कवि की हैसियत से भी उनका यही हाल था. कवि सम्मेलन का न्यौता उतना आवश्यक नहीं जितना उन्हें यह पता लगना कि फलां जगह कवि सम्मेलन है. फिर तो वो मेनेजमेन्ट एकस्पर्ट थे. आपको निश्चित मंच से कविता पढ़ते नजर आयेंगे और आयोजक उनके आगे पीछे, न बुलाने के लिये क्षमायाचना की मुस्कराहट चेहरे पर चिपकाये हुये. खैर, यह उनकी शक्सियत ही थी और उनका मैनेज करने का अंदाज.
हाँ, तो बात चल रही थी हर शव यात्रा में राजू भाई की शिरकत होती थी. वही धुला हुआ सफेद कुर्ता पैजामा, आँखों पर काला चश्मा, हाथ में पान पराग और तुलसी का ड्ब्बा. चेहरे से सबसे ज्यादा गमगीन. सुबह से जुटे हर इन्तजाम में. पूरे प्रोजेक्ट मैनेजर की तरह. खुद एक काम नहीं करना और दिखे ऐसा कि सब भार उन्हीं के कंधों पर आ गिरा है. आप उन्हें देखते ही पायेंगे, 'पप्पू बेटा, सुन वो बांस आ गये क्या. जरा यहाँ ले आओ. छोटू सुन, जरा वो रस्सी ले आ. मुन्ना, उधर से बाँधना शुरु कर. रामू, जा ३ किलो घी खरीद ला. भईया से पैसे ले ले और आ कर हिसाब देना. लौट कर हिसाब खुद लेते और पैसे अपनी जेब में. खुद कुछ नहीं करना, बस हल्ला गुल्ला और पैसे वापस लेना. सुबह से सारा सामान अलग अलग लोग ला रहे हैं. कभी भईया से पैसे ले लो कभी चाचा से और लौटकर हिसाब ये लें.अब मरे जिये में उनसे तो कोई हिसाब मांगने से रहा. और न ही ओरिजनल पैसे उन्होंने लिये थे परिवार वालों से, तो अगर कभी शक जाकर कोई बुरा भी मान गया तो छोटू, मुन्ना लोग बदनाम हों. राजू भाई का क्या. यही तो होता है सही प्रोजेक्ट मैनेजर-सब वाह वाही हमारी बाकि गल्तियाँ टीम मेम्बरर्स की. काम एक नहीं आता और न करना है और सबसे ज्यादा व्यस्त.
कुछ खास जानकार बताते हैं कि उनकी आजिविका का साधन भी यही था. एक बार एक मय्यत में मैने छिप कर गिने थे, लगभग २५०० से ३००० हिसाब वापस लेते लेते अंदर गये थे. तभी मैं समझा एक एक सामान के लिये यह लोगों को क्यूँ दौड़ाते हैं, इकट्ठे काहे नहीं मंगा लेते.
कवि सम्मेलन तो शायद इसी ब्लैक को व्हाईट करने का तरीका रहा होगा. जैसे सरकारी अधिकारियों और दो नम्बर की आय वालों के पास कृषि भूमि. कवि सम्मेलन का मंच उनके लिये साहित्य भूमि न हो कृषि भूमि ही थी. जो उनकी इस दो नम्बर की आय को एक नम्बर का जामा पहनाने का कार्य बड़ी मुस्तैदी से करती. चलिये, जाने दिजिये, इस पचड़े में क्या पड़ना.
