रविवार, जून 08, 2008

असहज विचारों की सहज बानगी..

अकसर
दफ्तर आते जाते
ट्रेन में बैठे
फ्री बंटे उस अखबार के
इश्तहारों से पटे पन्नों पर
कोई खाली कोना तलाश
अपने असहज भावों को
सहजता से उतार देता हूँ
अपनी कलम की
काली स्याही से...

और

लोग उसे कविता कहते हैं....
न जाने, क्यूँ!!!



और कुछ अखबार के कागजों पर अपने मनोभावों का अंकन आज बटोरा और ले आया. न जाने, आप क्या कहेंगे मगर बस भाव हैं..कभी कुछ तो कभी कुछ..ज्यूँ का त्यूँ परोस रहा हूँ..बिखरे शब्दों को बिना समेटे. आप ही बतायेंगे कि कितने बिखरे हैं या सिमटे हैं!!!


dep

-१-

साहिल पर बैठा
वो जो डूबने से बचने की
सलाह देता है.....
उसे तैरना नहीं आता

वरना

बचा लेता.

-२-

कुछ तो बात है
वरना
मौसम यूँ ही
नाहक

खराब नहीं होता.

-३-

वो अपनी
किस्मत का रोना रोते हैं..

बदकिस्मती क्या होती है
जिन्हें इसका
गुमान भी नहीं.

-४-

मँहगाई ने दिखाया
यह कैसा नजारा.
हर इंसान तो परेशान है
दो जून की रोटी के
इंतजाम में..
उसे क्या देता...

गली का कुत्ता था
मर गया बेचारा!!


-५-

वो हँस कर
बस यह
अहसास दिलाता है

वो जिन्दा है अभी!!


samd

-६-

आकाश में उड़ते
उन्मुक्त पंछियों को देख
खुद अपनी गिरफ्त से
आजाद होने को
छटपटाता हूँ
मैं!
तड़प जाता हूँ
मैं!!



-७-

अँधेरे कमरे की
चाँदनी में नहाई
उस उदास खिड़की से
आसमान में
चमकीले तारों को देख
दूर देश की यादों में
न जाने कब
खो जाता है वो!

न जाने कब
सो जाता है वो!

--------------------------------


असहज विचारों की सहज बानगी..ये हमारी स्टाईल है जी.


--समीर लाल ’समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

56 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

स्टाइल ठीकै है जी। स्टाइलियाते रहिये।

Unknown ने कहा…

इस असार संसार के ये सदाचार, ये दुराचार
मन में उठाते हैं बिखरे बिखरे से भाव, बिखरे बिखरे से विचार
साहिल, मौसम, बदकिस्मती, मँहगाई
उन्मुक्त खग, तमस-ज्योत्सना, रात की तनहाई
सब सब के सब अपना प्रभाव दिखाते हैं
और कवि के कोमल हृदय को
स्पन्दित कर जाते हैं।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बड़े भाई। कविता बड़ी बेमुरव्वत चीज है। कभी गाड़ी चलाते चलाते भी आ जाती है, और उसे कैद न करो तो उड़ भी जाती है। फिर वापस आती ही नहीं। सारी कविताओं की सृजन प्रक्रिया ऐसी ही होती है। बाद में तो आप केवल सज्जा कर सकते हैं उसकी।
मगर सारी एक साथ? इतना वजन उठाना भारी पड़ रहा है। इन्हें पचाने में तो पूरा सप्ताह लग जाएगा। वैसे भी एक कविता का असर हो उस से पहले ही दूसरी पढ़नी पड़ जाती है। हर कविता अपनी टिप्पणी चाहती है। एक साथ आ जाने से वे इस से महरूम हो जाएंगी।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

अब हम क्‍या कहें, किस पर टिप्‍पणी कर किसी पर नही सभी अच्‍छी है।

समय चक्र ने कहा…

खिड़की मे कैद आपकी तस्वीर के क्या कहने
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति बधाई

