अब फुरसत हुए तो इत्मिनान से बैठकर सोचता हूँ.
आज कल जो हालात हुए हैं, मजहब के नाम पर जो दंगल मचा है, उसे देख कुछ कहने को मन है:
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
-समीर लाल ’समीर’
बस, इस पर इतना ही. बाकी तो मौन साधा हुआ है. सब समझदार हैं फिर भी न जाने क्यूँ?
अभी एक दो दिन पहले ही कहीं पढ़ता था कि कविता क्या है?
बहुत से बड़े बड़े धुरंधर कवियों से लेकर बुद्धिजीवी साहित्यकारों ने इस विषय पर अपनी अपनी विचारधारा कविता और दीगर माध्यमों से रखी है.
मैने भी कोशिश की कि अपनी तरफ से कविता पर भी कुछ कहें. सबने कहा है तो हम भी कहें. जो कहा वो आप भी पढ़िये. साहित्यकर तो हैं नहीं फिर भी कोशिश करने पर रोक तो है नहीं सो कर दी.. आप बताओ कि कैसी है?
कविता क्या है ?
कविता है,
शब्दों मे व्यक्त
भावों की अभिव्यक्ति
जीने की शक्ति
समाज की संरचना
मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार
कविता है
मन के भाव
कड़ी धूप में
पेड़ की छांव
संजोये हुए अहसास
और गहरे अँधेरे में
चमकती हुई आस
कविता है
संस्कृति की वाहक
भ्रांतियों की निवारक
और क्षुब्ध ह्रदय में
चेतना की कारक
कविता है
एक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहराई
कविता
मिटाती है संशय
बढ़ाती है
आदि से अंत का परिचय
जगाती है निश्चय
और
अमावस में
लाती है सूर्योदय
कविता है
पूर्ण सॄष्टि
लौकिक और
अलौकिक दृष्टि
इसका रचयिता कवि
कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता
-समीर लाल ’समीर’
नोट: ४ तारीख का कार्यक्रम बहुत बढ़िया से हो गया. जल्द ही रिपोर्ट देते हैं.
92 टिप्पणियां:
समीर जी मैंने अपने एक-दो कमेंट्स में यह चिंता ज़ाहिर की है की यदि कानून-व्यवस्था तक इन बातों की भनक लग गयी तो हिंदी ब्लॉगिंग के लिए खतरा पैदा हो सकता है लेकिन कोई समझ नहीं रहा है.
हमेशा की तरह आपकी कविता बेजोड़ है.
'आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..'
सही कहा है, यदि इंसान मय इंसानिय्रत मिल जाये तो खुदा या भगवान की जरूरत ही नही है.
साधुवाद कविता की तमाम सम्भावनाओ को कविता के माध्यम से व्यक्त करने के लिये. बखूबी समेटा है.
'कविता
मिटाती है संशय'
बस, इस पर इतना ही. बाकी तो मौन साधा हुआ है. सब समझदार हैं फिर भी न जाने क्यूँ?
गुरुदेव इस मुद्दे पर आपकी व्यथा समझी जा सकती है ! पता नहीं इन उन्मादी लोगो को कभी सद् बुद्धि आएगी की नहीं !
बहुत ही बढिया तरीके से आपने कविता को परिभाषित किया....तालियाँ
कविता हंसाती है..गुदगुदाती है..रुलाती है..कविता की कविता में सुन्दर और विस्तृत व्याख्या ..!!
समीर जी! आप नें सटीक शब्दों में कविता को परिभाषित किया। आनन्द आ गया। बधाई स्वीकार करें
कविता को ठीक प्रकार से परिभाषित किया है आपने । और कविता में ही किया है ये बड़ी बात है । 4 तारीख के कार्यक्रम के लिये अब अधिक इंतजार न करायें जल्द ही सचित्र झांकी का अवलोकन करवायें ।
कभी खुशी और कभी वेदना कभी सुमन का तीर।
कविता क्या है पढ़ लें इसको लिखा यहाँ समीर।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता
बहुत सही तरीके से अभिव्यक्त कर पाये हैं आप. बहुत शुभकामनाएं और ४ तारीख वाले कार्यक्रम के बारे मे जानने की प्रबल उत्कंठा है. हो सके तो विडियो जरुर लगायें.
रामराम.
