रविवार, दिसंबर 27, 2009

रुक जाना मौत है- विल्स कार्ड ८

पहले की तरह ही, पिछले दिनों विल्स कार्ड भाग १ , भाग २ , भाग ३ ,भाग ४ , भाग ५ भाग और भाग को सभी पाठकों का बहुत स्नेह मिला और बहुतों की फरमाईश पर यह श्रृंख्ला आगे बढ़ा रहा हूँ.


(जिन्होंने पिछले भाग न पढ़े हों उनके लिए: याद है मुझे सालों पहले, जब मैं बम्बई में रहा करता था, तब मैं विल्स नेवीकट सिगरेट पीता था. जब पैकेट खत्म होता तो उसे करीने से खोलकर उसके भीतर के सफेद हिस्से पर कुछ लिखना मुझे बहुत भाता था. उन्हें मैं विल्स कार्ड कह कर पुकारता......)

आज दराज तलाशी का दौर चला और कुछ और विल्स कार्ड हाथ में उठाये. गर्द उड़ाते याद आया कि साल बदलने को है. २००९ विदा लेने वाला है और २०१० आने को है.

गर्द उड़ती है तो एक चित्र खींचती है यादों का. गर्द शायद होती ही इसलिए है. यादें इसी तरह ही सिद्ध है वरना उनकी क्या महत्ता.

 

dust-storm

हम हर नये दिन, हर नये पल, हर नये साल से एक नई उम्मीद पाल लेते हैं. शायद यही जीने की वजह देता हो, मेरा ऐसा सोचना. मगर जब अपने कुछ दशकों पहले लिखे इन कार्डों पर नजर डालता हूँ तो ऐसा लगता है कि अभी भी वहीं खड़ा हूँ, कहीं कुछ नहीं बदला.

महसूस किया है मैने कि बदलता कुछ नहीं. बस बदलती रहती हैं हमारी आशायें, हमारी उम्मीदें और हमारे इर्द गिर्द का माहौल. शायद यही सफल जीवन का रहस्य हो, कौन जाने.

जिन्दगी रुकती नहीं. आगे बढ़ना जीवन है, रुक जाना मौत और पीछे लौटकर जीना, मूर्खता.

अक्सर ही हम बीते समय के लिए सोचते हैं कि वो समय बेहतर था..मगर याद करें तो उस समय भी हमें पीछे ही बेहतर महसूस होता था. आगे तो हमने देखा नहीं, महसूसा नहीं मगर वो आगे आने वाला समय ही फिर जब वर्तमान बनता है, तो जुझने की मशक्कत रास नहीं आती और जब वो भूतकाल बन जाता है तो याद आता है कि बेहतर था. यह विडंबना है, एक उलझन है, जो जीवन के साथ जुड़ी है और इसी का नाम जीवन है.

इन्हीं सब उहापोह के बीच, अब कुछ विल्स कार्ड जो हाथ आये आपकी नजर:

-१-

बरसात

उस रोज

मैं घर आया

बरसात में भीग

भाई ने डॉटा

’क्यूँ छतरी लेकर नहीं जाते?’

बहन ने फटकारा

’क्यूँ कुछ देर कहीं रुक नहीं जाते’

पिता जी गुस्साये

’बीमार पड़कर ही समझोगे’

माँ मेरे बाल सुखाते हुए

धीरे से बोली

’धत्त!! ये मुई बरसात’


-(एक अंग्रेजी वाक्यांश से प्रभावित)-

-२-

मेरे पास
बतलाने को
इतना कुछ है...

और

वो
एक प्रश्न लिए
जाने कहाँ
भटक रहा है!!!

-३-

गुलाब की चाह

और

कांटो से गुरेज...

जरुर, कोई मनचला होगा!!

-४-

चाँद और तुम!!
----------------

कल रात

एकाएक

पूरे चाँद ने

मुझे

मेरे कमरे की खिड़की से

घूरा...

मैने डर कर

तुम्हारी तस्वीर

छिपा दी....

क्या जबाब देता उसे??

बताओ न!!

अब

तुम्हारी

तस्वीर नहीं मिल रही!!

