इधर महफिल, शायर फैमिली, ई कविता, हिन्द कविता और अन्य मंचों से जुडे सभी मित्रों के ईमेल लगातार मिल रहे हैं कि मात्र कवित्त क्यूँ नही करते? क्यूँ डरते हो एक विधा को अपनाने में? अब क्या बतायें उन्हें. चाहते हैं कि कविता भी जस्टिफाई हो और गद्य भी. बस कोशिश जारी रहती है कि दोनों के बीच सामंजस्य बना कर चल पाये और दो नावों के सवार की तरह डूबे नहीं. तो आज कविता पेश है.
मगर वादा है कि अगर ध्यान से पढ़ा जाये और तो गद्य प्रशंसकों को भी यह निराश न करेगी. एक संदेश है इसमे सही दिशा का और क्या सपना मेरा है इस समाज से. थोड़ा गौर फरमायें और बतायें कि मैं सफल रहा कि नहीं-अपनी बात कहने में. :)
बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि बकोल वस्ल:
अपने अंदर ही सिमट जाऊँ तो ठीक
मैं हर इक रिश्ते से कट जाऊँ तो ठीक.
थोड़ा थोड़ा चाहते हैं सब मुझे
मैं कई टुकड़ॊं में बँट जाऊं तो ठीक.
तुम ने कब वादे निभाये 'वस्ल' से
मैं भी वादों से पलट जाऊँ तो ठीक.
अब मुझे सुनिये:
सपना एक निराला है
अगर हमारे रचित काव्य से, तुमको कुछ आराम मिलेगा
यकीं जानिये इस लेखन को, तब ही कुछ आयाम मिलेगा.
भटकों को जो राह दिखाये, ऐसी इक जब डगर बनेगी
दुर्गति की इस तेज गति को, तब जाकर विराम मिलेगा.
इसी पाठ की अलख जगाने, हमने यह लिख डाला है
पूर्ण सुरक्षित हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
भूख, गरीबी और बीमारी, कैसे सबको पकड़ रही है
हाथ पकड़ कर बेईमानी का, चोर-बजारी अकड़ रही है.
इन सब से जो मुक्त कराये, ऐसी जब कुछ हवा बहेगी
छुड़ा सकेगी भुजपाशों से, जिसमें जनता जकड़ रही है.
इसी आस के भाव जगा कर, गीत नया लिख डाला है
पूर्ण प्रफुल्लित हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
शिक्षित और साक्षर होने में, जो है भेद बता जाती हो
नैतिकता का सबक सिखा कर, जो इंसान बना पाती हो
भेदभाव मिट जाये जिससे, ऐसी एक किताब बनेगी
मानवता की क्या परिभाषा, ये सबको सिखला जाती हो.
ऐसी सुन्दर कृति सजाने, यह छंद नया लिख डाला है
पूर्ण सुशिक्षित हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
मेहनत करने से जो भागे, उनका बिल्कुल नाम नहीं है
डर कर जिनको जनता पूजे , वो कोई भगवान नहीं है
कर्म धर्म है सिखला दे जो, ऐसी अब कुछ बात बनेगी
जात पात में भेद कराना, इन्सानों का काम नहीं है.
धर्म के अंतर्भाव दिखाता, इक मुक्तक लिख डाला है
पूर्ण सु्संस्कृत हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
--समीर लाल 'समीर'
गुरुवार, जुलाई 19, 2007
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39 टिप्पणियां:
अगर हमारे रचित काव्य से, तुमको कुछ आराम मिलेगा
यकीं जानिये इस लेखन को, तब ही कुछ आयाम मिलेगा.
वाह लालाजी,
अच्छी कविता गढ़ी है आपने ...बधाई
वाह लालाजी आपने बातें भी क्या खूब कहीं हैं
किसकी मैं तारीफ करूँ, बातें सारी ही सही हैं।
समीर जी, सारी लाईनें एक से बढ़कर एक। बहुत खूब
शिक्षित और साक्षर होने में, जो है भेद बता जाती हो
नैतिकता का सबक सिखा कर, जो इंसान बना पाती हो
वाह.
