सोमवार, जून 30, 2008

टालम टूली में कुछ बात

पिछले दो दिन से तबीयत खराब है. आँख में किसी की नज़र लग गई है, दोनों आँख सूजी है और लाल हैं. ऑफिस भी नहीं जा पा रहा हूँ सो मन मसोसे सोता रहता हुँ. आखिर, कब तक पोस्ट करना टालूँ. सो, आज टाईम पास:

पहले एक मुक्तक आज के हिसाब से:

इंसानों को इंसानों से, मैं मिलवाने आया हूँ
प्यार जिसे सब याद रखें, वो बतलाने आया हूँ
तुमने अब तक लड़ते लड़ाते, कितना कुछ है खो दिया
उनकी गिनती गीतों में ले, मैं गिनवाने आया हूँ.

-समीर लाल ’समीर’




अब आज के माहौल पर:

साहित्यकार

PenguinSlap

आलोचक

funny0130

हिन्दी ब्लॉगर

funny-dog-picture-biker

हैरान पाठक

Funny-MonkeyReaction-full


आज सुबह ही कॉफी विथ कुश पर इन्टरव्यू दिया. उन्होंने खुल कर बखिया उधेड़ी.. आशा है आपने देख ही लिया होगा. Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, जून 22, 2008

तुमको मैं अपनी जान कहूँ

घर से दफ्तर, दफ्तर से घर की रेल यात्राओं के दौरान, स्टेशन पर, स्टेशन की सीढ़ी पर चढ़ते-उतरते, ट्रेफिक में फंसे, गमझे में मूँह लपेटे इतनी महिलाओं के विषय में कथायें रच चुका हूँ कि मुझ जैसे निहायत शरीफ किस्म के दो जवान बेटों के बाप का इम्प्रेशन ही चौपट हो गया है.

कल शाम को ही एक मित्र का फोन आया. हम तो थे नहीं तो वो हमारी श्रीमती जी से ही पूछने लगे कि आजकल भाई साहब की नौकरी जाती रही क्या? पत्नी ने आश्चर्यपूर्वक उनको नाकारते हुए पूछा कि ऐसा क्यूँ पूछ रहे हैं? बोले कि बड़े दिन से ट्रेन में किसी महिला से मुलाकात की कथा नहीं छपी, इसलिये लगा.

अब बताईये लिखो तो बदनाम और न लिखो तो नौकरी ही छूट जाने का शक और उस पर से पत्नी को सारी कथाओं की खबर बोनस में दे गये. घर लौटने पर जो स्वागत हुआ, उसकी तो खैर छोड़िये. वैसे ही सबकी अपनी अपनी परेशानियां कम हैं क्या?

किसी तरह यह कह कर बचे कि सब काल्पनिक घटनाऐं है जो अपने संदेश को रोचक बनाने के लिए गढ़ी जाती हैं (लाई डिटेक्टर नहीं लगा था वरना लाल लाईट जल जाती). स्वागत गान में ऐसी भी पंक्ति सुनाई दी कि हम पर लिखने की फुर्सत तो है नहीं और दुनिया भर पर लिखते हो.

यह कविता, उसी इज्जत पर लगी खंरोच पर पैबंद मानिंद है. इसे जनहित में ही जारी किया मानें. कहीं भी मैने अपना नाम इसीलिये बीच कविता में इस्तेमाल नहीं किया है ताकि कोई भी पीड़ित पति इसका इस्तेमाल अपने नाम से कर सके. मल्टीकलर्ड पैबंद है, हर रंग में कहीं न कहीं मैच कर ही जायेगा.

rp

तुमको मैं अपनी जान कहूँ
या नील गगन का चाँद कहूँ

घनघोर उदासी छाती है
जब दूर जरा तुम होती हो
मदहोशी छाने लगती है
जब बाहों में तुम होती हो
ये कलम हो रही है डगमग
तब मधुशाला का जाम कहूँ

तुमको मैं अपनी जान कहूँ
या नील गगन का चाँद कहूँ..

कलियों के घूँघट खुल जाते
जब बागों में तुम जाती हो
घटा भी श्यामल हो जाये
जब जुल्फों को लहराती हो
शर्मसार सूरज को करती
क्या मैं सुरमई शाम कहूँ

तुमको मैं अपनी जान कहूँ
या नील गगन का चाँद कहूँ..