समीर जी आज आपने भी इस मुद्दे पर लिख दिया मतलब कि वाकई मामला बहुत गंभीर हो चुका है। आपका इतना लिखने से ही सबको समझ जाना चाहिये। अगर घर के बुजुर्ग दुखी हैं मतलब मामला बहुत गंभीर है।
कविता की परिभाषा बेजोड़ है।
इंसानियत का धर्म...
बेशक मंदिर,मस्जिद ढाह दो,
बु्ल्ले शा ये कहता...
पर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो,
जिस दिल में ईश्वर रहता...
कविता...
मौत तू एक कविता ह,
इस कविता का मुझसे वादा है...
मिलेगी मुझसे इक दिन ज़रूर...
जय हिंद...
कविता
मिटाती है संशय
बढ़ाती है
आदि से अंत का परिचय
जगाती है निश्चय
और
अमावस में
लाती है सूर्योदय
कविता है
पूर्ण सॄष्टि
लौकिक और
अलौकिक दृष्टि
बेहद सुन्दर शब्द आलोकिक ज्ञान से भरे हुए.......
regards
Aap ki baat se mera bhi pura ittefaq hai
naturica par suniyeकविता -mix
अच्छा परिभाषित किया आपने कविता को मगर यह भी कभी ध्यान दिया की कविता आपको और आपके होने को भी परिभाषित करती रही है निरंतर और उसी ने मुझे आपके अंतस से जोड़ा !
कविता को परिभाषित करना कवि के लिए कुछ ऐसा ही है की चल बच्चे तूं क्या बूझें मोहि ...मैं बूझून्गी तोहि ..!
समीर जी क्या कहने आपके, आपने बड़ी सरलता से अपनी बात कह दी। मैं आपसे से बिल्कुल सहमत हूँ
कविता की सुन्दर परिभाषा रच दी है आपने ..चार तारिख को हुए प्रोग्राम की रिपोर्ट का इन्तजार है
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार
bahut sunder varnan kavita ka aur sahi aaj insaan ki jarurat jyada hai,ishwar sachhe aur achhe insan ke andar hamesha nivaas karte hai.
मैने पहले भी बहुत कविता पढ़ी जो व्यक्त कर रहे थे की कविता क्या है परंतु आपने तो सभी को समेट लिया कविता किसी भी शब्द और विचार में प्रकट हो सकती है और कभी भी भावनाओं को व्यक्त कर सकती है..कविता प्यार भी दर्शाती है और समय पड़ने पर कविता गुहार भी बन जाती है..आपने कविता के हर स्वरूप को दर्शाया वो भी एक बेहतरीन कविता में.....बहुत अच्छा लगा.....बधाई!!!
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
कविता पर एक बढिया कविता
कविता भावों का ब्लूप्रिण्ट है
मजहब वाली बात का सूत्र खोजना पडेगा
"किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है.."
आज की दुनिया में एक बार भगवान् मिल सकते है, पर इंसानों की भीड़ में इंसान का मिलना ही मुश्किल होता जा रहा है !
कविता क्या है?
हृदय से फूटे भावों को
शब्दों में तराशकर ढालना ही तो कविता है।
समीर भाई!
आप इस कला में सिद्धहस्त हैं।
बानगी तो मिल ही गई है-
"भावों की अभिव्यक्ति
जीने की शक्ति
समाज की संरचना
मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार कविता है"
हाँ यही तो कविता है।
कविता के बारे में समझ लिया है.
उन्मादी नहीं समझ सकते.
जहाँ जरूरत हो प्रतिकार करना चाहिए, वरना गुण्डो को लगता है वे ही सरकार है. समझ गए होंगे आप समझदार हैं.
Har yug me insaan roop me hee khada ya bhagwaan mila...jo apne andarhee basta hai...kitnee khoobsoorteese kaha aapne..
Ham mankee aankhen khol den to waheen pa lenge...
तुमकू इन्सान की ज़रूरत है, बोले तो बरोबर ,
पण अपुन को मोफ़त के फ़ैसिलिटी में आज़ादी की ज़रूरत है, क्या ।
बेलागिंग में एक दूसरे को गाली देने नहीं सका, तो मज़हब का क्या होयेंगा, बाप ?