क्या जबाब दूँगा तुम्हें??

चाँद भी कहीं

बादलों की ओट में

जा छुपा!!!

-५-

हम कहे

तो कुछ और...

और

वही बात

तुम कहो..

तो कुछ और!!!

ये कैसी विडंबना है???

-६-

सांप पालने का शौक है

तो

सांप पालने के

गुर भी जानता होगा!!

ये कोई शिगूफा तो नहीं!!!

-७-

अर्थ बदल जाते हैं

शब्दों के

वक्त के साथ..

फिर

इन्सान की क्या बिसात...

मासूम बालक

शीर्षक में

प्रथम आया

उस बच्चे का चित्र...

२५ साल बाद

सबसे खौफनाक आदमी

शीर्षक में भी

प्रथम.....

ये विडंबना नहीं,

कर्मों का परिणाम है...

दुनिया

इसी का नाम है!!!

-समीर लाल ’समीर’

 

नोट: नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.

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72 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

समीर भाई-ये विल्स कार्ड का फ़ंडा मैने पहली बार आपसे ही सुना। शायद मै सिगरेट का इस्तेमाल नही करता इसलिए। लेकिन विल्स के रैपर का सदुपयोग पहली बार देखा सुना।
आपको नव वर्ष की शुभकामनाएं

Khushdeep Sehgal ने कहा…

जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है
आंधी हो या तूफां, ये थमता नहीं है
तू न चला तो चल दे किनारा
बड़ी ही तेज़ समय की ये धारा
ओ, तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा...

जय हिंद...

वाणी गीत ने कहा…

सांप पालने का शौक है तो पालने का गुर भी जानता होगा ....और विष रेचन के भी ...क्या बात है

सारे सवालो के जवाब आपके पास है ...पहले नहीं बताया ...!!

मासूम बच्चे की मासूमियत भेट चढ़ने के बाद युवक की तस्वीर बहुत कुछ कह रही है

सभी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक ....!!

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत सुन्दर संकलन -आपके चाँद और चेहरे सीरीज की और कवितायेँ सुनने का मन है !

Kulwant Happy ने कहा…

विल्स कार्ड ही किताब का नाम रखें जो अब आएगी। कसम बहुत शानदार है हर एक शेयर...इतना तो बता दीजिए अब कौन सी चलती है विल्स या कोई अन्य।

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice






mo.num.09450195427

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

सदाबहार.
पहले ही की तरह उतने ही सुंदर.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

जब भी प्रकाशित कराएं, इस संकलन का नाम 'विल्स कार्डज़' ही रखियेगा.

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

"महसूस किया है मैने कि बदलता कुछ नहीं. बस बदलती रहती हैं हमारी आशायें, हमारी उम्मीदें और हमारे इर्द गिर्द का माहौल"

आह क्या बात कही जनाब ने..!

"माँ मेरे बाल सुखाते हुए

धीरे से बोली

’धत्त!! ये मुई बरसात’"



माँ तो माँ होती है..सिर्फ यही एक है..जिससे लगता है नही जरूर होगा भगवान कहीं...!

उम्मतें ने कहा…

इस बार अपनी टिप्पणी :

Nice

seema gupta ने कहा…

सभी एक से बड कर एक मगर ये पंक्तियाँ
"
माँ मेरे बाल सुखाते हुए

धीरे से बोली

’धत्त!! ये मुई बरसात’

सच में माँ , माँ ही होती है दुनिया से अलग और ममता से ओत प्रोत .....

regards

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अक्सर ही हम बीते समय के लिए सोचते हैं कि वो समय बेहतर था..मगर याद करें तो उस समय भी हमें पीछे ही बेहतर महसूस होता था. आगे तो हमने देखा नहीं, महसूसा नहीं मगर वो आगे आने वाला समय ही फिर जब वर्तमान बनता है, तो जुझने की मशक्कत रास नहीं आती और जब वो भूतकाल बन जाता है तो याद आता है कि बेहतर था. यह विडंबना है, एक उलझन है, जो जीवन के साथ जुड़ी है और इसी का नाम जीवन है.