मुझे मुक्तक और कविता मे भेद क्या होता है वो नही पता. कृपया प्रकाश डालें. और कोई चाहे कुछ भी कहे, एक विधा में नही हर विधा मे टाँग घुसेडिये. खाली बेट्समेन नही ऑलराउंडर बनिए, ज्यादा चांस रहेंगे. है कि नहीं?? :)
साधू साधू... ऐसा ही एक निराला सपना अपना भी है.
क्या बात है !अति सुन्दर !!
ಹಮ್ ತೊ ದಿಲ್ ಸೆ ಚಾಹತೆ ಹೈ ಕಿ ಆಪ್ ಕವ್ತಾಯೆ ಹೀ ಲಿಖೆ
हम तो दिल से चाहते है कि आप कविताये ही लिखे.लोग मजबूरी मे ही सही हमे पढना तो शुरु कर देगे..सामान्य सी बात है जब मेल मे बर्थ नही मिलती तो लोग पैसेंजर मे ही जाते है ना..:)
ಕೃಪಯಾ ಧ್ಯಾನ್ ಸೆ ಪಢೆ ಔರ್ ಬತಾಯೆ..?ये हम आजकल कन्नड मे लिखना सीख रहे है ,अगले साल पढना सीखेगे ,अगर आप पर पढना आती हो तो पढ कर बताये कि हमने क्या लिखा है..?.:)
बहुत से प्रभावी संदेश है आप की इस कविता में जिन्हें अमल मे ला कर इस धरती को सवर्ग से भी सुन्दर बनाया जा सकता है..
मेरे स्वाद की रचना है इसलिये आपको स्वादूवाद
शिक्षित और साक्षर होने में, जो है भेद बता जाती हो
नैतिकता का सबक सिखा कर, जो इंसान बना पाती हो
...
ऐसी सुन्दर कृति सजाने, यह छंद नया लिख डाला है
पूर्ण सुशिक्षित हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
कविता लगता है जैसे पूरी ईमानदारी से लिखी गयी है।
समीर लाल जी की पोस्ट पढ़ने के प्रारम्भ में मन हास्य की आशा कर रहा था पर पढ़ते-पढ़ते सोचने लगा और अंत तक आते-आते अपने वैल्यू-सिस्टम पर दृष्टिपात करने लगा.
सोचने का इतना जल्द ट्रांसफार्मेशन बहुत कम होता है. यही इस पोस्ट की सार्थकता है.
बधाई.
सुप्रभात,गुरुवर...आपके दर्शन मात्र से जीवन सफ़ल हुआ...और फ़िर काव्य का ये प्रवाह..इसके तो क्या कहने...हमेशा एक सच्ची सीख देते है आप...अच्छा लगा पढ़कर।
मेहनत करने से जो भागे, उनका बिल्कुल नाम नहीं है
डर कर जिनको जनता पूजे , वो कोई भगवान नहीं है
बहुत अच्छा लगा।
सुनीता(शानू)
हम तो हाजिरी लगाने आये थे. लेकिन कविता पूरी पढ़नी पड़ गयी. अब मेरा हौसलेवाला टानिक झेलिए.
डरकर जनता जिसको पूजे वह कोई भगवान नहीं है. बहुत अच्छी लाईन है. हमारी सोच ही उलटी हो गयी है. भय और दुख न हो तो भगवान याद ही नहीं आते. और भगवान का सानिध्य तभी तक जब तक भय और दुख है. थोड़ा मुक्त हुए और भाग गये फिर उसी दुनिया में जहां से भागकर आये थे. भगवान तो हर अभावग्रस्त के हृदय में बसता है. दीन-दुखी, अभावग्रत, की सेवा करनेवाला, उनके बारे में सोचनेवाले के साथ भगवान निरंतर रहता है.
भूख, गरीबी और बीमारी, कैसे सबको पकड़ रही है
हाथ पकड़ कर बेईमानी का, चोर-बजारी अकड़ रही है.