चिन्ता ज़ायज़ है, पर इन्हें महत्व देकर स्थिति और चिन्ताजनक न बनायी जाये, यह फ़रियाद है ।
हमने धैर्यपूर्वक आपकी कविता, जो कि बाई चाँस अच्छी है, पढ़ी, अब आप मेरी भी पढ़ो और पढ़वाओ ।
" ज़हर मिलाते हो नफ़रत का, मन की मीठी नदियों में
नादानों इतना सोचो, इस गँग-ओ-चमन का क्या होगा
राम, कृष्ण, मुहम्मद,ईसा और नानक किसके दुश्मन थे
सारी दुनिया है चमन जिनसे, उनके चमन का क्या होगा"
बस वही नही मिल रहा है कंही,
जिसकी आज सख्त ज़रूरत है।
कविता की परिभाशा को भाशा को खूब निभाया है वो भी कविता मे सुबीर जी ने सही कहा है बधाई
कहते है ढूढने से भगवान भी मिल जाते है, पर इंसान ढूढने से भी नही मिलते है, वो किस्मत की बात है एक दो टकरा जाए,
क्योकि इस रंग बदलती दुनिया में
इंसान की हालत ठीक नही
बहुत ही अच्छी रचना है
बधाई
समीर जी,
यदि आप दुखी हैं इस उन्मादी भचान से, तो हम भी कम नहीं हैं, लेकिन जब कोई चुप्पी को कमजोरी समझने लगे या खामखा घर के सामने आकर कूड़ा फ़ेंक जाये तब माकूल जवाब देना ही पड़ता है।
दिक्कत यह है कि जैसा कि आम तौर पर होता है, कि अपनी "इमेज" को लेकर सतर्क रहने वाले अधिकतर ब्लागर ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर कन्नी काट लेते हैं…। यदि कम्प्यूटर में वायरस है तो उससे मुकाबला तो करना ही होगा, "शट-डाउन" करके बैठने से क्या होगा… :) समझदार हैं इसीलिये तो इशारों में बात कर रहे हैं… दुखी तो हम भी हैं, लेकिन अपने दुख को आक्रोश और अंगारों के जरिये व्यक्त कर देते हैं बस…
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
बहुत बढिया. इन लाइनों को पता नही कितनी बार पढ चुकी हूं.....बहुत सुन्दर.
कविता के लिए आपने इतना कुछ कह दिया अब मेरे पास कहने को कुछ बचा ही नहीं....लाजवाब कविता...
नीरज
कविता में इतनी प्रभावान्विति है कि पूछिये मत । गद्य से कमतर नहीं रहतीं कवितायें ! आभार ।
समीर जी, कविता हमारी प्रेमिका का नाम भी है
"बस, इस पर इतना ही. बाकी तो मौन साधा हुआ है."
सही है, मौन में बहुत शक्ति होती है अभिव्यक्ति की:)
कविता की व्याख्या बहुत बढिया रही- बधाई स्वीकारें॥
लाजवाब कविता और सुन्दर सोच
आपकी ही नही यह हम सभी की चिंता है और इसे व्यक्त किया ही जाना चाहिये । कविता वे सारे काम कर सकती है जिन्हे आपने अपनी इस कविता मे कविता का सार्थक होना माना है । साहित्य यही काम कर रहा है , विध्वंस्कारी तत्व भी अपना काम कर रहे है और यह द्वन्द्व चल रहा है । इसमे जीत किसकी होती है यह देखना है । उम्मीद है कि हम सभी मिलकर एक बेहतर इंसान रचने की कोशिश मे कामयाब होंगे ।
अच्छा जी कविता क्या है ये तो बता दिया सबको आपने..और क्या खूब बताया...मगर ये नहीं बताया कि कविता कौन है.....? कहिये खोलें आपकी पोल..वो होस्टल के पीछे ..उसके पप्पा की कोठी...वो विल्सकार्ड फ़ेंक फ़ेंक कर आप उसे पढवाया करते थे...देखा हमने पकड लिया न समीर भाई..
हां ये मजहब की मारकाट की जो बात है न ..तो मेरा अनुभव ये कह रहा है कि ..इन पर जितना ज्यादा तवज्जो देंगे..उनकी मंशा उतनी ही सफ़ल होगी...
इन मुद्दों को उछालने वाले वे ही लोग हैं जिन्हें इंसानी जिन्दगी से कुछ लेना देना नहीं है।
@निशांत मिश्र - Nishant Mishra
और आप ने यह क्या कह डाला? सरे आम टिप्पणी में। हमने तो यह नेक सलाह व्यक्तिगत मेल से दी थी। सनम को रक़ीबों ने ऐसा बरगलाया कि धमकी समझ बैठा। अभी तक रुसवा है।
मौन बार-बार लीक हो रहा है। सध नहीं रहा है धांस के। एम सील बढ़िया वाला लगाइये भाई। चार तारीख वाले कार्यक्रम की बधाई। कविता के बारे में हम कुछ नहीं कहेंगे।
kaha aa ke rukane the raaste , kaha mod tha use bhul ja.
jo mil gaya use yad rakh,
jo chala gaya use bhul ja
आज कल जो हालात हुए हैं, मजहब के नाम पर जो दंगल मचा है, उसे देख कुछ कहने को मन है:
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
bahut achchi lagin yeh line.........
kai baar padha hoon isko....