तेरे आने की आहट ही
जीने का कारण होती है
मेरे इस मन के मंदिर में
तू मूरत पावन होती है
पथ निर्वाणों के दे मुझको
तुमको मैं तीरथ धाम कहूँ

तुमको मैं अपनी जान कहूँ
या नील गगन का चाँद कहूँ..

--समीर लाल 'समीर'


नोट: उपर दर्शाया चित्र मेरी पत्नी का नहीं है, बस यही डर है.
चित्र साभार: रिपुदमन पचौरी
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बुधवार, जून 18, 2008

रोज बदलती दुनिया कैसी...

अभी बहुत पुरानी बात नहीं हुई है जब पूरे मोहल्ले में एकाध किसी के घर फोन होता था और सब उसका ही नम्बर देते थे. वो बेचारे कभी इसे बुला, कभी उसे, इसी में खुशी खुशी उलझे रहते थे.

तब एस टी डी नहीं होता था. कॉल बुक करना पड़ता था-ऑडनरी, अर्जेंट या लाईटनिंग. तब भारत से कनाडा या अमेरीका बात करनी हो तो जो आज कॉल बुक करो वो तीन दिन बाद लगता था. जबलपुर से इन्दौर. इन्दौर से बम्बई. बम्बई से कनाडा. उस पर भी आधी बात ऑपरेटर सुन कर बताता था. चिल्ला चिल्ला कर बात करनी पड़ती थी. पूरे मोहल्ले को मालूम चल जाता था कि कल रात कनाडा बात हुई है. कॉल बुक करने के बाद फोन के बाजू में ही सो, खाओ और कहीं मत जाओ, जब तक वो कॉल दो तीन दिन में लग न जाये.

अब देखिये कितनी तेजी से इस क्षेत्र में विकास हुआ है कि आपको मेरी बात अजूबा लग रही है या फिर आप मुझ जैसे जवान को कोई बूढ़ पूरान मनही बूझ रहे होंगे. मगर यकीन मानिये बहुत नजदीकी सालों की बात है.

अब तो गांव गांव गली गली फोन है. एस टी डी बूथ हैं. मोबाईल है और यहाँ तक कि इस बार तो महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्ट की बसों तक में फोन लगा देखा है टाटा इन्डिकॉम का. कितनी तेजी से तकनीक फैलती है कि भरोसा ही नहीं होता.

सोचता हूँ एक-दो और तकनीक जिसका बहुत तेजी से बेवजह उपयोग हो रहा है फोन की तरह अगर उसका भी ऐसा ही विस्तार हो जाये तो क्या सीन बनेगा.

पति घर पर देर से लौटा. पत्नी ने पूछा, कहाँ थे? वो बोला कि दफ्तर में मिटिंग थी, उसी में फंसा था. पत्नी बोली कि लैब चलो. लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाती हूँ तुम्हारा. झूठ पकड़ा गया. रात भूखे सोना पड़ा.

भिखारी दरवाजे पर भीख मांग रहा है-मेमसाब, तीन दिन से भूखा हूँ. पता चला, उसे रामू के साथ यह सोचकर कि लाई डिटेक्टर ब्रेक करने की तो रोज रोज प्रेक्टिस से आदत हो गई होगी उसकी, नुक्कड़ वाले ब्रेन मैपिंग बूथ पर भिजवा दिया. बूथ से पाँच रुपये में रामू, भिखारी को लेकर ब्रेन मैप बनवा लाया. भिखारी का झूठ पकड़ा गया. वो सिर्फ दो दिन से भूखा था. मेमसाहब ने उसे झूठा कह कर भगा दिया. भले टेस्ट करवाने में पाँच रुपये खर्च हो गये मगर भिखारी को एक रुपये न दिये गये.

स्कूल में टीचर जी बबलू को डांट रही है कि तुमने चुन्नू को चांटा मारा, उपर से झूठ बोलते हो. बबलू कह रहा है कि नहीं मैडम, मैने नहीं मारा. चाहे तो उसके गाल पर से मेरा फिंगर प्रिंट मिलवा लो.

प्रेमी प्रेमिका से कह रहा है-मेरा विश्वास करो. मैं तुमसे शादी करके तुम्हें बहुत खुश रखूँगा और तुम्हीं मेरा पहला और अंतिम प्यार हो.

