कभी कभी लगने लगता था कि मांसाहारी भोजन करके शायद मैं हिंसा कर रहा हूँ. कोई बहुत बड़ा पाप. आत्म ग्लानि होने लगती है और एक अपराध बोध सा घेर लेता है खासकर तब, जब कि मांसाहार के साथ कुछ जाम भी छलके हों. अपराध बोध भी सोचिये कितना सारा होगा जो हम जैसी काया तक को पूरा घेर लेता है. कहते हैं पी कर आदमी सेंटी हो जाता है. वही होता होगा इस मसले में.
तीन चार दिन पहले टीवी पर एक अनोखा समाचार देखा. देखते ही मांसाहारी होने की पूरी ग्लानि और अपराध बोध जाता रहा. उस दिन से निश्चिंत हुआ. अब मुर्गे को कटते देख कोई हीन भावना नहीं आती बल्कि खुशी होती है. वो कौम, जिसकी जिस पर नजर पड़ जाये, उस पूरे गाँव, पूरे शहर, पूरे देश के निरपराध मानवों को मार कर खा गयी हो, उस पर कैसी दया और उस पर कैसा रहम. किस बात की आत्म ग्लानि? अच्छा ही हुआ-जब तुम्हारी कौम में हमको मारने की ताकत आई तो तुमने हमें अपना भोज बनाया और आज हममें ताकत है तो हम तुम्हें खा जायेंगे. खत्म कर देंगे.
टीवी ने बता दिया कि डायनासॉर के पूर्वज मुर्गे थे. टी वी दिन भर ढोल पीटता रहा कि मुर्गे डायनासॉर के बाप थे और उनके पूर्वज थे. टीवी वाले अंधो तक को दिखाकर माने और बहरों को सुना कर हर मसले की तरह.
मुझे तो पहले ही डाउट था कि जरुर कुछ न कुछ बड़ा पंगा किया होगा तभी तो मानव इन्हें खाने पर मजबूर हुआ. अभी बकरे की पोल खुलना बाकी है मगर जान लिजिये, उसकी पंगेबाजी भी जब खुलेगी तो ऐसा ही कुछ सामने आयेगा. पंगेबाजी का अंत तो ऐसा ही होता है चाहे किसी भी स्तर की पंगेबाजी हो. सिर्फ हिन्दी ब्लॉगजगत में पंगेबाजी जायज है और वो भी सिर्फ अरुण अरोरा ’पंगेबाज’ की.
अब तो शाकाहारियों को देखकर लगता है कि देखो, हम तुम पर कितना अहसान कर रहे हैं. वो मुर्गे जो डायनासॉर बन सकते हैं और तुम्हें और तुम्हारे समाज को पूरी तरह नष्ट कर सकते थे, उन्हें कनवर्जन के पहले ही खत्म करके हम तुम्हें भी बचा रहे हैं. काश, धर्म परिवर्तन जो कि इतना ही खतरनाक कनवर्जन है, के पहले भी ऐसी ही कुछ व्यवस्था हो पाती.
कल ही एक मुर्गा मिल गया था. पूछने लगा कि ऐसी क्या बात है, जो आप जैसी उड़न तश्तरी हमसे इतना नाराज हो गई?
हमने उसे साफ साफ कह दिया कि तुम हमसे बात मत करो, आदमखोर कहिंके. तुम तो वो बने जिसकी जिस पर नजर पड़ जाये, उस पूरे गाँव, पूरे शहर, पूरे देश के निरपराध मानवों को मार कर खा लिया. बर्बाद कर दिया. कहीं का नहीं छोड़ा. तुम पर क्या रहम, तुम्हारा तो यह अंजाम होना ही था.
हमारा खून तो तब से खौला है कि यह डायनासॉर आये कहाँ से, जबसे हमने जोरासिक पार्क फिल्म देखी थी. बस, भरे बैठे थे. जब पता चला कि यह तुम्हारा कनवर्जन हैं, तब से तुमसे नफरत सी हो गई है. मैं तो चाहता हूँ कि तुम्हारा नामो निशान मिट जाये इस धरती से.
