गुरुवार, मार्च 01, 2007

बाई वन गेट वन फ्री के साथ एक साल पूरे!!

ये लो साहब, अब कर लो बात! बाई वन गेट वन फ्री की तर्ज पर अभी बाल गिरने की समस्या के झटके से उबरे नहीं थे कि कल डॉक्टर साहब बोले कि आपको हाई ब्लड प्रेशर( उच्च रक्तचाप) है और सतर्कता की आवश्यकता है. हमारे तो पाँव तले धरती ही सरक गई. हमने कहा, "डॉक्टर साहब, एक बार और टेस्ट करके देखो, कहीं गलत रिडिंग आ गई होगी या वो चुनाव का प्रेशर था उसके कारण बढ़ा होगा, एक दो दिन में ठीक हो जायेगा". अब डॉक्टर साहब तो डॉक्टर साहब, पहला सुझाव तो जैसे सुना ही नहीं और खुले आम निरस्त कर दिया. दूसरे के लिये पूछा गया कि कब था चुनाव और कैसा चुनाव. हमने भी छाती फूला कर कहा, " वो क्या है कि हमें इंडीब्लागिज का बेस्ट हिन्दी ब्लागर २००६ चुना गया है, उसी का टेंशन था, अब नहीं है."

उनके हावभाव देखकर लगा कि उन्हें अव्वल तो कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या बला है और उस पर से पत्नी साथ थी वो कह उठीं कि अरे, उसका परिणाम आये तो चार दिन गुजर गये. हमारा उत्साह ठंडा और डॉक्टर साहब का दो गुना. बस उन्होंने अपनी प्रवचन माला शुरु कर दी कि वजन कम करो, चिंता मत पालो, नमक नहीं, तला भुना नहीं और तो और बोतल-शोतल तो सोचो भी मत. हर सलाह के साथ हमारा मूँह उतरता जा रहा था और पत्नी को तो जैसे ब्रह्म आशीष प्राप्त हो रहे हों, अति प्रसन्न. बोतल की बात तो डॉक्टर साहब भूल भी जाते मगर यह भूलने दे, तब न!! ऐसा भोला मूँह बना के पूछा जैसे हमारा फेवर कर रही हों-"डॉक्टर साहब, यह हल्की फुल्की ड्रिंक लेते हैं, वो तो चल जायेगी न!!". कौन डॉक्टर दूनिया का कहेगा कि हाँ. यह वो भी जानती थी और हम भी. तो लो साहब, वो भी नमस्ते.

अब डॉक्टर साहब को तो जो पाबंदी लगानी थी वो तो हम यूँ भी मान्य कर लेते. मगर हमारी पत्नी ने उनकी पाबंदियों की मूल तत्व का बोध प्राप्त है. वो एक बोलें यह दस समझें.

घर लौट आये. हमें कंबल ढ़ांक कर लिटा दिया गया. हम सदमें में थे.

इनकी सारी सहेलियों से हमारा हाल फोन पर बताया गया. शाम को सारी सहेलियाँ और उनके पति, जो हमारे मित्र हैं, सब एकत्रित हुये. वैसे यहाँ का नियम बता दूँ कि यहाँ हमारे मित्र वही होते हैं जो इनकी सहेलियों के पति होते हैं. इनकी सबसे पक्की सहेली का पति हमारा सबसे पक्का मित्र. अगर किसी की पत्नी से इनकी मित्रता नहीं हो पाई, तो वो हमारे मित्र होने की पात्रता नहीं रखता. यह रिवर्स फिलासफी कनाड़ा में आने के बात शुरु हुई, उसके पहले हम पहले ठीक ठाक आदमी थे.


वैसे यहाँ का नियम बता दूँ कि यहाँ हमारे मित्र वही होते हैं जो इनकी सहेलियों के पति होते हैं. इनकी सबसे पक्की सहेली का पति हमारा सबसे पक्का मित्र. अगर किसी की पत्नी से इनकी मित्रता नहीं हो पाई, तो वो हमारे मित्र होने की पात्रता नहीं रखता. यह रिवर्स फिलासफी कनाड़ा में आने के बात शुरु हुई, उसके पहले हम पहले ठीक ठाक आदमी थे.

