गर्भनाल का ५४ वां इन्टरनेट संस्करण आ चुका है. इस बार मेरा व्यंग्य आलेख ’अंतिम तिथि’ प्रकाशित हुआ है. अभी तक कहीं और नहीं छपा है. आप भी पढ़िये:
सुबह सुबह भईया जी के यहाँ पहुँचा. बड़ी गमगीन मुद्रा में नाश्ता कर रहे थे वे.
मुंशी बाजू में बैठा लिस्ट बना रहा था. भईया जी लिखवाते जा रहे थे:
- नगर निगम से पानी के दोनों नल रेग्यूलर कराना है.
- राशन कार्ड से बाबू जी का नाम हटवाना, जिनकी मृत्यु आज से ५ साल पहले हो चुकी है.
- स्व. पिता जी का नाम वोटर लिस्ट से हटवाना है. ५ साल से टल रहा है.
- गैस कनेक्शन नौकर के नाम से हटाकर खुद के नाम ट्रांसफर कराना है.
- २० साल के अनुभव के बाद ड्राईविंग का लर्निंग और फिर मेन लायसेन्स लेना है.
- २००७ में खरीदी गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कराना और लाईफ टाईम टेक्स भरना है.
- १२ वर्ष पूर्व जारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का प्रमाण पत्र, भूलवश जारी के पत्र के साथ सरकार को वापस करना है.
- गैरेज बढ़ाकर दो फुट सड़क घेरने का नक्शा, नक्शा ऑफिस से नियमित कराना है.
- आयकर विभाग में वालेन्टरी स्कीम में आय घोषित कर टैक्स भरना है.
- खेत में सिंगल बत्ती कनेक्शन अपने नाम से कराना है.
- घर के पीछे वाले हिस्से में कटिया हटवाकर कनेक्शन मीटर से करवाना है.
- बालिकाओं के लिए ’रंगीन तितली’ और महिलाओं के लिए ’माँ वैभव लक्ष्मी’ नामक चार साल पहले बनाये दो एन जी ओ को बंद करवाना है.
और भी जाने क्या क्या काम जिसमें पूर्व की कारगुजारियाँ और कुछ कार्य आने वाले समय में करने के मंसूबे मगर सबके कागजात जल्दी से जल्दी बनवाने की कवायद में लगे थे.
मैने चेहरे पर उभर आई इस परेशानी का कारण पूछा तो कहने लगे कि अब दु-धारी तलवार पर चलने का जमाना आ रहा है तो यह सारी परेशानी तो होना ही है.
तब पता चला कि आधी झंझट तो इससे आन पड़ी कि भईया जी ने खुद ही साथियों को भड़का कर आनन फानन में जो भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति बनाकर खुद को स्वयंभू अध्यक्ष घोषित किया था, उसे भईया के दिल्ली वाले संपर्क ने इनका संजीदा कदम मानते हुए मान्यता दिला दी और सरकारी ग्रान्ट और भूमि के आबंटन के लिए दरखास्त भी लगवा दी ताकि एकाध महिने में अप्रूव हो जाये. मौका नाजूक था तो भईया जी मना भी नहीं कर पाये और न ही बता पाये कि यह समिति तो देश का माहौल देखते हुए टेम्परेरी बनाई थी.
फिर उस पर जिस अनशन कार्यक्रम में जोश दिखाते हुए हिस्सा लेने पहुँचे थे, उसके लिए उनकी सोच थी कि अन्य आंदोलनों की तरह यह भी नींबू पानी आदि पिलाकर समाप्त करवा दिया जायेगा और बात आई गई हो जायेगी, साथ ही भईया जी का रुतबा भी बन जायेगा. जनता का क्या है वो तो किसी और मसले में उलझ कर इसे भूल जायेगी. उसकी आदत है. मगर हाय री किस्मत, सरकार आंदोलनकारियों की शर्तें मान गई. सारा का सारा प्लान धाराशाई हो गया.
यूँ तो सरकार हजारों किसानों के मरने पर चुप बैठी रही, नन्दीग्राम में चुप लगा गई, गुर्जरों को बहला फुसला लिया और आज जब भईया जी की बारी सामने आई तो एकदम पलट गई. भईया जी की नजर में यह सरकार की सरासर चीटिंग है. कोई कन्सिस्टेन्सी नाम की कोई चीज ही नहीं है इस सरकार की कार्य प्रणाली में.
