सारा गांव उनसे डरता था.
एक मात्र राजू भईया के पास लाईसेन्सी रिवाल्वर था.
क्या पता गुस्से में मार ही न दें.
मैं भी राजू भईया से डरता था.
इसलिये नहीं कि गुस्से में मुझे न मार दें.
मेरा डर अलग था.
आज खबर आई है
-राजू भईया ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली.
मेरा डर सच निकला.
गांव का डर जाता रहा.
*
चलते चलते:
टोरंटो आज सबेरे:
90 टिप्पणियां:
इसी लिए गुस्से से बचना जरुरी है, आप का भी डरना जायज था, गुस्से मे ये दो ही काम होते हैं, जिसमे से एक हो गया। गुस्सा विवेक का हरण कर लेता है, उस परिस्थिति मे आत्मघात होना स्वाभाविक है, आभार
chaliye dar se nizaat mili.
mere pita ji kabhi kabhi quote karte the.
jang ke naam par shamsheer uthane wale
zer-e-shamsheer bhi aa jaate hain
लघु के बहाने बड़ी बात कह दी।
भीतर गहरे तक डरा हुआ आदमी डराने के सामान इकठ्ठे करता है।
.. आप ज्ञानी हैं, एक बार और स्पष्ट हो गया ! धन्य महराज।
आपका डर सच निकला.
गांव का डर जाता रहा.
यही सच है
बी एस पाबला
आखिर वही हुआ जिसका आपको डर था।
चलते चलते भी मजेदार है और चलते चलते यह भी देखिये-
खुद-ब-खुद सीख लेते हैं लोग तरीका जीने का
महफिल में शामिल होना कब वहाँ से दफा होना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
यही होता है जो शौकिया हथियार जमा कर रखते हैं। पाकिस्तान में भी यही हो रहा है।
अपन भी पहले राजू भईया ही थे बस अंतर इतना है कि अपन ने रिवाल्वर को फ़ेंक दिया और गुस्से पर कंट्रोल पाना सीख लिया। पर फ़िर भी इस माईक्रो कथा से बहुत कुछ याद आ गया ...
जब समय आता है तो पत्ते तो क्या परछाई भी साथ छोड़ देती है। :)
बन्दूक किसे मारती है भला?
इंसान मारता है या डर मारता है.
स्तरीय पोस्ट। आप बढ़िया लिखते हैं।
kaha गया है आप जिससे डरते हैं वह भी किसी से डरता है। अपने आप से डर वाला इंसान यही तो करेगा।
यह एक श्रेष्ठ लघु-कथा है। हथियारों का यही भविष्य होता है, वे या तो खुद पर चलते हैं या फिर अपनों पर चलते हैं।
ललित जी की ये टिप्पणी हमारी भी मानी जाए
"इसी लिए गुस्से से बचना जरुरी है, आप का भी डरना जायज था, गुस्से मे ये दो ही काम होते हैं, जिसमे से एक हो गया। गुस्सा विवेक का हरण कर लेता है, उस परिस्थिति मे आत्मघात होना स्वाभाविक है"
बढ़िया सीख दी है इस लघु कथा ने |
समीर जी,
वह क्या बात है. लेखक है दूसरों से तो अलग ही सोचते है, इसी लिए आप अन्दर की बात सोच पाए.
हमेशा आप की नयी रचना का इंतज़ार रहता है. आप की सभी विडियो भी देखा, देख कर बड़ा अच्छा लगा.
आप का लिखा पढ़ कर बड़ी परेरना मिलती है पर आप जैसे अन्दर की गोटी ढूंढ कर नहीं ला पाटा हा हा हा ..
बहुत बधाई
आशु
समीर जी,
वह क्या बात है. लेखक है दूसरों से तो अलग ही सोचते है, इसी लिए आप अन्दर की बात सोच पाए.
हमेशा आप की नयी रचना का इंतज़ार रहता है. आप की सभी विडियो भी देखा, देख कर बड़ा अच्छा लगा.
आप का लिखा पढ़ कर बड़ी परेरना मिलती है पर आप जैसे अन्दर की गोटी ढूंढ कर नहीं ला पाटा हा हा हा ..