इन सब से जो मुक्त कराये, ऐसी जब कुछ हवा बहेगी
छुड़ा सकेगी भुजपाशों से, जिसमें जनता जकड़ रही है
इसी आस के भाव जगा कर, गीत नया लिख डाला है
पूर्ण प्रफुल्लित हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
---अति सुन्दर।
और हाँ जो सर्व गुण सम्पन्न है उसे बंटने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। दुआ है आपकी सर्व गुण सम्पन्नता सदैव स्वस्थ रहे।
ह्म्म, आपने अपनी उपस्थिति सब जगह दर्ज करवा दी है, अब उसके बाद खामोश बैठ जाओगे तो लोगों से कैसे सहन होगा, मेल तो करेंगे ही ना
मोटों वाली सीरिज आगे क्यों नहीं बढ़ायी जी
यह क्या समीर जी, आप एक कवि ह्रदय रखते हुए भी यह कहते हैं कि दो नावो पर ....\यकिन जानिए आप बहुत बेहतर व बहुत अच्छा लिखते हैं। मुझे तो आप की लिखि रचना बहुत पसंद आई।खास कर ये पंक्तियाँ-
मेहनत करने से जो भागे, उनका बिल्कुल नाम नहीं है
डर कर जिनको जनता पूजे , वो कोई भगवान नहीं है
कर्म धर्म है सिखला दे जो, ऐसी अब कुछ बात बनेगी
जात पात में भेद कराना, इन्सानों का काम नहीं है.
धर्म के अंतर्भाव दिखाता, इक मुक्तक लिख डाला है
पूर्ण सु्संस्कृत हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
आप गद्य ही लिखिए समीर जी, वो भी आप चकाचक लिखते हैं। लोगों के बहकावे में मत आएँ, कविताओं की इतनी मार्किट नहीं है!! ;)
समीर जी आप तो हरफ़नमौला हैं... जब भी कविता करते हैं ....कमाल करते हैं.... वैसे मेरी राय में आप जैसे हैं अच्छे हैं... आपके लेख हमेशा ही संग्रह्निया रहेंगे
बहुत सुन्दर पँक्तियाँ, साधुवाद!
यकीन मानिए यह टिप्पणी कविता पढ़कर ही कर रहे हैं। :)
ये आपने क्या किया? इतना महत्वाकांक्षी सपना पाल लिया। मेरी कामना तो यही होगी कि इनमें से सब नहीं तो कुछ जरूर पूरे हो जायं। वैसे आपने बहुत जानदार गीत लिखा है। बेझिझक लिखिए। आपको इसके लिए भूमिका बांधने की जरूरत नहीं। आपका गीत आपकी काबिलियत बखान कर रहा है।
यथार्थ को दर्शाती, सुन्दर सपनों का संसार सज़ाती, आपकी ये रचना बहुत अच्छा संदेश देती है, काश ! सबका यही सपना बन जाये, काश !ये सपना सच हो जाये, तो एक खूबसूरत समाज का निर्माण संभव हो जाये।
बधाई स्वीकारें
बढ़िया लिखा आपने..विविधता बनाए रखें
सही है। सपना देखकर अब साकार करिये सारे सपने। :)
क्या बात कही है आपने यकीं जानिए हमें आज अवश्य ही कोई और दरख्त की छांव मिलेगी…।
हर पंक्ति अपने-आप में ज्ञान का सागर लिए गहरा और विशाल है, कहते है हम भी आज ऐसी सार्थक उम्मीद का यह सपना जरुर निराला है…।
भूख, गरीबी और बीमारी, कैसे सबको पकड़ रही है
हाथ पकड़ कर बेईमानी का, चोर-बजारी अकड़ रही है.
इन सब से जो मुक्त कराये, ऐसी जब कुछ हवा बहेगी
छुड़ा सकेगी भुजपाशों से, जिसमें जनता जकड़ रही है.
बहुत बढिया समीर जी। आप को पढ्ता हूँ तो जोश से भर जाता हूँ। आपकी ज्यादा जरुरत भारत को है।
तुम ने कब वादे निभाये 'वस्ल' से
मैं भी वादों से पलट जाऊँ तो ठीक
क्या ज़माना आ गया है, किसी का भरोसा नही रहा :(
समीर भाई,
बहुत बढिया कविता लिखी है आपने --
आप भी न्युयोर्क आ जाते तो मिलना हो जाता.