तो राजू भाई,शुरु से अंत तक हाजिर रहते और जब सारे कर्मकांड हो जाते तो जो मरघट में आखिर में आत्मा की शांति के लिये भाषण दिया जाता है, वो भी राजू भाई तुरंत पेड के चबूतरे वाले मंच पर चढ़कर शुरु हो जाते. अब सुबह से साथ साथ रहते इतना तो जान ही जाते कि कौन मरा है, क्या नाम था, क्या उम्र रही होगी. परिवार में कौन कौन पीछे छूट गया आदि आदि भाषण के आवश्यक तत्व. हर उम्र के लिये एक सधा हुआ भाषण और आप जानकर आश्चर्य करेंगे उनकी काव्य प्रतिभा पर कि ऐसे में भी वो एकाध मुक्तक तो झिलवा ही देते. मैं उनकी भाषण कला से बहुत प्रभावित रहता और एक बार रिकार्ड करके नोट किया. आप सब की सुविधा के लिये पेश कर रहा हूँ. क्या मालूम किस जगह जरुरत पड़ जाये पढ़ने की, अन्य वक्त्ताओं के आभाव में. काम ही आयेगा, तो सुनिये मोहल्ले के बुजुर्ग के मरने पर उन्होंने जो भाषण पढ़ा वो हूबहू यहाँ पेश किया जा रहा है. ज्ञात रहे कि राजू भाई इनसे पहले कभी नहीं मिले और यकिन मानिये, वहाँ उपस्थित सभी लोगों को मृत व्यक्ति के पुत्र से भी ज्यादा करीब और गमगीन राजू भाई ही लगे.
भाषण:
श्रद्धेय रामेश्वर प्रसाद जी जिन्हें हम प्यार से बाबू जी बुलाया करते थे, आज हमारे बीच नहीं रहे. कल तक जो वाणी हमें जीवन की राह दिखाती थी, आज हमेशा के लिये चुप हो गई. बाबू जी को अब याद करता हूँ तो याद आता है वो मुस्कराता हुआ चेहरा, जो हर दुख और विपत्ति के क्षणों में सदैव एक अजब सा विश्वास जगाता था. जब भी मैं इस जीवन की आपा धापी की धूप में झुलसते हुये परेशान हो जाता था, बाबू जी के पास जाकर उनके श्री चरणों में बैठ जाया करता था. वो एक वट वृक्ष थे, जिसकी छाया की शीतलता में कुछ पल विश्राम करके मैं एक नई शक्ति और उर्जा का अनुभव करता था. जब भी मैं बाबू जी के घर के सामने से निकलता, वो मुस्कराते रहते. उनकी मुस्कान से दैविक उर्जा मिलती थी. (यहाँ राजू भाई क गला भर आता, थोड़ी खरखराहट भरी आवाज हो जाती) बाबू जी एक व्यक्ति नहीं, एक युग थे. बाबू जी जाने से एक युग की समाप्ति हुई है. उनके जाने से हमारे जीवन में एक अपूर्णिय क्षति हुई है. बाबू जी के बताये आदर्श मात्र कथन नहीं, एक जीवन शैली है. अगर हम अपने जीवन में उस शैली का थोड़ा भी मिश्रण कर पाये तो यही बाबू जी की आत्मा को सच्ची श्रृद्धांजली होगी. (यहाँ पर वो थोड़ा रुककर जेब से रुमाल निकालते, चश्मा हटाते और आँसू पोछते से नजर आते) (फिर खंखारते और उनका कवि हृदय जाग उठता-मौका मिला है तो कैसे छोड़ते) आज इस अवसर पर मेरी लिखे एक मुक्तक की चार पंक्तियाँ सुनाना चाहता हूँ जो बाबू जी बहुत पसंद किया करते थे: आसमां अमृत गिराता, आज अपनी आँख से पुष्प खुद गिर समर्पित, आज अपनी शाख से आप सा व्यक्तित्व नहीं, कोई भी दूजा है यहाँ आपका आना हुआ था, इस धरा के भाग* से * भाग=भाग्य और अंत में वो दो पंक्तियाँ जो बाबू जी हमेशा गुनगुनाया करते थे और जो इस जीवन का दर्शन कहती हैं: जिन्दगी मानिंद बुलबुल शाख की, दो पल बैठी, चहचहाई और उड चली. मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि बाबू जी की आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार को इस गहन दुख को वहन करने की शक्ति प्रदान करे. कल बाबू जी घर ३ बजे से शांति पाठ है. अब हम सब दो मिनट बाबू जी आत्मा की शांति के लिये मौन रख कर यहाँ से विदा लेंगे. दो मिनट बाद-राजू भाई खँखारे-फिर कहे- ओम शांति..बाकि सबने कहा--शांति शांति. |
अंत मे एक बात और, आखिरी दम भाषण और शव जलाने के जस्ट पहले जब सब शांति से इन्हें देख रहे हों, तैयारी चल रही हो, तब ये जरुर किसी को दौड़ाते थे कि जा बेटा, एक अगर बत्ती का पूड़ा खरीद ला. लड़का बोलता, पैसे तो सबके सामने अपनी जेब से २० का नोट निकाल कर देते और फिर थोड़ी दूर जाने पर वापस आवाज देते कि यह और पैसे ले जा और पानी की एक बोतल भी लेते आना चाचाजी के लिये और पुनः १० का नोट. उनको यह रुपये देते मृतक का पूरा परिवार भी देखता और उपस्थित लोग भी.