कुश ने कहा…

यह स्टाइल तो बहुत बढ़िया है.. बहुत ही अर्थपूर्ण कविताए... वाकई लाजवाब है

ALOK PURANIK ने कहा…

भई वाह बढ़िया कविता है।

Arun Arora ने कहा…

दिल तो बहुत था पंगा लेने का , मतलब चार छै अपनी तुकबंदी झिला डालने का,
पर क्या करे ?
हम इधर अभी जरा वयस्त है
बदलते मौसम की उमस से त्रस्त है
बारिश की बोछारे
यू तो लगती है अच्छी
पर आते ही याद धंधे की
दुशमन लगती है सच्ची !
क्या करे ?,दिल और पेट
दोनो मे दिमाग
दिल के साथ नही होता
जब खाली हो पेट
दिल पंप के सिवा
कुछ नही होता
काश ये पेट ना होता
तब जहा की क्या सूरत होती ?
जिंदगी कितनी खूबसूरत होती ?

बेनामी ने कहा…

वो अपनी
किस्मत का रोना रोते हैं..

बदकिस्मती क्या होती है
जिन्हें इसका
गुमान भी नहीं.
ye bilkul sahi kaha,humapnepaas jitna hai uss mein satisfied nahi hote kabhi:),

baki saare ke saare asaj vichar dil ko kuch sochne par majboor kar rahe hai,har nanhi kavita khubsurat hai,bahut badhai,aaj kuch alag hi andaz dekha aapki kalam ka,gambhir bhi nice

mamta ने कहा…

आपने इन पंक्तियों मे जीवन के हर पहलू को छुआ है।
शानदार अभिव्यक्ति।
स्टाइल पसंद आया।

पंकज सुबीर ने कहा…

अँधेरे कमरे की
चाँदनी में नहाई
उस उदास खिड़की से
इन पंक्तियों में पूरी कविता है बधाई

डॉ .अनुराग ने कहा…

आपकी तस्वीर ने आपके असहज विचारों को ......ओर सहज बना दिया है....आज द्रिवेदी जी ने बहुत बड़ी बात कह दी है कविता के बारे मे....पर आपका ये रूप मुझे अच्छा लगता है....

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

समीर साहब !
मौज़ूदा दौर की कविता के दरारों को
बड़े हल्के-फुल्के अंदाज़ में उजागर कर दिया आपने.
आपकी स्टाइल .... सिर्फ़ आपकी है !
उसकी तुलना संभव नहीं.
बहुत लगाव पैदा कर देने की
लगन आपकी अद्भुत विशेषता है.
धन्यवाद.....वैसे ऊपर अनूप जी ने भी
स्टाइल का नायाब उदाहरण पेश किया है.
===================================
आपका
चंद्रकुमार

Rajesh Roshan ने कहा…

वो हँस कर
बस यह
अहसास दिलाता है

वो जिन्दा है अभी!!

अब क्या बोलू... सुंदर भाव.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ये तो विशुद्ध भारतीय मन और परिवेश के मुक्त छन्द हैं। क्या समीरजी, कनाडे में रहते हुये भी भारतीय बने रहते हैं - कनाड़त्व नहीं उंडेलते काव्य में?

Abhishek Ojha ने कहा…

आपकी स्टाइल का जवाब नहीं.

बेनामी ने कहा…

sameerji,aapki kavita bahut aacchi hai.or is tarhe ki kavita likhate rahiye.kya aapko french aati hai.

अमिताभ मीत ने कहा…

कमाल है भाई. हद है. बहुत ही बढ़िया ... वाह !

PD ने कहा…

मैंने अभी तक जितनी कवितायें लिखी हैं सभी ऐसे ही बन गयी थी.. एक बार सोचा कि बहुत दिनों से कोई कविता नहीं लिखी है सो लिखा जाये.. जब लिखा तो बहुत ही अजीब सा कुछ बन परा.. मैंने किसी को पढाय भी नहीं बस डिलीट कर दिया.. :D

pallavi trivedi ने कहा…

aisi sahaj kavitaayen likhte rahiye aur hame padhwate rahiye. zindgi ki alag alag tasweer dikhati ye kavitaayen khoob hain.

संजय बेंगाणी ने कहा…

मोती चुन कर लाएं है.

रंजू भाटिया ने कहा…

वो हँस कर
बस यह
अहसास दिलाता है

वो जिन्दा है अभी!!

