मार्च माह का भोर का वातावरण, न जाने क्यूँ मुझे बचपन से ही भाता है.
आज सुबह ६ बजे ही नींद खुल गई. दलान में निकल आया. वहीं झूले पर बैठ कर या यूँ कहें कि आधा लेट कर अधमुंदी आँखों से आज के अखबार की सुर्खियों पर नजर दौड़ाने लगा. सूरज की रोशनी में हल्की गुलाबी तपिश थी किन्तु मधुयामिनि के वृक्ष की आड़ उसे सुखद सुगंधित और मोहक बना दे रही थी.
झूला स्वतः ही हल्की हल्की हिलोरें ले रहा था. सामने टेबल पर चाय परोसी जा चुकी थी. मैं अलसाया सा, चाय पर नाचती एक मख्खी को नजर अंदाज करता हुआ अपने आप में खोया था. मख्खी को शायद उसे मेरा नजर अंदाज करना पसंद नहीं आ रहा था. वो बीच बीच में उड़ कर कभी मेरे कान के पास और कभी नाक के पास उड़ कर परेशान कर रही थी या अपने होने का अहसास करा रही थी, कि कैसे ध्यान नहीं दोगे.. स्वभावतः मैं इस तरह की बेवकूफियों को नजर अंदाज करते हुये उसमें भी कोई खूबी खोजने का प्रयास करता हूँ. एक बार को उसकी चपलता मुझे भाई भी, मन किया कि आदतानुसार कह दूँ: क्या फुर्ती है?? साधुवाद आपकी उड़ान का.. जब आप कान के पास आती हैं तो क्या मधुर संगीत लहरी उठती है..भुन्न्न्न!!! वाह वाह!! गाते रहिये. एकदम मौलिक संगीत..आनन्द आ गया. पर दूसरे ही पल ख्याल आया कि कहीं इससे उसे गलत हौसला न मिल जाये और वो पहले से भी ज्यादा परेशान करने लगे. यह मैने समय के साथ प्राप्त अनुभवों से सीखा है. . अगर भगाता या उसे मारता या गाली देता, तो भी वो और ज्यादा परेशान करती, विवाद करने का उसका यही तरीका है. उसे मजा आता है इस तरह के विवाद में. बस, मैं उसे नजर अंदाज करता रहा.
कुछ ही पल में देखा कि वो मेरी चाय की गरम प्याली में गिर गई और मर गई. उसका यह हश्र तो होना ही था. वो ही हुआ. मगर, मेरी चाय का सत्यानाश हो गया बेवजह. तो क्या नजर अंदाज करना भी उपाय नहीं है?? फिर क्या किया जाये कि मख्खी भी मर जाये और चाय भी खराब न हो. यूँ तो फिर से चाय बन कर आ जायेगी मगर खामखाह, एक तो खराब हुई.
नीचे दिवंगत आत्मा की एक तस्वीर, अगर आप श्रृद्धांजली अर्पित करना चाहें, तो (ध्यान रहे यह मरने के पूर्व की है):
खैर, चाय फिर आ गई. इस बीच रामजस नाई भी आ गया मालिश करने.
मैं अधलेटा सा, रामजस गोड़ में कड़वा तेल रगड़ने लगा और साथ ही शुरु हुआ उसका दुनिया जहान की अनजान खबरों का खुफिया एफ एम बैन्ड रेडियो. तरह तरह के किस्से सुनाता रहा. कानों विश्वास न हो मगर पास्ट परफॉरमेन्स के बेसिस पर उसकी बात को सपाट रिजेक्ट कर देना भी अपनी ही बेवकूफी होती. पहले भी उसकी बताई असंभव खबरों को संभव होते देख चुका हूँ तो अब कान ज्यादा चौक्कने रहते हैं. सब आदमी अनुभव से ही तो सीखता है.
मालिश चलती रही, बीच बीच में चाय की चुस्की और रामजस का नॉनस्टाप ट्रांसमिशन. कह रहा था कि अपनी कोठरी बेच देगा, कहीं और नया कमरा खरीदेगा. बच्चे बड़े हो रहे हैं. मोहल्ले के बच्चे गाली गलोच करते हैं. उनके साथ खेलने को तो मना कर दिया है पर कान में जो पड़ती है, वही न सीखेंगे, माहौल का बहुत अंतर पड़ता है, साहेब. मैं चुपचाप उसकी ज्ञानवार्ता सुन रहा हूँ. उसके विचार मुझे अच्छे लग रहे हैं मगर मैं चुप हूँ हमेशा की तरह. मैं ऐसे मसलों पर नहीं बोला करता.