संपूर्ण जीवन दर्शन इस एक वाक्य मे समाया है. विल्स कार्ड तो नायाब सोच का परिणाम है.

अये साल की शुभकामनाएं.

रामराम.

Preeti tailor ने कहा…

bahut kam shabdomen bahut kuchh hai in rachanaome ....prabhavit kar gayi sabhi .....
badhai ....
aane vale nav varsh me kuchh pal ham bhi aise paaye jiske sapne hamne hardam sajaaye.....

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सही है,कंटेंट अपना फॉर्म खुद तलाश करती है। इन कविताओं में यही है। जब हम पहले तय कर लेते हैं कि किसी खास फॉर्म में कविता करनी है तो शायद तालमेल नहीं बैठता या फिर जब तक किसी खास फार्म पर सिद्धहस्तता प्राप्त नही होती, उस स्तर की कि फॉर्म के बारे में सोचना नहीं पड़ता कविता फॉर्म में फँसी नजर आती है।
आप की विल्स कविताएँ बहुत बेहतरीन हैं, इसी लिए कि उन की फॉर्म खुद उन ने ही तलाशी है।

अजय कुमार ने कहा…

बारिश में भीगने पर मां की प्रतिक्रिया दिल को छू गयी । मां होती ही ऐसी है

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

बस निशब्द हूँ.

>माँ याद आ रही है.

>चाँद और तुम, दोनों बारी बारी से बेवफा बन सूनेपन को कुरेदते हो.

ये दुनिया है दोस्त
खुद घुमती है
सबको घुमाती है
अब बात समझ में आई
क्यूँ आदमी के पीछे चलता है
उसका परछाई.

- सुलभ

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

माँ मेरे बाल सुखाते हुए धीरे से बोली ’धत्त!! ये मुई बरसात’

माँ होती ही है ऐसी !!


आपको भी नव-वर्ष की शुभकामनाएं!!!!!!!!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

wahwa SAmeer bhai...wah...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हम हर नये दिन, हर नये पल, हर नये साल से एक नई उम्मीद पाल लेते हैं. शायद यही जीने की वजह देता हो, मेरा ऐसा सोचना. मगर जब अपने कुछ दशकों पहले लिखे इन कार्डों पर नजर डालता हूँ तो ऐसा लगता है कि अभी भी वहीं खड़ा हूँ, कहीं कुछ नहीं बदला.

..........
jeene kee khaas wajah yahi hai

अर्थ बदल जाते हैं

शब्दों के

वक्त के साथ..

फिर

इन्सान की क्या बिसात...

bahut sahi

अन्तर सोहिल ने कहा…

मासूम बालक शीर्षक में प्रथम आया उस बच्चे का चित्र...
२५ साल बाद सबसे खौफनाक आदमी शीर्षक में भी प्रथम.....

प्रणाम स्वीकार करें

दिगम्बर नासवा ने कहा…

विल्स की श्रंखला तो लाजवाब चल रही है समीर भाई ......... इतनी संवेदनशील, गहरी बातें .......... दिल को छू जाते हो यार ........ नया साल बहुत बहुत मुबारक हो आपको .........

समयचक्र ने कहा…

बिंदास भाव ख़ूबसूरत विल्स श्रंखला ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर लगा आज का आप का यह कार्ड, ओर जब तक पानी भी चलता रहे, वो साफ़ कहलाता है, ताजा कहलाता है, ओर जिन्दगी भी बिलकुल वेसे ही है

bhartiya naagrik ने कहा…

maa to aisi hi hoti hai. mamta ki moorti, aanchal me agaadh prem liye. bahut achchha laga pahli hi rachna ko paddhkar.

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

आपका यह चाँद - प्रेम नए साल में
खिड़की से और फबते हुए दिखे ..
नव वर्ष की शुभकामनाएं ...

Astrologer Sidharth ने कहा…

इनमें से एक कविता तो आलसीजी के ब्‍लॉग पर ही पढ़ ली थी, शायद आपको वहीं अपने विल्‍स कार्ड की अगली कड़ी पोस्‍ट करनी याद आई होगी।

यह कविता मैं अधिक शिद्दत से समझ पाया क्‍योंकि गिरिजेशजी के यहां उसका संबंध पहले पढ़ चुका था...