सारा काम खत्म होने पर जब मृतक के परिवार वाले इनसे पूछते कि भाई साहब, आपके भी सुबह से काफी पैसे खर्च हो गये होंगे, कृप्या बता देते तो हम दे दें. बस फिर क्या, राजू भाई आंसू से रो देते कि बाबू जी के जाते ही क्या मैं इतना पराया हो गया कि १०००- ५०० भी न खर्च कर सकूँ उन पर?
हम तो सकपका ही गये कि कुल ३० रुपये खर्च करके अहसान १०००-५०० का और वो भी २५००-३००० अंदर करने के बाद. पूरा परिवार कृत्यज्ञता से इनकी ओर ताक रहा होता. आज की दुनिया में भला ऐसा आदमी कहाँ मिलता है जो पराया होकर भी अपनों से ज्यादा अपना है.
तो ऐसे थे हमारे कवि महोदय, ओजस्वी वक्ता, मैनेजमेंट गुरु, प्रोजेक्ट मैनेजर, शिक्षा-बी.ए. (हिन्दी)(यह भी विवादित है), बेरोजगार और इतने व्यस्त कि रोजगार खोजने तक का समय नहीं- इन्तजाम अली श्री श्री राजू भाई.
34 टिप्पणियां:
काम जितना यहाँ पर मुहल्ले में रह
अपने राजूजी भाई सुनो कर गये
सारे नेताओं के वे गुरु थे रहे
लोग ले सीख उनसे ही घर पर गये
और अंजाम जितना दिया आपने, शिष्य गुरुओं से आगे लगा बढ़ गये
और हम क्या कहें आज तारीफ़ में
जो भी कहना था बस वे ही कह कर गये
सर्वे भवंतु दुखिन,सर्वे संतु अग्नीमया,
सर्वे छिद्राणी पश्यंतू,मा कश्चित सुख भाग भवेता:
अर्थार्थ;-सबी लोग दुखी हो,सभी के दिल मे आग जले,सभी जगह छेद (कमिया)देखने वाले, तुझ से किसी का सुख नही देखा जा सकता,:)
राजू जी की तरफ़ से .
आपकी इस पोस्ट से हमे दैविक ऊर्जा मिलती है ।:)
तो ऐसे थे हमारे कवि महोदय, ओजस्वी वक्ता, मैनेजमेंट गुरु, प्रोजेक्ट मैनेजर, शिक्षा-बी.ए. (हिन्दी)(यह भी विवादित है)
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एकदम विवादित है- बरसों से बीए हिंदी को पढ़ा रहे हैं- कभी खुद भी पढ़े थे, ऐसी धाकड़ मैनेजरी सिखाने की बिसात नहीं- जरूर कोई एम एम एम- मास्टर इन मरघट मैनेजमेंट होगा।
बाई द वे शिक्षा-बी.ए. (हिन्दी)(यह भी विवादित है)
इसमें 'भी' का क्या मतलब है ?
:) आपकी शैली की तो प्रसंशा करना एक ही बात को दोहराने वाली बात है, कथानक और उसके पीछे के व्यंग्य में बेहद नवीनता है। पढ कर आनंद आ गया।
*** राजीव रंजन प्रसाद
Dhanya ho! ahaa hamare bhagy ki aapake shree kalam se Raju Bhai ka gungan sune ! Thanks Acharya ji naye jagah se naya byang talasane ke liye
मेरी अंतिम यात्रा का ठेका उड़नतश्तरीजी आपको पक्का। जरा चकाचक इंतजाम रहे। एडवांस में भेजा गया एक लाख का ड्राफ्ट तो मिल ही गया होगा।
राजू भाई नये युग की जरूरत हैं. दाह संसार का ईवेण्ट-मैनेजमेण्ट कठिन काम है. अगर कोई अचानक दिवंगत हो जाये तो घर वालों को प्रबन्धन समझ में नहीं आता.