मुर्गा मुस्कराया और बोला, " आपका साधुवाद, आप मानव प्रजाति के लिये कितना चिन्तित हैं. मगर हम मुर्गे जैसी ही एक आदमखोर प्रजाति ही तुम्हारी ही शक्ल में तुम्हारे बीच बैठी यही काम कर रही है, उसका क्या करोगे, मिंया. वो भी तो यही कर रहे हैं मगर अपनों के साथ ही कि जिस पर नजर पड़ जाये, उस पूरे गाँव, पूरे शहर, पूरे देश के निरपराध मानवों को मार दें, बर्बाद कर दें. कहीं का नहीं छोड़ें. "
मैं चकराया और पूछने लगा, ’कौन हैं वो?"
मुर्गा हँस रहा है. हा हा हा!! कहता है "तुम्हारे नेता और कौन!!"
बात में दम थी अतः मैं सर झुका कर निकल गया. इस मुर्गे पर न जाने क्यूँ मुझे रहम आ गया. नेता टिक्का मेरे आँखों के सामने तैर जाता है कि अगर उनका भी मुर्गों सा हश्र करने लगे मानव तब??
नेता टिक्का मसाला
फिर पशोपेश मे हूँ कि मांसाहारी बने रहूँ या शाकाहारी हो जाऊँ?
मंगलवार, अप्रैल 29, 2008
नेता टिक्का मसाला: यमी यमी यम यम!!
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51 टिप्पणियां:
बात कहीँ ब्लॉगर टिक्का तक न चली आये!
मांस खाकर ही दुनिया यहां तक पहुंची है. यदि न खाता तो क्या खाता आदिमानव. यदि मन होता है और स्वाद पसंद है तो खाने में हिच्किचायें नहीं. खायें, खूब खायें.
इन्सांन और समाज का विकास जिस दिशा में जा रहा है, उस से तो ऐसा लगता है कि मांसाहार बन्द ही करना पड़ेगा। इसलिए कि वह, इंन्सान की प्रजाति के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन रहा है। मांस देने वाले जानवर को पाल कर बड़ा करने के लिए खेती का जितना उपयोग हो रहा है उस से इंन्सान के लिए खाद्य समस्या उत्पन्न हो रही है। आखिर जमीन को ऊर्जा के विकल्प भी तो उगाने हैं।
"मांस देने वाले जानवर को पाल कर बड़ा करने के लिए खेती का जितना उपयोग हो रहा है उस से इंन्सान के लिए खाद्य समस्या उत्पन्न हो रही है"
दिनेश राय द्विवेदी से पूर्ण सहमति.
क्या खूब कही आपने !!!
आपके इस मांसाहार शब्द ने एक घटना की याद दिलाई .......
अभी कल की बात है बिजली नहीं थी सो हम लोग छत पर थे ...दो वीर शाकाहार और मांसाहार पर द्वंद युद्ध कर रहे थे
पहला कह रहाथा --- मांस में ताकत होती है ..अंडे में कई पोषक तत्व होते हैं.........
दूसरे ने कहा -- ससुर ऐसी बात है ...उधर देख ( पीछे नाले की तरफ ) देख वहा एक कुत्ता मरा पडा है ...जाओ अभी ताज़ा है बहुत शक्ति मिलेगी ...और पोषक तत्व तो कई जगह होते हैं ...खावोगे !!!
कमाल का व्यंग हो रहा था ...और आपने आज मांसाहार , मुर्गे की संतान डायनासोरों की आड़ से होकर , मुर्गे की भाषा में बोल ही दिया कि
आजकल के नेता ...........................
कमाल की सोच सोची आपने ... टीवी देखते रहिये शायद कुछ और नई खोजों से आप परिचित हो जाए ...और हम लोग भी ..
:) हमारी तो सलाह है कि आप शाकाहारी बनिए ..:)
आप तो मुर्गों से उनकी भाषा में भी बात करने लगे? और ये नेता टिक्का कितने का प्लेट है जी! अगर भारत में कहीं मिल रहा है तो बताये वरना कनाडा का खिलाना पड़ेगा.
वैसे मैने अभी तक के रिकार्ड में सबसे स्वादिष्ट डिश "चिकन 65 " का सुना है लेकिन नेता टिक्का सुनकर अब मुहँ में पानी की बाल्टियां भर गयी हैं! यम यम
सावधान! पंगेबाज जी को मत बताना-मेरी बुकिंग आप पूरे महीने की कर लें उनको बताना कि माल अभी तैयार नहीं है यां आउट ऑफ़ स्टॉक है
शाकाहारी रहने में ही फ़ायदा है वरना जिस तरह डायनासोर इंसानो को खाकर मुर्गे बने है कई हम भी मुर्गो को खाकर डायनासोर नही बन जाए..