पर‍ सिगरेट पीना ठीक बात नहीं सो एक आग्रह यह भी कि इस कार्ड का नाम बदल दें वरना कुछ युवा आज नहीं तो कल प्रेरित होंगे पहले सिगरेट पीने और फिर खाली कार्ड पर लिखने के लिए...

संजय बेंगाणी ने कहा…

आपकी कविताएं समझ में आती है.

M VERMA ने कहा…

मासूम बालक शीर्षक में प्रथम आया उस बच्चे का चित्र... २५ साल बाद सबसे खौफनाक आदमी शीर्षक में भी प्रथम.....'
पर इन 25 वर्षो तक कितना विष ग्रहण करना पडा उसका है हिसाब किताब किसी के पास!! यह उसके दिल का चित्र तो नही था. वह आज भी उतना ही पाक और साफ होगा.

रंजू भाटिया ने कहा…

यह विल्स कार्ड तो आपके बेमिसाल हैं ..इन्हें पढ़ कर दिल करता है की यह कार्ड आपके चुरा ले किसी दिन ..सिर्फ कार्ड...:)

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत रचनाओं को समेटें हैं ये विल्स कार्ड.....
आपको सपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

यह विल्स कार्ड किताब के रूप मे आने चहिये .

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

एक से एक लाजवाब! किसपर कमेण्ट करें!

हसरत हमारी भी नाथने की है कलियनाग! पर भय नहीं गया काक्रोच का। और अब इस उम्र में क्या जायेगा!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

इन पंक्तियों पर कहें क्या? सारे शब्द तो आपने ही संजो लिए हैं, हम लगायेंगे तो बस वाह! वाह! की पत्तियां...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

जिन्दगी रुकती नहीं. आगे बढ़ना जीवन है, रुक जाना मौत और पीछे लौटकर जीना, मूर्खता.



बहुत गूढ़ और गहरी बात.....

बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....

सादर

महफूज़....

Creative Manch ने कहा…

वो एक प्रश्न लिए
जाने कहाँ भटक रहा है!!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
गुलाब की चाह और
कांटो से गुरेज...
जरुर, कोई मनचला होगा!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कर्मों का परिणाम है...
दुनिया
इसी का नाम है!!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


इन विल्स कार्ड पर लिखी पंक्तियाँ इस कदर गहराई लिए हुए हैं कि हर पढने वाला बार-बार ठिठक जाता है. जीवन दर्शन को समेटे ये लाजवाब पंक्तियाँ सैकड़ों पोथियों पे भारी हैं.

भाई सच में आप बहुत ही गजब का लिखते हैं.

आपको नव वर्ष की
बहुत-बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ

रविकांत पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुंदर, खासकर बरसात वाला जो मुझे एक ही बार में पूरा याद भी हो गया। शृंखला जारी रहे। नये वर्ष की आपको भी शुभकामनायें।

बेनामी ने कहा…

ये बढिया. सब इकठ्ठे.
विल्स के रैपर पर नहीं लिक्खा जा सक्ता.
रोशनाई धुएँ में उड़ जाएगी और चिंगारी रह जाएगी. ये पोयट्री हो गै.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

लाजवाब बुनावट है जी इन विल्स कार्डों में। आनन्द आ गया। आप यूँ ही खजाना लुटाते रहें और हम बटोरते रहें। शुक्रिया।

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

विल्स कार्ड नही यह सुंदर विचारों और भावनाओं का महाकाव्य बनने की राह पर है एक एक रचना इतनी बेहतरीन है की क्या कहूँ आप बस विल्स कार्ड ढूढ़ते रहे देर नही जब उसके सारी लिखी हुई अनुभव से एक अत्यन्त खूबसूरत बृहद रचना बन जाएगी...विचारों का एक संकलन आपके यह विल्स कार्ड..ये भाग भी बढ़िया लगा आप आगे की कार्ड को ढूढ़ना शुरू कर दीजिए...