तब तक एक छोटी सी प्यारी गोरी बच्ची ने मुस्कियाते हुये मेन गेट खोल कर दलान में प्रवेश किया. मैने आज पहली बार उसे देखा था.
रामजस ने बताया कि यह उसकी बेटी है गुलाबो. मेरे कनाडा जाने के बाद पैदा हुई. अब ७ साल की है और दूसरी क्लास में अंग्रजी स्कूल में पढ़ती है. हिसाब में बहुत तेज है. रामजस तो पढ़ा नहीं, न ही उसकी बीबी इसलिये इसे खूब पढ़ायेगे.
मैने गुलाबो से पूछा कि बेटा, पढ़ना कैसा लगता है?
गुलाबो प्यारी सी मुस्कान के साथ बोली कि बहुत अच्छा.
मैने फिर पूछा कि बड़ी होकर क्या बनोगी?
कहने लगी, डॉक्टल (डॉक्टर)!! वो फिर मुस्कराने लगी.
रामजस कहने लगा कि साहेब, यह तो पगलिया है. हमारे भी अरमान हैं.खूब पढ़ा देंगे १२ तक फिर ब्याह रचा देंगे. अपने घर जाये फिर चाहे, हिमालय चढ़े वरना तो बिरादरी में लड़का कहाँ मिलेगा? और बिरादरी के बाहेर शादी करके अपनी नाक कटवानी है क्या?
मैं सन्न!!!! कभी रामजस को देखूँ और कभी गुलाबो की मासूम आँखों में तैरते सपनों को. किसको सही मानूँ..जो होने को है या जो सोच में है. समझाईश का कोई फायदा रामजस पर हो, इसकी मुझे उम्मीद नहीं मगर जब जब मौका लगेगा, समझाऊँगा जरुर.
बस, बात को बदलने के लिये मैने पूछ ही लिया कि यह गुलाबो नाम कैसा रखा है?
रामजस बताने लगा कि साहेब, जब पैदा हुई तो झक गुलाबी रंग की थी तो हम इसका नाम गुलाबो रख दिये.
मैं मुस्करा दिया और मन ही मन भगवान को लाख लाख धन्यवाद दिया कि हमारे पिता जी के दिमाग में यदि १% भी रामजस के दिमाग का साया पड़ गया होता तो आज हमारा नाम कल्लू लाल होता. बहुत बचे!!!
स्पष्टीकरण एवं बचाव कवच (डिसक्लेमर):
आलेख में उल्लेखित मख्खी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या ब्लॉगर से मेल खाना मात्र एक संयोग एवं दुर्घटना है. यह पूर्णत: मौलिक एवं गंदगी में बैठने वाली सचमुच की मख्खी थी जिसे साफसुथरी जगहों पर उड़ कर सभ्यजनों को चिढ़ाने में मजा आता था. बदमजगी फैलाना ही उसका मजा था. अपनी इसी मजा लुटने की आदात के चलते वह गरम चाय में गिर कर असमय ही काल की ग्रास बनी. ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करें. कृप्या कोई अन्यथा न ले क्योंकि लिखने के बाद जब मैं इसे पढ़ रहा हूँ तो कहीं कहीं कुछ अन्यों से सामन्जस्य दिख रहा है, मगर कहाँ वो और कहाँ यह एक गंदी सी मख्खी..न न!! बस, एक संयोग ही होगा.
रविवार, मार्च 09, 2008
बस, बच ही गये..समझो!!!
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64 टिप्पणियां:
रामजस की सोच को कौन विस्तार देगा? उस की् बेटी की पढ़ाई। उस की पत्नी या फिर कोई और। आप ने उसे कुछ नहीं कहा या फिर अगली मालिश पर?
