kavita ka aur sahi aaj insaan ki jarurat jyada hai,ishwar sachhe aur achhe insan ke andar hamesha nivaas karte hai.

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

मैने पहले भी बहुत कविता पढ़ी जो व्यक्त कर रहे थे की कविता क्या है परंतु आपने तो सभी को समेट लिया कविता किसी भी शब्द और विचार में प्रकट हो सकती है और कभी भी भावनाओं को व्यक्त कर सकती है..कविता प्यार भी दर्शाती है और समय पड़ने पर कविता गुहार भी बन जाती है..आपने कविता के हर स्वरूप को दर्शाया वो भी एक बेहतरीन कविता में.....बहुत अच्छा लगा.....बधाई!!!

अर्कजेश ने कहा…

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
कविता पर एक बढिया कविता
कविता भावों का ब्लूप्रिण्ट है
मजहब वाली बात का सूत्र खोजना पडेगा

शिवम् मिश्रा ने कहा…

"किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है.."

आज की दुनिया में एक बार भगवान् मिल सकते है, पर इंसानों की भीड़ में इंसान का मिलना ही मुश्किल होता जा रहा है !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कविता क्या है?
हृदय से फूटे भावों को
शब्दों में तराशकर ढालना ही तो कविता है।

समीर भाई!
आप इस कला में सिद्धहस्त हैं।
बानगी तो मिल ही गई है-

"भावों की अभिव्यक्ति
जीने की शक्ति
समाज की संरचना
मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार कविता है"

हाँ यही तो कविता है।

संजय बेंगाणी ने कहा…

कविता के बारे में समझ लिया है.

उन्मादी नहीं समझ सकते.

जहाँ जरूरत हो प्रतिकार करना चाहिए, वरना गुण्डो को लगता है वे ही सरकार है. समझ गए होंगे आप समझदार हैं.

kshama ने कहा…

Har yug me insaan roop me hee khada ya bhagwaan mila...jo apne andarhee basta hai...kitnee khoobsoorteese kaha aapne..

Ham mankee aankhen khol den to waheen pa lenge...

डा. अमर कुमार ने कहा…



तुमकू इन्सान की ज़रूरत है, बोले तो बरोबर ,
पण अपुन को मोफ़त के फ़ैसिलिटी में आज़ादी की ज़रूरत है, क्या ।
बेलागिंग में एक दूसरे को गाली देने नहीं सका, तो मज़हब का क्या होयेंगा, बाप ?

चिन्ता ज़ायज़ है, पर इन्हें महत्व देकर स्थिति और चिन्ताजनक न बनायी जाये, यह फ़रियाद है ।
हमने धैर्यपूर्वक आपकी कविता, जो कि बाई चाँस अच्छी है, पढ़ी, अब आप मेरी भी पढ़ो और पढ़वाओ ।

" ज़हर मिलाते हो नफ़रत का, मन की मीठी नदियों में
नादानों इतना सोचो, इस गँग-ओ-चमन का क्या होगा
राम, कृष्ण, मुहम्मद,ईसा और नानक किसके दुश्मन थे
सारी दुनिया है चमन जिनसे, उनके चमन का क्या होगा"

Anil Pusadkar ने कहा…

बस वही नही मिल रहा है कंही,
जिसकी आज सख्त ज़रूरत है।

निर्मला कपिला ने कहा…

कविता की परिभाशा को भाशा को खूब निभाया है वो भी कविता मे सुबीर जी ने सही कहा है बधाई

Nirbhay Jain ने कहा…

कहते है ढूढने से भगवान भी मिल जाते है, पर इंसान ढूढने से भी नही मिलते है, वो किस्मत की बात है एक दो टकरा जाए,
क्योकि इस रंग बदलती दुनिया में
इंसान की हालत ठीक नही


बहुत ही अच्छी रचना है
बधाई

हिटलर ने कहा…

समीर जी,
यदि आप दुखी हैं इस उन्मादी भचान से, तो हम भी कम नहीं हैं, लेकिन जब कोई चुप्पी को कमजोरी समझने लगे या खामखा घर के सामने आकर कूड़ा फ़ेंक जाये तब माकूल जवाब देना ही पड़ता है।
दिक्कत यह है कि जैसा कि आम तौर पर होता है, कि अपनी "इमेज" को लेकर सतर्क रहने वाले अधिकतर ब्लागर ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर कन्नी काट लेते हैं…। यदि कम्प्यूटर में वायरस है तो उससे मुकाबला तो करना ही होगा, "शट-डाउन" करके बैठने से क्या होगा… :) समझदार हैं इसीलिये तो इशारों में बात कर रहे हैं… दुखी तो हम भी हैं, लेकिन अपने दुख को आक्रोश और अंगारों के जरिये व्यक्त कर देते हैं बस…

