यह मुहावरा हमारे कालेज के दिनों में हमारे मोहल्ले से ही हमारी कोख से जन्मा था. आसिफ, हमारे बाल सखा और रजिया उनके पड़ोस में रहने वाली सुन्दर कन्या. यूँ तो आसिफ का पड़ोसी होने के कारण उनके घर आना जाना था मगर उनके मन में उपजे रजिया के प्रति प्रेम को वो मात्र हम दोस्तों के बीच ही बखान कर पाते थे. रजिया को छूना तो दूर, कभी सीधे नजर मिला कर बात भी न कर पाते, मन में चोर जो था. मगर अरमान ऐसे कि रजिया के नाम पर किसी से भी लड़ जायें. रजिया रोजा रखे, दुबले ये हों टाईप.
एक रोज रजिया के अब्बू गुजर गये. वो क्या गुजरे मानो आसिफ की लाटरी ही लग गई. खूब गले लगा लगा कर चुप कराया रजिया को. जितनी बार उसकी सिसकी फूटे वो आसिफ का कँधा सेवा में हाजिर पाये. आँसू पोछे गये, बालों को सहला कर ढाढस बंधाया गया गोया कि जितना संभव था, उससे भी ज्यादा आसिफ मियाँ ने मौके का फायदा उठाया. वहाँ साथ में रोयें और दोस्तों के बीच आँख दबा दबा कर हंसते हुए किस्से सुनाये. हालात ये हो गये कि दिन गुजरने के साथ उनके परिवार का मय रजिया के रोना बंद हो गया तो भी आसिफ मियाँ उनके घर जाकर अब्बू का किस्सा छेड याद में स्वयं रोने लगें. रजिया और उसकी अम्मा को भी मजबूरी में रोना पड़े और फिर आसिफ मियाँ को चुप कराने का मौका मिले.
कुल कथा का सार कि जब लोगों को मौका मिलता है, वो अपने मन की कर ही लेते हैं.
दो दिन पहले हमने पोस्ट लिखी कि हम थके हैं, दुखी हैं और कुछ पढ़कर अपने लेखन में कुछ सु्धार लाने के आकांक्षी. बस, मानो कि मौका हाथ लगा लोगों के. बहुतो ने क्या अधिकतर ने तो वाकई बहुत दुख जताया, मान मनोहार किया. सो तो खैर रजिया के यहाँ भी बहुतों नें किया था वाकई दुख व्यक्त.
मगर कुछ ऐसे दुख व्यक्त किये कि समझ ही नहीं आया कि मना रहे हैं, समझा रहे हैं, कविता लिख रहे हैं, धमका रहे हैं, डांट रहे हैं कि लतिया रहे हैं. कुछ की टोन तो ऐसी भी रही कि ठीक है, ठीक है-रो गा के जल्दी फुरसत हो लो. हम आते हैं अभी तुम्हारे लिए ड्रिक बनाकर (वो भी हमारी पसंदीदा-स्क्रू ड्राइवर- ऐसा प्रलोभन कि ज्यादा देर रोना भी भारी लगने लगा).
मास्साब पंकज भाई भी मौका ताड़े और इतने दिनों से जज्ब दिल की बात कह गये कि हमारे यहाँ का सबसे होशियार (शरारत में) छात्र और उधर हमारी छोटी बहना विनिता मनाते हुए कह रही हैं कि बुरा मत मानना मगर आप सत्या फिल्म के कल्लू मामा के जैसे दिखते हो-लो, एक तो हम पहले ही बुरा माने बैठे हैं तो सोचा होगा कि मान भी जायें तो क्या-एक दिन और नहीं लिखेंगे. मुर्दे पे क्या नौ मन माटी और क्या दस मन माटी. इतना हक तो बनता ही है छोटी बहन का. सही है, तुम्हें तो हक हईये है.
प्रिय ई-गुरु राजीव ने एक ही बार में मनुहार, अपना ब्लॉग खोलने का एजेंडा, फ्यूचर प्लान, शिकायत कि आपने आज तक हमें टिप्पणी नहीं दी, धमकी, सौगंध सब एक ही टिप्पणी में: अपनी टिप्पणी का समापन कुछ इस हृदय स्पर्शी अंदाज में किया-आप एक भीषण योद्धा की तलवार ( लेखनी ) छीन रहे हैं और कुछ नहीं. अब जब तक आप की टिपण्णी के दर्शन मैं अपने ब्लॉग पर नहीं कर लूँगा, महादेव की सौगंध मैं एक शब्द भी नहीं लिखूंगा.
अलग सा भाई टिप्पणी किये और फिर उसे पोस्ट बना कर लाये-मनुहार जैसा कि बहुतों ने किया घुड़की के अंदाज में-आप ऐसा कैसा कर सकते हैं? यही तो स्नेह है.
बालक आदित्य यानि हमारा प्यारा सा बबुआ, उसने तो रुला ही दिया कि मैं आपको बहुत मिस करुँगा. वहीं बेजी ने ऐसा लताड़ा कि हमारी तो घिघ्घी ही बंध गई.