मक्खी ने भी आपकी चाय में गिर कर गंगा नहा लिया समझिये लेकिन आपने बताया नही अंत तक उस चाय का क्या किया या हम से पढ़ने में कहीं चुक हो गयी और मिस कर गये। अपने नाम को लेकर दूसरी बात जो आपने छोड़ दी वो हम पूरी कर देते हैं अगर आपका नाम कल्लू लाल हो गया होता तो फिर उडनतश्तरी भी आप पर नही फबता बगैर समीर की कैसी उडन तश्तरी। अच्छा ही हुआ जो १% दिमाग भी ना पाया।
बढ़िया पोस्ट---साधुवाद--मक्खी की असमय मृत्यु का दुख हुआ……
मक्खी के आत्म हत्या से हमे बहुत दुख पहुचा है. इसमे सरासर गलती आपकी है ,दर असल वोह मक्खी इस झूले पर रोज झूलती थी.उसकी समस्या यही थी की आज झूला बचेगा या नही ,और उसे यही लगा की नही बचेगा इसी गम मे उसने आत्महत्या आपकी चाय मे डूब कर की ,तुरंत प्रायश्चित की तैयारी करे,१२१ सोने की मक्खीया बनवाकर तैयार रखे दिल्ली आते समय लेते आये हमने पंडित सैट कर लिया है उसे दान दे,आप मक्खी की हत्या के पाप से मुक्त हो जायेगे..:)
बाकी नाम अच्छा लगा और उम्मीद है गुलाबो १२ पढने के बाद आगे के लिये खुद मा बाप को राजी करलेगी..:)
मक्खी मर गयी अच्छा ही हुआ.लेकिन थोड़ा साधुवाद तो बनता ही था. खैर...
और गुलाबो क्या परुली सी नहीं थी?
दिवंगत मख्खी को श्रध्धांजलि पर आपने यह तो नही बताया कि मख्खी थी या मधु मख्खी थी .मख्खी गंदगी फैलाती है तो मधुमख्खी फूलों से रस संग्रह कर शहद देती है और शहद सभी को प्रिय होती है ..
समीर जी आप बाल बाल बचे वरना कललू लाल कालेमल, कलूटा प्रसाद , कालीचरण जेसे कई नामों में से किसी एक को सुशोभित कर रहे होते पर नाम तो आपका अभी भी आपको सार्थक करता है आप ब्लाग पर आ जाते हैं तो समीर सी बह उठती है ।
कल्लू लाल नाम न पड़ने की खुशी में आप रामजस की सोच ही भूल गए... अगली बार एक कोशिश जरूर कीजिये ! वैसे आपका disclaimer अच्छा लगा, पता नहीं कब कौन सी बात किसको बुरी लग जाय :-)
समीर जी! मक्खी की आत्महत्या के संदर्भ में अरुण जी का विश्लेषण हमें तो सही प्रतीत होता है. अत: प्रायश्चित की तैयारी कर लें. यदि १२१ स्वर्ण-मक्खियों का खर्च ज़्यादा लगे तो हमसे संपर्क कर सकते हैं, १०१ में ही काम चला देंगे :)
वैसे अच्छा है कि आपने बचाव-कवच ले लिया वरना क्या पता.......
- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/
अभी तो बच गये ....कब तक बचे रहेंगे...!!!
मक्खी को श्रद्धांजली और आपकी खराब हुई चाय को भी.वैसे दालान में चाय पीने में मक्खी जैसे बिन बुलाए मेहमानों का खतरा तो बना ही रहता है.
गुरुदेव, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना लगाने मे माहिर हो उपर से डिस्क्लेमर ;)
मक्खी और स्वप्न - और दिवा स्वप्न - इनसे कोई बचाव नहीं है।
शायद इसी गम में मेरे कमरे की मखियां भी गमगीन हैं। सुबह से अभी तक दिखाई नहीं दीं।
भई भौत भड़िया।
जिस झूले पर आप हैं, वो कौन सा है।
इत्ता मजबूत झूला।
ये झूले वाले आपको अपने झूले का ब्रांड एंबेसडर काहे नहीं ना बना देते।
प्रायश्चित स्वरुप 11 भोजन भट्ट को आमंत्रित करिये पर उसमें हमारा होना नितान्त जरुरी है।
महिला दिवस अभी ठीक से मना भी नहीं था कि आप पहले तो इस प्राणी को स्त्रीलिंग से सम्बोधित कर रहे हैं, फिर उसे परेशान करने वाली कह रहे हैं, ऊपर से उसकी हत्या के लिए वातावरण तैयार कर रहे हैं। अरे भाई ,क्या आप चाय को झटपट नहीं पी सकते थे ? क्या आप चाय को ढक नहीं सकते थे ? मुझे आप जैसे संवेदनशील कवि हृदय व्यक्ति से यह आशा नहीं थी ।
कम से कम उसकी अकाल मृत्यु पर एक कविता ही लिख दीजिये । हमारा शोक संदेश उसके परिवार तक पहुँचा दीजियेगा प्लीज़ !