किसी के साथ कैसा व्यवहार और किसी के साथ कैसा? ऐसा कहीं होता है क्या..सरकार सरकार खेलना है तो फेयर गेम खेलो या फिर खेलो ही मत. कोई क्रिकेट है क्या कि जिसको मर्जी हो खिलवा लिया, जिसको मर्जी हो बैठाल दिया.
अब भईया जी को चिन्ता सता रही है कि जब इतना हो गया तो कहीं १५ अगस्त से सच में भ्रष्टाचार भी न बंद हो जाये. किसका भरोसा करें? जिस सरकार पर इतने दिन तक भरोसा किया वो तक तो पलट गई तो अब तो समझो कि भरोसा नाम की चिड़िया उड़ गई. १५ अगस्त से तो जानिये गौरैय्या हो गई, विलुप्त प्रजाति.
अच्छा खासा तो चल रहा था. सब कामों के रेट फिक्स से ही थे फिर भी न जाने किसको क्या दिक्कत हुई, कौन सा काम अटक गया-सारी नौटंकी खड़ी करके रख दी. अरे, एक बार हमसे बता देते तो हम ही करवा देते कुछ ले दे कर...बेवजह का बवाल खड़ा कर दिया. बता दे रहे हैं और चाहो तो स्टॉम्प पेपर पर लिख कर दे दें-ये बुजुर्ग तो भ्रष्टाचार हटवा कर निकल लेंगे, अंजाम हमें आपको और आने वाली जनरेशन को भुगतना होगा. सब पछतायेंगे कि यह क्या कर बैठे. फिर न कहना कि आगाह नहीं किया था..
इतनी बढ़िया व्यवस्था थी, सब काम हुआ जा रहा था. सब मिल कर ऐश कर रहे थे. पता नहीं कैसे और किसको बर्दाश्त नहीं हुआ, अब भुगतो सब और हमारे पास मत आना कि भ्रष्टाचार वापस ले आओ का आंदोलन चलवा दिजिये. ये रोज रोज का टंटा हमको पसंद नहीं है.
बहुत खराब आदत पड़ी है सबकी-एक दिन कहते हैं अंग्रेज भारत छोड़ो..फिर मनाते हैं कि वो ही ठीक थे...वापस आ जाओ. बस, आना जाना ही लगा रहेगा तो काम कब होगा?
अब अगर १५ अगस्त को भ्रष्टाचार बंद हो गया तो यह सारे लिस्ट के काम कैसे होंगे? इसमें से एक भी काम बिना सेटिंग और लेन देन के होता है क्या भला? इसीलिए भलाई इसी में लग रही हैं कि ये सारे काम करवा कर रख लें फिर इत्मिनान से खुल कर नारा लगा पायेंगे- ’भ्रष्टाचार हटाओ, देश बचाओ’
समय मात्र ४ महिने का बचा है और काम का तो मानो ढेर हो.आप भी जाकर अपना बकाया काम निपटाईये, और हमें अभी निपटाने दिजिये.
वैसे भी आपकी जरुरत तो नारा लगाने के लिए ही पड़ेगी, अभी क्यूँ समय खराब करते हैं?
लौटते हुए मैं भी सोचने लगा कि वाकई ऐसे कितने सारे काम पेन्डिंग पड़े हैं जो भ्रष्टाचार खतम हो जाने के बाद तो करवा पाना संभव ही नहीं होंगे. बस यही सोच कर लगा कि समय बहुत कम बचा है. मैंने महसूस किया कि मेरी चाल एकाएक तेज हो गई है और मैं मन ही मन कामों की लिस्ट बनाता घर की तरफ चला जा रहा हूँ.
-समीर लाल ’समीर’
96 टिप्पणियां:
bahut badhiya...bahut2 badhai ache lekhn ke liye...
बहुत धारदार व्यंग्य... जिस कदर भ्रष्ट्राचार समाया हुआ है हमारे भीतर असंभव सा लगता है इसका निकल पाना...
हा हा... बहुत करारा मारा है.,.. वैसा ही जैसा ओसामा ने ओबामा को मारा है..
हम भी अपने कामों की लिस्ट बाना देते है... बाद में पता नहीं हो या न हो..
इसे मैं ब्लोगबुड का श्रेय कहूँ जो ‘हाले-दिल कहता गया’ वाला समीर व्यंग्य की बीहड़ झाड़ियों में विचरने लगा। सुन्दर!
बहुत बढ़िया जनाब!
आपका व्यंग्य बहुत पैना है!
अरे बधाई तो दी ही नहीं!
बहुत-बहुत बधाई!
हार्दिक शुभकामनाएँ!