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
बहुत बढिया. इन लाइनों को पता नही कितनी बार पढ चुकी हूं.....बहुत सुन्दर.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

कविता के लिए आपने इतना कुछ कह दिया अब मेरे पास कहने को कुछ बचा ही नहीं....लाजवाब कविता...
नीरज

Himanshu Pandey ने कहा…

कविता में इतनी प्रभावान्विति है कि पूछिये मत । गद्य से कमतर नहीं रहतीं कवितायें ! आभार ।

Rajeysha ने कहा…

समीर जी, कवि‍ता हमारी प्रेमि‍का का नाम भी है

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

"बस, इस पर इतना ही. बाकी तो मौन साधा हुआ है."

सही है, मौन में बहुत शक्ति होती है अभिव्यक्ति की:)

कविता की व्याख्या बहुत बढिया रही- बधाई स्वीकारें॥

अजय कुमार ने कहा…

लाजवाब कविता और सुन्दर सोच

शरद कोकास ने कहा…

आपकी ही नही यह हम सभी की चिंता है और इसे व्यक्त किया ही जाना चाहिये । कविता वे सारे काम कर सकती है जिन्हे आपने अपनी इस कविता मे कविता का सार्थक होना माना है । साहित्य यही काम कर रहा है , विध्वंस्कारी तत्व भी अपना काम कर रहे है और यह द्वन्द्व चल रहा है । इसमे जीत किसकी होती है यह देखना है । उम्मीद है कि हम सभी मिलकर एक बेहतर इंसान रचने की कोशिश मे कामयाब होंगे ।

अजय कुमार झा ने कहा…

अच्छा जी कविता क्या है ये तो बता दिया सबको आपने..और क्या खूब बताया...मगर ये नहीं बताया कि कविता कौन है.....? कहिये खोलें आपकी पोल..वो होस्टल के पीछे ..उसके पप्पा की कोठी...वो विल्सकार्ड फ़ेंक फ़ेंक कर आप उसे पढवाया करते थे...देखा हमने पकड लिया न समीर भाई..

हां ये मजहब की मारकाट की जो बात है न ..तो मेरा अनुभव ये कह रहा है कि ..इन पर जितना ज्यादा तवज्जो देंगे..उनकी मंशा उतनी ही सफ़ल होगी...

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

इन मुद्दों को उछालने वाले वे ही लोग हैं जिन्हें इंसानी जिन्दगी से कुछ लेना देना नहीं है।

@निशांत मिश्र - Nishant Mishra
और आप ने यह क्या कह डाला? सरे आम टिप्पणी में। हमने तो यह नेक सलाह व्यक्तिगत मेल से दी थी। सनम को रक़ीबों ने ऐसा बरगलाया कि धमकी समझ बैठा। अभी तक रुसवा है।

अनूप शुक्ल ने कहा…

मौन बार-बार लीक हो रहा है। सध नहीं रहा है धांस के। एम सील बढ़िया वाला लगाइये भाई। चार तारीख वाले कार्यक्रम की बधाई। कविता के बारे में हम कुछ नहीं कहेंगे।

Arun Arora ने कहा…

kaha aa ke rukane the raaste , kaha mod tha use bhul ja.
jo mil gaya use yad rakh,
jo chala gaya use bhul ja

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

आज कल जो हालात हुए हैं, मजहब के नाम पर जो दंगल मचा है, उसे देख कुछ कहने को मन है:

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..


bahut achchi lagin yeh line.........

kai baar padha hoon isko....


मजहब के नाम पर जो दंगल macha hai....... main khud bahut pareshan hoon....... mujhe bhi is dhaarmik unmaad se bahut chinta lagi hai.........

na main musalmaan banoonga na hindu,

koi pehle mujhe insaan to bana de.......

रंजना ने कहा…

सारगर्भित सुन्दर सटीक विवेचना प्रस्तुत की आपने कविता के माध्यम से कविता पर.....

कविता के नीवं के सारे इंटों को बड़ी ही सुघरता से दिखा उर गंवा दिया आपने....इससे सुन्दर ढंग से और क्या हो सकती है इसकी परिभाषा...