घुघूती बासूती
मक्खी की अकाल मृत्यु के शोक में हम भी शामिल हैं, मक्खी जी जैसे गंगा नहा लीं जरूर स्वर्ग प्राप्ती होगी, मालिश वाले को कहिएगा जरा पता लगा आए, गुलाबो के भविष्य की खातिर उस के पिता का ब्रेन वाश करना बहुत जरुरी है, लक्स सोप का इस्तेमाल किजिएगा सब बेकार के विचारों की काई धुल जाएगी।
:) आप तो मक्खी क्या, धूल के कण को भी एक खूबसूरत पोस्ट का बहाना बना सकते हैं।
वैसे, डिस्क्लेमर लगाकर आपने मक्खी की पहचान की पुष्टि तो कर ही दी है।
कितनी महान मक्खी थी.......मर तो गयी पर एक पोस्ट के लिए मसाला छोड़ गई.
कल से हमे भी चाय लेकर लॉन में बैठना पड़ेगा
हमें नहीं पता था कि आप भारत मक्खी मारने आए हैं :)
Kya Kahna
कल्लू लाल नहीं
कल्लू कालिया या
काला कल्लू.
आपकी कहन शैली रोचक एवं प्रभावकारी है। यही कारण है कि आपका यात्रा वृत्तान्त सबको बांधे हुए है।
बधाई।
चलिए इससे ये तो साबित हुआ ही मक्खिया किसी सरहद की सीमा नही मानती ओर न ही किसी खास कंपनी की चाय पर किसी खास अंदाज़ मी भिनभिनाती ,पर जो भी कहिये आप के ठाट निराले है ....धुप मी अख़बार पड़ने का सुख विर्लो को ही मिलता है........
खैर छोडिये इन बातो को आपको पढ़कर मजा आया .....ऐसे ही बांटते रहिये.....
बहुत खुब,चलिये हम भी मक्खी की आत्मा की शान्ति के लिये प्राथना करते हे, वेसे मक्खी को जलाया गया हे या फ़िर दफ़्नाया
बहुत बढिया लिखा है जो कहना चाहते थे सब समझ गए होगें...लेकिन मख्खी का फोटॊ देखा ...वह सीधी क्यों थी? यदि मख्खी मर गई थी तो उसे चित होना चाहिए था।तभी उस की सही फोटो आती:)
वाह गुरूजी ...हमेशा की तरह बढ़िया लिखा है ...आपका लेखन सहज है..और पढ़ने के लिये बाध्य करता है
कई बार पढ़ने के बाद लगा कि मक्खी का अंत ऐसा ही होना था सो हुआ... लेकिन गुलाबो का जीवन महके इस की कामना है. यकीन है आप रामजस पर अपना जादू चला ही लेंगे.
आप गलत समझ गए कि मख्खी आपको परेशान कर रही थी। आप की छवि और लेटने के अंदाज़ पर लट्टू हो गई थी। जरा ग़ौर से फिर आंकने का प्रयास कीजिए - कान के पास मधुर संगीत से रिझाने की कोशिश कर रही थी। आपने जो रवैया दिखाया तो उस का दिल टूट गया। बस वही हुआ जो नाकाम प्रेमियों का होता है, बेचारी ने आपके सामने ही डूब कर आत्महत्या कर ली। चलो मर के भी कुछ कर गई- आपके इस संस्मरण की हीरोईन बन कर अमर हो गई।
uff aap antriksh ke prani log kitnaa kaatilaanaa likhte aur sochte hain mahraj. mare ke baad makhi bhee jaroor kisi doosre grah par chali gayee hogee kisi udan tashtari mein baith kar.
समीर जी, आप तो बाल-बाल बच गये, खैर मनाइये.. मगर रामजस के अरमानों की चाय में आज के उपधिया कब गिर जायें.. कुछ पता नहीं.. मालिश होती रहनी जरूरी है..
भई.. एक तीर से कई निशाने लगाने में आपका जवाब नहीं.. विश्व के पहले ब्लागरिया को बधाई.. हमारी निगाह इस पर तो बस आज पड़ी..
पोस्ट तो मजेदार है ही, पर उससे भी ज्यादा जोरदार आपका डिस्क्लेमर बन पड़ा है.
समीर जी,
उस मक्खी से मिलती जुलती एक मक्खी मुझे अपने आस पास दिखाई दे रही है.. कही उसका पुनर्जन्म न हो गया हो .. दोबारा चाय तैयार करवाऊं क्या ?
:)
bahut mazedar post thi udan tashtari ji,gulabo ki kamana puri ho,makhiji ke liye hamari taraf se do phool arpit:):):),muskan ke liye shukriya.