ज़िंदगी में होने वाली छोटी छोटी बातों को आपने इन लफ्जों में ढाल लिया है मुझे सभी बहुत अच्छी लगी ..पर यह विशेष पसंद आई ...

bhuvnesh sharma ने कहा…

आपके घर की रद्दी कब बेचेंगे....बताईयेगा जरूर खरीदने आ जाऊंगा... :)

रश्मि शर्मा ने कहा…

bahut khub. ese hi to bhawnaye man me uthti hai par har koi aapki tarah shabd kaha de pata hai.

बालकिशन ने कहा…

बहुत अच्छे.
क्या खूब कहा.
बधाई.

अनिल रघुराज ने कहा…

कविता का हर छंद शेर की तरह दहाड़ रहा है और आप कहते हैं कि ये असहज विचार हैं!!! वाकई शायरी सुनने का आनंद आ गया।

बवाल ने कहा…

Baat gahree hai jee. Aur khoob bhee hai. Audasya(sadness) main mukharta aur hasya main prakharta aapkee style hai. Maalik ise sanvaarta rahe.

Jyoti ने कहा…

हर अन्तरा सघन शब्दों में इतना घना बुना है,
और उस पर आपका यह चित्र कुछ यूं बिखरा खुला है,
आपकी काव्य खिड़की से अदभुद भावों का मंजर हमें दिखा है,
कुछ वक्त तक के लिए चिंतन का सामान मिला है।
धन्यवाद की अभी भी कुछ उन्मुक्त पक्षी दिखते हैं,
और आपके भीतर के शब्दों के पंख खोल देते हैं।

dpkraj ने कहा…

समीर लाल जी, आपकी कविताएं पढ़ी। अच्छा लगा। मेरे मन में भी कुछ शब्द आये जो कह डाले।
दीपक भारतदीप
------------------------
कुछ नहीं कह सकते तो कविता ही कह दो
कुछ नहीं लिख सकते तो कविता ही लिख दो
कुछ पढ़ नहीं सकते तो कविता ही पढ़ लो
कुछ और करने से अच्छा अपने कवित्व का जगा लो
पूजे जाते हैं यहां बैमौसम राग अलापने वाले भी
क्योंकि सुनने वालों को शऊर नहीं होता
कुछ कहना है पर कह नहीं पाते
अपनी अभिव्यक्ति को बाहर लाने में
सकपकाते लोग
अपने दर्द को हटाने शोर की महफिल में चले जाते
जो सुन लिया
उसे समझने का अहसास दिलाने के लिये ही
तालियां जोर-जोर से बजाते
बाहर से हंसते पर
अंदर से रोते दिल ही वापस लाते
तुम ऐसे रास्तों पर जाने से बचना
जहां बेदिल लोग चलते हों
समझ से परे चीजों पर भी
दिखाने के लिए मचलते हों
खड़े होकर भीड़ में देखो
कैसे गूंगे चिल्ला रहे हैं
दृष्टिहीन देखे जा रहे हैं
बहरे गीत सुनते जा रहे है
साबुत आदमी दिखता जरूर है
पर अपने अंगों से काम नहीं ले पाता
सभी लाचारी में वाह-वाह किये जा रहे हैं
सत्य से परे होते लोगों पर
लिखने के लिए बहुत कुछ है
कुछ न लिखो तो कविता ही लिख दो
कोई सुने नहीं
पढ़े नहीं
दाद दे नहीं
इससे बेपरवाह होकर
अपने ददे को बाहर आने दो
और एक कविता लिख दो
.......................................................

Unknown ने कहा…

आकाश में उड़ते
उन्मुक्त पंछियों को देख
खुद अपनी गिरफ्त से
आजाद होने को
छटपटाता हूँ
मैं!
तड़प जाता हूँ
मैं!!

कविता की तड़प में जीवन की तड़प का आप ने बखूबी जोड़ा है। बधाई और आभार

Reetesh Gupta ने कहा…

अँधेरे कमरे की
चाँदनी में नहाई
उस उदास खिड़की से
आसमान में
चमकीले तारों को देख
दूर देश की यादों में
न जाने कब
खो जाता है वो!