अब जब सब एकत्रित हुये तो जो हमारे सबसे खास मित्र थे, यानि हमारी पत्नी की पक्की सहेली के पति ने अपने खास होने का फायदा उठाते हुये कहा:' वाह समीर भाई, आप तो अब उच्च श्रेणी के कहलाये. यह बिमारी तो बड़े लोगों की निशानी है. हमें भूल न जाना बड़े लोगों की जमात में जाकर".

हमने भी सोचा कि हम चाहें भी तो नहीं भूल सकते. आखिर आप हमारी पत्नी के पक्की सहेली के पति हैं. बोले,"इस प्रमोशन के मौके पर पार्टी हो जाये, बोतल शोतल खुले" मैं उनके चेहरे पर तैरती कुटिलता देख रहा था मगर मजबूर था.

मैने भी कहा, "हाँ हाँ हो जाये. आखिर कल जब तक नहीं पता था,पी ही रहे थे, आज और सही. चलो भाई सब लोग, जश्न मनाया जाये. ऐसा मान लेंगे कि डॉक्टर साहब ने कल देखा है".

मगर हमारे मानने से क्या होता है, एकाएक पत्नी के तमतमाये चेहरे पर नज़र पड़ी, कहने लगीं, "भाई साहब, आप लोग लिजिये, इनको तो डॉक्टर साहब ने कहा है कि एक बूँद भी जहर साबित होगी." यह लो, पता नहीं कब यह हमारे डॉक्टर ने इनको एस एम एस कर दिया. हमारे सामने तो नहीं कहा था और यह हमारे साथ लौट भी आईं थीं. यह जरुर वार्तालाप का मूल होगा. खैर, सब अपना अपना गिलास बना लाये हमारी बार में हमारी बोतल से और हमारे लिये, इनकी खास सहेली, जो हमारे परिवार की शुभचिंतक मानी जाती हैं, की सलाह पर लौकी का जूस. हम उदास से सोफे के कोने में बैठे लौकी का जूस पीने लगे, बाकि सब चियर्स. हम भी लौकी जूस लिये ही कंबल ओढे चियर्स किये.

जूसर में से पत्नी लौकी का निचुड़ा गुदा फैंकने लगी तो दूसरी शुभचिंतिका सलाह लिये हाजिर हो गईं,'अरे दीदी, आप इसे फैंकने जा रहीं हैं. अरे, इसको सफोला तेल आधा चम्मच में जीरे से बघार कर भाई साहब को खिलाऐं, बहुत फायदा करेगा.' तो अब उसे नहीं फैंका गया, कचरे की पेटी में जाने की बजाये उसे हमारी पेटी में भेजने के लिये तैयारी की जाने लगी, हाय री किस्मत!!

'अरे दीदी, आप इसे फैंकने जा रहीं हैं. अरे, इसको सफोला तेल आधा चम्मच में जीरे से बघार कर भाई साहब को खिलाऐं, बहुत फायदा करेगा तो अब उसे नहीं फैंका गया, कचरे की पेटी में जाने की बजाये उसे हमारी पेटी में भेजने के लिये तैयारी की जाने लगी, हाय री किस्मत!!

इस बीच हम तथाकथित मित्रों के बीच असाहय से बैठे गपिया रहे थे. ये सभी मित्र हमें मजबूरीवश समय बेसमय पढ़ते भी रहते हैं. हम ईमेल करके उन्हें बताते हैं कि आज यह लिखा है. वो नारद नहीं देखते और न हीं हिन्दी में ब्लागिंग करते हैं.

दूसरे बोले, 'यार, तुम तो सबका भविष्य बांचते हो, कि तुम्हारे चिट्ठे के साथ ऐसा होगा, वैसा होगा. संत बने प्रवचन बांटते हो. ज्ञान की बाते बताते हो. अपना भविष्य नहीं समझ पाये क्या जो अब मूँह उतार कर बैठे हो. वो स्माईली का फैशन चलवाये थे, वो काहे नहीं अपने मूँह पर लगाते हो!!" उसकी बात पर सब ठहाकों के साथ हँसे और हम बगलें झाँकते रहे.

तब तक अन्य कूद पड़े, "यह आपको पाप लगा है, सब की खूब मौज लेते थे न!! खूब हँसी छूटती थी सबकी परेशानी पर . कभी एक दो तीन करके माधुरी वाले ठूमके लगाते थे और किसी का भी, कभी भी माखौल उड़ाते थे, और उड़ाओ. लो लग गया न, श्राप!! इस बार नहीं समझ पाये कि डॉक्टर तीर्थंकर है और पीठाधीश भी-अब झेलो!!"