पुराने योद्धा निश्चिंत थे तो ज्यादा इन्टरेस्ट नहीं लिये. इस टंकी पर उतरते चढ़ते हमारे संग संग उन्होंने कईयों को देखा है. इसे फैशन में लाने का और बाद में अपने नाम कॉपी राइट करा ले जाने का सेहरा अनुज सागर चन्द्र नहार के सर है.
एक जमाने में वो हर छठे छः मासे टंकी पर चढ़ा करते थे. फिर हम सब चिट्ठाकार फुरसतिया जी समेत जाकर उनकी मान मनुव्वल करके उतारा करते थे. बाद में तो उनका ऐसा रियाज बना कि जब तब दौड़ कर टंकी पर चढ़ जाते और जब कोई न भी मनाता तो भी खुद ही उतर आते कि मैं जानता हूँ, आप लोग आने ही वाले थे. कुछ ऐसे ही रास्तों पर महाशक्ति ने भी अपने जोहर दिखाये थे. फिर धीरे धीरे यह टंकी चढन कार्यक्रम फैशन से जाता रहा और आज हमारा कृत्य पुराने दिनों को याद बस करा गया.
अभ्यस्त फुरसतिया जी अमिताभ स्टाईल बैठे चाय पीते रहे, कहे बबुआ का मनोना चल रहा है, परसों चिट्ठाचर्चा करेंगे, वो बिल्कुल निश्चिंत थे कि परसों तक तो हम टंकी से उतर ही आयेंगे वरना वो लेपटॉप टंकी पर भिजवा देते कि पहले चिट्ठाचर्चा लिख लो फिर जो मन आये सो करो, गुरुदेव राकेश खंडेलवाल भी पुराने हैं, कहे कि मुझे पता है लौट कर फिर आओगे, तो पंकज बैंगाणी ’नो कमेन्ट’ कह कर अकर्मण्यता की पूर्व स्थिति को प्राप्त भये. सब अनुभव के सीखे हैं.
नवांगतुक वीनस केसरी बेचारे भागते रहे हमारे और मास्साब पंकज सुबीर जी के चिट्ठे के बीच, टिप्पणियां गिनते और कहते कि अब तक नहीं माने. सोच रहे होंगे कि कितना बड़ा पेट है., आखिर कब भरेगा.
किसी ने वीर कहा तो किसी ने हाथी- हाथी अपनी मस्त चाल चलता है, भले ही... कितना भी भौंके. अतः आप चलते रहें. सेकेंड हाफ से हमारा साबका नहीं किन्तु पहला हिस्सा तो हमारे लिये ही कहा है न!!
पंगेबाज ईमेल के जरिये सारी दुनिया से पंगा लेने तैयार खड़े नजर आये और कहने लगे, बस दुख का कारण बता दो बाकि हम देख लेंगे. बहुत स्नेही जीव हैं!!! धार्मिक तो खैर हैं ही!!
एक दो तो इतने भावुक हो उठे लिखते लिखते ऐसा लिख गये कि हमें लगा अपना ही शोक संदेश पढ़ रहा हूँ. घबरा सा गया मैं.
भाई अरविन्द मिश्रा तो ऐसा सटपिटियाये कि कहने लगे आगे से जितनी कविता सुनाओगे, बिना कुछ बोले सुना करुँगा, बस वापस आ जाओ. हमें लगा ये तो एक उपलब्धि ही कहलाई.
अनेकों ईमेल मिले, कोशिश की कि जितना बन पाये, जबाब दे दूँ, फिर भी कितने अब भी पेन्डिंग है. सभी का आभार.
वैसे दो एक ईमेल ऐसे भी रहे कि क्या कहें. कहते हैं अच्छा ही हुआ कि आप खुद ही हट गये वरना तो हटाने के क्रेन बुलवाना पड़ती. यह आभास आपकी फोटो देख कर हो रहा है.
इन सबके साथ आज जब मां भवानी ने फटकारा, पुचकारा, प्यार जताया तब तो कुछ सोचने को शेष रहा ही नहीं. मां भवानी, क्षमा करना, आपको दुखी किया बेवजह.
कल मेरे अनुज शिव मिश्र जी के ससुर साहब का निधन हो गया. ऐसी दुखद घड़ी में भी वो समय निकाल कर मनुहार करने आये ईमेल द्वारा, कैसे रुकता वापस आने से भाई.
ऐसा अपार स्नेह, ऐसा प्रेम, ऐसा मनुहार-आँख भर भर आती है, गला रुँध जाता है, शब्द अटक जाते हैं-क्या कहूँ.
सभी तो आये-सच कहूँ तो भले ही एक वाकया पृष्ट भूमि बन गया मगर वाकई एक दो दिन का आराम चाहता था, अनुराग भाई और अन्य मित्र समझ भी रहे थे, सो हो गया. किसी से भी कोई शिकायत नहीं, कोई गुस्सा नहीं. सभी तो अपने हैं.
ऐसा ही स्नेह बनाये रखिये. सफर पर पुनः हाजिर होता हूँ आप सबके साथ.
सभी का बहुत आभार.