'ठेले पर पर्वत' पढ़ा था, 'झूले पर पर्वत' देख लिया :)
आप किस गंभीरता में हास्य निकाल लेंगे...और किस हास्य से गंभीर बना देंगे ये तो आप ही जानते है।
ओह्ह्ह च -च -च ....सच उस मक्खी के जाने का बहुत अफ़सोस हुआ ..हमने तो यह दुखद समाचार अभी ही पढ़ा ..ईश्वर उसकी आत्मा को शान्ति दे :)और गुलाबो को उसके सपने सच करने की शक्ति .. वैसे आपका नाम समीर रखे जाने की बधाई भी है साथ साथ :)
मक्खी की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार आप हैं ,वैसे मक्खी ने भी आपकी चाय में गिर कर गंगा नहा लिया,इसलिए हिसाब बराबर , प्रायश्चित की कोई आवश्यकता नही !मक्खी के बहाने एक खूबसूरत पोस्ट , बधाईयाँ !
क्या रामजस की बेटी का स्वप्न भी मक्खी की अकाल मृत्यु को प्राप्त होगा ?
उडनतश्तरी की उड़ान के क्या कहने...। मक्खी जैसों के लिए गरम चाय में गिरकर आत्महत्या करने का अपना ही मज़ा है। हम मक्खी की आत्मा की शांति की प्रार्थना कर रहे हैं। कुछ ब्राह्मणों को श्राद्ध के भोज में कब आमंत्रित कर रह हैं?
हम तो इस बात को बड़े खुश हुआ करते थे कि मक्खियां भारत में ही हुआ करती है परन्तु आज आपने दिल तोड़ दिया हमें यह बता कर कि मक्खियां आपके यहां कनाडा में भी होती है .. परन्तु यह जानकर खुशी हुई कि रामजस नाई.. कनाडा पहुंच गये हैं।
वैसे अगर मधुमक्खी थी तो आपने नाहक चाय बर्बाद की.. निचोड़ कर पीया जा सकता था, कुछ मिठास ही बढ़ जाती।
भगवान मक्खी की आत्मा को शान्ति प्रदान करे और रामजस को सदबुद्धि दे कि गुलाबो को खूब पढ़ाये लिखाये।
मक्खी के मरने का दुख हुआ.
जब आप कान के पास आती हैं तो क्या मधुर संगीत लहरी उठती है..भुन्न्न्न!!! वाह वाह!! गाते रहिये. एकदम मौलिक संगीत..आनन्द आ गया. bahut sahi kya kahne.
भाई साब, अब कब तक शोक मानते रहेंगे मक्खी की मौत का? चलिए नयी पोस्ट ठेलिए.
रामजस नाई को तो उसकी " धाराप्रवाह खबरोँ को सुनाने के हुनर के एवज मेँ "रेडियोनामा " का "आजीवन सदस्य " बनाय लेते हैँ :-))
और प्यारी "गुलाबो बिटिया " को " चोखेरबाली " का निमँत्रण है !!
- और मेरी ढेर सारी दुआएँ भी ~~
वसँत का आगमन अवश्य हुआ है
आपको व भाभी जी को भी होली की बधाइयाँ -
आखिर कब तक आप मख्खी का शोक मानते हुए अज्ञातवास पर रहेंगे . भाई होली आ गई है आप प्रगट हो जाइए .आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा मे साथ ही होली पर्व पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक शुभकामना .
काहे की आत्महत्या जी....आप पर मुकदमा दर्ज करवाएंगे हम
काहे की आत्महत्या जी....आप पर मुकदमा दर्ज करवाएंगे हम
आपको होली की बधाई. हम तो अपने कंप्यूटर से परेशान है. लिख और चाहे पढ़ कितना भी लें कमेन्ट लगाने या वर्डप्रेस पर जाकर लौटने के बाद एक बार इंटरनेट से बाहर जाना पड़ता है, ऐसे में समझ नहीं पाते क्या करें, पूरी तरह खराब हो तो फिर इसे सुधरवाये तो बात बने. आज आपके सब लेख पढ़ डाले जो नहीं पढे थे बहुत बढिया लिखते हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा का काम भी करते हैं. आपके परिवार सहित निरंतर प्रसन्न रहने की कामना होली के इस पावन पर्व हम करते हैं.
दीपक भारतदीप
खूबसूरत ब्लॉग
चुनिंदा शब्द
पारखी नज़र
कुछ सच्चे ऐहसास
और जज़्बात
is writeup ke liye nahi , poore blog ke liye
कल बधाई दे नही पाई सभी लोगो को घर मेहमानो से भर गया था...:)
समीर भाई आपको व सारे परिवार को होली की शुभकामनायें...