काश आपने जो सच्ची से लिखा है वो साकार हो जाये.
स स्नेह,
-- लावण्या
गुरुवर, क्या बात कही है?
भटकों को जो राह दिखाये, ऐसी इक जब डगर बनेगी
दुर्गति की इस तेज गति को, तब जाकर विराम मिलेगा.
साधू साधू!
"अगर हमारे रचित काव्य से, तुमको कुछ आराम मिलेगा
यकीं जानिये इस लेखन को, तब ही कुछ आयाम मिलेगा.
भटकों को जो राह दिखाये, ऐसी इक जब डगर बनेगी
दुर्गति की इस तेज गति को, तब जाकर विराम मिलेगा."
आपसे ऐसी गंभीर रचना की उम्मीद करते हैं
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
समीर जी,
बहुत ही सुंदर कविता है और उतने ही सुंदर विचार भी. आप गद्य और पद्य दोनों में यूँ ही लिखते रहें, आप जैसा सवार कम से कम गिर तो नहीं सकता.
अरे वाह ! .... तालियाँ !!!!!!
अगली कविता का इन्तेज़ार रहेगा
ये जवाब ववाब देने का सिलसिला बंद किये है का भाई...:)
बहुत ख़ूब. कवितायेँ आपकी अच्छी हैं, पर गद्य भी अच्छा है. किसी की रोक-टोक की सलाह कभी न मानिएगा. जो माना में आए लिखिए. विधा कथ्य ही चुनने दें तो ठीक.
बहुत बढिया!बधाई।
रीतेश
धन्यवाद.
तरुण भाई
बहुत आभार.
पंकज
सही कह रहे हो. वही प्रयास जारी है. कभी समझाते हैं कविता और मुक्तक में अंतर अपने तरीके से. :)
धन्यवाद.
संजय भाई
मिलकर देखे जायें फिर तो ऐसे सपने. :) आभार.
ममता जी
आभार.
अरुण
अमां यार, हमारा रंग देखकर साऊथ का तो नहीं समझ रहे हो कि कन्नड़ जानते होंगे. कई लोग यहां समझते हैं कि मैं श्रीलंका का तमिल हूं और तमिल में बात करने लगते हैं. :) अरे भईये, ठेठ गोरखपुरिया और उस पर नीम जबलपुरिया हैं.
चलो, आदेश है तो ज्यादा कविता ही की जायेगी, कौन पंगे में पड़े. आजकल लिख तो धांसू रहे हो.
मोहिन्दर जी
स्वादूवाद भी बहुत खूब रही, इसी पर साधुवाद. :) बहुत आभार रचना पसंद करने के लिये.
कुमार आशीष जी
आपने खूब पहचाना..सच में बड़ी इमानदारी से लिखी है. आभार.
ज्ञानदत्त जी
पोस्ट की सार्थकता को पहचानने के लिये साधुवाद. आपकी शुभकामनायें हैं. बहुत आभार.
सुनीता जी
अरे, बस आपका स्नेह है. बहुत आभार आप ऐसा सोचती हैं. साधुवाद. बस ऐसे ही हौसला बढ़ाती रहें.
संजय भाई
आपने ईमानदार विचार दिये हैं. अच्छा लगा. रचना पसंद करने और हौसला देने के लिये आभार.
रत्ना जी
आभार आपका पसंद करने और इतनी सुंदर शुभकामना के लिये. आपके आने से महफिल जम जाती है. आगे लिखने का हौसला मिलता है.
संजीत
अरे भाई, चुप कहाँ बैठे हैं, जरा धीरे धीरे चल रहे हैं बस. :)
आलोक भाई
अब मोटी वाली सीरिज है तो आगे बढ़ने में समय तो लेगी. थोड़ा बैठ लें, सुस्ता लें. फिर आते हैं न. :)
परमजीत जी
वाह, आपने तो हौसला दुना क्या कई गुना कर दिया. बहुत आभार.