बेहतरीन मुक्तक भी मिले मान मुन्नव्वल में:
रवि कान्त ने मास्साब की पोस्ट पर कहा:
उड़न तश्तरी के उड़ने का हुआ है क्या असर देखो
चरागें लेके ढूँढे हर गली औ हर शहर देखो
गजल की रूह व्याकुल है रदीफ़ो काफ़िया हैरां
गुरू मायूस बैठे हैं हुई है नम नजर देखो
मास्साब पंकज जी ने कहा:
हमें आवाज देकर के चले हो तुम कहां साहिब
चलो हम साथ चलते हैं चले हो तुम जहां साहिब
यहां तनहाई सूनापन अकेलापन बहुत होगा,
करेगा कौन मेहफिल को हमारी अब जवां साहिब.
राकेश खंडेलवाल जी मेरी पोस्ट पर :
जानता हू लौट कर वापिस पुन: आ जाओगे तुम
क्योंकि यह विश्वास मेरा है, तुम्हें लौटा सकेगा
चाह कर भी राम क्या पथ मोड़ पाये थे शिला से
है पठन संकल्प मेरा जो तुम्हें प्रेरित करेगा
छोड़ सकती लेखनी क्या उंगलियों का साथ बोलो
या जुदा परछाई होती है कभी अपने बदन से
शब्द चाहे बोलिये कुछ और जो चाहे लिखें भी
धार इक बहती रहेगी, नित तुम्हारी इस कलम से
---------------------------------------
एक और ग्रेंड केनियन की फोटो:
94 टिप्पणियां:
भला किया, मैं तो प्रतीक्षारत था
आहा ! आप आये बहार आई.ई.ई..!! ;-))
फिर कभी ऐसी बात ना कहना
" जाने की "...बस्स !
बहुत स्नेह के साथ,
-लावण्या
अरे आप तो पिरलय के पहले ही लौट आए।
आज उडन तश्तरी देख मुस्कान आ गई... बहुत खुशी हुई आपको देख कर..
:) आपकी तो हर अदा निराली है ..समीर जी ....तभी सबने इतना मनाया आपको .स्वागत है आपकी हड़ताल टूटने का :)
तो समीरजी टंकी पर से उतर ही आये, और बता भी रहे हैं...कौन कौन उतारने के लिये सीढी लेकर आया था और कौन कौन सीढी पर से उतरते वक्त उस सीढी को नीचे से डगमगा रहा था :)
आसिफ मियांओं के इस देश में रज़ियाओं को चिंता करने की ज़रूरत नहीं। वो गम और खुशी दोनों में हमसाथ हैं। आप आ गए तो आसिफ को आने से कौन रोक सकेगा। इसी तरह जा कर आते रहिए। आप रज़िया बनते रहिए हम आसिफ बनते
गुरदेव आज सुबह की सबसे शुभ ख़बर दी आपने !
और अब तो हमको विशवास हो गया की ईश्वर अभी
जिंदा है, मरा नही, और भक्तो की प्राथना सुना करता
है ! हम तो कल साक्षात आप की फोटो (फ्लिकर पर)
के सामने जाकर धमकी दे कर आये थे और उसी का फल है
की १२ घंटे में प्रार्थना स्वीकार हो गई ! ठीक है आगे के
लिए फार्मूला समझ आ गया ! क्राइसिस मेनेजमेंट की
पालिसी सफल हुई !
मुहब्बतों के सिलसिले संभाल के रखना
ये दोस्ती के हैं दिये संभाल के रखना
न जाने कब कहां पे हाथ छूट जाए ये
मिला है जो भी कुछ उसे संभाल के रखना
.
आनन्दम आनन्दम, इस उदार काया और विशाल मन ने सबका मान रखा । अपने पर और ज्ञानदत्त जी के ज़रिये भिजवायी हुई लेमनजूस पर पूरा भरोसा रहा हमको !
ई फ़ुरसतिया तो फ़ालतू आदमी हैं, तब से टंकी टंकी लगा रखी थी...
अच्छा भला अपनी बसंती को लिये घूम रहे हो.. टंकी पर चढ़ें आपके दुश्मन ! अमाँ कोई बतायेगा कि दोनों के हाथ में यह सफ़ेद पट्टा क्या बँधा है, कि समीर लाला ख़ुद ही बतायेंगे ?
आप आए बहार आयी ! कोई गीत सुनाएँ !
Aapke bina man kaise lagta? achha hua jaldi lout aaye.
चलो जान में जान आई . मुझे तो अपराधबोध टाइप का कुछ हो रहा था . नया हूँ ना समझ ही नहीं पाया ये नाटक . वापसी का धन्यवाद .बहुत स्वागत है आपका . आपने ठीक ही लिखा है . वाकई कुछ लोगों का तो ठगे से ठाडे वाला हाल होगा .
छोड़ सकती लेखनी क्या उंगलियों का साथ बोलो
या जुदा परछाई होती है कभी अपने बदन से
शब्द चाहे बोलिये कुछ और जो चाहे लिखें भी
धार इक बहती रहेगी, नित तुम्हारी इस कलम से
बहुत ख़ूब... अच्छा लगा पढ़कर...
dha_nywaad, dil ko chain milaa.
वाकई ! में आपने टंकी पर चढ़ कर हिला दिया ! मेरा यह पहला अनुभव था सो अगली बार परवाह नहीं करेंगे !
" रजिया का बाप ...." आपके सबसे सुंदर आलेखों में से एक ...
सुबह सुबह बहुत हंसी आयी ! धन्यवाद !