वैसे आपके लेख ने बड़ा गुदगूदाया.. और बढ़िया बात देखिए आपको इंसानो से तो मिलता ही था मुर्गे से भी साधुवाद मिल गया..
आपकी कल्पनाशीलता गजब की है।
कल्पना करने में कंजूसी कर दी गुरू, नेता टिक्का की जगह नेता मुसल्लम सोच लेते तो क्या बिगड़ जाता?
हम तो यही सलाह देंगे की शाकाहारी बनो...पर उपदेश कुशल बहुतेरे... :)
आदी मानव केवल माँस ही खाता तो खेती का विकास क्यों हुआ?
देखिये कल हमारी एक वामपंथी से मुठभेड हो गई थी वे भी कह रहे थे कि दलितो के उपर आपके पूर्वजो ने जो अत्याचार किये है उसका खामियाजा तो आपको भुगतना ही पडेगा,हमने कहा ठीक है जी मान लेते है,पर अब आप ये बताये कि मुसलमानो के शासन मे जो हमारे पूरवजो पर अत्याचार हुये उसका खामियाजा हमे भी दिलाईये. बस वो भडक गये कि हम उनके वोट बैंक से चिढते है,तो कही आप भी मुर्गे खाने के चक्कर मे डायनासोर को जोड कर वामपंथी तो नही बनने जा रहे :)
सही है.जमाये रहिये.
दिनेश जी और मैथिली जी की बात से सहमति.
समीर जी हम तो ठहरे पूर्ण शाकाहारी, और लोगों को शान से बताता हूँ कि आजतक अंडा भी हाथ से नहीं छुआ. तो जाहिर है अगर आप शाकाहारी बनेंगे तो मुझे खुशी होगी....
पर अगर कहीं 'नेता टिक्का मसाला' मिल गया तो हमें भी बताइयेगा... दबा के खा लेंगे जी... फिर जो होगा देखा जायेगा... अगर ऐसी रेसिपी होने लगी तो कब का मांसाहारी हो गया होता :-)
अपना वोट भी शाकाहार को...
:)
कुल मिलाकर आपने इस धरती को डाय्नासोरो से बचाया जानकर प्रसनता हुई ,ये शाकाहारी ओर मांसाहारी की बहस बहुत लम्बी ओर पेचीदा है ...पर आपको टी.वी वालो को धन्यवाद देना चाहिए आप की इतनी गिल्ट को उन्होंने पल मे ही निकाल दिया ...पर कल को उन्होंने मुर्गे को आदमी का सौतेला भाई साबित कर दिया तो ????
कूकड़ू कू.....(एक मुर्गे की आत्मा मुझे आवाज दे रही है जिसे मैंने खाया था.. मैं उसकी भाषा नहीं समझ पाया इसलिये यहां लिख दिया.. आप अब उसका मतलब भी बता ही दिजीये..)
:)
रोचक पोस्ट,किन्तु शाकाहारी बने रहना ही मनुष्य जाति के लिये हितकर होगा.
इस उम्मीद में कि एक दिन 'नेता फ्लू' भी हो और हर इलाके में नेताओं को चुन-चुन कर मारा जाएं ताकि ये बीमारी इंसानों में न फैल जाएं।
छोटी बात का खूबसूरत रोचक विस्तार!
सुबह से मन उदास था ,पढ कर हँस रही हूँ ।
समीर जी
बहुत धारदार व्यंग है.कल के मुर्गे आज के नेता हैं ये बड़ी बढिया बात की आप ने लेकिन वो खाने में कैसे होंगे किसी से पूछना पड़ेगा. जो देखने में और बरतने में इतना घृणित है वो खाने में कैसा होगा भला? सोच के ही कै करने की इच्छा हो रही है. आप को बताता चलूँ की उन मुर्गों से पहले मानव पैदा नहीं हुआ था.
नीरज
नेता टिक्का मसाला वाला जो फोटॊ लगाया है बडा मजेदार है।
मुर्गा डायनासोर की प्रजाती और हम बंदर(लंगूर) की
नेता टिक्का ये तो बहुत बेस्वाद होगा, लेकिन लिखा तो आपने बहुत बढ़िया
हमारी भी सलाह है की आप रंजू जी की सलाह मानें
shaakaahaari ban jaaiye..chitt shaant rehtaa hai...
