बंदर हर भेष में हर जगह हैं. हेव फन. :)
पहचाना क्या? श्श्श्शः, नाम मत लेना. सबने पहचान लिया है. :)
सुभाषित:
- सफल जिन्दगी जीने के सिर्फ दो तरीके है: एक यह कि कुछ भी अजूबा नहीं है और दूसरा यह कि सब कुछ अजूबा है. (आन्सटीन)
- सार्थक प्रश्न सार्थक जिन्दगी देता है. सफल व्यक्ति बेहतर प्रश्न पूछता है इसलिये बेहतर जबाब पाता है.(एन्थोनी रॉबिन्स)
- किसी से बदला लेने की यात्रा पर जब भी निकलो, दो
करकब्र खोद कर जाना. एक उसके लिए और एक तुम्हारे किए. (कन्फ्यूसियस)
- मैं बहुत धीमे चलता हूँ मगर कभी भी पीछे की ओर नहीं. (अब्राहम लिंकन)
47 टिप्पणियां:
उत्तम विचार. चित्र के साथ तो सब कुछ साफ साफ समझ आता है
समीर भाई, समीर भाई, बड़ा जबर्दस्त फोटू लेकर आयें हैं आज. मेरा तो हंसते हंसते बुरा हाल हो गया.
सुबह मुस्कुराहट के साथ गुजारी है तो आज का दिन बहुत अच्छा कटेगा!
मैथिली जी से सहमत हूँ.
साथ ही यह भी कि ये सूत्र आपने
बड़े काम के चुने हैं.
ऊपर आपका संदेश भी बेवज़ह,निर्दोष लोगों को
परेशान करने वालों की फ़ितरत के प्रति
सावधान करता है.
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धन्यवाद.
डा.चंद्रकुमार जैन
यह ठीक बात,
ऎसे ही घुमा कर मारा करो । घमासान मचाने वाले
केवल बिसूरने वालों के लिये ही यह कलाबाजियाँ
दिखलाते हैं । सही ऎप्रोच !
जबरदस्त वीडियो है। आपने तो खुलकर सारी बात कह डाली। हां, कन्फ्यूसियस के उद्धरण में 'दो कर' की जगह शायद 'दो कब्र' होना चाहिए।
जे बात ।
हा हा, :D
क्या धांसू है बॉस, मस्त एकदम, मजा आ गया और भूमिका भी उतनी ही अच्छी बांधे हो आप!
किसी से बदला लेने की यात्रा पर जब भी निकलो, दो कर खोद कर जाना. एक उसके लिए और एक तुम्हारे किए. (कन्फ्यूसियस)
मैं बहुत धीमे चलता हूँ मगर कभी भी पीछे की ओर नहीं. (अब्राहम लिंकन)
ये दोनों ही बातें मन में गहरे तक पैठ गईं विशेषकर पहले वाली आज कललू गुंडे से लकर जार्ज बुश तक सबको ये ही सुभाषित सीखने की जरूरत है
समीर जी
आज हमारी नैना यह फोटो देखकर हँसने लगी और भो भो कर बताने लगी पापा डोगी ।
यह सच किस रोचक तरीके से समझा दिया यह आप ही कर सकते थे।
समीर भाई
आपको बधाई
दिखाई सचाई
लगातार तश्तरी में
परोसी तीन पोस्ट !
कमाल कर रहें हैं दोस्त !!
उधर दिल्ली का हाल तो आपके शब्दों में
:-''महफिल सजाऊँ किस तरह, अबकी बहार में,
पल खुशगवार बाकी है, इक तेरी नजर का.''
किस की नजर लगी तुझे मेरे ब्लॉगजगत!
जुड़ गए हैं अन्तर जाल पे
"कई बगुले बन के भगत"
दिल को सूकून पहुचानें वाली बेहतरीन पोस्ट ...
शुक्रिया समीर भाई....
हेव फन!
सही है! कुछ लोग फन ले रहे हैं; कुछ फनफना रहे हैं।:)
बहुत शानदार!
mazedaar :):)
अरे बेचारे के पास पूँछ नहीं है तो उधार माँग रहा है, कुत्ते को समझना चाहिए :)
आज आपने पंगेबाजी कर ली :) जब से भारत से लौटे है, सरकार बदले बदले से है :)
सटीक ।
मजेदार फोटो ।
वाह-२, क्या फोटू है, मज़ा आ गया!! :D बाकी आप सही कहे हैं कि कुछ लोगों को खामखा खुजली हो जाती है दूसरों को देख के! ;)
jiska naam nahi lena hai use dekh kar to bas yahi man me aa raha hai ki BECHARE AADAT SE MAJABOOR:)
मैं बहुत धीमे चलता हूँ मगर कभी भी पीछे की ओर नहीं
kya baat hai
फ़िल्म बहुत अच्छी हैं. कुछ-कुछ समझ भी आ रहा है.