समझ ही नहीं आया कि मना रहे हैं, समझा रहे हैं, कविता लिख रहे हैं, धमका रहे हैं, डांट रहे हैं कि लतिया रहे हैं.
वाह वाह! अरे इसी को तो प्यार कहते हैं हिन्दी में!
टंकी पर हम भी चढ़े थे एक बार....टंकी मुझे देखकर हंसने लगी. बोली; "उसका चढ़ना सोहता है जिसमें कुछ 'वजन' है. तुम क्या सोचकर चढ़ गए?".....
उसकी बात सुनकर हम वही चित. चारों तरफ़ देखा, कोई दिखाई नहीं दिया. टंकी को धन्यवाद दिया और कूद गए ऊपर से ही.....:-)
अच्छा हुआ कि आप वापिस आ गये वरना मैं तो क्रेन भेजने वाली थी आपको उठा लाने के लिए. :-)) मेरी पोस्ट का बुरा मत मानिए. यु ही आपको छेड़ दिया था और आप तो सचमुच छिड गये लगता है. अब कभी जाने का नाम लिया तो आपको लेकर एक और सत्या बना देंगे. बहरहाल लौटने का फेसला अच्छा है...आपकी बहन...विनीता
लेख पढंकर हार्दिक प्रसन्नता और संतुष्टी। आपने इसे टंकी पर चढ़कर आत्महत्या का ड्रामा बताया पर सोचिए कई बसंती आपसे पिस्तौल चलाना सिखना चाहती है। पर अब कहना पड़ेगा-आप शहर से हो पर आदमी अच्छे लगते हो।
वाह, यह वैसी हेडिन्ग है - "पण्डित के मन्गली से काम; बर मरे या कन्या!"
बाकी, यह टंकी है बड़े काम की चीज। आप तो नीलाम कर दें। बोली खूब लगेगी। चढ़ने को बहुत से तैयार हैं! :-)
accha laga.. maja aaya..
next show kab hai :-)
आप आए बहार आए. कृपया दिवेदी जी की टीप पर गौर फरमाए.
आपकी पोस्ट सुखद लगी... ......आभार .
फिर से स्वागत है ब्लॉगजगत में.
वैसे भी सुबह का भूला शाम को लौट आए तो उसे गया हुआ नहीं मानते :)
समीर भाई,
नमस्कार
पढ़ा तो मोहल्ले की रजिया याद आ गई। उसका बाप तो नहीं मेरा लेकिन कंधा देने की नौबत कई बार आई और हम हर बार चूकते गए। एक दिन रजिया का भाई आया कार्ड देने रजिया की शादी का। बस वो दिन और अगला महीना हम दाढ़ी बढ़ाते गए। यार दोस्तों को जिनको मालूम था जबान पर ताला चढ़ाए रखे और घरवाले पूछते रहे कि भाई ये रूई जैसी दाढ़ी क्यों बढ़ा रखी है। न हम कुछ बोले न रजिया की शादी रुकी। कुछ दिन पहले वो बच्चों के साथ मामू से मिलवाया, उलाहने वाली नजरों से।
आपके मामले में भी ऐसा ही हुआ। अपने दो ब्लॉग में आपकी टिप्पणियां लेता रहा हूं। आपकी पोस्ट भी पढ़ी लेकिन कंधा देने से चूक गया (पुरानी आदत जो ठहरी), और आप तो लौट आए नन्ही (इतनी नन्ही भी नहीं है) पोस्ट के साथ।
खैर जो भी हो खुश आमदीद समीर भाई।
sameer ji, kabhi bhi jaane kii bat mat kijiyega...khuda aapko salamat rakhe, bas aise hi likhte rahiyega...pic bahut bahut sundar hai...sooooo cute..aap donon kii...
"most welcome sir, nice to see you here again sir, "
Regards
gazbi kar diya.itni jaldi maan gaye,aur lipat kar rone ka mauka bhi nahi diya.b
हा हा हा सही कहा द्रिवेदी जी ने "पिरलय के पहले ही लौट आए"हमें एक ठो कविता का भी अवसर नही दिया ....
[:)]....
अरेऽऽऽऽऽ
आप भी बड़ी जल्दी टंकी से उतर आये, हम तो एक ठौ पोस्ट लिखने की तैयारी कर रहे थे, खैर उसे सेव कर देते हैं किसी और के टंकी पर चढ़ने के समय काम आयेगी। :)
हाँ यह बात सही है कि टंकी पर चढ़ने का कॉपी राईट हमारा है, आगे से कोई भी भाई बहन टंकी पर चढ़ने से पहले इजाजत जरूर ले लें।
:)
Wlcome Back..
उड़न तश्तरी जी आप फिर बापिस हम ब्लोगर की प्रेरणा बनकर आ गए हैं , सुखद लगा . आपका बहुत बहुत सुक्रिया और आभार .
समीर जी
सदके आप के लेखनी के क्या खूबसूरत लफ्ज़ निकलते हैं इस से...किस कमाल के अंदाज़ से आपने ये पोस्ट लिखी है....तबियत खुश हो गयी...तभी ना हम कहते थे की आप मत जाईये...और जब आप ने हमारी दुहाई सुन ही ली है तो फ़िर कहना ही क्या...जय हो प्रभु....जय हो...