अब तो कारवां बढ़ चला है रुकेगा नही, अंतिम तिथि आपने बता ही दी है, मै भी अपने संपर्क में रहने वाले सभी मित्रों को अंतिम तिथि के बारे में बताए देता हूँ, मगर आप से निवेदन है की आप आदरणीय "शुक्ला जी" को अवश्य सूचित कर दें, उत्तम व्यंग, बहुत बढ़िया,
लेखक के द्वारा अनुमोदित टिप्पणी
सही है.. भ्रष्टाचार हमसे है, हम भ्रष्टाचार से नहीं !
भ्रष्टाचार जिन्दाबाद !
समसामयिक जोरदार व्यंग्य । एक लाइन और जोड़ दीजिए....
मालूम है देश में भ्रष्टाचार है
कानून की डगर तो खुरपेंचदार है।
ये तो सर मुंडवाते ही ओले पड रहे हैं ।
मैं भी अपने पेंडिंग पडे कामों की छोटी-मोटी लिस्ट बना ही लूँ ।
सुंदर व्यंग्य कथा।
जबलपुर का पानी नजर आने लगा है इस में।
पेंडिंग कामों की सूची में पूरा हिन्दुस्तान दिख गया
"१२ वर्ष पूर्व जारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का प्रमाण पत्र, भूलवश जारी के पत्र के साथ सरकार को वापस करना है."
मेरे पड़ोसी अपने गत वर्ष स्वर्ग गए पिता श्री के १९६८ में जारी इस प्रमाण पात्र को भूलवश कटेगरी में डलवाने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं
और दूसरे पुत्र उसे अपने पक्ष में रिन्यूवल के ..
जय हो भारत !
वैसे इसी प्रकार के अधिकतर लोग इसमें घुस लिये हैं..
Dhardar vyang. Chot nishane par...!
तीखा कटाक्ष! जनता जनार्दन के दिमाग में भी ऐसे ही सवाल उठ रहे हैं कि भ्रष्टाचार खत्म हो गया तो काम कैसे होंगे?
बहुत बढ़िया धारदार व्यंग्य....बहुत-बहुत बधाई!
जिस तरह अन्ना हजार एंड पार्टी के विरुद्ध मुहिम चलाई गयी है, उससे साफ़ है कि हम अभी भ्रष्टाचार छोड़ने वाले नहीं हैं...वाकई ये सोच कर भी समझ नहीं आता कि बेचारे इमानदारी से काम करेंगे तो खायेंगे क्या...और हम काम कैसे करायेंगे...पशोपेश कि स्थिति है...लेने वाले और देने वाले दोनों के लिए...इमानदार का तो हाल बुरा है...ऑफिस में बॉस और घर में बीवी दोनों दुखी...संवेदनशील मुद्दे पर एक करारा व्यंग...सार्थक पोस्ट...
तेज व्यंग्य! शिष्टाचार, विशिष्टाचार, भ्रष्टाचार, मिर्च का अचार आदि दैनन्दिन भोजन के अंग से हो गये दीक्खैं हैं।
यह लिस्ट का कहाँ से जुगाड़ किया , हमें तो इस लिस्ट ने अपने काम याद दिला दिए :-)
भ्रष्टाचारियों कि चर्चा खूब की ....जिसका जुगाड़ नहीं होता छाती पीट पीट कर भ्रष्टाचारियों को गाली दे रहा है !
-राशन में गाँव के रिश्तेदारों का नाम चढाने के पैसे मांगते हैं ...
- किरायेदार से कमाई, को सरकार से छिपाने के पैसे ...
-कटिया के पैसे देना भ्रष्टाचार नहीं मन जाना चाहिए ! बिजली नॉन भ्रष्टाचारियों को फ्री मिलना चाहिए
:-)
सूची जरा लंबी हो तो सबके काम की चेक लिस्ट जैसी उपयोग हो सकती है.
ये बुजुर्ग तो भ्रष्टाचार हटवा कर निकल लेंगे, अंजाम हमें आपको और आने वाली जनरेशन को भुगतना होगा. सब पछतायेंगे कि यह क्या कर बैठे. फिर न कहना कि आगाह नहीं किया था.....