और सदुपदेश भी प्रेरक हैं.
धन्यवाद.
गुरुदेव आपके चरण कहाँ है ?
सटीक।
जमाये रहिये जी।
कल की टिप्पणी का अच्छा जवाब है।
सही जगह पर निशाना लगाया है :)
फन के साथ प्रवचन... अच्छा लगा.
आपको तो आस्था चॅनल वालो से सम्पर्क करना चाहिए :-)
गुड शो :) अच्छे पर्वचन जय समीरानन्द महाराज जी :)
आज आपकी पोस्ट पढ़ी नहीं गई
विडियो से नजर हटाई नहीं गई
कैसे कह दूं कि लिखा आपने कुछ और यहां
बात कोई, जो फोटो में समाई नहीं गई
aapne ye bandar nach agar 4 din pahle dikha diya hota to shyad gandgi kuch kam ho jati.
सब जगह "साधू साधू" कहते रहे और ख़ुद खुरापात कर गए. अब हम तो कहेंगे "शैतान शैतान", यानी वो नटखट वाला शैतान.
"कर्मण्येवाधिकारस्तेमाफलेषु कदाचन्` "
हर जीव ,
अपनी प्रवृत्ति + स्वभाव के अनुसार व्यवहार करता है -
-लावण्या
बहुत खूब!!! किमधिकम्। :)
वाह मजा आ गया गजब का चित्रण धन्यवाद
:D =)):)) हम तो अभी तक हँस रहे हैं.
ha ha ha ha ha ha ha ha ha ..........
pet duh gayaa hansate hansate....
fever me ilaaj kar diyaa aapne ..
kya iss short video kee ek copy (in same formate) e-mail se aap bhej sakte hain???
वाह समीर जी! शायद तुलसीदास जी ने भी ऐसा ही कुछ देख कर लिखा रहा होगाः
बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ।।
पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें।।
(अब मैं सच्ची भावना से दुष्टों की वन्दना करता हूँ, जो बिना किसी प्रयोजन के ही दायें बायें आते रहते हैं, जिनको दूसरों की हानि ही जिनके लिये लाभ है और दूसरों के उजड़ने में हर्ष तथा बसने में विषाद होता है।)
नया हूँ, नए ढंग से कहूँगा, मगर कोई नयी बात हो ज़रूरी नही. आपके ब्लॉग पे पहली बार आया, सम्पर्क आप की मेरे ब्लॉग पे टिपण्णी से पाया । इससे पहले शब्दों के बुलबुलों से परेशां था, जबसे ब्लॉग आया ठोस भाव मिलने मुश्किल थे। खुशी है आपकी दुकान में शब्द केवल बुलबुले नही है... संस्कृत की स्याह में लिपटे और संसार की राजनीती से पिटे, कुछ कुंद भाव ब्लॉग में बरस रहे है। धन्यवाद और शुभकामनाएं !
इतनी सारे जवाबों से ये तो समझ में आ गया है की आपने कोई बहुत ही विशिष्ट चित्र दर्शाया है ,लेकिन मैं यहाँ तो देख नही पायी ,भाई यह क्या बात हुई ?
बहुत खूब ...विचार अति उत्तम !
अति उत्तम !अति उत्तम !अति उत्तम ! :D
अति उत्तम !अति उत्तम !अति उत्तम ! :D
आन्सटीन ने कहा है कि सब कुछ अजूबा है, यह तो पता नहीं लेकिन यह विडियो-क्लिप अवश्य ही अजूबा है। आनन्द आगया।
मजा आया गया। इस तरह अंतर्जाल पर लिखने से एक सर्वसम्मत दर्शन का निर्माण होगा।
दीपक भारतदीप
कितना सही दिखाया, हँसते रहने के साथ-साथ विचार आ रहा था कि यदि इन्सान खुरापात करता है तो उसकी आदत ही कहनी चाहिए, आख़िर पुरखों का कुछ तो असर होगा ही।
कितना सही दिखाया, हँसते रहने के साथ-साथ विचार आ रहा था कि यदि इन्सान खुरापात करता है तो उसकी आदत ही कहनी चाहिए, आख़िर पुरखों का कुछ तो असर होगा ही।
वाह क्या तस्वीर है, आपका मां का संस्मरण बहुत सहज और प्रभावी है मित्र
:) :) लाजवाब फ़िल्म और उससे भी लाजवाब पैगाम !!
बंदर हर भेष में हर जगह हैं.
आप ने ये वीडियो कहाँ पाया जी ज़बरदस्त है
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