नीरज
समीर जी
सदके आप के लेखनी के क्या खूबसूरत लफ्ज़ निकलते हैं इस से...किस कमाल के अंदाज़ से आपने ये पोस्ट लिखी है....तबियत खुश हो गयी...तभी ना हम कहते थे की आप मत जाईये...और जब आप ने हमारी दुहाई सुन ही ली है तो फ़िर कहना ही क्या...जय हो प्रभु....जय हो...
नीरज
आप आ गए धन्यवाद, जान में जान आई, कि मेरा चिट्ठा-जगत जिन्दा रहेगा.
पर मैंने सुस्ताने का मूड बना लिया था, अब कुछ घंटे की झपकी के बाद जब जगा हूँ तो उठ खड़े होने और युद्धरत होने के सारे संकल्प याद कर डाले.
कुछ भी कहें पर पढ़ कर मजा आ गया
सच में बहुत खुशी है आप के लौट आने की. समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें. १०-२० टिपण्णी कर डालने का मन कर रहा है. या पागल हो के नाचूं क्या करुँ. :)
अब आप से मिलना-जुलना बना ही रहेगा. ( चिट्ठे द्वारा )
कोशिश करूंगा कि आप की बात याद रखूँ जो आप ने अपनी टिपण्णी में कही थी ( दूसरों को प्रोत्साहित करने के विषय में. )
अति व्यस्त रहूँगा, पर अधिक से अधिक टिप्पाने की कोशिश जरूर करूंगा
आशा है आप हम सबका हौसला ऐसे ही बढाते रहेंगे और अपनी प्यारी प्यारी पोस्ट हम सबको पढाते रहेंगे।
वापिस आने का शुक्रिया. आप कभी जाने की बात न करें. आप यहां की ज़रुरत हैं.
चलिए इसी बहाने मजेदार टिपण्णी और पोस्ट बन गए... क्रेन और कल्लू मामा वाली बात अब दिमाग से निकलेगी कैसे? :-)
aasif ne to vakai bahut maze kiye...
lekin aap yahi rahe... kahi n jaye.
धत.. हम को पहले पता होता आपको सागर भाई की बीमारी का इन्फेक्सन हुआ है तो कुछ न कहते बेकार में इतनी संवेदना जाया कर दी :-)
अजी रूठ कर अब कहाँ जाईयेगा.........
तो आप उड़न तश्तरी में ऐश करने निकले थे..
चलिए आप आये बहार वापस आ गई.. :)
खूंटा यहीं , इसी आभासी जगत में गड़ा रहे और पनारा यहीं गिरे . उड़नतश्तरी यूं ही बेलौस उड़ती रहे . अब और कहां जाएंगे . आदत-सी हो गई है .
सो महाराज यहीं डटे रहो . काहे बीच-बीच में जनता को झटका देते रहते हैं . और 'शॉक' कम हैं क्या जिंदगी में .
यानी हमें आपका प्यार और स्नेह मिलता रहेगा.
ख़ुशी की बात है. यूँ भी आपने परिवार से कहीं दूर जाया जा सकता है भला. और ये हिंदी चिटठा जगत आपका परिवार ही तो है
ह्म्म, चलिए वापस आने की बधाई तो ले ही लीजिए। :)
बाकी तो खैर आप ताड़ ही गए कि जिन लोगों ने ये टंकी चढ़ने का कार्यक्रम देखा है कई बार उनकी रुचि इसमें समाप्त हो चुकी है, उनको पता था कि आप कहीं नहीं जा रहे, ब्लॉगिंग की लाईलाज बीमारी से ग्रसित हैं जो कि अब पुरानी हो चुकी है, नई-२ हो तो ठीक भी हो सके लेकिन अब न हो सकती! ;)
वैसे जिन लोगों का पाला ऐसे टंकी चढ़ने वाले वाकयों से नहीं हुआ है उनको आप सही टेन्शन में ले आए, सभी बौखला गए कि ई का हुई गवा, ही ही ही! :)
फोटू चकाचक है, कुछ और भी ठेलिए। :)
Aap Ko aise kaise ruthne dege Sameer ji :-)... aap bhala rooth jayege to hamari permanent 1 tippadi ka kya hoga. :-)
New Post :
I don’t want to love you… but I do....
अरे मोटे आदमी कहीं जा भी नहीं सकते यार :)
गला कुछ रूँध सा गया था. आंसू तो सूख चले थे. अब थोडा पानी पी लूँ.
अरविंद जी की बात समझिए
आप आए बहार आई
मतलब समझ लीजिए
बहुत गहरे डूब के कह रहे हैं
आप आए टिप्पढियां लौटी
हमें लगा था कि हफ्ते भर नहीं माने तभी मनाएंगे... कई लोग दु:खी हो गए पर चलिए जब इतना आनंद देते हो उन्हें तो दु:खी करने के लिए कौन किराए पर लाओगे.. :))
अच्छा.. तो भाभी जी हाथ पकड़कर लौटा लायी हैं:) मैं तो उन्हें ही धन्यवाद दूंगा .. आप तो हमें मझधार में छोड़ चले थे :)
अजी हमे यकीन था जब दारू का नाश उतरे गा तो हमारे समीर जी जरुर आ जायेगे, क्यो कि यहां आना अपनी मर्जी से हे,ओर .... जाना भी अपनी मर्जी से हे.....