शायद आर.डी.ई.एम.अस. (राजू डेथ ईवेण्ट मेनेजमेण्ट सर्विस) जैसी दुकानें जल्दी ही खुलने लगेंगी. विदेशों में शायद पहले से हों! :)
समीरजी,
पोस्ट का टाईटल देखकर तो हम सहम ही गये थे कि पता नहीं कुछ गीतासार और जीवन के दर्शन पर तो पोस्ट नहीं लिख दी अंकिल ने । लेकिन पोस्ट पढकर आपका एक अलग ही अंदाज देखने को मिला ।
ऐसे कितने ही राजूभाई इधर उधर देखने को मिलते हैं । हमारे कालेज में एक सज्जन थे जिनको उधार माँगने में महारथ थी और अगर आप उधार माँगे तो ऐसे वाक्चतुर कि आपको खुद शर्म आ जाये ।
बस ऐसे ही लिखते रहें ।
पढ़ के समीर जी हमारे मूह से सिर्फ़ एक शब्द निकला हरि ओम हरि ओम:) बहुत अच्छा लिखते हैं आप कोई शक़ नही इस बात में :)
वाह ! आपके राजू भाई तो कमाल की चीज निकले!
प्यारे भाई, अपने राजू भाई के यहां मुक्तकों की मौलिकता तो है, भले ही वे इनका कुठांव इस्तेमाल करते हों। यहां अपने संस्थान में मेरा वास्ता अक्सर एक शायर नुमा सज्जन से पड़ता है जो हर खुशी-गमी के मौके पर दूसरों के शेर, वह भी बहुत जाने-पहचाने, इस बेरहमी से ठेलते हैं कि श्रद्धांजलि के समय हाथ बांधकर सिर झुकाए खड़े लोग भी फिस-फिस हंस देते हैं। बहरहाल, मिले मौके की आंत तक दुह लेने वाली ऐसी ही प्रतिभाओं के बल पर यह दुनिया कायम है...
उड़नतश्तरी से टपकी एक खालिस उड़नतश्तरीनुमा रचना!!
इ राजू भाई का हुलिया पढ़कर एहसास हुआ कि अपन ने अपनी सफ़ेद कुर्ता और काला चश्मा वाली फोटू हटा के ठीक ही किया नई तो गुरु का कोई भरोसा नई कि…………
हुम्म, लगा नहीं कि उड़तश्तरी पर छपा है, थोड़ा हट के है। :)
ये राजू भाई इस काम की ट्रेनिंग देते हों तो जरा हमारी उनके पास ट्यूशन रखवा दीजिए न।
एक दिन अवशय यह राजू नेता ही बनेगा :)
आपके लिखे से जबलईपुर की याद आ गयी ।
ऐसे लोग जबलईपुर के ही हो सकते हैं ।
कहते हैं कि खालिस जबलपुरिया के सिर में कील ठोंको तो वो स्क्रू बनकर निकलेगी ।
पर आपको बता दें समीर भाई के अपन दमोह के हैं जबलपुर के नईं ।
राजुभाई निसन्देह एक बहुत अच्छे इंसान हैं. वे सबका ख्याल रखते हैं, पिछले दिनों जब मै उनसे न्यू यॉर्क में मिला था तो मैं उनसे इतना प्रभावित हुआ कि इंडिया हाउस में मै पार्टी देने से खुद को रो क नही पाया. खैर उनके आगे तो यह कुछ भी नही.
सिंगापुर में उनके साथ कॉफी पीते समय भी यही सोच रहा था कि यह आदमी कितना भला है. वाह!!
साधुवाद. आपका धन्यवाद महोदय श्री राजु भाई के बारे में लिखने के लिए.