बहुत बधाई
आशु
समीर जी,
वह क्या बात है. लेखक है दूसरों से तो अलग ही सोचते है, इसी लिए आप अन्दर की बात सोच पाए.
हमेशा आप की नयी रचना का इंतज़ार रहता है. आप की सभी विडियो भी देखा, देख कर बड़ा अच्छा लगा.
आप का लिखा पढ़ कर बड़ी परेरना मिलती है पर आप जैसे अन्दर की गोटी ढूंढ कर नहीं ला पाटा हा हा हा ..
बहुत बधाई
आशु
शानदार पोस्ट है भइया. और शेर तो निहायत ही खूबसूरत और सही.
"राजू भईया ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली."
कनखजूरे के एक पैर टूट जाने से कोई फर्क पड़ता है क्या?
एसे डरा मत करो साहेब!!
आपका डर, केवल डर नहीं था..वह तो एक पुरे फलसफे के खात्मे का डर था..आपने उम्दा लाईनें लिखी हैं..बात लेखन को पार कर गयी है वो मेरे मोहल्ले की दहलीज तक आ गयी है...कि एक बार मेरा डर भी सच हो गया था.......!!
फोटू वाली त्रिवेणी पर:
सुन्दर...!
ये पता नहीं लगता ना कि किससे दिल लगाना है और किससे है खफा होना..आप ही बताइए..खासी उम्र है आपकी, कितनी बार गणित लगा के किसी एहसास से बात की है आपने...(यूँ ही पूछ रहा हूँ..बिलकुल ऐसे ही..)
बहुत खूब , आग को जेब में रखने का प्रतिफल बताती कविता !
हाँ, अपने एक नजदीकी से कल फोन पर पता चल गया था कि टोरंटो में हवाओं संग बर्फ गिर रही है ! तापमान ताजी बर्फ गिरने के वजह से थोड़ा गर्म (यानी माइनस पांच डिग्री ) के आस-पास था ! आप भी इस बर्फबारी के खूब मजे ले रहे होंगे !
शौकिया प्राण घातक अस्त्र शस्त्र रखना कभी कभी आत्मघाती साबित हो जाता है .
आपका डर सच निकला.
गांव का डर जाता रहा ।
बहुत कुछ चन्द शब्दों में व्यक्त किया, आभार ।
समूह संबंधी हत्यात्मक सोच धीरे - धीरे
आत्म-हनन की ओर अग्रसर करता है ..
सुन्दर लगा ... ...
डर तो आपका जायज था .....
क्या बात है! मजा आया. माइक्रो ज्यादा मारक है.
Behad sundar tareeqese likha hai...iske alawa aur shabd naheen..
आपका डर अलग था - सही था !
सुन्दर प्रविष्टि । आभार ।
वाह, बढ़िया है।
राजू भइया की आत्मा को शांति मिले।
घुघूती बासूती
जिससे सब डरते थे , डर उसके अंदर बैठा हुआ था
मुझे चलते चलते के बाद की पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं
ओह ! जाने कैसा मन हो आया !
बढिया पोस्ट।
डर कभी दूसरो को डराता है कभी खुद को।
गुरुदेव,
रामगढ़ को गब्बर के ताप से बस एक ही बचा सकता है और वो है खुद गब्बर...
टोरंटो की सुबह बड़ी मनोरम है...
जय हिंद...
बड़े पते कि बात कही चलते चलते,
सुबह-सुबह ही दिखा ये क्यों सूरज ढलते?
स्वप्न ही होगा! ये सोचा आँखे मलते.
माईक्रो कथा का मैक्रो ज्ञान..वाह..
और दो लाईना भी बहुत अच्छा लगा..
आभार
प्रतीक
आपका डर सही था।
वर्ष का पहला हिमपात --बधाई दें या --
डर को बहुत अच्छे से परिभाषित किया है आपने अपनी रचना में...आप का कोई जवाब नहीं...
नीरज
दोनों ही डरने वालों के डर सही हैं वसे भी डराता वही है जो खुद डरता है इस प्रेरणा दायक प्रस्तुति पर बधाई
चलो सब का डर निकल गया। और जो अब डरेगा वो खुद ही मर जायेगा। धन्यवाद्
bahut khoob...........
bahut hi badhiya,,,,,,,,
SACH HAI GUSSA SABKUCH LEEL LETA HAI ... APNA KHUD KA ASTITV BHI ....