उम्दा सोच ने कहा…

वाह समीर भाई... सटीक कहा आप ने !


आज तो आतंकवाद से ग्रस्त माहौल लग रहा है हिन्दी ब्लाग की दुनियाँ का .....

मुझे नहीं मालूम कि एक धर्म दूसरे से कैसे अच्छा है ,
तो !
तुमको मालूम है जन्नत की हकीक़त , लेकिन
दिल के बहलाने को तुम्हारा ये ख्याल अच्छा है!

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

are wah sameer ji, aapne to bahut thode se shabdon men "kavita" par phd. kar li.

badhaai.

Abhishek Ojha ने कहा…

कविता पर कविता पसंद आई. और रिपोर्टिंग का इंतज़ार रहेगा.

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

अमावस में
लाती है सूर्योदय

वाह

शेफाली पाण्डे ने कहा…

कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता

ye tasveer kab badlegee???

मुनीश ( munish ) ने कहा…

very true indeed! U have my vote of confidence sir .

समय चक्र ने कहा…

कविता है,

शब्दों मे व्यक्त
भावों की अभिव्यक्ति
जीने की शक्ति
समाज की संरचना
मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार

बहुत सुन्दर भावपूर्ण . धर्म के नाम पर दंगल बहुत विचारणीय है समय आ गया है की इस मसले पर सभी को ब्लागिंग जगत के हित में विचार करना होगा . इन सबसे आपस में कटुता का निर्मित होगा .साथ ही पुस्तक के विमोचन की शुभकामनाये और बधाई . आभार .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

behad khoobsurat kavita .... badhaai

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

कविता है
एक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहराई
...
बिलकुल सही है ...

समीर जी आपका दर्द समझता हूँ ... क्या किया जाय रोज रोज ये लोगों को धोखा दे रहे हैं, मुर्ख बना रहे हैं, अपमान कर रहे है ... फिर भी हम चुप हैं ... कितनी देर तक चुप रहा जाए ?

एक नया सगुफा देखिये : "शंकराचार्य की अपील - कुरान बांटों और इस्लाम कबुल करो !!!"

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

समीर जी, बहुत सही बात कही है आपने-

"किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है."

शायद धर्म के नाम पर लड़ने वालों को कभी यह बात समझ में आए....

"कविता क्या है?" पर बहुत बढिया रचना लिखी है।बधाई स्वीकारें।

Vipin Behari Goyal ने कहा…

ऐसा लगता है किसी की नजर लग गयी है चिंता भी है पर कोई उपाय भी नहीं है

दिलीप कवठेकर ने कहा…

इंसान की ज़रूरत है...

आपके ४ ता. के कार्यक्रम की रिपोर्ताज़ की प्रतिक्षा में..

राज भाटिय़ा ने कहा…

समीर जी पता नही यह लोग क्या सिद्ध करना चाहते है, क्यो खाम्खां की बहस खडी करना चाहते है,दिल दुखी हो जाता है, अरे किसी ने भी नही देख उस ऊपर वाले को, सब मानते है उसे, उस तक जाने का रास्ता सब का अलग अलग है, ओर जिस ने उसे पा लिया.... उसे इस दुनिया से कोई लगाव नही रहा. उसे पाने के लिये पहले हमे इंसान बनाना पडेगा... मै तो सोच रहा हुं कुछ दिनो के लिये यहां से दुर रहे, क्योकि अच्छा नही लगता कोई खुदा को बुरा कहे या भगवान को बात तो एक ही है

ss ने कहा…

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना| सही कहा आपने|

मनोज भारती ने कहा…

कविता पर कविता रास आई
और फिर तेरी रचना याद आई

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
-समीर लाल

सचमुच इंसान को भगवान से अधिक इंसान की ज्यादा जरुरत है ।

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..

समीर भाई! आपकी उपर लिखी दो लाईनो मे मेरी भावना भी सलग्न करना चाहता हू.

हर ह्र्दय मे रावण भी है राम-रहीम भी है.
हर दिवस मे सुबह भी है,शाम भी है.
चुनाव करना तुम्हारे जिम्मे है मेरे मित्र-
हर हाथ मे प्रहार भी है प्रणाम भी है.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

कही पढी थी ये लाईन्स, याद आ गयी -

क्या क्या बनाने आये थे,
क्या क्या बना बैठे..