ये आपने क्या किया समीर जी ..
मैंने इस मक्खी की तस्वीर पहले भी देखी थी एक न्यूज़ चैनल पर...
जहाँ तक मुझे याद आता है वो बता रहे थे कि ये मक्खी WWF प्रतियोगिता में जाने कि तैयारी कर रही थी और क्वालीफाइंग दौर में सफल भी हो गई थी...
यही विडम्बना है जैसे ही खेलों में कुछ अच्छे लक्षण नजर आते हैं कहीं न कहीं से कुछ ग़लत हो जाता है (कर दिया जाता है) ..खैर
समीर भाई,मुझे लगता हॆ वह चाय हो न हो वही थी, जो सुनिता जी ने अपने यहां दावत में शामिल सभी ब्लागर मित्रों को उपहार स्वरुप दी थी.उस चाय का स्वाद वह मक्खी भी चखना चाहती थी.हो सकता हॆ, चाय के प्रति अपने प्रेम का इजहार उसने,आपके कान पर भिनभिनाकर किया हो.लगता हॆ अपनी बात आपको समझा न सकी ऒर अपनी जान से हाथ धो बॆठी.
आपके लीखे को पढ्ते-पढते मै भि मक्खि कि तरह खयालो मे डुब गया। जवाब नहि है आपका।
पढ्ते-पढते मुझे अपने गांव की याद सताने लगी।
मक्खीजी की असामयिक मृत्यु पर एक पुष्प हार हमारी तरफ़ से भी.बाकि गुलाबो जैसी किस्मत वाली कन्यायें तो आपको घर -घर में मिल जायेंगी.समस्या तो सिर्फ़ ये है कि इस विकराल समस्या को चुनौ्ती कैसे दी जाये.हमारे देश में मक्खी management भी एक समस्या है और कन्या हो्ना भी.
स्टोरी आफ़ मोरेल
दूसरों को चैन से जीता देख, बेचैन होने वालों
व इरादतन मज़ा किरकिरा करने वाले बेमौत
ही मरते हैं ।
दुसरी जिंदगी जीयें- ये सच मे बहुत अच्छा है और ईस्मे आप वो सब कर सकते है जो आप अपनी लाईफ मे नही कर सके है और अपना घर,जमीन, बसा और खरीद सकतें है। आपके रजीस्टर कर्ते ही आपके नाम का एक अवतार पैदा हो जाता है। ये सच मे बहुत मजेदार है। एक बार देखें जरुर की ये कहां और किस साईट पर रजीस्टर करना है। और कैसे चलता है।ये रहा लींक ---->> http://kunnublog.blogspot.com/2008/03/blog-post_26.html
बहुत दिनों बाद पढ़ी आपकी रचना…
मजा आ गया…।
कुछ कहा भी तो मक्खी… :)
काफी मन मेरा भी है आपसे मुलाकात करने का…
आप मुंबई में ही हैं बहुत अच्छा लगा…
मेरा cell no hai -- 9967144490
बिल्कुल मिलते हैं।
thanks sameerji,
i have seen u in vivechna`s event on theatre day,on that day ,i have come to know about bloggin in hindi,and after few days pankaj swami ji helped me to make my blog.now i am learning fast.
ashish pathak
jabalpur
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ashish pathak
jabalpur
ये लेख बहुत अच्छा लगा आप गुलाबो के पिताजी का दिमाग बदल सकते हैं क्योंकि जब वो खुद ना पढ़कर बेटी को पढ़ाने के लिये तैयार हो गये हैं तो आगे के लिये भी अपनी बच्ची को जब उसके पैरों पर खड़ा कर देंगे तो ज्यादा खुशी महसूस करेंगे और यदि हम हर व्यक्ति एक -एक व्यक्ति की भी मानसिकता बदल पाये तो फिर देखिये कितने लोग होंगे जो अपने बच्चों को उनके पैरों पर खड़ा कर सकेंगे
वो बेचारी मक्खी... पर बेचारी कहाँ !वो आपको परेशान जो कर रही थी... पर आप उसका शुक्रिया अदा करें ...जाते-जाते इतना अच्छा लेख जो लिखा गई...
बहुत बढ़िया....क्या कहना आपकी लेखन शैली का!पहली बार आपको पढा पर अब लगता है,बार बार पढना पड़ेगा
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