TORONTO KE MOUSAM KI TRIVENI KAMAAL HAI SAMEER BHAI .... BARAFBAARI KI SHURUAAT KI BAHUT BAHUT MUBAARAK ....
"जो डर गया सो मर गया " गाँव तो पहले से ही डरा हुआ था ,,डरे हुए नहीं थे तो सिर्फ राजू भैया सो मर गये ।
dar........kahin na kahin to apna rang dikhata hi hai.
लाइसेंसी रिवाल्वर एक अच्छा प्रतीक है !
दोनों में से एक डर तो सच होना ही था ..आपका हो गया..चलते चलते कमाल का है.
एक चलते चलते ये भी.-
"कुदरत का उसूल यही है,
बहार हर खिज़ा के बाद आती है".
----आगे की कथा छपने के बाद--------
राजू भैया की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उनकी खोपड़ी में अनगिन बोध कथायें ठुंसी पड़ीं थी।
उनके शरीर का ’बोध सूचकांक’ एक स्वस्थ व्यक्ति के बोध सूचकांक से कई गुना अधिक हो गया था। डाक्टरों को आश्चर्य था कि इतने ’बोध सूचकांक’ वाला व्यक्ति इतने दिन जी कैसे लिया?
पता चला है कि राजू भैया नित्यप्रति अंडरवर्ल्ड की दुनिया से बाबागिरी के धंधे में आये साइटश्रमों में विचरण करते थे और सारा बोध अपने दिमाग में ठूंस-ठूंस कर भरते थे। ऐसे ही कल बोध ठूंसते हुये कल बोध के साथ गोली भी ठुंस गयी और वे निपट गये।
राजू भैया जैसे अबोध आदमी ने बोध-बोझ से मुक्ति पाने के लिये अपने को खुद को गोली मार ली।
पुलिस ने अनाम साधुओं/बाबाओं के खिलाफ़ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया है। क्राइम ब्रांच वालों ने बोध-बाबाओं की साइटें खंगालनी शुरू कर दी हैं।
बाबाओं के यहां भजन/कीर्तन/खड़ताल/झपताल की आवाज तेज हो गयी है। अपने मन का डर बाबा लोग गले की आवाज से दूर करने में लगे हैं।
आज का दिन मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!
बहुत अच्छी कहानी.
Dara hua aadami apni chhaya se bhi dar jata hai......
Dar ko bhagane ka nayaab tarike ki baat ki aapne bahut achha laga .....
एक सार्थक कहानी....जो अन्दर से डरा हुआ होता है ..वही दूसरों को डराने की कोशिश करता है
बहुत अच्छी कहानी !!
YAH MICRO TO BADA HI BHARI RAHA...KITNA SAHI KAHA AAPNE !!!
SANKSHEP ME GRAHNEEY SUNDAR SANDESH...
shukriya!
bahut arthpoorn laghukatha aur utana hi achchha andajebabyan|
वाह क्या मारा है आपने!!
वाह । बहुत गहरा संदेश देती है यह लघुकथा ।
बेहतरीन लिखी गई है ।
आज तक इतने कम शब्दों में इतनी बड़ी बात नहीं देखी कहीं.
क्या कहूं समीर, बुरे वक्त तो खून के रिश्ते भी दम तोड़ जाते हैं।
khatarnaak cheez hai gussa bhi....aur darr bhi...
अच्छी रचना। आपके मार्गदर्शन की हमेशा प्रतीक्षा रहेगी, सादर।
बस इतना ही कौंगा कि "मारक मिसाईल" है यह पोस्ट! बेहतरीन.
बन्दूक किसे मारती है भला?
इंसान मारता है या डर मारता है.