मजहब के नाम पर जो दंगल macha hai....... main khud bahut pareshan hoon....... mujhe bhi is dhaarmik unmaad se bahut chinta lagi hai.........
na main musalmaan banoonga na hindu,
koi pehle mujhe insaan to bana de.......
सारगर्भित सुन्दर सटीक विवेचना प्रस्तुत की आपने कविता के माध्यम से कविता पर.....
कविता के नीवं के सारे इंटों को बड़ी ही सुघरता से दिखा उर गंवा दिया आपने....इससे सुन्दर ढंग से और क्या हो सकती है इसकी परिभाषा...
वाह समीर भाई... सटीक कहा आप ने !
आज तो आतंकवाद से ग्रस्त माहौल लग रहा है हिन्दी ब्लाग की दुनियाँ का .....
मुझे नहीं मालूम कि एक धर्म दूसरे से कैसे अच्छा है ,
तो !
तुमको मालूम है जन्नत की हकीक़त , लेकिन
दिल के बहलाने को तुम्हारा ये ख्याल अच्छा है!
are wah sameer ji, aapne to bahut thode se shabdon men "kavita" par phd. kar li.
badhaai.
कविता पर कविता पसंद आई. और रिपोर्टिंग का इंतज़ार रहेगा.
अमावस में
लाती है सूर्योदय
वाह
कभी हँसाता
कभी गुदगुदाता
तो
कभी रुलाता
सूरज की सीमा
के पार ले जाता
फिर भी
अक्सर
भूखा ही सो जाता
ye tasveer kab badlegee???
very true indeed! U have my vote of confidence sir .
कविता है,
शब्दों मे व्यक्त
भावों की अभिव्यक्ति
जीने की शक्ति
समाज की संरचना
मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार
बहुत सुन्दर भावपूर्ण . धर्म के नाम पर दंगल बहुत विचारणीय है समय आ गया है की इस मसले पर सभी को ब्लागिंग जगत के हित में विचार करना होगा . इन सबसे आपस में कटुता का निर्मित होगा .साथ ही पुस्तक के विमोचन की शुभकामनाये और बधाई . आभार .
behad khoobsurat kavita .... badhaai
कविता है
एक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहराई
...
बिलकुल सही है ...
समीर जी आपका दर्द समझता हूँ ... क्या किया जाय रोज रोज ये लोगों को धोखा दे रहे हैं, मुर्ख बना रहे हैं, अपमान कर रहे है ... फिर भी हम चुप हैं ... कितनी देर तक चुप रहा जाए ?
एक नया सगुफा देखिये : "शंकराचार्य की अपील - कुरान बांटों और इस्लाम कबुल करो !!!"
समीर जी, बहुत सही बात कही है आपने-
"किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है."
शायद धर्म के नाम पर लड़ने वालों को कभी यह बात समझ में आए....
"कविता क्या है?" पर बहुत बढिया रचना लिखी है।बधाई स्वीकारें।
ऐसा लगता है किसी की नजर लग गयी है चिंता भी है पर कोई उपाय भी नहीं है
इंसान की ज़रूरत है...
आपके ४ ता. के कार्यक्रम की रिपोर्ताज़ की प्रतिक्षा में..
समीर जी पता नही यह लोग क्या सिद्ध करना चाहते है, क्यो खाम्खां की बहस खडी करना चाहते है,दिल दुखी हो जाता है, अरे किसी ने भी नही देख उस ऊपर वाले को, सब मानते है उसे, उस तक जाने का रास्ता सब का अलग अलग है, ओर जिस ने उसे पा लिया.... उसे इस दुनिया से कोई लगाव नही रहा. उसे पाने के लिये पहले हमे इंसान बनाना पडेगा... मै तो सोच रहा हुं कुछ दिनो के लिये यहां से दुर रहे, क्योकि अच्छा नही लगता कोई खुदा को बुरा कहे या भगवान को बात तो एक ही है
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना| सही कहा आपने|
कविता पर कविता रास आई
और फिर तेरी रचना याद आई
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
-समीर लाल
सचमुच इंसान को भगवान से अधिक इंसान की ज्यादा जरुरत है ।
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
समीर भाई! आपकी उपर लिखी दो लाईनो मे मेरी भावना भी सलग्न करना चाहता हू.