एक बोले, "तुम तो सब इलाज जानते हो, बाल गिर रहे थे तब बाल आरती बना कर गाते थे. अब गाओ न कोई रक्तचाप आरती."

ये हैं दोस्त, जिनके रहते मुझे आज तक दुश्मनों की कमी ही नहीं महसूस हूई.

जिससे जितना बन पाया, साहनभूति की आड़ में कोस गया. सबने फिर खाने के नाम पर मुर्गी से लेकर बिरयानी और पालक पनीर की दावत उड़ाई और हमारे हिस्से आई- दो बिना घी की रोटियाँ, दाल का बिना नमक वाला पानी, और वो बचे गुदे की लौकी की सब्जी. पहले कौर में तो आँख से दो आँसूं गिर पड़े लौकी की सब्जी में. उसी आँसूं के क्षार से अगला कौर कुछ नमकीन हो गया, तो खा पाये वरना बिना नमक का खाना!! हे प्रभू, अब से किसी का मजाक नहीं उडाऊँगा. बुरी बात है!!"


जिससे जितना बन पाया, साहनभूति की आड़ में कोस गया. सबने फिर खाने के नाम पर मुर्गी से लेकर बिरयानी और पालक पनीर की दावत उड़ाई और हमारे हिस्से आई- दो बिना घी की रोटियाँ, दाल का बिना नमक वाला पानी, और वो बचे गुदे की लौकी की सब्जी. पहले कौर में तो आँख से दो आँसूं गिर पड़े लौकी की सब्जी में. उसी आँसूं के क्षार से अगला कौर कुछ नमकीन हो गया, तो खा पाये वरना बिना नमक का खाना!! हे प्रभू, अब से किसी का मजाक नहीं उडाऊँगा. बुरी बात है!!"

खैर, हम डरे जरुर हैं मगर हारे नहीं हैं. हम अब भी लिखेंगे और रक्तचाप पर ही लिखेंगे. किसी रक्तचाप की क्या मजाल कि हमें लिखने से रोके., जब कि बाल नहीं रोक पाये. वो तो सबको दिखते हैं, रक्तचाप तो किसिको दिखता भी नहीं.

'हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती'

तो सुनिये, रक्तचाप पुराण:

रक्तचाप

सुबह सबेरे उठते ही मैं, इक गोली छोटी खाता हूँ.
रक्तचाप के बढ़ते पग में, अंकुश जरा लगाता हूँ.
रक्तचाप यदि उच्च हुआ तो, हृदय गति थम जायेगी.
इस अनिष्ट से घबरा कर मैं, रोज टहलने जाता हूँ.

शक्कर वज़न बढ़ाती है, लगी नमक पाबंदी है.
पेट मेरे में अच्छे खासे, बाज़ारों सी मंदी है.
वज़न घटाने को अपना मैं, केवल फल सब्जी ही खाता हूँ.
स्वपन लोक मे ही अब मिलते, मुर्ग मुस्सलम हंडी है.

बंद हुई अब दूध जलेबी, फुलकी के दिन बिसूर गये
साथ कचौड़ी खाने वाले, संगी साथी बिछूड गये.
सुना रहा हूँ दर्द मैं फिर भी,चेहरे पर मुस्कान लिये
बिन सिगरेट का सुट्टा मारे, सर्दी में हम ठिठूर गये.

सूखी रोटी हाथ हमारे, घी का डब्बा दूर हुआ.
नहीं पता है उस ढ़ाबे का, जो अभी यहाँ मशहूर हुआ.
सजे मेज पर जाम सुराही,मैं तक तक कर रह जाता हूँ.
स्वादहीन से इस जीवन पर, कविता को मजबूर हुआ.

अपना लिखा पढ़ाना सबको, यह तो मेरी आदत है
रक्तचाप बस बना बहाना, भेजी इसको लानत है.
नहीं नीरस यह जीवन होगा, जब तक सबका साथ मिले
भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण, प्यार की सबको दावत है.