प्रेमिका उसे सिद्ध करवाने के लिये नार्को टेस्ट की मांग करती है.

क्या प्रश्न पूछने है जो वो डॉक्टर को देगी, इसके लिये बाजार से नार्को टेस्ट के अनसॉल्वड प्रश्नों की लव विषय की किताब लाती है ४०० सेम्पल क्योचनस वाली. उधर प्रेमी भी नार्को टेस्ट की लव विषय पर अमर ज्योति सीरीज की गाईड से पिछले दस टेस्टों में पूछे गये प्रश्न एवं उनके उपयुक्त जबाब घोंट रहा है. गारंटीड सक्सेस इन नार्को टेस्ट की कोचिंग क्लास भी ज्वाईन कर ली. अगर पास नहीं हुये तो अगले बैच में फ्री एडमिशन का ऑफर. प्रेक्टिल की अलग से व्यवस्था.

फिर भी कहीं फेल न हो जायें, इस हिसाब से दलाल से भी व्यवस्था कर ली है. दलाल की कम्पाऊन्डर से सीधे सेटिंग है. ऐन टाईम पर ट्रूथ सीरम के बदले ग्लोकोज लगा देगा. बस, फिर क्या करना है. सोने का नाटक और डॉक्टर साहब को खों खों घों घों करके (जैसे शराब पिये हों-प्रेक्टिकल क्लास में जैसा सिखाया है वैसे ही) मन मर्जी के जबाब. गारंटीड सक्सेस.

narco

नेता मंच की बजाये लाई डिटेक्टर पर खड़े होकर चुनावी वादे करेंगे. मशीन की सेटिंग पहले से सेट कर दी जायेगी पलट कर. याने जब सच बोलें तो लाल लाईट और झूठ बोलें तो हरी बत्ती. बस फिर क्या, पूरे भाषण में हरी बत्ती जलती रहेगी और जनता समझेगी कि नेता का सच बोलना तो साईटिफिकली भी साबित हो रहा है. पक्का सच वादे कर रहा है और वो जीत जायेगा.

आप कहेंगे कि जनता इतनी आसानी से बेवकूफ बन जायेगी क्या? लल्लू समझ रखा है?

तो अभी तक तो बिना मशीन के भी और क्या बनती आई है, तब तो कम से कम लाई डिटेक्टर मशीन के कारण होगा.

बस, यही सब सोच सोच के मन में खलबली मची है. सोचा, आप लोगों को भी खलबलाऊँ. Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, जून 15, 2008

किस नजर से देखूँ दुनिया तुझे...

पिछले सात दिन से न कोई नई पोस्ट और पिछले दो दिनों से न तो कोई टिप्पणी. यह भी नहीं पता कि कब से सिलसिला फिर शुरु होगा. शायद कल से ही या कुछ रुक कर. कितनी अनिश्चितता है. खुद को खुद का पता नहीं. अभी जरा सा समय मिला, तब सोचा कि सूचित तो कर ही दूँ वरना आप लोग क्या का क्या सोच बैठो. सोचने पर क्या लगाम है? :)

अरे हाँ, एक जरुरी बात तो बताना भूल ही गया. ३-४ दिन पहले किसी हुश हुश नागराज जी का हमारी चिट्ठाकार स्पेशल पोस्ट पर कमेंट आया:

बहुत बढ़िया डमरु बजा लेते हो, गुरु. खूब मजमा लगा रखा है. xxx, ब्लॉगिंग छोड़ कर मदारी का काम पकड़ लो, कुछ कमाई भी हो जायेगी और लोगों का मनोरंजन भी. भीड़ जमा करने की कला वहीं दिखाओ और यहाँ लिखने वालों के लिए जगह खाली करो, समझे की नहीं. वरना xxxxx

(इसके बाद वो अपनी औकात पर उतर आये-हम आई पी से पहचान तो गये मगर उनसे मुझे इससे ज्यादा उम्मीद भी न थी)

उनका कमेंट मैं जरुर अप्रूव करता मगर जिस जगह से वो अपनी पहचान पर उतरे उस जगह से आगे संपादित कर कमेंट प्रकाशित करने की सुविधा ब्लॉग स्पॉट नहीं देता और उस भाषा को बिना कांट छांटा के छापने की इजाजत मेरा विवेक नहीं देता. तो मजबूरीवश पूरा कमेंट ही रिजेक्ट करना पड़ा. मगर हुश हुश नागराज जी ने तबियत से पीकर मन की उतारी और हमें खूब महिमा मंडित किया. :)
न तो उनके ब्लॉग का पता है और न ही ईमेल का. अतः मजबूरीवश यहाँ लाना पड़ा वरना ईमेल से जबाब दे लेते.