चलिये परसो का भुला आज वापिस आ गया इसे भुला नही कहते, धन्यवाद
अभी विदा का गीत लिखा भी नहीं, आ गये आप लौट कर
इससे ज्यादा क्या कुछ कोई नाइंसाफ़ी कर सकता है
वह जो गीत जन्म लेने से पहले ही बेमौत मर गया
बतलायें ! क्या उसकी खामी वापस आनअ कर पायेगा ?
:-)) इसी पोस्ट का इंतज़ार था...ऐसी मस्ती तो माथे पर हज़ार शिकन रखने वाले को भी मुस्काना सिखा दे...
शुक्रिया साहेब!
ही ही ही
मज़ा आ गया पोस्ट पढ़ कर कई जगह तो खुल कर भी हंसा
हा हा हा
कहना तो नही चाहता मगर कहे बिना रहा भी नही जाता की मै तो जानता था की आप लौट कर आओगे
क्या कहा कैसे पता था ?
अरे कोई पिछली पोस्ट का शीर्षक तो पढ़ लो
मुझे याद रखना-वापस आऊँगा, दोस्तों!!!
ही ही ही
खैर
आप आए बहार आई
वैसे आपने सही ही कहा है
चक्कर हमने बहुत काटे आपके द्वार के |
हर बार सोचते थे की आप आ गए होगे ||
लीजिये हमने भी ठेल दिया शेर नुमा कुछ
ही ही ही
आपका वीनस केसरी
आपकी तश्वीर देखी, सूट-बूट में....समीर जी बन गए जेंटलमैन..।
:) लगता है आप महाप्रल्य की बात सून लीये थे।
:) बहूत खूशी हूई आप वापीस आ गए। जान अटका के चले गए थे।
बहुत बहुत बधाई!
आपकी तो हर अदा निराली है, तभी सबने इतना मनाया आपको .स्वागत है आपकी हड़ताल टूटने का.
आशा है आप सबका हौसला ऐसे ही बढाते रहेंगे.
Sameerbhai
This is called "Royal Retreat".
A shaandaar vapasi.I am playing a Beugal....pam pam papapam papapamm,,,,,
Ba adab, Ba mulahiza.....
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
जै हो आपकी ...
kya कहना जनाब.शायद हिंदी में इससे बड़ा हास्य-व्यंग्य और उर्दू में तंज़-ओ-मजाह , ढूँढ़ते रह जाओगे.
मज़ा आ गया.हाय आसिफ भाई, हाय हम न हुए.
समीर भईया
पिछली लेख गुरु जी को और गुरु माँ को सुनाई थी, नाराज थे दोनों कि इतने चहेते होते हुये, छोटी सी बात पर क्यूँ मूँह फुला कर बैठा है. कह रहे थे उसे फोन लगा कर दो. डांटता हूँ. उस दिन बाहर से बहुत भक्त आये थे तो व्यस्त हो गये फिर आपका यह लेख आ गया, सुना भी दिया. मुस्करा रहे थे. कह रहे थे कि समीर को ऐसे ही हमेशा देखा है तो ऐसे ही अच्छा लगता है. कह रहे थे कि किस्सा बना कर सुना रहा है.
उस दिन प्रार्थना सभा में भी परेशान से थे. आप ऐसे मत किया करो, सब परेशान हो जाते हैं यहाँ आश्रम में. सब आपको कितना चाहते हैं और आप हो की..
भईया, कल फोन कर लिजियेगा गुरु जी को. गुरु माँ भी बात करना चाहती हैं. बहुत दिन हुए आपने बात नहीं की है.
इसी बहाने मैं भी तो बात कर लूंगी अपने प्यारे भईया से.
एक बात बतायें समीर जी आपकी फोटो देखी ग्रेंड केनियन वाली, एक संदेह है श्रद्धेय भाभीजी तो दिखाई दे रहीं हैं किन्तु आप कहीं दिखाई नहीं दे रहे । भाभीजी के पीछे केवल पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे हैं ।
vapas aaye
juni purani yaade sanjo laye
bhala kiya pralay ke pahle laute
kai the tataki bande bathe
ab jab jao laptop lete jaana
hum nahi sunenge bahaana
gaa to badhiya hi gana
nahi to bina colliider ke hi hai parlay ho janaa
good !!!
saadar
बहुत बड़िया लिखा है, हम बहुत पुराने तो नहीं इस ब्लोगजगत में लेकिन टिपिया गये थे कि आप कहां जाने वाले हैं वापस आ जायेगें। अच्छा लगा कि आप टंकी से नीचे उतर लिए, बेचारी टंकी बेहाल हो रही थी…।:)
....हमने तो सोचा था कि ये "उड़नतश्तरी" शेष और उड़नतश्तरियों वाली कहानी की तरह क्या अब बस कहानी बन कर रह जायेगी. शुक्र है ऐसा नहीं हुआ...हम तो बगैर कोई टिप्पणी दिये होनी का खेल देख रहे थे और सोच रहे थे कि इस ब्लौगिंग के पथ पर हम जैसे नये पंथियों को अब कौन पूछेगा.सर्र सर्र सर्राती हुई जैसे गयी ये उड़नतश्तरी वैसे ही इसका वापस आना-हाय रेsssssss
समीर जी ,
हम तो नरभसा गए हैं. बूझ नहीं पा रहे हैं की कहाँ से शुरू करे ...... क्या लिखे ......आपकी वापसी की बधाई दें या कहें की आप टंकी से क्यों उतरे है . ......