--समीर लाल ‘समीर’




इसी के साथ आज हमारी चिट्ठाकारी के एक साल पूरे हुये और होली भी आ गयी. हुरर्रे....सब होली के रंग में रंग जायें, खूब खुशी से होली के रंगो की बरसात हो, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपने चिट्ठाकारी की पहली वर्षगांठ मनाता हूँ!!!
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28 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

.[:)] aap hamesha theek rahe yah hamaari dua hai ..aur hame yun hi hansaate rahe ..subeh subeh aapka blog padh ke dil gardan gardan ho gaya :)...aapko ek saal poora hone ki aur holi ki bahut bahut shubkamaanye ....

बेनामी ने कहा…

:) इतना सब कैसे लिख लेते हैं। मेरा तो सोच कर ही रक्त चाप बढ़ गया है !


"अकबर"

रवि रतलामी ने कहा…

पुराण के अंत में आरती तो दिखी नहीं? तो लगे हाथ रक्तचाप आरती भी लिख ही डालिए. :)

आरती नुमा कुण्डलियाँ भी चलेंगी.

बेनामी ने कहा…

बधाई हो...
अरे नहीं एक साल पुरा करने के लिए नहीं... रक्तचाप की अमीरों वाली बीमारी लगने के लिए. आपतो अब उँचे लोग हो गए हैं जी. तथा लोकी के रस व गुदे की सब्जी के लिए भी मुबारकबाद. स्माइली नहीं लगाई है खामखाँ आप मजाक समझ लेंगे.

कविता मजेदार रही.

बेनामी ने कहा…

बधाई, होली की ....
बधाई, वर्षगांठ की.....
बधाई, बड़े लोगों की जमात में आने की...
होली है.....

Abhishek ने कहा…

वाह समीर जी वाह ! मजा आ गया पढ़ के । आपकी यातना के क़िस्से सुन के दिल भर आया :-)
कविता भी बहुत मस्त लिखी है । ब्लॉगजगत मे एक वर्ष पूरा करने पर भी बधाई ।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

समीर जी अब उस पार्टी का क्या होगा जो हम आपको देने वाले थे क्या अब आप सिर्फ लौकी की सब्जी और उसका सूप ही पियेंगे? अगर रक्तचाप वाली बात मजाक है, तो सही है और अगर सच है तो बहुत दुख हुआ सुनकर, फिर आपको अपना ख्याल रखना चाहिये।

बेनामी ने कहा…

समीर जी,
ये तरिका दिपावली के लिये ठीक है लेकिन होली के लिये कुछ हजम नही हुआ !
होली मे तो भंग और रंग ही चलते है !

मसिजीवी ने कहा…

अरे ये कौन अहमक डाक्‍टर है आपका, उसे चाहिए कि वह आपको थोड़ी बहुत छूट दे-
रोज लौकी का जूस दो गिलास (पसंद न हो तो सप्‍ताह में एक बार उसकी जगह टिंडे का इस्‍तेमाल कर सकते हैं)
करेले का सूप
तोरई की भाजी
रोटी पर घी नहीं
चाय में मीठा नहीं
ऑंखों के नीचे रूई रखें ताकि ऑंसुओं का नमक मुँह में न जा सके
ऐसे किसी भी चिट्ठे से दूर रहें जहॉं नमकीनपन का अंदेशा हो (मसलन लावण्‍या)
तेज न हँसें न हँसाएं
चलते समय रफ्तार 7.732 किमी फी घंटा से न ज्‍यादा न कम
की बोर्ड को तेज न पीटें
स्‍टेटकांउटर की ओर झांकें भी नहीं
ओर भी कुछ परहेज हैं - सार्वजनिक रूप से बताए नहीं जा सकते- थोड़ा कहे को ज्‍यादा समझना बाकी अपना ध्‍यान रखना (नीम के पत्‍तों का काढ़ा अच्‍छा रहेगा)
राम राम जी

पंकज बेंगाणी ने कहा…

हा हा हा हा...

आप लौकी का जूस पी रहे हो.. हा हा हा.. पेट मे बल पड रहे हैं।

ओ..पीने वाले हो सके तो लौट के आना..

होजी हो...ओ...ओ.. पीने वाले हो सके तो लौट के आना,

बोतल तेरी भरी पडी है, आके मुहँ लगाना..
कि पीने वाले हो सके तो लौट के आना.

लौकी का जूस है पीना, लौकी ही है खानी,
लौकी ही अब नीट है भैया यही सोडा पानी,

लौकी लगे अब बीयर सी और लगे जैसे रम है,
हाये दर्द उठे अब तो जीया में, इतनी लानत क्या कम है..