प्रिय हुश हुश नागराज जी:

हमारी भी हुश हुश!!

अच्छा लगा अपने विषय में जानकर. मेरी मदारी कला से आप प्रभावित हुए, यह मेरे लिए सम्मान का विषय है रिटायरमेन्ट के बाद क्या करुँगा-इस चिन्तन को आपने एक नया आयाम दिया है. काफी बोझ उतरा सा लग रहा है. किस तरह आपको साधुवाद पहुँचाऊँ और आभार प्रदर्शन करुँ, समझ नहीं पा रहा हूँ. कम से कम ईमेल ही दे देते.

आपने जिस धारा प्रवाह में गाली-उवाच किया है, वो भी काबिले तारीफ है. सबके बस में नहीं, इतने तुकबंदी के साथ गाली बकना. काश, बेहतर शब्द इस्तेमाल करते तो शायद आपका कथ्य अमर काव्य बन जाने की काबिलियत रखता. कभी विचार करियेगा.

चलते चलते एक बात और बताता चलूँ कि बजाता तो मैं बीन भी बहुत अच्छी हूँ. कभी नाचने का मन हो तो बताईयेगा, आपके लिए जरुर बजाऊँगा. जो भी पैसा और दूध इक्कट्ठा होगा, सब आपका. कोशिश करुँगा नागपंचमी पर आपका शो रखा जाये, ज्यादा दूर है भी नहीं. आना जरुर. इन्तजार रहेगा.

सादर

उड़न तश्तरी

snakecharme

आज इरफ़ान झांस्वी शेर याद आता है, जो फुरसतिया जी ने सुनाया था:

संपेरे बांबियों में बीन लिये बैठे हैं,
सांप चालाक हैं दूरबीन लिये बैठे हैं।


यह बताने की एक वजह और थी कि इसे बताने के बहाने विन्डोज लाईव राईटर टेस्ट भी हो जायेगा और इसी बहाने एक कागज की चिन्दी पर कभी उतारे चंद शब्द भी सधा लेंगे.


ये रंग कैसे कैसे:

दुनिया!!!

वो कहता है-नीली है
मैं कहता हूँ-हरी है
उसकी नजरों में सुनहरी है..

दुनिया कैसी है?
दुनिया क्या है?

दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...

बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.

-समीर लाल ’समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, जून 08, 2008

असहज विचारों की सहज बानगी..

अकसर
दफ्तर आते जाते
ट्रेन में बैठे
फ्री बंटे उस अखबार के
इश्तहारों से पटे पन्नों पर
कोई खाली कोना तलाश
अपने असहज भावों को
सहजता से उतार देता हूँ
अपनी कलम की
काली स्याही से...

और

लोग उसे कविता कहते हैं....
न जाने, क्यूँ!!!



और कुछ अखबार के कागजों पर अपने मनोभावों का अंकन आज बटोरा और ले आया. न जाने, आप क्या कहेंगे मगर बस भाव हैं..कभी कुछ तो कभी कुछ..ज्यूँ का त्यूँ परोस रहा हूँ..बिखरे शब्दों को बिना समेटे. आप ही बतायेंगे कि कितने बिखरे हैं या सिमटे हैं!!!


dep

-१-

साहिल पर बैठा
वो जो डूबने से बचने की
सलाह देता है.....
उसे तैरना नहीं आता

वरना

बचा लेता.

-२-

कुछ तो बात है
वरना
मौसम यूँ ही
नाहक

खराब नहीं होता.

-३-

वो अपनी
किस्मत का रोना रोते हैं..

बदकिस्मती क्या होती है
जिन्हें इसका
गुमान भी नहीं.

-४-

मँहगाई ने दिखाया
यह कैसा नजारा.
हर इंसान तो परेशान है
दो जून की रोटी के
इंतजाम में..
उसे क्या देता...

गली का कुत्ता था
मर गया बेचारा!!