चैनल थोड़ी देर और देख लिया होता तो खबर उलट जाती मैने जरा देर तक देखा बाद में पता चला बैंड गलती से फायर हो गया था दरअसल मुर्गा नहीं डायनासोर मुर्गे का बाप था।....खैर इससे आपको क्या फर्क पड़ता, मामला तो फिर भी उसी बिरादरी का रह गया। निपटाइये साहब...हाजमा दुरुस्त हो तो मुर्गे की बात पर भी गौर फरमाइये और उधर भी शुरू हो जाइये। शैली बेहद रोचक थी बहुत-बहुत बाधाई।
नेता तो ससुरा खुदै यम होता है।
वाकई आपकी कल्पना और सोच का कोई मुकाबला नही है। :)
चैनल थोड़ी देर और देख लिया होता तो खबर उलट जाती मैने जरा देर तक देखा बाद में पता चला बैंड गलती से फायर हो गया था दरअसल मुर्गा नहीं डायनासोर मुर्गे का बाप था।....खैर इससे आपको क्या फर्क पड़ता, मामला तो फिर भी उसी बिरादरी का रह गया। निपटाइये साहब...हाजमा दुरुस्त हो तो मुर्गे की बात पर भी गौर फरमाइये और उधर भी शुरू हो जाइये। शैली बेहद रोचक थी बहुत-बहुत बाधाई।
चैनल थोड़ी देर और देख लिया होता तो खबर उलट जाती मैने जरा देर तक देखा बाद में पता चला बैंड गलती से फायर हो गया था दरअसल मुर्गा नहीं डायनासोर मुर्गे का बाप था।....खैर इससे आपको क्या फर्क पड़ता, मामला तो फिर भी उसी बिरादरी का रह गया। निपटाइये साहब...हाजमा दुरुस्त हो तो मुर्गे की बात पर भी गौर फरमाइये और उधर भी शुरू हो जाइये। शैली बेहद रोचक थी बहुत-बहुत बाधाई।
चैनल थोड़ी देर और देख लिया होता तो खबर उलट जाती मैने जरा देर तक देखा बाद में पता चला बैंड गलती से फायर हो गया था दरअसल मुर्गा नहीं डायनासोर मुर्गे का बाप था।....खैर इससे आपको क्या फर्क पड़ता, मामला तो फिर भी उसी बिरादरी का रह गया। निपटाइये साहब...हाजमा दुरुस्त हो तो मुर्गे की बात पर भी गौर फरमाइये और उधर भी शुरू हो जाइये। शैली बेहद रोचक थी बहुत-बहुत बाधाई।
गज़ब.... sarcasm और संवेदनशील वर्णन का अद्भुत मिश्रण
अभी तक एक भी बन्दर आदमी नही बना फिर कैसे मुर्गा डायनासोर बन जायेगा? पर आप खाना जारी रखे। कही उनकी बात सही निकल गयी तो--- :)
वाह प्रभु आज जाना कि आप की दया माया से हम जैसे शाकाहारी जीवित हैं !
"नेता टिक्का मेरे आँखों के सामने तैर जाता है कि अगर उनका भी मुर्गों सा हश्र करने लगे मानव तब??"
आपने मेरी आत्मा की आवाज पोस्ट के माध्यम से व्यक्त कर दी आपका आभारी हूँ बेबाक टिपण्णी के लिए . धन्यवाद
मांसाहार में हिंसा तो शामिल है ही। आप अपनी ग्लानि उस समय तक बनाये रहिये जब तक नेता-टिक्का या नेता-मुसल्लम की सप्लाई शुरू नहीं हो जाती। उस समय यदि शाकाहार पर पुनर्विचार कि जरूरत पड़ी तो बहुत से कनवर्ट्स सामने आ जायेंगे।
लेख पढ़कर मजा आ गया। साधुवाद।
समीर जी,
१. अधिकांश डायनासौर शाकाहारी थे.
२. व्यंग्य लिखने के लिए नेता से ज्यादा घिसा पिता विषय कोई नहीं है.
३. आपके स्तर के हिसाब से लेख हल्का है
शाकाहारी बन पाना अब आपके लिए सम्भव नहीं होगा. हो सके तो नयी पीढ़ी को ही इस गंदगी से दूर रखने का प्रयास कीजिये.
नेता बेचारा क्यों बीच में पिस गया?