समीर जी ये तो कुछ अलग ही शैली लगी। संदेह करने की आशंका लगती है :)।
बहुत ही उत्कंठा हो रही है राजू भाई से साक्षात रूप से मिलने की! लेकिन पहले जरूर बता देना जिससे मैं अपनी जेब पहले ही खाली कर के आऊं।
बहुत ही मजा आया पढ़ कर।
राजू भाई तो जो करते रहे हों उनका तो पता नहीं, मगर उनका नाम लगाकर आप जरुर अपनी चार लाईनें सुना गये:
आसमां अमृत गिराता, आज अपनी आँख से
पुष्प खुद गिर समर्पित, आज अपनी शाख से
आप सा व्यक्तित्व नहीं, कोई भी दूजा है यहाँ
आपका आना हुआ था, इस धरा के भाग* से
* भाग=भाग्य
गुरु आत्मा आप भी कम नहीं हो. :)
(खालिद)
आजकल हर तरफ़ इवेंट मैनेजरों की धूम है। यह तो बहुत छोटे लेवेल के मैनेजर हैं। लोग तो दुनिया को ठीक करने की मैनेजरी कर रहे हैं। कोई किसी को सभ्य बना रहा है, कोई किसी को लोकतांत्रिक बना रहा है कोई किसी को अधुनिक। राजू भैया हर तरफ़ छाये हैं। :)
राजू भाई जॆसे तथाकथित समाज सेवी,कवि व मॆनेजमॆंट गुरु आज भी हमारे आस-पास ही मिल जायेंगे.बडा ही सटीक चित्रण किय़ा हॆ आपने.
राजू भाई जॆसे तथाकथित समाज सेवी,कवि व मॆनेजमॆंट गुरु आज भी हमारे आस-पास ही मिल जायेंगे.बडा ही सटीक चित्रण किय़ा हॆ आपने.
इसे पढने के बाद समझ नहीं आ रहा हसूं या सोचूँ कि ऐसे कितने राजू भाई हमारे आस पास बैठे होंगे!
समीर भैया इतने अच्छे लेख के लिए बहुत बधाई।
आइये शक़ करें. यह पोस्ट समीर भाई की निजी पोस्ट है ..या राजु भाई द्वारा प्रयोजित है. हमें वैसे तो शक़ करने का कोई कारण नही है, परंतु कभी कभी शक़ करना ही पड़ता है.
हमें पता है शक़ करने पर समीर भाई बुरा भी मान सकते है. कोइ बात नही ,बुरा मानेंगे तो दो पेग ज्यादा पीयेंगे..हमारा क्या कर लेंगे ..?
राजे भाई नाम के जिस करेक्टर की बात समीर भई ने की है, साफ है कि बन्दा बहुत जुगाड़ू है. अपना नाम देश विदेश में पहुंचाना चाहता है और यह भी जानता है कि समीर भाई यदि अपने चिट्ठे पर लिख मारेंगे तो बस समझो हो गया काम.
अब यह भी बताओ समीर भई कि ये प्रयोजित सौदा कितने में पटा ?
( विज्ञापन अच्छा था , यह बताने की भी जरूरत है क्या ?)
समीर भाई,
आपकी शैली अद्भुत है इसकारण इतना प्यार भी आप बटोरते है… व्यंग भी हुआ और पता भी नहीं चला की कुछ कहा भी है यही तो लेखनी की विशेषता है…।
आपने राजू भाई का बिल्कुल सही चित्रण किया है और ऐसे लोग हर जगह देखे जा सकते है।
हम सब किसी न किसी रूप में राजू हैं. क्यों जी गलत बात बोलता हूं?
राकेश भाई
बहुत आभार. स्नेह जारी रखें. :)
अरुण
राजू की तरफ से पंगेबाज का संदेशा-यह लो पावती. :)
सुजाता जी
साधुवाद-आपने दैविक उर्जा प्राप्त की, हम सबका ही भला होगा. :)
मसीजिवी भाई
पता करवाता हूँ पुन:. मैं भी सोचता था कि एम एम एम का बंदा लगता है इसीलिये तो बी.ए. को विवादित कहा और "भी" इसलिये कि उनकी पूरी शख्सियत ही विवादित थी मय उनके कवि होने के. :)
राजीव भाई
बहुत आभार. ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहें.