-५-

वो हँस कर
बस यह
अहसास दिलाता है

वो जिन्दा है अभी!!


samd

-६-

आकाश में उड़ते
उन्मुक्त पंछियों को देख
खुद अपनी गिरफ्त से
आजाद होने को
छटपटाता हूँ
मैं!
तड़प जाता हूँ
मैं!!



-७-

अँधेरे कमरे की
चाँदनी में नहाई
उस उदास खिड़की से
आसमान में
चमकीले तारों को देख
दूर देश की यादों में
न जाने कब
खो जाता है वो!

न जाने कब
सो जाता है वो!

--------------------------------


असहज विचारों की सहज बानगी..ये हमारी स्टाईल है जी.


--समीर लाल ’समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

बुधवार, जून 04, 2008

हिन्दी चिट्ठाकारी स्पेशल

आज की यह पोस्ट हिन्दी चिट्ठाकारी स्पेशल है यानि स्पेशली फार हिन्दी ब्लॉगर्स. (अंग्रेजी मे बॉलीवुड चलन के अनुरुप लिखना पड़ा)

आज हम नहीं, बस ये पोस्ट खुद ही बोलेगी. हम तो चुपचाप बैठे हैं.

बशीर बद्र निदा फाज़ली साहब शेर है:

घर से मस्जिद है बहुत दूर है चलो यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये.

बशीर बद्र निदा फाज़ली साहब से क्षमा मांगते हुए:

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो, यूँ कर लें,
किसी रोते हुए ब्लॉगर को हँसाया जाये.

लगता है किसी ने टिप्पणी नहीं की!

HeadBang

एक नजर इधर भी, बदलते परिवेश के साथ:

कोई नेता जी लगते हैं? जेड सिक्यूरिटि मिली है.
अरे नहीं, यह हिन्दी ब्लॉगर हैं.

zee security

आज का समाचार:

दिल्ली में आज शाम ४ बजे से रामलीला मैदान में हिन्दी ब्लॉगर मीट का आयोजन किया गया है. सुरक्षा की दृष्टि से, कानून एवं व्यवस्था बनाये रखे रहने के लिए, दिल्ली एवं आसपास के राज्यों में धारा १४४ लगा दी गई है.


आगरा पागलखाने का नोटिस बोर्ड

पागलों का समाज में खुले आम घूमना हानिकारक साबित हो सकता है.

पागल पकड़वाईये- ४०० रुपये नगद पाईये.
हिन्दी ब्लॉगर पकड़वाईये- १००० रुपये नगद पाईये और साथ में एक शानदार गिफ्ट हैम्पर (हिन्दी साहित्य सभा की ओर से).


मानो या न मानो:

५ हिन्दी ब्लॉगरर्स का मिलन समारोह बिना किसी विवाद एवं लड़ाई झगड़े के शांतिपूर्वक सौहार्दपूर्ण वातावरण में सम्पन्न.

ब्रेकिंग न्यूज:

१.बड़के न्यायालय ने मंत्रालय को फटकारा. अपने फैसले में कहा कि हिन्दी ब्लॉगर होना रिवाल्वर लाईसेन्स प्राप्त करने का वैद्य एवं समुचित कारण.

२.पब्लिक मार रही है. हिन्दी ब्लॉगर है और अपने आपको साहित्यकार बताता है.

Beating

.सरकारी रत्नों में एक और रत्न जुड़ा : हिन्दी ब्लॉग रत्न.
(सिर्फ सिफारिश और जुगाड़ से उपलब्ध- हिन्दी ब्लॉग का न होना सम्मान प्राप्ति में बाधक नहीं, जैसा कि बाकी सम्मानों के साथ होता है)

blogratn

हिन्दी ब्लॉग रत्न का चयन लोकतांत्रिक तरीके से करने के लिए वोटिंग करवाई जायेगी, जिन्हें बिना गिने समिति के अध्यक्ष विजेता घोषित करेंगे. उनका निर्णय ही अंतिम एवं मान्य होगा, जो कि पूर्णतः जुगाड़ा्धारित रहेगा. इस विषय में किसी भी विवाद पर कोई भी सुनवाई का प्रावधान नहीं है. अगर आप नतीजों से संतुष्ट नहीं हैं, तो कृप्या घर बैठें. इस तरह आप इस लोकतांत्रिक प्रणाली का सहयोग करेंगे, जैसा कि आप हर लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ सहयोग करते आये हैं. मात्र इस सम्मान के लिए आपको अपनी आदत बदलने की आवश्यक्ता नहीं है-बस घर बैठिये और कुढ़िये.)

