इधर जबसे लगे रहो मुन्ना भाई आई, गाँधीगिरि जोरों पर है. कोई देशद्रोही इसकी आड़ में चुनाव लड़ने की तैयारी मे है तो कोई गुंडा इसकी आड़ में जेल से छूटने की तैयारी कर रहा है. इसी की नज़र मेरी एक रचना, अब अगर कुत्ते को आप नेता समझें और बिल्ली को आम जनता, तो यह आपकी गल्ती है, मैने तो ऐसा नही कहा:
एक कुत्ते ने जब
लगे रहो मुन्ना भाई देखी
उसने भी बड़े दिल से सोचा
गाँधीगिरि कर-करें कुछ नेकी
एक बिल्ली को तुरंत
अपने सामने खड़े पाया
उसे बड़े प्यार से डर छोड़ने
गांधीगिरि का सबक सिखाया
बिल्ली को बड़ा मजा आया
और कुत्ते ने उसे मय परिवार
दावात का न्योता पकडा़या
नियत तिथी पर अपने
सब दोस्तों को भी
दावात पर बुलवाया
बिल्ली का परिवार भी
अपने मित्रों के संग आया
सारे कुत्तों ने मिल
खुब जश्न मनाया
और गाँधीगिरि के नये अध्याय को
नया आयाम दिलाया.
उन बिल्लियों का फिर कभी
कुछ पता न चल पाया.
-समीर लाल 'समीर'
रविवार, नवंबर 12, 2006
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7 टिप्पणियां:
अंतमें एक पंक्ति और जोड़ दी जाए.
जय हो मुन्नाभाई की.
आजके नेता और भोली प्रजा का सही चित्रण.
पता नहीं चल पाया और फिर ब्रेकिंग न्यूज़ है आई
कुत्तों ने भोली बिल्लीयों की ही दावत उडाई,
टाडा वाले संजु बाबा की यही है गान्धीगीरी,
मुँह में राम भले रख पर बगल में ले ले छुरी।
प्रधान्मन्त्री ने गान्धीगिरी देखने का और उसे पसन्द करने का प्रोपेगण्डा करके मुन्नाभाई के निर्दोश होने की मूक वकालत कर दी है। वोट का मामला है। पूरी कोशिश चल रही है कि भारत-द्रोहियों पर कोई आँच न आने पाये।
आप सही समय पर मौका देख कर लिखते हैं - आपकी ये अदा बहुत पसंद है। लगे रहो समीर जी
बढिया है, आपकी कविता को "ब्लागस्ट्रीट डाट कॉम" पर "बज़" किया है :).
बहुत खूब...क्या बात है
बधाई !!
रीतेश गुप्ता
सही है भाई !
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