.....दिलचस्प शैली में मौजूदा व्यवस्था की तल्ख़ हकीकत का अक्स उतारता करार व्यंग्य...बधाई.. वास्तव में भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्रीय जीवन का एक हिस्सा बन चुका है. इसके विरुद्ध उठी कोई भी आवाज़ अति आदर्शवादी क्रंदन सा प्रतीत होती है. जब तक यह व्यवस्था और उसके साथ हमारी मानसिकता नहीं बदलेगी भ्रष्टाचार किसी न किसी रूप में मौजूद रहेगा. अपनी सुविधाओं के लिए हम खुद ही उसका पालन-पोषण करते रहेंगे. यही सत्य है.
----देवेंद्र गौतम
बधाई...बिना कहीं छ्पे "पत्रिका" में छपने की...
इसमें पायरेटेड सोफ्ट्वेयेर के बदले जेनुइन सॉफ्टवेर खरीदने वाली व अनन्य काम नहीं लिखे हैं. फिर भी कहीं न कहीं ऐसे लेख एक अच्छी मुहिम की फजीहत के रूप में भी मानी जा सकती है. यथा राजा तथा प्रजा के कारण ही तो इतने सरे काम पेंडिंग हो गए हैं . फिर भी राजा तो फाईव स्टार जेल में ऐश कर रहा है. उसके लिए कोई डैड लाइन डिसाइड हुई है क्या ?
हा हा हा... करारा व्यंग्य! बहुत ही गज़ब का लिखा है.......
समयानुकूल व्यंग्य !!! हार्दिक धन्यबाद सर जी !!
छोटी सी जान, इतने सारे काम।
सबको सावधान करने के लिए धन्यवाद !
"अब अगर १५ अगस्त को भ्रष्टाचार बंद हो गया तो यह सारे लिस्ट के काम कैसे होंगे? इसमें से एक भी काम बिना सेटिंग और लेन देन के होता है क्या भला? इसीलिए भलाई इसी में लग रही हैं कि ये सारे काम करवा कर रख लें फिर इत्मिनान से खुल कर नारा लगा पायेंगे- ’भ्रष्टाचार हटाओ, देश बचाओ’ "
"व्यंग्य को सहज होना भी अनिवार्य होता है"
:- यही साबित करता है आप का ये आलेख|
हो सकता है बाकी लोग व्यंग्य की इस प्रथम शर्त से सहमत न होते हों|
बहुत बहुत बधाई समीर भाई................
'अंतिम तिथि' के बहाने आपने एक तीर से कई शिकार किये,बढ़िया व्यंग्य की बधाई !
wah....bahut achcha likhe.
बहुत जोरदार व्यंग है। शुभकामनायें, हम भी जल्दी से काम निपटा लें।
करारा व्यंग.... हमेशा की तरह सुन्दर..
कभी हमारे ब्लॉग भी आयें नया हूँ और आपका प्रसंशक भी
लगभग एक साल पहले आपकी कविता पढ़ी थी
कल शाम
बरसों बाद
जब तुम्हें देखा
अपने साजन के साथ
खिलखिलाते...
तो
मुझे याद आये
न जाने कितने
तुम्हारे चेहरे
रोते....
तब से आज तक पागल हूँ आपके लिए आँखे नाम कर दी थी आपने
सिर्फ आपसे प्रेरित हो ब्लॉग जगत में कदम पखा है
सो आपका साथ भी चाहिए..देंगे न...?
avinash001.blogspot.com
इंतजार रहेगा आपका .....
:) :) बहुत तीखा व्यंग ... यानि कि १५ अगस्त तक भ्रष्टाचार खूब फलने फूलने वाला है ...
धारदार व्यंग .व्यवस्था पर करारी चोट . आपका लेखन वाकई सदुप्युक्त है !
मन को कहीं गहरे आन्दोलित कर देता व्यंग्य!!
सस्ते दामों वाली दुकान के बंद होने के पहले का सेल!!
जैसे मुर्दा लाश से गहने उतारते लोग!!
जैसे किसी के मरने पर बनती वैकेन्सियां!!
___________________
सुज्ञ: ईश्वर सबके अपने अपने रहने दो
समीर जी ,बधाई !
वो भूली लिस्टों की दास्ताँ
लो फिर याद आ गई !!
तीखा कटाक्ष...भ्रष्टाचार के बिना जीना भी कोई जीना है....
लाजवाब कर दिया आपने इस व्यंग्य की रचना कर ..बधाई.
आदरणीय समीर जी ,
आज तो आपकी लेखनी ने कमाल कर दिया .... इतना करारा व्यंग.....सादर !
हा। हा। हा। बहुत खूब।
रंजन, जी ओसामा ने ओबामा को नहीं, ओबामा ने ओसामा को मारा है। अपनी टिप्पणी को सामयिक करें।
हमने तो गर्भनाल में भी पढ़ लिया था :)
धारदार व्यंग.