'गांव का डर जाता रहा'यानी के वे मौत के बाद भी अकेले,अवांछित ही रहे। मर्मस्पर्शी!
it is not micro but macro story because man is driven by mostly fear
डर से मत डरो डर के आगे जीत है
डर को सुंदर अभिव्यक्ति।
------------------
सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
रिवाल्वर तो मेरे पास भी है और बन्दूक भी . और कुछ लोग डरते भी है मुझसे . आपकी कविता पढ कर लगता है कहीं राजू भैय्या ना बन जाऊ . ध्यान रखुन्गा .
tippaniyon ki itani lambi katar par karke jis kavita ke liye tippani karni pade us kavita ko jaisa hona chahiye theek vaisi kavita hai aapki ...vadhai
बहुत बड़ी बात कह दी आपने इस माइक्रो कथा में।शुभकामनायें।
पूनम
राजू भैया की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आगई है. और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह साबित हो गया है कि उनकी मृत्यु उन्ही के रिवाल्वर से चली हुई गोली से हुई है.
आज दिन मे राजू भैया के कमरे की तलाशी में उनकी एक निजी डायरी मिली है. डायरी से एक सनसनी खेज खुलासा हुआ है. राजू भैया ने पिछले कुछ दिनों से दो गुर्गे पाल रखे थे.
गुर्गे राजू भैया के सर पर इतने चढ चुके थे कि वो अक्सर राजू भैया की रिवाल्वर से भी खेलने लगे थे.
जांच का केंद्र बिंदू यह है कि राजू भैया पर गोली चलने के बाद से ही दोनों गायब क्यों हैं?
लगता है नादानों से दोस्ती ने राजू भैया की हस्ती ही मिटा डाली.
रामराम.
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
ब्लोग चर्चा मुन्नभाई की
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
समीर अन्कल!
ताऊ की बात ठीक लगी.
वैसे आपका डर सत्य साबित हुआ.
इससे यह सिद्द होता है कि आपका सिक्स सेन्स बराबर काम कर रहा है.
मुझे भी लगता है नादानों से दोस्ती ने राजू भैया की हस्ती ही मिटा डाली.
महावीर बी. सेमलानी "भारती"
♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
यह पढने के लिऎ यहा चटका लगाऎ
भाई वो बोल रयेला है…अरे सत्यानाशी ताऊ..मैने तेरा क्या बिगाडा था
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
समीर जी ... इसीलिए कहते हैं "बोये पेड़ बाबुल के तो अमवा कहाँ से खाय ?"
बुरे वक़्त मैं तो गली के कुत्ता तक दुत्कार देता है
दस साल पहले ये कविता विदेशी करार दी जाती, या अनुवाद या अस्तिस्ववादी कहलाती या शायद कुछ और मगर आज राजू भइया भारतीय पीढी की एक तस्वीर, एक मानसिकता को उजागर कर रही है।
गांव का डर जाता रहा.
बहुत सुंदर post
pls visit...
www.dweepanter.blogspot.com
Micro katha....jabardast!
yahi anjaam hota hai galat kaam karne walo ka..
--------------
[Kya aap bhi bhavshiy mein hone wali ghatnaO ke bare mein aabhaas karne lage???? :)]
सुंदर कथा.
गुस्सा भस्मासुर होता है, अंत में स्वयम को ही जला देती है.
वाह ....अजीब डर था आपका .....तौबा ! सच भी निकला ......???
लगता है कोई विधा छोड़ेगें नहीं आप ......!!
thode men jyada .
समीर भाई
गज़ब कह गए जी चाहता है उन हाथौं को चूम लूं जिसने इसे लिखा है .
acchi micro katha... aur shandaar triveni...
jo swayam daraa hota hai wahi apne ko surkshit rakhane ke liye hathiyaar rakhta hai.....aapka darr raju bhaiya ke swabhaav ko jaan kar tha shayad...bahut gahri baat kahi aapne is laghu katha men.....badhai
कम शब्दों में बड़ी बात....ऐसे वाकये समाज में अक्सर दिख ही जाते हैं.
:) ...amazing lines
bahut badhhiyaa baat likhi he..aapko jis baat ka dar thaa vo haqiqat me saamne aa gayaa../
क्या लिखते हैं आप.वाह!बहुत खूब!!
क्या लिखते हैं आप.वाह!बहुत खूब!!
सरकार की लेखनी से निकली एक सशक्त और धारदार रचना।
त्रिवेणी भी खूब जम रही तस्वीर के संग।
दादागीरियों को तो एक न एक दिन जाना ही होता है !
dar ke bhi kitane roop hote hai,triveni bahut sarthak lagi.
excelent
एक टिप्पणी भेजें