चित्र बोलते हैं:


बोल टिप्पणी करेगा या नहीं!

beatingsome


ये कोई गैंगस्टर नहीं है. सामूहिक ब्लॉग का मॉडरेटर है, बाकी सारे उस ब्लॉग पर लिखने वाले.

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बेनामी ब्लॉगर

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shantilaka


(नोट: यह मात्र मनोरंजन के लिए है. कृप्या कोई भी आहत न हों) Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, जून 01, 2008

कड़वी निंबोली

nimboli

माँ की धुँधली सी तस्वीर उसके मानस पटल पर अंकित है. साफ साफ तो नहीं याद, जब माँ गुजरी तब वो बहुत छोटा था. रात माँ के बाजू में ही दुबक के सोया था. उसे अंधेरे से डर लगता था तो माँ से चिपक कर सो रहता, कोई डर पास ना आता.

सुबह उठा तो रोज की तरह माँ बाजू में नहीं थी. कमरे के बाहर निकल कर आया तो माँ को सफेद चादर में लिपटा हुआ जमीन पर लेटा पाया. मोहल्ले की सारी स्त्रियाँ उनके इर्द गिर्द इकट्ठा होकर रो रहीं थीं. सबको रोता देख वो भी रोने लगा. उसे तो यह भी पता नहीं था कि मौत क्या होती है. बाद में रद्दो मौसी ने उसे बताया था.

रद्दो मौसी, उसकी प्यारी मौसी, एक दिन बाद आई थी पास के गांव से. तब तक न उससे किसी ने खाना पूछा था और न ही दूध. जब जब उसे भूख लगती वो माँ को याद करता.

माँ को कँधे पर उठाकर बाबूजी और मोहल्ले वाले ले गये थे. पड़ोस की बिमला चाची कह रहीं थी कि अब वो भगवान के पास गईं और अब कभी नहीं आयेगी. मगर उसे उनकी बात पर यकीन ही नहीं आ रहा था, भला उसकी माँ उसे छोड़ कर कैसे जा सकती है कहीं हमेशा के लिये.

शाम को बाबूजी वहीं बैठक में बैठे रहे और लोग आते जाते रहे उनसे मिलने. कुछ रिश्तेदार भी आ गये थे. किसी को भी उसका ध्यान नहीं था. सब बाबूजी से मिलते और उसके सर पर हाथ फिरा कर चले जाते.

रात होते वो कमरे में आ गया. बाबूजी बैठक में ही बैठे थे. कुछ बोल ही नहीं रहे थे. वैसे भी वो चुप ही रहते थे और बैठक में ही रहते, खाते और सोते थे. वो तो बस अपनी माँ से ही बात करता था. अब भूख के साथ साथ उसे नींद भी आ रही थी. वो वहीं माँ के बिस्तर पर लेट गया. उसे पूरा यकीन था कि माँ मौसी के यहाँ गई होगी, रात गये आ जायेगी. तब वो उससे खाना खाने को कहेगी, तो वो रुठ कर मना कर देगा. जब बहुत दुलरायेगी और अपने हाथ से पुचकार कर खिलायेगी, तब खा लेगा.

यही सोचते सोचते आँखों में आंसू लिये कब आँख लग गई, पता ही नहीं चला. सुबह सुबह जब रद्दो मौसी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा, तो उसकी नींद खुली. उसे ऐसा लगा जैसे माँ वापस आ गई है. उसे मौसी के आंचल से माँ की खुशबू आती थी. मौसी ने उसे बहुत पुचकारा, नहलाया और अपने हाथ से खाना खिलाया. बाबूजी तो आज भी दिन भर बैठक वाले कमरे में ही बैठे थे, सब मिलने जुलने वाले दिन भर आते रहे.

आज वो मौसी के साथ माँ के बिस्तर पर सो गया. मौसी उसके सर पर माँ की तरह ही हाथ फिराती रही. माँ की खुशबू आ रही थी उसके पास से. उसने मौसी से माँ के बारे में पूछा. मौसी ने उसे बताया कि मौत क्या होती है और यह भी, माँ अब मर चुकी है और अब कभी वापस नहीं आयेगी. पता नहीं क्यूँ अपनी सबसे प्यारी मौसी से यह सुन कर उसका मन बैठ गया. आज मौसी उसे अच्छी नहीं लग रही थी और उसके पास से आती माँ की खुशबू भी न जाने कहाँ खो गई थी. वो करवट बदल कर नम आँख लिए सो गया.