VYANGYA HO TO AESA ! DIL KE
AAR - PAR HO GAYAA HAI !!
bahut hi badhiyaa
हा हा...जबरदस्त है :P
jey hui na baat :)
गर्भनाल में पढ़ने के बाद यहां पुनः पढ लिया... अंतिम तिथि की लिस्ट हनुमान जी दुम की तरह लम्बी होती जाती है... अपनी अंतिम तिथि तक :)
भैया जी की तरह आप भी काहे नाहक चिंता में डूबे हैं ।
ये भ्रष्टाचार कहीं नहीं जाने वाला इतनी जल्दी । पूरी गारंटी है ।
सुन्दर व्यंग लेख ।
वाह भैय्या जी के आपने बहुत सारे काम बताये.... हा हा ये भैय्या तो आजकल भैय्यन हो गए हैं ... जोरदार व्यंग्य कड़ी की प्रस्तुति के लिए आभार.///
लो जी ओसामा मर गया तो आपने क्या सोचा भ्रष्टाचार भी खत्म हो जाएगा .....?
यहाँ तो ये हाल है कि मियुन्सीपाल्टी वाले अपनी कचरा उठाने की फ्री सेवा भी उन्ही घरों तक रखते हैं
जहां से उन्हें महीना मिलता है ......
अपना देश नहीं सुधरने वाला .....:))
क्या धोबी घाट मार आप ने बहुत सुंदर भ्रष्ट्राचार जिन्दा वाद, १०० मे से ९०% खुश हे, सिर्फ़ दुसरो को दोष देते हे खुद को नही देखते... कैसे हटेगा यह भ्रष्ट्राचार ...?
बहुत ही करारा धारदार व्यंग्य
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बढ़िया व्यंग्य. बहुत बहुत बधाई.
करारा
सटीक ...सधी हुई बात ..बधाई उत्कृष्ट लेखन के लिए.....
संदेश स्पष्ट है-अपनी पूरी मारक क्षमता के साथ!
आपने सच कहा अगर भ्रष्टाचार मिट गया तो ये भारत भूमि रसातल में चली जाएगी, हम दुनिया को मुंह दिखने काबिल नहीं रहेंगे...ये दुनिया फिर जीने लायक थोड़े ना रह जायेगी...च च च च कोई अन्ना हजारे जी को ये बात समझाए...इतना गड़बड़ हो जायेगा के उन्हें भ्रस्टाचार नियमित करने के लिए आमरण अनशन करना पड़ेगा...
नीरज
सही कहा आप ने वास्तव में हम सब अन्दर ही अन्दर यही सोचते है की कितने भी आन्दोलन हो जाये भर्ष्टाचार ख़त्म नहीं होने वला है वास्तव में भर्ष्टाचार ख़त्म होने की नौबत आ जाएगी तो सब ऐसे ही हडबडा जायेंगे |
गर्भनाल में भी पढ़ के आ रहा हूँ समीर भाई .... बहुत मजेदार है धारदार ...
बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आकर सुंदर पोस्ट पढ़ने को मिला जिसके लिए धन्यवाद! बहुत बढ़िया लगा!
सटीक...धारदार व्यंग्य !!!
जिस तरह से लोगों की आदत पडी हुई है,यदि सचमुच कभी ऐसी स्थिति बनी की झटके में भ्रष्टाचार समाप्त हो गया तो लोग तो बौखला जायेंगे,पगला जायेंगे...
व्यंग्य की तलवार ,उस पर धार जोरदार , बहुत खूब
समीर जी ,
अपनी कुछ बेहतरीन क्षणिकाएं 'सरस्वती -सुमन' पत्रिका के लिए भेजिए न .....
संक्षिप्त परिचय और छाया चित्र के साथ ....
इस पते पर ....
harkiratheer@yahoo.इन
या
Harkirat 'heer '
18 east lane ,
sunderpur , house no-5
Guwaahaati-5
bahut khoob !
veerubhai !
हरि कथा की तरह इस अनंत कथा को आपकी शैली में पढ़ने में बहुत आनंद आया। कोई काम हमें भी सुझाया होता:)
बाप रे। इतने सारे काम और अन्तिम तिथि केवल एक। एक दिन में इतने सारे काम तो केवल रिश्वत देकर ही कराए जा सकते हैं।
आनन्द आ गया। नब्ज पर हाथ है आपका।
हा हा ....मसालेदार 'समोसे' की तरह मजेदार ;)
भ्रष्टाचार ख़त्म ही हुआ जानिए, तभी अपने भी उससे पहले ही सारे कामों की लिस्ट बनवा दी पता नहीं और कितने लोगों की लिस्ट होगी ये.
