अब जबकि नया वर्ष आ चुका है. कितने संकल्पों की बात की गई. क्या पता कौन से संकल्प पूरे होते हैं और कितने अगले साल को हासिल जाते हैं. अच्छा है, जितने पूरे हो जायें, वो ही अच्छा. कुछ तो हो. मैने कोई विशेष संकल्प नहीं लिया मगर आप सब लेखक हैं और बेहतरीन लेखन की मिसाल हरदम कायम करते रहते हैं. आप सबसे नव वर्ष निवेदन के रुप में एक रचना पेश करता हूँ (इस रचना में कविता और कवि को लेखन और लेखक पढ़ें, कविता और कवि शब्दों का यहाँ इस्तेमाल सिर्फ प्रवाह को समर्पित है, कृप्या अंतर्निहित भावना के दर्शन करें :) ):
जब भी लिखो
जी भर के लिखना
जुबान की नहीं
बस दिल की बात लिखना.
हमने देखा है
दिल की बात जब
दिमाग से होकर
जुबान पर आती है तो
बात बिल्कुल बदल जाती है
यह अलग बात है
जमाने को वही पसंद आती है.
कविता तो कवि का
है शाश्वत धरम
सत्य प्रदर्शीत करने में
फिर कैसी शरम
एक बार फिर
दिल के ख्यालों को
कविता के आईने में दिखा दो
इस बदलती दुनिया को
जीने के कुछ ढ़ंग सिखा दो.
एक ख्याल कुछ ऐसा
आज फिर से लिखना
जैसी अंधेरी राहों में
चाँद का हो दिखना.
जब भी लिखो
जी भर के लिखना
जुबान की नहीं
बस दिल की बात लिखना.
--समीर लाल 'समीर'
सोमवार, जनवरी 01, 2007
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11 टिप्पणियां:
हमे ये पन्क्तियाँ खास पसंद आईं-
//हमने देखा है
दिल की बात जब
दिमाग से होकर
जुबान पर आती है तो
बात बिल्कुल बदल जाती है
यह अलग बात है
जमाने को वही पसंद आती है.//
अब हम टिप्पणी कविता मे नही करेंगे!
हमने तय किया है,
अब हम भी जमाने के साथ ही चलेंगे!!
वाह जी वाह! दिल की बात बहुत अच्छे अंदाज में लिख दी साहब।
बहुत खूब। :)
कविता तो कवि का
है शाश्वत धरम
सत्य प्रदर्शीत करने में
फिर कैसी शरम
साल भर आप अपना धर्म निभाते रहे,
मात्र दिल से निकली बात लिखते रहे.
मै तो दिल से ही लिखता हुँ लालाजी. :)
आपकी कविता से एक ही बात समझ आई,
दिमाग नहीं दिल की बात में ही है सच्चाई।
बहुत सुन्दर. गुरूदेव आपकी एक-एक पंक्ति सारग्रभीत है, आपकी इस कविता को समर्पित चंद पंक्तियाँ -
कविता तो कवि के
हृदय से झरती है
पर लगता है जैसे
लेखनी मटकती है
अधीर मन में जब
कोई उंमग दौड़ती है
दिल की बात तब ही
काग़ज पर चहकती है
कवि मन के भावों को
मुश्किल से सजाता है
पर सुनकर श्रोता अपने
कानों को खुजाता है.
क्या खूब लिखा है समीर जी आपने....
निम्न पन्क्तियाँ विशेष रुप से अच्छी लगी :
"कविता तो कवि का
है शाश्वत धरम
सत्य प्रदर्शीत करने में
फिर कैसी शरम"
आईना मुझसे कहने लगा, हमसुखन एक पल के लिये बात मेरी सुनो
भाव उमड़ें न दिल में तो चुप ही रहो, सिर्फ़ लिखने की खातिर न कुछ भी लिखो
शब्द का ढेर तुमने लगाया अगर, शब्दकोषों से विपरीत क्या वो रहा
अर्थ किसकी समझ में तनिक आयेगा, जो बिना अर्थ वक्तव्य तुमने कहा
जानता हूँ कि चाहत तुम्हारी रही, तुमको सब कवि कहें और शायर चुनें
और प्रशंसा के पुष्पों की मालायें भी बस तुम्हारी ही खातिस सभी जन बुनें
ये विदित है मुझे हर कला बिक रही, साथ लेकिन कला के स्वयं न बिको
भाव उमड़ें न दिल मेम तो चुप ही रहो, सिर्फ़ लिखने की खातिर न कुछ भी लिखो
ढेर तुकबन्दियाँ रात दिन कर रहे, क्या समझ में तुम्हारे कोई आ सकी
बन्दिशों में उलझ शब्द की रिक्तता शून्य से हो विलग कुछ न समझा सकी
भाव खुद ही उमड़ शब्द में जब ढलें काल के भाल पर भोर बन कर उगे
सत्य रचना वही, उसके अतिरिक्त तुम जो कहे आज तक व्यर्थ ही सब कहे
भावनाओं की रसगन्ध पहले भरो, अक्षरों के सुमन से तभी फिर खिलो
भाव उमड़ें न दिल में तो चुप ही रहो, सिर्फ़ लिखने की खातिर न कुछ भी लिखो
ज़ुल्फ़, भंवरा, कली, बाग, पुतबाईयाँ, खेत, पनघट या पायल या शहनाइयाँ
वस्ल की रात हो, जाम हो, मयकदा, या सुलगती हुई चन्द तन्हाईयाँ
सज रही डोलियाँ, लग रही बोलियाँ, कोई आता हुआ ,और जाता कोई
तुमने इतना है दोहराया ज्यों सूद से हो भरा एक बनिये का खाता कोई
बिम्ब हूँ मैं तुम्हारा मुझे जान लो, और भ्रम में न ज्यादा स्वयं को रखो
भाव उमड़ें न दिल मे तो चुप ही रहो, सिर्फ़ लिखने की खातिर न कुछ भी लिखो
कर रहे हैं प्रशंसायें जो व्यर्थ की , शत्रु हैं वे तुम्हारे, नही मित्र हैं
इन्द्रधनुषी उन्हें वे बताने लगे, जो तुम्हारे अँधेरे भरे चित्र हैं
है अपेक्षित उन्हें, तुम भी प्रतिदान दो शान में उनकी काढ़ो कशीदे नये
उनसे कहते रहो उनसा कोई नहीं, चाहे जितने सुखनवर यहाँ से गये
बात मेरी , तुम्हें तब समझ आयेगी, एक पल के लिये गौर जो कर सको
भाव उम्ड़ें न दिल में तो चुप ही रहो, सिर्फ़ लिखने की खातिर न कुछ भी लिखो
दिल की बात टाईप करके क्या खूब लिखी है....
आप सबका बहुत धन्यवाद और आभार!!
जब भी लिखो
जी भर के लिखना
जुबान की नहीं
बस दिल की बात लिखना.
पढ़कर अच्छा लगा . कोशिश होगी कि अमल किया जाए.
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