न जाने कब
सो जाता है वो!
--------------------

बहुत बढ़िया लालाजी ..अच्छा लगा ...बधाई

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

-६-

आकाश में उड़ते
उन्मुक्त पंछियों को देख
खुद अपनी गिरफ्त से
आजाद होने को
छटपटाता हूँ
मैं!
तड़प जाता हूँ
मैं!!



-७-

अँधेरे कमरे की
चाँदनी में नहाई
उस उदास खिड़की से
आसमान में
चमकीले तारों को देख
दूर देश की यादों में
न जाने कब
खो जाता है वो!

न जाने कब
सो जाता है वो!
बहोत अच्छे ..ये खास पसँद आयीँ, समीर भाई
स्नेह,
लावण्या

Arvind Mishra ने कहा…

आपकी रचनाएं टिप्पणियाँ करा ही लेती हैं -गहन भावों की क्षणिकाएँ अच्छी लगीं .

shama ने कहा…

डूबते हुये...

डूबते हुए हमे,वो लगे,
जैसे किनारे हो हमारे !
जितनेही पास गए,
वो उतनाही दूर गए,
वो भरम थे हमारे
वो कोई नही थे सहारे
उनके सामने हम डूबे
लगा,उन्हें पानीसे भय लगे!

Aapki kavita"jo kinarepe rehkar...."kavita padhee,to mujhe apni ye kavita yaad aayi.
Meri kavitaye June tath july 2007 ke archiveme hain.mujhe chhandme likhna to nahi aata,naahi trained kavi ya lekhika hun...lekin phirbhi aapse anugrah karungi ki kuchh rachnayen zaroor padhen aur tippani den. mujhe badi prasannata hogi.
Aapki tippanike liye dhanyawad!
Shama

tarun mishra ने कहा…

अक्ल कहती है न जा कूचा -ऐ -कातिल की तरफ़ ।
सरफरोशी की हवश कहती है , चल क्या होगा । ।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

क्षणिकायें बहुत सशक्त हैं... जो जिंदगी के कई रूप दिखाती हैं... ये दो बहुत पंसद आई बहुत-बहुत बधाई...
1
वो हँस कर
बस यह
अहसास दिलाता है

वो जिन्दा है अभी!!

आकाश में उड़ते
उन्मुक्त पंछियों को देख
खुद अपनी गिरफ्त से
आजाद होने को
छटपटाता हूँ
मैं!
तड़प जाता हूँ
मैं!!

Ila's world, in and out ने कहा…

आपकी हर कविता अलग अलग टिप्पणी की हकदार है.अब आप बतायें कैसे क्या करें?पर हां, आप खूब लिखते रहें और हम यूं ही सराहते रहें.

राकेश जैन ने कहा…

unmukt hone ka ehsas dilane wali kavita bahut hi pyari lagi...

soch raha hun jab ye bangi hai to sara pitara kaise ehsaso se bhara hoga, aur in ehsason ko sajoye rakhne wala insan kya devta sa nahi hoga..

बेनामी ने कहा…

bahut achhi kavita...

admin ने कहा…

कविता जितनी सहज और सरल हो, उतनी ही सरलता से पाठकों के हृदय में उतर जाती है। आपमें वह खूबी है, यह बात आपकी हर कविता कहती है। बधाई।

रजनी भार्गव ने कहा…

क्या कहने समीर जी! बहुत अच्छी है।

Alpana Verma ने कहा…

वो हँस कर
बस यह
अहसास दिलाता है

वो जिन्दा है अभी!!


bahut achcha likha--ye asahj vichar kahan?

sabhi kavitayen achchee lagin...
badhayee

Dr.Shyam_nanaji ने कहा…

Aapke housle waise bhi buland hain ,aur tippani ke mohtaj nahin hain aap.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

बधाई हो, कम से कम आप कुछ तो ले पकड़े हैं वरना आजकल कविता के नाम पर मात्र गद्य ही लिखा जा रहा है या फ़िर ऐसा उल्टा-पुल्टा जो लिखने वाला ही समझे। मसलन- एक पत्ता हिल रहा है, लगता है हवा चल रही है।

लिखते रहिये भले ही अख़बार की खाली जगह में, कवियों को कुछ न कुछ अकल आएगी।

Kavita Vachaknavee ने कहा…

कवियाने की बधाई!