खैर आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ......अच्छा लगा ......ब्लोगर का आपके प्रति असीम स्नेह देख कर मन गद गद हो गया है......मेरे ब्लॉग पर अपने मुझे एक सुझाव दिया था.....उस समय मन ही मन सुझाव को मानने का मन बना लिया था ...लेकिन आपका ब्लॉग देख कर मेरा उस सुझाव को मानना .........सोचना पड़ेगा
मैं तो बहुत कम जानती हूँ ब्लॉग के बारे में ........
कैसे हैं आप ? सुना है चले गई थे | कहाँ ? लेखनी हाथ में हो तो विश्राम ही विश्राम है और दुख तो भाग ही जाता है लेखेनी को देख कर | ढूँढ कर लाना पड़ता है उसे फिर कुछ लिखने के लिए | तो क्या आप ले आए ?
आपके ब्लॉग पर पहली बार आ रही हूँ | क्या बात है ! बहूत मज़ा आ रहा है | बधाई देना चाहती हूँ | दुखी होने के लिए नहीं बल्कि आपके सुंदर ब्लॉग के लिए जिस में बैठ कर कुछ देर मैं भी उड़ लूँ मौकापरस्ती का फायदा तो कुछ हो - कुछ इस तरह --
कलम ने उठकर
चुपके से कोरे कागज़ से कुछ कहा
और मैं स्याही बनकर बह चली
मधुर स्वछ्न्द गीत गुनगुनाती,
उड़ते पत्तों की नसों में लहलहाती।
उल्लासित जोशीले से
ये चल पड़े हवाओं पर
अपनी कहानियाँ लिखने।
सितारों की धूल
इन्हें सहलाती रही।
कलम मन ही मन
मुस्कुराती रही
गीत गाती रही।
----------
मीना
BSNL (भाई साहब नहीं लगेगा link failure) की कृपा से ७० टिप्पणियों के बाद लिंक कर पा रहा हूँ। इस बीच आप जाकर लौट भी आए। ...अच्छा है।
आपकी विदाई वाली पोस्ट पर मैने साफ-साफ कहा था कि,
“...मुझे तो इस बात पर विश्वास ही नहीं है कि समीरजी ऐसी गैर जिम्मेदारी से उन असंख्य नवागन्तुक चिठेरों को निराश करके चलते बनेंगे।...”
चलिए आपने ज्यादा समय खोटा नहीं किया, इसलिए धन्यवाद दे देते हैं। वैसे आपने किया वही जिसके लिए आप जाने जाते हैं।
हाँ, इस टंकी के आरोहण-अवरॊहण में मेरी पिछली तीन पोस्टें आपकी राह ताकती रह गयीं। इसका मुझे दुःख है। आपने मेरी आदत जो बिगाड़ रखी है।
आपकी पोस्ट की तरह
हमने भी यूँ ही कह दी थी
इंतज़ार की बात ! हमें मालूम है
आप हमसे खपा हो नहीं सकते.
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शुक्रिया
माई गॉड यहां पर ये सब हो गया और मुझे हवा तक नहीं लगी। अरे कुछ दिन के लिए क्या गायब हुआ आपका इतना हौसला बढ़ गया कि हम लोगों को छोड़कर जाने की धमकी दे डाली। वो भी अपने लेखन को लेकर। पुरानी पोस्ट पर जाकर पढ़ा तो पता चला कि माजरा क्या है। अरे आप घूमने गए थे अभी दो बार बीच समय में किसी ने कुछ आपसे कहा कि आप कहां है नहीं। अरे मान लिया कि ये कुछ दिन एक टिप्पणी तो नहीं ही मिलेगी। पर मैं जानता हूं कि सबसे पहले संजीवा छत्तीसगढ़ी ने मेरा स्वागत किया था फिर तीसरी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी मिली और तब से ये क्रम आज तक जारी है। आपसे मैंने अनंत टिप्पणी अपने ब्लॉग पर पाई हैं साथ ही रश्मि जी, महेन जी, महेंद्र जी और द्विवेदी जी की,रंजनी जी और क्रम चल निकला था।
लेकिन लेखन से कुछ दिनों का रेस्ट मांग लिया होता तो शायद कुछ भी गलत नहीं होता। लेकिन इस से ये तो साफ जाहिर हो गया कि आप को लोग कितना प्रेम करते हैं। कुछ दिन तो बिन आपके चला लेंगे लेकिन अधिक नहीं चला सकते। दूर ना जाना दोस्त प्लीज।
चलिए आप लौट तो आए वरना हम तो सोच रहे थे कि हम अपने शुभचिन्तक से वंचित हो जाएंगे। वापसी के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
आपके टंकी चढ़ने उतरने से कुछ लोगों का भला हो गया....एक एक पोस्ट लिख डाली..ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ा!हमें पता चल गया था की आप एक छोटा सा ब्रेक ले रहे हैं!ब्रेक से वापसी मस्त रही रजिया और आसिफ के साथ.....
