मजबूरी में आदमी कितना विवश हो जाता है. जो कार्य उसे नहीं पसंद, वो तक करना पड़ता है.जिस मूड़ में लिखी गई है, उसी मूड में पढ़िये और आनन्द उठाईये. इस मजबूरी में अन्तिम छंद चिट्ठाकारी को समर्पित है.
जब चाँद गगन में होता है
या तारे नभ में छाते हैं
जब मौसम की घुमड़ाई से
बादल भी पसरे जाते हैं
जब मौसम ठंडा होता है
या मुझको गर्मी लगती है
जब बारिश की ठंडी बूंदें
कुछ गीली गीली लगती हैं
तब ऐसे में बेबस होकर
मैं किसी तरह जी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
जब मिलन कोई अनोखा हो
या प्यार में मुझको धोखा हो
जब सन्नाटे का राज यहाँ
और कुत्ता कोई भौंका हो
जब साथ सखा कुछ मिल जायें
या एकाकी मन घबराये
जब उत्सव कोई मनता हो
या मातम कहीं भी छा जाये
तब ऐसे में मैं द्रवित हुआ
रो रो कर सिसिकी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
जब शोर गुल से सर फटता
या काटे समय नहीं कटता
जब मेरी कविता को सुनकर
खूब दाद उठाता हो श्रोता
जब भाव निकल कर आते हैं
और गीतों में ढल जाते हैं
जब उनकी धुन में बजने से
ये साज सभी घबराते हैं
तब ऐसे में मैं शरमा कर
बस होठों को सी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
जब पंछी सारे सोते हैं
या उल्लू बाग में रोते हैं
जब फूलों की खूशबू वाले
ये हवा के झोंके होते हैं
जब बिजली गुल हो जाती है
और नींद नहीं आ पाती है
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती हैं
तब ऐसे में मैं क्या करता
रख लम्बी चुप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
चिट्ठाकारी विशेष:
जब ढेरों टिप्पणी मिलती हैं
या मुश्किल उनकी गिनती है
जब कोई कहे अब मत लिखना
बस आपसे इतनी विनती है
जब माहौल कहीं गरमाता हो
या कोई मिलने आता हो
जब ब्लॉगर मीट में कोई हमें
ईमेल भेज बुलवाता हो.
तब ऐसे में मैं खुश होकर
बस प्यार की झप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
--समीर लाल 'समीर'
चित्र साभार: गुगल महाराज
42 टिप्पणियां:
जब चिट्ठा चर्चा करनी हो
अपनी खोपड़िया धुननी हो
जब नहीं समझ कुछ भी आये
जब नारद पर सर चकराये
छह छह जब पोस्ट कोई करता
सन्देस न उनमें कुछ धरता
लिखने की खातिर कोई लिखे
दिखने की खातिर कोई दिखे
तब ऐसे में तन्हा होकर
चुपचाप खड़ा जी लेता हूँ
प्याला तो एक बहाना है
मैं बोतल से पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं लेकिन जब टिप्पणी एक ही हुयी हो तो दूसरी कर देता हूं।
वाह उस्ताद वाह ..मजेदार कविता..और भी मजेदार राकेश भाई की टिप्पणी..
वाह लालाजी,
क्या खूब लिखे हो ....मजा आ गया....बधाई
और साथ में राकेश जी टिप्पणी भी खूब रही.
हंगामा है क्यूं बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है ।।
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती हैं
- पीड़ा भी दिखी ।
ये फोटो पोलिटिकल है. राजनेता की लगती है. माननीय अर्जुन सिंह की. गुज्जर आन्दोलन के बाद जो आरक्षण की रेवड़िया बांटने वाले की दशा हुई है, वह बताती लगती है.
आपने कहां से कबाड़ी? आप तो कंट्रोवर्सी में पड़ने वाले मनई नहीं हैं न! :)
अब पीने पर आप इतना लिख रहे हैं, तो रुकिये टिप्पणी से काम ना चलेगा। जल्दी ही हम फुल पोस्ट ठेलेंगे। आपके पऊए हमने बहुत झेले, अब जल्दी आप हमारी पटियाला छाप बोतल झेलेंगे।
आलोक पुराणिक
"वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ."
वाह भाइ वाह कितना दर्द झलक रहा है आपकी कविता से,मेरे तो आसू निकल रहे है
कितनी मजबूरी मे जी रहे है आप
ना पसंद है फ़िर भी पी रहे है आप
मेरी दुआ कबूल करना,ऐ मालिके जहा
जहा,टुन्न हो समीर भाइ,नाला ना हो वहा
:)
वैसे हमारी राय है कि कम करदे,तरीका साधारण सा है..
केवल या तो उस दिन पिये जिस दिन बारिश ना हो रही हो.
या उस दिन जिस दिन बरिश हो रही हो
बस करना ये है कि ये नियम टूट्ना नही चाहिये
:)
मस्त!
जब जब गुरुवर एक धांसू रचना डालते है,
खुशी और गम दोनो मे डूबकर पी लेता हूं
बस यूँ ही थोड़ी सी पी ली है ... हीक्क...
उतरेगी तो टिप्पियाएंगे.
सूरा सी तरल कविता.
आपने तो अपनी बढ़िया पोस्ट की ऐसी की तैसी कर दी.