सब क्रिया करम हो जाने के बाद मौसी उसे अपने साथ ले जाना चाहती थी. बाबूजी ने हाँ भी कर दी थी मगर वो रो रो कर जाने को तैयार ही नहीं हुआ. बाबूजी ने डाँटा भी, मगर वो नहीं गया. रद्दो मौसी लौट गई.

बाबू जी सुबह से काम पर निकल जाते और घर पर रह जाता वो और सुबह से आई छुट्ट्न की माई. वो ही अब खाना बनाती थी, उसे नहलाती, खाना खिलाती और देर रात वापस घर चली जाती. पास ही रहती थी. अक्सर छुट्ट्न भी साथ आ जाता. वो दिन भर छुट्ट्न के साथ खेलता.

समय निकलता गया. बाबू जी शाम से ही पीने लगते. अब वो सोचता है तो लगता है कि शायद इस तरह माँ के न रहने का दुख भुलाते होंगे.

फिर नई अम्मा भी आ गई. मगर बाबू जी का दुख कम नहीं हुआ और उनका शाम से ही पीना जारी रहा. दर्द तो नई अम्मा के आने से उसका भी कम नहीं हुआ बल्कि कुछ बढ़ ही गया. छुट्टन की माई का आना भी बंद करा दिया गया सो छुट्टन का आना भी बंद हो गया.

अब वो खुद से नहाना और खाना निकाल कर खाना भी सीख गया था. मोहल्ले के और बच्चों को अपनी माँ से दुलरवाते देखता तो माँ की याद में उसकी आँखें भर आती. वो अपने ही अहाते में लगे नीम के पेड़ के नीचे आकर बैठा माँ को याद करता रहता. कोई कौआ नीम पर बैठा निंबोली गिरा देता. बिल्कुल कड़वी निंबोली- उसे उसकी बदकिस्मती की अहसास कराती निंबोली.

दर्जा १२ के बाद उसे आगे पढ़ने शहर भेज दिया गया. उसे बिल्कुल बुरा नहीं लगा. वहाँ भी अकेला ही तो था और यहाँ भी. वो छुट्टियों में भी गाँव न जाता. पढ़ाई खत्म करके वहीं शहर में एक अखबार में नौकरी पर लग गया.

एक रात खबर आई कि बाबू जी की तबीयत खराब है, तुरंत चले आओ. जब वो पहुँचा तो बाबूजी अंतिम सांसे गिन रहे थे. शायद उसका ही इन्तजार कर रहे थे. उसे देखकर उनकी आँखों से दो बूँद आँसूं गिर पड़े. हमेशा की तरह आज भी बोले कुछ भी नहीं. बस, तकिये के नीचे से एक लिफाफा निकाल कर दिया और इस दुनिया से विदा हो गये.

दाह संस्कार करके घर लौटा तो वहीं नीम के नीचे आ बैठा और लिफाफा खोल कर देखने लगा. उसमें एक फोटो थी. माँ की शादी के पहले की. पिता जी ने एक कागज पर लिख दिया था कि माँ की बस यही एक फोटो उनके पास थी. किसी मेले में खींची गई. नाना, नानी और माँ. बिल्कुल मौसी की तरह. शादी के पहले वाली मौसी. उसे अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर याद आई. बिल्कुल इस तस्वीर से जुदा.

न जाने क्या सोच कर उसने वो तस्वीर फाड़ दी. आखिर आज तक वो अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर के सहारे ही तो जीता आया था. वो उसे विस्मृत नहीं करना चाहता था. तभी कोई कौआ नीम पर आ बैठा और कौवे ने एक निंबोली गिरा दी. बिल्कुल कड़वी निंबोली- उसे उसकी बदकिस्मती की अहसास कराती निंबोली.

अगले दिन ही वो शहर चला आया और उसके साथ शहर लौटी उसकी अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर. वो फिर कभी गाँव नहीं गया लेकिन शहर में अपने घर के अहाते में उसने आम का पेड़ लगाया है, मीठे आम का पेड़. Indli - Hindi News, Blogs, Links