आज ही टिप्पणी करना सीखा है। आगे से कंजूसी नहीं होगी।
ये आपने अच्छा नही किया समीर भाई कि आसिफ़ के तौर तरीके इतने खुलासे से लिख डाला. आपका क्या है आते जाते रहेंगे पर बेचारे उन तमाम आसिफॉं का क्या होगा जिन्होने ना जाने कितने मंसूबे बाँध रखे होंगे अब तो होगा यूँ कि रज़ियाओं के बाप लोग मरने को लेकर सावधान हो जाएँगे और क्या पता जाते जाते कोई इंतज़ाम करके जाएँ. आसिफॉं के दिल से आपके लिए ना जाने क्या क्या निकल रहा होगा
आप को ब्लागर गुरु कहा जाये तो गलत नही होगा
प्रणाम सर. कैसे है. आपने कैसे ये सोच लिया की जब आप कही जायेंगे तो आपको कोई बुलाएगा नहीं. आप जैसे लोगों ने ही तो हिन्दी चिट्ठा जगत की नींव को मजबूत किया हुआ है. आप ही से हम जैसे नन्हे ब्लॉगरों को प्रेरणा मिलती है. सर मैंने आपकी बात पर अमल करना शुरू कर दिया है. अब जब भी मौका मिलता है मैं टिप्पणी देने से नहीं चुकता हूँ. सर आप नाराज नहीं हैं न मुझसे?
sir ji aap aaye bahar aai...thanks.
मज़ा ले लिया आपने ……
रज़िया और आसिफ के बहाने ……
वैसे आसिफ मियाँ से एक गुन तो सीख ही लिया …
हम भी कोशिश करेंगे …
वापसी का शुक्रिया। हम जानते थे आप वापस आओगे। दरअसल ब्लागिंग एक नशा है। बार-बार नशा छोड़ने का लोग वायदा करते हैं लेकिन फिर वहीं खड़े नजर आते हैं। उस नशे को छोड़ देना चाहिए। या यूं कहें, कुछ नशे बने रहें तो बेहतर है। आपका यह नशा हमेशा बना रहे। खुद लिखें और दूसरों को भी प्रोत्साहित करें।
वैसे ही मेरे ब्लॉग पर इतने गिने चुने ब्लॉग के लिंक हैं, आप चले जाते तो और भी कम हो जाते! आपका ब्लॉग पढ़ना और फ़िर टिप्पणी पढ़ना तो नियम सा बन गया है, ऐसे कैसे लिखना बंद कर देंगे, कोई मज़ाक है क्या।
वैसे आपने ख़ुद लिख दिया, मैं आजतक सोचता था कि आपकी शक्ल जानी पहचानी सी क्यूँ लगती है, 'सत्या' फ़िल्म मैंने भी देखी है न :)
"रजिया का बाप मरा, आसिफ की ऐश" क्या-२ राज छुपा है समीरलाल जी के बढे हुये पेट मे :)
हिन्दी दिवस कि बहुत सी सूधकामनाऎं।
आपकी पिछली पोस्ट पढ़ी मन पुलकित हो गया की अब कुछ भावुक लिखूंगा ऐसा की जिसे पढ़कर किसी अभिनेता को भी बिना ग्लिसरीन के आंसू आ जाएँ , जोश में था पोस्ट करने वाला ही था ये रचना कि आपकी नई पोस्ट आ गई | सुनता था मूड ख़राब हो गया , आज महसूस हुआ कि मूड ख़राब कैसे होता है
अगर आपने मुझसे पुछा होता तो भी मैं कभी मन नही करता आपको वापस आने से, बस आपसे विनती करके आपको कुछ समय के लिए रोक देता और तब तक मैं अपनी भावुक पोस्ट डाल देता ...अब समझ में नही आ रहा है क्या करुँ उस अति भावुक पोस्ट का ख़ुद ही पढ़ पढ़ के रोऊँ क्या ?
खैर लिखा है तो कहीं लगना तो है ही ..अगर कोई और इस बार टंकी पर चढेगा तो मैं तुंरत अपनी वो रचना चेप दूँगा वहां जो आपके लिए लिखी थी | निवेदन है बाकी सबसे कि अगर कोई और टंकी पर चढ़े कभी तो लोगों को पर्याप्त समय दे, अभी तो मूड ख़राब है
शोभनम्।
ऎसे ही भविष्य में और पढ़ने को मिलेगा ऎसी आशा है।
ऎसे ही भविष्य में और पढ़ने को मिलेगा ऎसी आशा है।
ऎसे ही भविष्य में और पढ़ने को मिलेगा ऎसी आशा है।
बहुत अच्छा लगा अापकी उड़नतश्तरी में बैठ कर। मुझे भी अपने साथ अापके अनुभवों को साझा करने का सौभाग्य दें। अाप िलखते रहें िनरंतर।
अच्छा लगा कि अब तक मास्साब धरे रखे हो आप मेरे नाम के आगे, मुझे तो लगा था मंदी के मार मे नौकरी खो चुका होउंगा. :)
नौकरी का मारा इंसान छलावे मे जीता है! देखिए सुबीरजी की कुर्सी पर मैने मेरा नाम देख लिया. :) हे हे. सब माया है.
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