कही मन्दिर बना बैठे,
कही मस्जिद बना बैठे

हमसे अच्छी तो परिदो कि जात
कभी मन्दिर पर जा बैठे
कभी मस्जिद पर जा बैठे..

Chandan Kumar Jha ने कहा…

आपकी चिंता जायज है, नाहक हीं ब्लाग जगत में धर्म के नाम पर घमासान मचाया जा रहा है । बहुत ही दुःखद है यह । कविता की परिभाषा कविता के रूप में पढ़कर मुग्ध हूँ । आभार

संजय तिवारी ने कहा…

बहुत अच्छी लगी कविता की परिभाषा.

साधवी ने कहा…

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..


कितना सुन्दर संदेश दिया है. नमन.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

bahut hi sundar parichay racha hai kavita ka aapne, Bhavani Prasad Mishra ji ki kavita 'Geetfarrosh' shayad padhi hogi aapne, warna kabhi mauka mile to kavyanchal.com pe padhen....
apne blog(swarnimpal.blogspot.com) par asheervachan dene ke liye shukriya bol ke aapke maan ko kam nhin karoonga. Chhoti bau ko swargwashi hue aaj kareeb 16 varsh ho gaye hain. aapke samarthan me chand panktiyan.
'जिन्हें भरोसा नहीं खुद पे वो बदलते फिरें खुदा,
हम तो फिराक तेरे खुदा को दिल दे बैठे.
बड़े खुदा हों मुबारक बड़े लोगों को,
हम तो छोटे हैं, छोटे खुदा के संग जा बैठे.
कब कहा खुदा ने कि बाँट दो मुझको,
वो तो हम हैं जो खुद को ही बाँट के बैठे.'
दीपक 'मशाल'

Unknown ने कहा…

सच कहा

शानदार कविता........

बधाई !

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

'आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..'
sab kuch hamesha ki tarah zabardast rahi hai...
jo dwesh fail raha hai use rokna bahut zaroori hai nahi to baat bahut bigad sakti hai..

sweet_dream ने कहा…

क्या समीर जी आप भी ना आभार क्यों वयक्त करते हैं,आप तो आदेश दीजिये उम्र में ३ -४ साल ही छोटा हूँ आपसे हा हा हा हा हा .....वैसे मैं अभी ३० का ही हूँ .

बवाल ने कहा…

वाह वाह लाल साहब। बहुत आला दर्जे की बात कही। हम आपके साथ हैं। कविता बहुत ही सुन्दर कही।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सब सत्य वचन है. कविता और ब्लोगिंग में कुछ तो समानता है.
इंतज़ार रहेगा आगे का.

SACCHAI ने कहा…

" किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है.. " -समीर....

" behtarin ...sunder ..post ...tarif ki jaaye utani kam hai sir "

" badhai "

------ eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

दिगम्बर नासवा ने कहा…

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है....

पर इंसान मिले तब तो न ........

समीर भाई आपकी कविता की कहानी लाजवाब है ........

Smart Indian ने कहा…

कविता की परिभाषा बेजोड़ है, बधाई !

amlendu asthana ने कहा…

Wakai hamen Insan ki jarurat hai.
kahne ka andaaj nirala hai samirzee
shadhubad

प्रिया ने कहा…

waise to ham aage - peeche aapko padhte hi rahte hai.....but han sach mein hamhe aaj ye post na jane kyo bahut achchi lagi....halanki kavita par bahut kaviyon ne bahut kuch likha ....aur bahut achcha bhi likha ...par aapke kalam ne bhi kuch naya kiya hai

Urmi ने कहा…

आपने बड़े ही सुंदर रूप से कविता के माइने को बखूबी प्रस्तुत किया है जो बहुत ही अच्छा लगा!

सुशीला पुरी ने कहा…

समीर जी ! साहित्य सृजन समाज का ,समाज के लिय,समाज के द्बारा होता है.

Unknown ने कहा…

सटीक और सम्पूर्ण बात कह दी आपने...........

तथ्य की बात तो इतनी ही है बाकी शब्दजाल चाहे दस मीटर लंबा रच लो..............

आपको बधाई !

Renu Sharma ने कहा…

sameer ji , namaskar
bahut hi mast rachna hai
kavita bahut kuchh hai , us paar le jane ka sadhan bhi hai.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

bahut sundar. kamaal hai AAPKE SHABDON men.