व्यग्य सटीक लगा.
आपका लेख वटवृक्ष में पढा, आपका ब्लॉग देखा, बहुत अच्छा लगा , दिल्ली हिन्दी भवन में ब्लॉगर्स सम्मेलन में भी आपकी चर्चा सुनी । बधाई स्वीकारें......
बहुत बढ़िया
सब के पास एक लिस्ट जरुर होती है
मोहसिन रिक्शावाला
आज कल व्यस्त हू -- I'm so busy now a days-रिमझिम
आनन्द आ गया
सरकार की चीटींग अच्छी लगी..बहुत बढ़िया
बस आंख न खुले तो ही अच्छा :)
:)
लौटते हुए मैं भी सोचने लगा कि वाकई ऐसे कितने सारे काम पेन्डिंग पड़े हैं जो भ्रष्टाचार खतम हो जाने के बाद तो करवा पाना संभव ही नहीं होंगे. बस यही सोच कर लगा कि समय बहुत कम बचा है. मैंने महसूस किया कि मेरी चाल एकाएक तेज हो गई है और मैं मन ही मन कामों की लिस्ट बनाता घर की तरफ चला जा रहा हूँ.
क्या व्यंग्य है.... जबरदस्त.... सोचिए अगर अचानक भ्रष्टाचार खत्म हो जाए तो कितनी परेशानियां होंगी....
इसकी एक एक प्रति सभी विधान सभाओं में और संसद में सुनाई जाए! और एक प्रति मंत्रालयों में भी भेजी जाए! हांलाकि जानती हूँ कि नेता और अफसर बुरा मत पढो..बुरा मत सुनो को फॉलो करते हैं! और उनके लिए इससे बुरी खबर क्या होगी..
लौटते हुए मैं भी सोचने लगा कि वाकई ऐसे कितने सारे काम पेन्डिंग पड़े हैं जो भ्रष्टाचार खतम हो जाने के बाद तो करवा पाना संभव ही नहीं होंगे.
बहुतों की चिन्ता है ये....लेकिन कुछ नहीं होगा, निश्चिन्त रहें सब :)
वाह समीर जी, क्या लिखा है। कमाल कर दिया। लगता हे सर्वेश अस्थाना जी से मिलकर आप भी ब्यंग लिखने लगे। कामों की लिस्ट पढ़कर ही हंसी आ रही थी। मजा आ गया।
लाजवाब ! कमाल का लेखन ! सटीक व्यंग !
समसामयिक बहुत ही तीखा व्यंग्य ,भाषा बहुत ही सधी हुई...बहुत बहुत बधाई.....समय कम है काम बहुत निपटाने हैं :)
sundar magar dhardar vyangya hai. ise apni ptrika men bhi chhapne ka man kar raha hai...
jaandaar...badhai..
मुझे भी बहुत से काम याद आ रहे हैं, चलता हूँ सब निपटा लूं!
जायकेदार व्यंजन नहीं जी, व्यंग्य बडा जायकेदार है।
अच्छा लिखा... आभार..
सुंदर व्यंग्य... कमाल का लिखते हैं आप, भाषा शैली में बहुत अपनापन लग रहा था अच्छा तो जबलपुर संस्कारधानी से हैं आप....बहुत ख़ुशी हुई जानकर...
लाजवाब व्यंग्य...
यही तो जिन्दगी है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
समीर जी, बहुत बढ़िया व्यंग्य और प्रकाशन के लिए बधाई|
भ्रष्टाचार के ख़त्म हो जाने के बाद परेशानी कम नही होने वाली..भैया जी के साथ साथ बहुत से लोग है जिनके पेंडिंग काम कैसे पूरे होंगे बेचारों को पता नही..
शानदार व्यंग्य के लिए बधाई....
मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
yeh koie comman wealth game hai ki time se ho jayaga ............
jai baba banaras.......
मातृदिवस की बहुत-बहुत बधाई!
आज सोमवार को
आपकी पोस्ट क्यों नहीं आई!
मातृदिवस की बहुत-बहुत बधाई!
--
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
--
http://nicenice-nice.blogspot.com/2011/05/blog-post_08.html
बहुत करारा व्यंग्य|धन्यवाद|
दुधारी तलवार...!!
मज़ा आ गया...
:)
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