अर्कजेश ने कहा…

हर बार की तरह संवेदशील रचनाएँ ।
दुनिया इसी का नाम है !

Rohit Singh ने कहा…

4 shabd..wah ..aah

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

नव - वर्ष की अनेक शुभ कामनाएं
" विल्स - कार्ड " और उन पे लिखी आपकी कविताओं के हम " पंखे याने फैन हैं !! : )
स्नेह,
- लावण्या

girish pankaj ने कहा…

आपकी काव्यात्मक प्रतिभा देख कर अच्छा लगा. ब्लोगिंग का मतलब मसखरी नहीं है, अपने अन्दर की सारी प्रतिभा उड़ेल कर दुनिया के सामने रख देने का नाम ही ब्लोगिंग है. आप यही काम करते रहे है. लेकिन आज आपकी कविता पढ़ कर और अधिक ख़ुशी हुई. बधाई, नया साल भी सामने है, उसकी भी अग्रिम बधाई.

shubhi ने कहा…

मीडियाकर कविताएं पढ़ते हुए जिनका मन भर जायें वो इधर आयें, एक अलग सी दुनिया, विल्स कार्ड की दुनिया लेकिन इसका नशा बिल्कुल प्राकृतिक है घर की खुशबू से भरा हुआ। ओंटोरियो में कैसे जी लेते हैं आप मिट्टी की इतनी भीनीं सोंध को मन में बसाये

Prashuram Rai ने कहा…

एक-से-बढ़कर-एक। लाजवाब। मुझे चांद वाली कविता सबसे ज़्यादा पसंद आई।
अब तुम्हारी तस्वीर नहीं मिल रही!!
क्या जबाब दूँगा तुम्हें??
चाँद भी कहीं बादलों की ओट में जा छुपा!!!
बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

Vineeta Yashsavi ने कहा…

माँ मेरे बाल सुखाते हुए

धीरे से बोली

’धत्त!! ये मुई बरसात’

apki kavita aur lekhan dono hi behtreen hote hai...

कविता रावत ने कहा…

"माँ मेरे बाल सुखाते हुए
धीरे से बोली
’धत्त!! ये मुई बरसात’"
Maa aisi hi hoti hai...
Sundar rachna....

आपको नव वर्ष की शुभकामनाएं

Alpana Verma ने कहा…

गुलाब की चाह और कांटो से गुरेज...
जरुर, कोई मनचला होगा!!

kya baat hai!

sabhi ki sabhi kshanikayen bahut achchee hain...

chalte chalte--
[waise 'wills' walon ko maluum hona chaheeye ki aap ne unke cards ka kitna sadupyog kiya hai!..ek inaam ke haqdaar to banenge hi..:)]

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

समीर जी,बहुत सुन्दर रचनाएं है....लेकिन पहली वाली को पढ़ते हुए लगा कि इस रचना का जन्म अनायास ही कही बहुत गहरे मे हुआ....

माँ मेरे बाल सुखाते हुए
धीरे से बोली
’धत्त!! ये मुई बरसात’

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

"आगे बढ़ना जीवन है, रुक जाना मौत और पीछे लौटकर जीना, मूर्खता..."
एक बढिया मोती सहेज लिया। धन्यवाद सर ॥

डॉ टी एस दराल ने कहा…

जिन्दगी रुकती नहीं. आगे बढ़ना जीवन है, रुक जाना मौत और पीछे लौटकर जीना, मूर्खता.

बहुत खूब कहा।

२५ साल बाद सबसे खौफनाक आदमी शीर्षक में भी प्रथम..... ये विडंबना नहीं, कर्मों का परिणाम है... दुनिया इसी का नाम है!!!

बिलकुल सही फ़रमाया।
नव वर्ष की शुभकामनायें।

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

wah ji wah , kamal ke hain ye card to.

sandeep sharma ने कहा…

उस रोज मैं घर आया
बरसात में भीग
भाई ने डॉटा ’क्यूँ छतरी लेकर नहीं जाते?’
बहन ने फटकारा ’क्यूँ कुछ देर कहीं रुक नहीं जाते’
पिता जी गुस्साये ’बीमार पड़कर ही समझोगे’
माँ मेरे बाल सुखाते हुए धीरे से बोली
’धत्त!! ये मुई बरसात’

दिल खोल कर रख दिया आपकी एक छोटी सी बात ने...