शोभना चौरे ने कहा…

समीरजी
कविता कि कविता बहुत अच्छी लगी |
बहुत पहले मैंने लिखा था
आग लगने पर हाय करने से आग बुझती नही
गम में आह भरने से पीर मिटती नहीं
कुढ़ते हुए मन ने अलसाये हुए तन को कहा
कि हाथ पर हाथ धरने से बात बनती नही
और अलसाये तन ने उत्तर दिया
कि खुबसुरत शब्दों के जाल में हमे
न उल्झईये
हमें है ये खबर
कि कविता रच देने से भूख मिटती नही |

संगीता पुरी ने कहा…

कविता पर सुंदर कविता .. बधाई !!

Unknown ने कहा…

कविता है
मन के भाव
कड़ी धूप में
पेड़ की छांव
संजोये हुए अहसास
और गहरे अँधेरे में
चमकती हुई आस
wah sameer bhai wah
kya baat hai kavita ki ye jo peribhasa aapne di yeh naveen v kaviyon ke liye bhi samajne ka nayamarg hai ......badhai

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

‘कैसा जुनून छाया है, ये धर्म का
इंसानियत की जो पहचान ले गया’

कविता पर कही गई कई पंक्तियां अच्छी लगी...

SHUAIB ने कहा…

क्या फ़र्क पडता है अगर सब अपने आपको ख़ुदा समझे
मतलब एकदूसरे की इज़्ज़त करे

संजय भास्‍कर ने कहा…

मैने पहले भी बहुत कविता पढ़ी जो व्यक्त कर रहे थे की कविता क्या है परंतु आपने तो सभी को समेट लिया कविता किसी भी शब्द और विचार में प्रकट हो सकती है और कभी भी भावनाओं को व्यक्त कर सकती है.. बेहतरीन कविता में.....बहुत अच्छा लगा.....बधाई!!!



बहुत सुन्दर रचना । आभार

ढेर सारी शुभकामनायें.

SANJAY
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

पंकज ने कहा…

ये दंगल उन्हें सच साबित करते हैं जो कहते हैं कि धर्म अफीम है.

अपूर्व ने कहा…

किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..

सर जी शत-प्रतिशत २४ कैरेट का सत्य है आपके कथन मे..अगर बन्दे ही नही होंगे तो खुदा को खुदा कौन बनायेगा..
और कविता की हमारी समझ का फ़लक विस्तृत ही होता है आपकी कविता पढ़ कर

पुनीत ओमर ने कहा…

"मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार "
बहुत ही मार्किक विवेचन.. विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में शामिल करने योग्य..

बेनामी ने कहा…

What a coincidence! समीरजी ये कैसी अनुरूपता(coincidence)है!! आप माने या ना माने कल से मेरे जहन में ऐसी ही पंकतिया घूम रही थी आलस्य की वजह से मेरे भाव सबेरे के उजाले से वंचित मेरे चित्त में ही धरे रहगये. आपने बहुत ही सुन्दरता से अपनी अनुभूतियों को शब्दों में अभिव्यक्त किया है. आपको और आपके परिजनों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाये.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

कविता की एक सार्थक परिभाषा. बिलकुल शुद्ध कविता में.आज के समय के लिए ये कवितामयी प्रहार जरुरी है. हम तो दुखी हो कर पहले ही ग़ज़ल कह चुके हैं.

सीधे सरल शब्दों के लिए आपको पुनः बधाई!

Renu goel ने कहा…

सब कुछ तो कह दिया समीर जी कविता के बारे में ....इसके अलावा और साहित्यकार भी क्या कहते ....दिल से निकले हुए शब्द कागज़ पर आकर आपना रूप इख्तयार करते हैं ....ताकि हमारे अलावा और भी लोग हमारे भावों को जान सकें ...इससे पहले की ये शब्द दिल के अन्दर घुट कर रह जाएँ इन्हें एक शक्ल देना बहुत जरुरी होता है ....हमारी भावनाओं का फल है ये कविता .....फल मीठा भी हो सकता है और खट्टा भी

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपने इतना बढ़िया रचना लिखा है कि मेरे पास अल्फाज़ नहीं है कहने के लिए!

sanjay bhaskar
haryana
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Asha Joglekar ने कहा…

कविता है
संस्कृति की वाहक
भ्रांतियों की निवारक
और क्षुब्ध ह्रदय में
चेतना की कारक
कविता है
एक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहराई ।
बहुत ही सुंदर ।

रामकृष्ण गौतम ने कहा…

Isnaan par likhi hui do panktiyon ne shabdrahit kar diya!!