हर ह्र्दय मे रावण भी है राम-रहीम भी है.
हर दिवस मे सुबह भी है,शाम भी है.
चुनाव करना तुम्हारे जिम्मे है मेरे मित्र-
हर हाथ मे प्रहार भी है प्रणाम भी है.
कही पढी थी ये लाईन्स, याद आ गयी -
क्या क्या बनाने आये थे,
क्या क्या बना बैठे..
कही मन्दिर बना बैठे,
कही मस्जिद बना बैठे
हमसे अच्छी तो परिदो कि जात
कभी मन्दिर पर जा बैठे
कभी मस्जिद पर जा बैठे..
आपकी चिंता जायज है, नाहक हीं ब्लाग जगत में धर्म के नाम पर घमासान मचाया जा रहा है । बहुत ही दुःखद है यह । कविता की परिभाषा कविता के रूप में पढ़कर मुग्ध हूँ । आभार
बहुत अच्छी लगी कविता की परिभाषा.
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
कितना सुन्दर संदेश दिया है. नमन.
bahut hi sundar parichay racha hai kavita ka aapne, Bhavani Prasad Mishra ji ki kavita 'Geetfarrosh' shayad padhi hogi aapne, warna kabhi mauka mile to kavyanchal.com pe padhen....
apne blog(swarnimpal.blogspot.com) par asheervachan dene ke liye shukriya bol ke aapke maan ko kam nhin karoonga. Chhoti bau ko swargwashi hue aaj kareeb 16 varsh ho gaye hain. aapke samarthan me chand panktiyan.
'जिन्हें भरोसा नहीं खुद पे वो बदलते फिरें खुदा,
हम तो फिराक तेरे खुदा को दिल दे बैठे.
बड़े खुदा हों मुबारक बड़े लोगों को,
हम तो छोटे हैं, छोटे खुदा के संग जा बैठे.
कब कहा खुदा ने कि बाँट दो मुझको,
वो तो हम हैं जो खुद को ही बाँट के बैठे.'
दीपक 'मशाल'
सच कहा
शानदार कविता........
बधाई !
'आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..'
sab kuch hamesha ki tarah zabardast rahi hai...
jo dwesh fail raha hai use rokna bahut zaroori hai nahi to baat bahut bigad sakti hai..
क्या समीर जी आप भी ना आभार क्यों वयक्त करते हैं,आप तो आदेश दीजिये उम्र में ३ -४ साल ही छोटा हूँ आपसे हा हा हा हा हा .....वैसे मैं अभी ३० का ही हूँ .
वाह वाह लाल साहब। बहुत आला दर्जे की बात कही। हम आपके साथ हैं। कविता बहुत ही सुन्दर कही।
सब सत्य वचन है. कविता और ब्लोगिंग में कुछ तो समानता है.
इंतज़ार रहेगा आगे का.
" किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है.. " -समीर....
" behtarin ...sunder ..post ...tarif ki jaaye utani kam hai sir "
" badhai "
------ eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है....
पर इंसान मिले तब तो न ........
समीर भाई आपकी कविता की कहानी लाजवाब है ........
कविता की परिभाषा बेजोड़ है, बधाई !
Wakai hamen Insan ki jarurat hai.
kahne ka andaaj nirala hai samirzee
shadhubad
waise to ham aage - peeche aapko padhte hi rahte hai.....but han sach mein hamhe aaj ye post na jane kyo bahut achchi lagi....halanki kavita par bahut kaviyon ne bahut kuch likha ....aur bahut achcha bhi likha ...par aapke kalam ne bhi kuch naya kiya hai
आपने बड़े ही सुंदर रूप से कविता के माइने को बखूबी प्रस्तुत किया है जो बहुत ही अच्छा लगा!
समीर जी ! साहित्य सृजन समाज का ,समाज के लिय,समाज के द्बारा होता है.
सटीक और सम्पूर्ण बात कह दी आपने...........
तथ्य की बात तो इतनी ही है बाकी शब्दजाल चाहे दस मीटर लंबा रच लो..............