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) ने कहा…

इसी फरेब में सदियाँ गुजार दीं हमने
गुजिश्ता साल से शायद ये साल बेहतर हो..

हो सकता है कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो, लेकिन ब्लॉगिंग के लिये बड़े काम की चीज़ साबित हो सकती है.. कभी बताइयेगा, यह कशिश किसी और कागज़ पर लिखने से आती क्या??

Manish Kumar ने कहा…

bahut khoob

barsaat wali kshanika khas taur par behad pasand aayi

शोभना चौरे ने कहा…

bahut achi kshnikaye

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

नव वर्ष के मौके पर आपका सन्देश हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करेगा. मैं भी यथा संभव प्रचार और नए लोगों को जोड़ने में सहयोग करता हूँ.

- सुलभ

बवाल ने कहा…

बहुत ऊँची थीम का लेख, लाल साहब। आभार।

Renu Sharma ने कहा…

sameer ji ,
namaskar
kafi arase baad aapane blog par dustak di,
kuchh na kahte huye bhi bahut kah diya .
dhanywad.

Himanshu Pandey ने कहा…

सब विल्स-कार्ड को धन्य कर रहे हैं | उन पर लिखे हुए अनोखे अक्षर ! बहुत पसंद आया यह -

"गुलाब की चाह
और
कांटो से गुरेज...
जरुर, कोई मनचला होगा!! "

आभार |

sandhyagupta ने कहा…

Aapko bhi nav varsh ki dher sari shubkamnayen.

BAD FAITH ने कहा…

समीर जी आपकी सराहना के लिये अत्यन्त आभार.
हिन्दी के प्रति आपका आग्रह सराहनीय है.और ब्लगरों के प्रति आपके उदार भावना अनुकरणीय है
साधुवाद.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आज तक सिगरेट पीने से होने वाले नुक्सान ही पढ़ते आये थे...सिगरेट पीने से होने से वाले फायदे आपके विल्स कार्ड्स से सीखे...ये कार्ड न होते तो ऐसी रचनाएँ हम तक कहाँ पहुंचतीं...धन्य हैं गाद्रेज फिलिप कंपनी जिसने विल्स सिगरेट बनाई और इश्वर जिसने आप को इसे पीने की लत लगाई...
नीरज

Ambarish ने कहा…

1st aur 4th shandaar lage...

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

गर्द jivan hi to he..dhunaa dhunaa hotaa...raakh me milane ko lalchaata..aour kyaa??
ummide jeene ki vajah hi to he..kintu jindagi to isase bhi aage he...thik mout tak...../////
rachnaye bemisaal he.

vandana gupta ने कहा…

behad ko dil ko chhoo lene wali rachnayein.

navvarsh ki hardik shubhkamnayein.

निर्मला कपिला ने कहा…

मेरे पास
बतलाने को
इतना कुछ है...

और

वो
एक प्रश्न लिए
जाने कहाँ
भटक रहा है!!!
iis me koi shak nahin ki aapake paas sab savalon kaa javaab hai hamane to pahale bhee paDHe haiM aapake wills cards pahale bhee padhe hain | aage bhee padhenge bahut sundar dhanyavaad

संतोष गुप्ता ने कहा…

happy new year 2010

गौतम राजऋषि ने कहा…

वो बरसात औए माँ वाली बेमिसाल कविता पहले कहाँ पढ़ी है मैंने? शायद आपके संकलन में...हाँ!

सोचता हूँ कि सिगरेट तो मैं भी जाने कब से पी रहा हूँ और वो भी विल्स ही... काश कि ये आइडिया मुझे भी आया होता!

Smart Indian ने कहा…

बहुत सुन्दर!
मातृ देवो भवः

संजय भास्‍कर ने कहा…

बारिश में भीगने पर मां की प्रतिक्रिया दिल को छू गयी । मां होती ही ऐसी है