वाह क्या स्वदिष्ट भोजन की बाते हो रही हे, अब लालु टिक्का,मनमोहनी टिक्का भी मिलेगे,या इन के नाम से बिरयानी भी मिलेगी? मे तो शुद्ध शाका हारी हु, वेसे आप पता नही कहा कहा से ऎसे टिक्के वाले स्वदिष्ट लेख ले कर आते हे, हम तो शिकायत ही करते रह जाते हे.
वाह जी वाह...दिल खुश हो गया आपका लेख पढ़कर! करारा व्यंग्य किया है आपने! बधाई...
समीर जी
आज आपके ब्लाग पर आने का मौका मिला। लगा देर आयद दुरस्त आयद।
चालीस टिप्प्णिया ही काफी है ये बताने के लिये कि आप कितने पोपुलर है या/और आपके लेख कितने पसन्द किये जाते है। चलिये इस भीड़ मे हम भी शामिल हुये जाते है ।
आपका ये लेख एकबार मे ही कई पहलुओ को छू गया है। वैसे ही जैसे कोई अच्छा शिकारी एक तीर से कई शिकार कर लेता है । आपकी कला प्रशसनीय है ।
जो भी रहिए। गजब की ली है आपने।
लगता है समीरभाई साहब का पासवर्ड एक बार फिर से हैक हो गया है, समीर भाइ सा. इस तरह की पोस्ट लिख ही नहीं सकते। और फिर नेता टिक्का की फॊटॊ? :(
अगर वाकई आपने ही लिखी है तो यही कहेंगे कि शाकाहारी बनने की कोशिश करिये।
आपकें द्वारा उल्लेंखित आदमखोर प्रजाति पर श्री सुरेन्द्र शर्मा जी की कुछ पक्तियाँ पेंश ए खिदमत हैं,अच्छी लगें तो हमारा ब्लाँग विचरण करेंः
"अंतर क्या राजा राम हों या रावण,
प्रजा तों बेचारी सीता हैं,
राजा राम हुआ तो त्याग दी जाएगी,
राजा रावण हुआ तो हर ली जाएगी।
अंतर क्या राजा हिंदू हों या मुसलमान,
प्रजा तो बेचारी लाश हैं,
राजा हिंदू हुआ तों जला दी जाएगी,
राजा मुसलमान हुआ तो दफना दी जाएगी।"
अतः हों सकें तो इस आदमखोर प्रजाती का टिक्का बनवाएँ,रेसेपी जबलपुर भिजवाए,सारे मिल कर खाएँ।
अभी अभी एक मित्र से बात हो रही थी. पता चला कि अच्छी तरह हँसने का मन करे तो उड़न तश्तरी नामक ब्लॉग को पढ़ लेना और सुबह की सैर से जो बच रहे हो तो समीर जी की तस्वीर देख लेना.
दोनों ही बातें सच हैं. इतने सारे लोगो को हँसाने के लिए शुक्रिया.
इस लेख को यहीं तक सीमित कर देना चाहिए. कही नेता टिक्का पॉपुलर हो गया तो सारी मानव जाति ही बदहजमी से मर जायेगी.
इससे खुशी मैं हो जाए दावत... निमंत्रण का इंतजार है
इससे खुशी मैं हो जाए दावत... निमंत्रण का इंतजार है
नेता टिक्का मसाला, कमाल की सोच है । क्या रेसिपी दीजीयेगा दाल चावल रोटी पे । वैसे माँसाहारी माँसाहारी ही बने रहें इसी मे शाकाहारियों की भलाई है वरना शॉर्टेज न हो जायेगा सब्जियों का ? पहले से ही महंगी हुई पडी है ।
मैने सुना है कि शाकाहारी जीव घूँट-घूँट कर के पानी पीते हैं, और मांसाहारी जीव जीभ से लपलपा कर पानी पीते हैं. इंसान घूँट-घूँट कर के पानी पीता है पर बहुत से इंसान मांस खाते हैं. अगर मैने जो सुना वह सच है तो किसी दिन इंसान भी जीभ से लपलपा कर पानी पीने लगेगा. गिलास, बोतल सब बेकार हो जायेंगे. थाल में पियेंगे पानी और शराब. यह मुर्गे कहीं खतरा न बन जायें मानव जाति के लिए.
हम तो शुद्ध शाकाहारी हैं समीर जी पर आपका करारा व्यंग्य बहुत रोचक लगा। बहुत-बहुत बधाई...
"nice article to read"
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