संजीव भाई
आभार-आपसे हौसला मिलता है कि नये नये स्थलों पर कुछ तलाशा जाये.
आलोक भाई
ड्राफ्ट तो मिल गया. वो रख लेते हैं मगर ठेके के एवज में नहीं, दान दक्षिणा के हिसाब से. :)
ज्ञानदत्त जी
आर.डी.ई.एम.अस. का बिजनेस प्लान बना लेते हैं. शायद चल ही निकले. ट्राई करने में कोई बुराई नहीं है. :) आभार, आईडिया देने के लिये.
नीरज
चलो, तुम्हारे मन माफिक पोस्ट निकल गई, यह ठीक रहा. आते रहो, लिखते रहेंगे.
रंजू जी
हम भी कह देते हैं-हरि ओम!!! आभार तारीफ के लिये.
मनीष भाई
अरे, उनके एक से एक कमाल हैं. :) कभी और किस्से सुनाये जायेंगे जैसे कि उनका शादी अभियान.
चंद्रभूषण जी
बात तो आप सही कह रहे हैं. मौलिक रचना ही सुनाते थे बतौर रिहर्सल. :)
सच यह भी है कि यह समाज के जरुरी अंग हैं. बस सबकी दोहन क्षमतायें अलग अलग हैं. :) आभार आप पधारे. जारी रखें, अच्छा लगेगा.
संजीत
बहुत आभार!!! :) अरे, तुम्हारी वो तस्वीर-जबरदस्ती अलग की, कितना फबता तो था कुर्ता पैजामा सपेद विथ ब्लैक ग्लासेस...एक दम राजू भाई की कॉपी. मगर तुम तो हमारे शिष्य हो.. :)
अमित
:) छपा तो उड़न तश्तरी पर ही है, मगर ये राजू भाई भी न!! जो न करवा दें. :)
श्रीश भाई
बात करता हूँ. अपने आदमी हैं, सेटिंग लगवा देंगे.
डॉक्टर साहब
देखिये, बन जाये तो आना काम तो बना ही समझो. :)
यूनुस भाई
अरे, तो दमोह जबलपुर तो एक ही है.मुकेश नायक से पूछ लो या रत्नेश सालोमन से-दोनों जगह को एक ही बतायेंगे और तो और जयंत मलैया भी यही कहेंगे. :) तो हम तो दोनों को एक ही माने बैठे हैं. :) दोनो जगह के लोगों मे स्क्रू ही बनते हैं, हा हा!!
पंकज
आभार...आपने लेखनी को सराहा!!
मिश्र जी
संदेह न करो मित्र. इसमें गल्ती राजू भाई की है, लिखे तो हमहिं हैं.
महावीर जी
मिलवाये देता हूँ आपको मगर सच में, जेब खाली करके ही आईयेगा. बस यूँ ही आशीर्वाद दे दें. :)
खालिद
बहुत समझदार हो भाई!!
अनूप भाई
आभार. सच कह रहे हैं राजू भाई हर तरफ छाये हैं.
विनोद भाई
आभार, आपने पसंद किया यह चित्रण. आते रहिये.
अभिषेक
आभार,पसंद किया. अब हंस ही लो, कम मौके लगते हैं आज के जमाने में हंसने के.
अरविन्द भाई
प्रायोजित भी मानो, तो ठीक. कुछ कमाई का जुगाड बविष्य में हो जायेगा. और लोग भी तो प्रायोजिअ करवायेंगे हमसे. आपकी बात का कैसे बुरा मान सकते हैं भाई वो भी दो पेग के बाद. :)
आभार, आपने रचना पसंद की.
द्वियाभ भाई
आप आ जाते हैं तो शैली काम कर जाती है. आते रहें, आभार.
ममता जी
जी, मैं पूर्णतः आपसे सहमत हूँ. आने का आभार.
संजय भाई
अरे, आप और गलत-कतई नहीं. सच कहा आपने. और पधारने के लिये आभार.
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