आपको बधाई !
sameer ji , namaskar
bahut hi mast rachna hai
kavita bahut kuchh hai , us paar le jane ka sadhan bhi hai.
bahut sundar. kamaal hai AAPKE SHABDON men.
समीरजी
कविता कि कविता बहुत अच्छी लगी |
बहुत पहले मैंने लिखा था
आग लगने पर हाय करने से आग बुझती नही
गम में आह भरने से पीर मिटती नहीं
कुढ़ते हुए मन ने अलसाये हुए तन को कहा
कि हाथ पर हाथ धरने से बात बनती नही
और अलसाये तन ने उत्तर दिया
कि खुबसुरत शब्दों के जाल में हमे
न उल्झईये
हमें है ये खबर
कि कविता रच देने से भूख मिटती नही |
कविता पर सुंदर कविता .. बधाई !!
कविता है
मन के भाव
कड़ी धूप में
पेड़ की छांव
संजोये हुए अहसास
और गहरे अँधेरे में
चमकती हुई आस
wah sameer bhai wah
kya baat hai kavita ki ye jo peribhasa aapne di yeh naveen v kaviyon ke liye bhi samajne ka nayamarg hai ......badhai
‘कैसा जुनून छाया है, ये धर्म का
इंसानियत की जो पहचान ले गया’
कविता पर कही गई कई पंक्तियां अच्छी लगी...
क्या फ़र्क पडता है अगर सब अपने आपको ख़ुदा समझे
मतलब एकदूसरे की इज़्ज़त करे
मैने पहले भी बहुत कविता पढ़ी जो व्यक्त कर रहे थे की कविता क्या है परंतु आपने तो सभी को समेट लिया कविता किसी भी शब्द और विचार में प्रकट हो सकती है और कभी भी भावनाओं को व्यक्त कर सकती है.. बेहतरीन कविता में.....बहुत अच्छा लगा.....बधाई!!!
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
ये दंगल उन्हें सच साबित करते हैं जो कहते हैं कि धर्म अफीम है.
किसको खुदा औ’ भगवान की जरुरत है,
आज हमको यहाँ, इंसान की जरुरत है..
सर जी शत-प्रतिशत २४ कैरेट का सत्य है आपके कथन मे..अगर बन्दे ही नही होंगे तो खुदा को खुदा कौन बनायेगा..
और कविता की हमारी समझ का फ़लक विस्तृत ही होता है आपकी कविता पढ़ कर
"मानवियता की रचना
ईश्वर की अर्चना
कुरितियों पर वार
आशा का संचार "
बहुत ही मार्किक विवेचन.. विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में शामिल करने योग्य..
What a coincidence! समीरजी ये कैसी अनुरूपता(coincidence)है!! आप माने या ना माने कल से मेरे जहन में ऐसी ही पंकतिया घूम रही थी आलस्य की वजह से मेरे भाव सबेरे के उजाले से वंचित मेरे चित्त में ही धरे रहगये. आपने बहुत ही सुन्दरता से अपनी अनुभूतियों को शब्दों में अभिव्यक्त किया है. आपको और आपके परिजनों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाये.
कविता की एक सार्थक परिभाषा. बिलकुल शुद्ध कविता में.आज के समय के लिए ये कवितामयी प्रहार जरुरी है. हम तो दुखी हो कर पहले ही ग़ज़ल कह चुके हैं.
सीधे सरल शब्दों के लिए आपको पुनः बधाई!
सब कुछ तो कह दिया समीर जी कविता के बारे में ....इसके अलावा और साहित्यकार भी क्या कहते ....दिल से निकले हुए शब्द कागज़ पर आकर आपना रूप इख्तयार करते हैं ....ताकि हमारे अलावा और भी लोग हमारे भावों को जान सकें ...इससे पहले की ये शब्द दिल के अन्दर घुट कर रह जाएँ इन्हें एक शक्ल देना बहुत जरुरी होता है ....हमारी भावनाओं का फल है ये कविता .....फल मीठा भी हो सकता है और खट्टा भी
आपने इतना बढ़िया रचना लिखा है कि मेरे पास अल्फाज़ नहीं है कहने के लिए!
sanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
कविता है
संस्कृति की वाहक
भ्रांतियों की निवारक
और क्षुब्ध ह्रदय में
चेतना की कारक
कविता है
एक समर्पण
दिल का सच्चा दर्पण
निस्सीम ऊँचाई
अंतहीन गहराई ।
बहुत ही सुंदर ।
Isnaan par likhi hui do panktiyon ne shabdrahit kar diya!!
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