अमित
मुझे आपकी पसंद मालूम है, हा हा!! आपके लिये भी मसाला लाते रहेंगे, निश्चित आपके लिये ज्यादा..तीन गद्य पर एक पद्य और वो भी गद्य के साथ मिला कर. अब ठीक... :)
सजीव भाई
यही प्रेम है जो सब लिखवाता रहता है. चलता रहेगा यह सिलसिला-वादा रहा. बस हौसला अफजाई करते रहें. बहुत आभार.
श्रीश मास्साब
आप और कविता पर पधारे.धन्य हो गया लिखना. पढ़कर टिपियाने के लिये आभार. इस कष्ट को मुझसे ज्यादा कौन समझेगा. :)
सत्येंन्द्र भाई
बहुत आभार मित्र. सपने तो उंचे देखे ही जा सकते है तभी कुछ हासिल होगा.
भावना जी
बहुत आभार आपके आने का और सपनों को हौसला देने का. अब तो जरुर सच होंगे एक दिन.
बधाई के लिये बहुत आभार. आती रहें हौसला बढ़ाने.
मनीष भाई
आभार. आपका आदेश आज तक तो टाला नहीं, जरुर विविधता बनी रहेगी. न हो तो जरुर टोंके.
अनूप भाई
आपका हर कदम साथ है तो जरुर होंगे एक दिन साकार सारे सपने. बहुत आभार. बस स्नेह बनाये रखें.
दिव्याभ भाई
बहुत बहुत आभार. बस मिलकर इसे यथार्थ में बदलें यही तमन्ना है. आपका आभार. यूँ तो आप हमेशा ही हमारा हौसला बढ़ाते हैं. अच्छा लगता है.
दर्द हिन्दुस्तानी जी
यह तो हम जैसे नाचीजों के लिये आपने बहुत बड़ी बात कर दी. हम दिल से तो हमेशा हिन्दुस्तान में ही हैं भाई. मगर आज आपके कहने ने हमें सोचने को मजबूर किया कि हम यहाँ बैठे क्या कर रहे हैं. प्रयास हमेशा है भाई कि लौट चलें बस कुछ न कुछ कारण बन जाते हैं. मगर एक दिन जरुर वापस वहीं होंगे यह विश्वास है और अब तो आप का आगाज भी है. बहुत आभार रचना पसंद करने का.
राम चन्द्र जी
अरे, इतना मायूस न हों..यह तो एक भाव है. आप आ गये तो कुछ भी लिखना सफल हो गया.
लावण्या जी
आपका आशीश रहेगा तो एक दिन कुछ तो साकार हो ही जायेगा. मुझे बहुत खेद है कि आने के एक घंटे पहले कैंसल करना पड़ा. जल्द ही दर्शन प्राप्त करुंगा आपके. यही अभिलाषा है. आप स्नेह बनाये रखें.
विकास
तुम युवा हो..तुम्हें ही इन्हें साकार करना है..साधु साधु तो ठीक है. इसके लिये आभार ले लो. :)
शास्त्री जी
यह मेरा सौभाग्य कि मैं आपकी आशाओं पर खरा उतरा. बहुत आभार.
अजय भाई
अरे, आपने तो हमें चढ़ा ही दिया. आपको हम पढ़ते रहते हैं हिन्द युग्म पर. बहुत सही दिशा ली है आपने. बस यूं ही हौसला बढ़ाते रहें. यकीं जाने आपकी हर रचना पढ़ी है. आपका आना अच्छा लगा.
रिपुदमन
बहुत आभार. अगली भी जल्दी ही आती है. :) हौसला बढ़ाते रहो.
अरुण
चालू कर दिया फिर से.
ईष्ट देव जी
आपके आने से हौसला मिलता है. आपने पसंद किया, बहुत आभार. आपकी सलाह पर चलूंगा. बस आप आते रहें.
प्रवीण भाई
आजकल आप हैं कहाँ? अरे भाई, जारी रहें. आपकी बधाई मायने रखती है, बहुत आभार.
आते रहें.
accha vichar achhe bhaav ke saath ,bahut sundar hai ji :)
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