रे लालाजी, हो सके तो लौट के आना,
बोतल आपकी बुला रही है, कैसे नजरे चुराना..

रे.. दुःखी मनवा रे...हो..हो..हो....

हो सके तो मन बहलाना,
अब तो लौकी ही भैया तोरे लौकी ही है बहना..

रे बन्धु रे....हे...हे...हे..हे....हे..

हो सके तो लौट के आना..

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

एक खरीदो तब ही तो न मिले दूसरा फ़्री
रक्तचाप के साथ बिजलियां देखो दिल पर गिरीं
लैकी , तोरई, दाल मूंग की और करेला कड़वा
उबली सब्जी केसंग हाजिर, भोग लगायें श्री

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

एक खरीदो तब ही तो न मिले दूसरा फ़्री
रक्तचाप के साथ बिजलियां देखो दिल पर गिरीं
लैकी , तोरई, दाल मूंग की और करेला कड़वा
उबली सब्जी केसंग हाजिर, भोग लगायें श्री

बेनामी ने कहा…

sab ke sab ek se badd ker ek kalaakaar log hain yahaan !!!

:)
jitnaa mazedaar laikh hai, utney hee mazedaar comments :)

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

यह बात तो गलत है , आज ही सुबह मैने दो-2 अवार्ड की स्पेशल पार्टी देने को कहा और आप बहाने लेकर बैठ गये । होली पर दम नहीं तो बम भोले ही सही , लगाइये और मस्त हो जाइये, होली मुबारक !

ePandit ने कहा…

वैसे पक्के नेता हो गए जी अब आप, बीमारी भी नेताओं वाली लग गई, बस "हमें भूल न जाना बड़े लोगों की जमात में जाकर"।

और हाँ जैसे मसिजीवी ने कहा स्टैटकाऊंटर देखना बंद कीजिए। टिप्पणियों का लालच भी छोड़ना होगा। ज्यादा आएंगी तो भी खतरा कम आएंगी तो भी। :)

चिट्ठाकारी का एक साल पूरा होने पर बधाई !

बेनामी ने कहा…

saalgirah ki bahut bahut badhai.

is udantastari ki gati puraskaron ke mamle me sabse tej lag rahi hai, ho bhi kyon na tabhi to udantastari hai :)

ek baar phir se badhai, aap aisa hi likhte rahen aur puraskaar paate rahen.

Sagar Chand Nahar ने कहा…

परख लिया ना सबको, आज मुसीबत आन पड़ी है तो सब को मसखरी सूझ रही है, यही लोग लालाजी, गुरुदेव, स्वामी समीरानन्द, भाई साहब और पता नहीं क्या क्या कहा करते थे। :) और अब तक आपका चेला बना पंकज तो आपके गम में गीतकार तक बन बैठा है। और गीत रचने लगा है। परन्तु में टिप्पणी द्रोही नहीं हूँ, आपकी मेरे चिट्ठे पर की हुई एक एक टिप्पणी की कसम, मैं आपके गम में बराबर का शरीक हूँ।

घोर कलयुग आ गया है समीरलाल जी; घोर कलयुग!!!!!
( आज आपको नाम से इस वजह से संबोधित कर रहा हूँ कि कहीं मै भी उन लोगों की श्रेणी में ना आ जाउं।

Tarun ने कहा…

वैसे यहाँ का नियम बता दूँ कि यहाँ हमारे मित्र वही होते हैं जो इनकी सहेलियों के पति होते हैं. इनकी सबसे पक्की सहेली का पति हमारा सबसे पक्का मित्र.
lagta hai ye niyam kaafi prachalit hai,

waise humne suna hai ki "lauki ka jala rum wihski bhi fook fook ke peeta hai.....aage ka dhyan aap rakhiyega

Neeraj Rohilla ने कहा…

समीरजी,

सबसे पहले तो मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगा कि आपका रक्तचाप फ़िर से सामान्य के स्तर पर आ जाये । भले आप इसे दुसम्नी निकालना कहें या फ़िर कुछ और, लेकिन दीदी अगर इस टिप्प्णी को पढ रहीं हों तो निम्न बातों का ध्यान रखें ।