बेनामी ने कहा…

अखबार वालों की शामत आई है
तभी तो
आपने कविताओ की लड़ी लगाई है
गलती से कविता कह दिया
बिखरे शब्दों को आजकल यही कहा जाता है
शायद
हमनें तो यही करके
इतनी शोहरत पायी है ।
इन दिनों प्रदीप जी की लेखन शैली पर शोध कर रहा हूँ । क्षमा कीजिए उनकी ही टोन में लिख दिया ।
वैसे आपकी स्टाइल बड़ी निराली है **
घर मे आपके
दो गबरू जवान
और एक ‘ही’ घर वाली है
** - इसमें कोई शक़ नहीं 
:)

साधवी ने कहा…

आपकी हर कविता दिल को छू गई।

गुरु जी को भी सुनाई थी, मुस्करा रहे थे. उन्होंने आपको आशीर्वाद कहा है.

balman ने कहा…

ईनमें से कोई भी एक कविता दिन भर के लिये काफ़ी है,आपने तो पूरे महीने का डोज दे दिया है। बधाई हो

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

भाई साहब, सारी वाह-वाह अकेले लूटने के इरादे से सारा खजाना लुटा रहे हैं क्या? हम गरीब दुकानदारों पर कुछ तो रहम कीजिए। वैसे आपका गोदाम खाली होने वाला नहीं है, हम जानते हैं। बधाई।

अजय कुमार झा ने कहा…

sir jee,
yun to aapkaa har andaaz niraalaa hai, aur mujhe lagtaa hai ki jitnee lambee lambee post hum hafte bhar mein likh pate hain usse jyaada to aapkee ek post par tippnni aatee hai, huzoor ek badaa saa aur alag saa pitaaraa khol dijiye taki ham baith kar us par aapko tipiyaate rahein. kamaal hai.yar aap chhone main kaise lagte honge mujhe to abhee se gudgudee ho rahee hai.waise aap mazedaar hain, bilkul lazeez aur swaadisht, bus aaj itnaa hee aap fat jaayenge.

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

अभिव्यक्ति सुंदर ही नही उत्कृष्ट भी , पढ़कर आनंद आ गया !

Anita kumar ने कहा…

अब तक तो आप इतनी टिप्पणियां पढ़ते पढ़ते थक गये होगें , तो चलिए आप की आखों को आराम देते है और सिर्फ़ एक शब्द में अपने भाव ब्यां करते हैं …।वाह …:)

Dawn ने कहा…

WAh! Sameer ji...aapke sahaj vichar jitne sahaj hein ootne hee gehare... :)
mujhe aapki ye style bahut hee pasand aayee...
Hum to dua kareinge ke aap aise hee likhte rahein apne style ko barkaraar rakhiye :) bahut kuch seekhne milta hai humein bhi :)

Humne ek hindi kavita ki kitaab chapvayi hai "Khawabon Ki Zameen" yahan parhiyega is ke baare mein :) http://pratahakaal.blogspot.com/
umeed hai aapka ashirwaad humein prapt hoga :)
Shukriya

डा. अमर कुमार ने कहा…

समीर भईय्या, आप तो इतनी सटीक पोस्ट दर पोस्ट ठोके जा रहे हैं,
कि पंडिताइन ने विचार कर बताया कि
यहाँ ब्लागमेघ यज्ञ चल रहा है !
ग़ज़्ज़ब का दिमाग दौड़ा रहे हैं, आप तो ?

कभी कुछ उधार उधार भी दे दिया करिये, हम गरीबों को !!

Morpankh ने कहा…

aapki vichardaara ki kuch boondein giri aur atak gayi yahan aapke blog mein... :) sundar... choti choti abhivyakti jo chintan ke liye vivash kar dein.

बेनामी ने कहा…

वो हँस कर
बस यह
अहसास दिलाता है

Bahut khoob....!

achha style hai aur andaaz bhi achha.
rgds.
rewa.