कैसे?
कार्टून देख कर हँसता रहा और हँसते हँसते देखता रहा. आगे आपका लिखा पोस्ट पढ़ ही नहीं पाया :)
जब सभी ने लिया मजा, बाकी हम क्यों रहेंगे
देख बोतल कि मदहोसी हम भी थोड़ी पी लेंगे
यार ये बोतल चीज ही ऐसी है, कुछ भी लिखवा सकती है ।
भैया हमने तो वो सुना है क्या कहते हैं...
पीने वालों को पीने का बहाना चाहहिए :)
मजेदार कविता रही और साथ ही राकेश भाई की टिप्पणी भी :)
पियो मगर रखो हिसाव, कि थोडी थोडी पिया करो
अब समझ मे आया आप की सेहत का राज :)
वाह उस्ताद वाह, मज़ा आ गया!
ये मसाईले तसव्वुफ़ ये तेर बयाँ गालिब,तुझे हम वली समझते
जो ये बादाख्वार ना होता
मस्त है। :)
कार्टून बढीया है कविता ?
दोनो ही टून्न है !
BADHAEE !! :) TIPPANEO KE LIE AUR KAVITAA KE LIE BHEE :)
डा. रमा द्विवेदी said....
मान गए आप सच में गुरुओं के गुरू हैं......पीने का कोई बहाना आपने छोड़ा ही नहीं....कहीं यह कविता पीकर तो नहीं लिखी ना?? हास्य से भरपूर....आपके स्वाभाव के अनुरूप....कभी हम चित्र को देखते हैं कभी कविता को:)
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
दो चार घड़ी जी लेता हूं.....सच में मजा आ गया गुरु जी
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
दो चार घड़ी जी लेता हूं.....सच में गुरु जी मजा आ गया.
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
दो चार घड़ी जी लेता हूं.....सच में गुरु जी मजा आ गया.
वाह समीर भाई यह भी खुब कही…।
लेकिन पहली वाली कविता का तो क्या कहना पढ़कर
मजा आ गया…
क्या खूब लिखा है आपनें। बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
gurudev...!
naman sweeekaren.
aap jo nit naye aadarsh sthapit kiye ja rahe hain....aane waali peedhiyaan use hameshaa yaad rakhengi. :)
(p.s: maaf kijiyegaa roman me likh raha hoon.)
भाई, हमें तो कोई बोटल में पानी भर के दे तो भी पी लते हैं। हमें तो वैसे ही नशा चढ जाता है। उसके लिये बहाना नहीं ढूंढते।
मजेदा कविता, नशा सा छाने लगा है।
बहुत खूब!!!!
पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये..
परंतु, कार्टून मेँ इन माननीय मंत्री महोदय को लाने का प्रयोजन ?
कविता फिर भी अच्छी बन पड़ी है.
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम्
achhaa hai peene se jyadaa likhte rahie. vinay ojha snehil
बहुत बढ़िया। पता नहीं किसी ब्रांड की पीते हैं लेकिन छंद तो बहुत ही नशीला बन पड़ा है। मूड में आए तो--- वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ--छंद पर कुछ और बंध लिखिए। शायद दूसरी मधुशाला तैयार हो जाय। नाम बाद में सोच लिया जाएगा।
padh lee :)
Bahut khub. sadhuvad.
समीर भाई आप तो बहुत ही बढे पियकड़ निकले हमे तो मालूम ही नही था,खुशी में भी पीते हो और दुख में भी पीते हो...ये क्या बात हुई...राकेश जी ने और भी सुंदर लिखा की वो तो बोतल से ही पी लेते है...सच ही कहा है पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये..आपकी नजर एक शेर अर्ज करती हूँ...
सुना है साकी तेरी महफ़िल में,
फ़रिश्ते बुलाये जाते है,
बरसों से प्यासे लोगो को...
भर-भर के जाम पिलाये जाते हैं,
ठेके पर पीने वालो को...
सरकार कुछ नही कहती,
आँखों से पीने वालों पर...
इल्जा़म लगाये जाते है। :)
सुनीता(शानू)
और नींद नहीं आ पाती है
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती हैं
तब ऐसे में मैं क्या करता
रख लम्बी चुप्पी लेता हूँ
[:)] bahut khoob ...
Is tashtari ko aur udne diziye. bahut upar tak jayega. kya baat hai. padhte padhte nasha mujh par bhi cha gaya. aur aapke comment ke liye shukria samirsaab.
aur aapke comment ke liye bahut shukriya.
kuch halka padhna ka man tha...title padh kar ..socha yahi theek rahegi...aapke blog per mere dwara padhi gayi yeh aapki pehli rachna hai...
Bahut hi badhiya likha hai aapne!
Shabdo ke maya jaal me jab
khud ko mai doshi paati hu..
Bas likhne ki hi khatir jab..
antarman me fas jati hu...
sahi -galat ki raah me jab
khud ko anbhigya akela pati hu..
sir par chadar daal jab
aankhen band ker so jati hu..
Andhkaar ki chaah nahi..
par do pal to ji leti hu..
vaise to mujhko pasand nahi!!
band ankho se har pal pi leti hu!
वाह वाह !अति सुंदर कविता।
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