१) समीर अंकिल (जान-बूझ कर आपको अंकल और आपकी पत्नीजी को दीदी कह रहा हूँ, इस रहस्य पर कभी एक पोस्ट लिखूँगा ) के बटुए में ज्यादा डालर न रहनें दें, और क्रेडिट-कार्ड भी जब्त कर लिये जायें । उच्च रक्तचाप में आदमी का मन कब बहक जाये और वो फ़्रेंच फ़्राइज का रसास्वादन करनें लगे, कोई नहीं जानता ।

२) समीर अंकिल के मित्रों पर विशेष ध्यान रखा जाये, कभी कभी मित्रों का दुरूपयोग होता है डाक्टर द्वारा मना की गयी चीजे मंगाने के लिये । समीर अंकिल तो वैसे ही इतनें वाक्चतुर हैं कि उनकें मित्रों को आभास भी नही होगा और समीरजी गोल दाग देंगे ।

३) सुबह सुबह उठते ही समीर अंकिल को व्यायाम करनें में लगा दें, एक-दो मील दौडना सेहत के लिये काफ़ी अच्छा होगा ।

४) समीर अंकिल की बार के आस पास कंटीले तारों का एक बेडा लगा दिया जाये, विशेष स्थिति में उसमें विद्युत भी प्रवाहित की जा सकती है ।

बाकी खैर खबर मैं एक सप्ताह बाद लूँगा ।

समीरजी, आपकी इस पोस्ट ने मुझे एक नयी पोस्ट लिखने का विषय सुझाया है । मेरी अगली पोस्ट का विषय होगा, "मेरा वजन: ये बढता क्यों नहीं" ।

:-) :-) :-) :-)

ईस्माइली लगा दी है इसलिये सेंटी होने की नहीं हो रही है ।

अनूप शुक्ल ने कहा…

साल तो कल हुआ आज नये साल के पहले दिन मुबारक बाद कि लिखत-पढ़ता जारी रहे। नित नये आयाम छुये। जहां तक बीमारी का रोना है तो अतुल की पोस्टें देखो डा. झटका वाली। सारे भ्रम दूर हो जायेंगे। इसीलिये कहा गया है कि टिप्पणी करने के बाद समय निकालकर कुछ चिट्ठे पढ़ भी लिया करें! :)

Manish Kumar ने कहा…

वाह ! मजा आ गया आपकी इस कविता को पढ़ कर ! चिट्ठालेखन की सालगिरह और होली की हार्दिक शुभकामनाएँ !

Neeraj Rohilla ने कहा…

अपने वादे के अनुसार हमने आज एक पोस्ट दाग दी है । पोस्ट का विषय है: "मेरा वजन: ये बढता क्यों नहीं"

जरा नजर-ए-इनायत कीजिये ।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

आपको चिट्ठालेखन में सफलता पूर्वक एक वर्ष पूर्ण करने के लिये बधाई !!और होली की बहुत सारी शुभकामनाएँ !!

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपकी बधाई मेरे ब्‍लाग पर है। :)

Unknown ने कहा…

मेरे पति मेरा ब्लाग विवशता पूर्वक ही पढ़ते हैं पर जहाँ आपके चिट्ठे की बात होती है फट तैयार हो जाते हैं ।

जब उनहोने यह पढ़ा,

"वैसे यहाँ का नियम बता दूँ कि यहाँ हमारे मित्र वही होते हैं जो इनकी सहेलियों के पति होते हैं. इनकी सबसे पक्की सहेली का पति हमारा सबसे पक्का मित्र. अगर किसी की पत्नी से इनकी मित्रता नहीं हो पाई, तो वो हमारे मित्र होने की पात्रता नहीं रखता. यह रिवर्स फिलासफी कनाड़ा में आने के बात शुरु हुई, उसके पहले हम पहले ठीक ठाक आदमी थे."

काफी देर तक मुस्कुराते रहे । पता नहीं क्यूँ !!

उन्मुक्त ने कहा…

साल गिरह की मुबारक वाद। शीर्षक से तो लगा था कि आप दूसरा चिट्ठा शुरू करेंगे पर यहां तो कुछ और निकला।

अनुराग श्रीवास्तव ने कहा…

चिठ्ठे की पहली सालगिरह मुबारक हो!!

admin ने कहा…

kahte hain jiskaa aasmaan saaf hota hai, wo pisewalaa hota hai.iske sath muft men mil gaya blood prasure. yaani sone pe suhaaga.
ye to tha majak. waise aap jaise mast aadmi ka ye kuchh bigar nahi sakta, yakeen rakhen.