बुधवार, मार्च 14, 2007
आमंत्रण अमेरिका से: एक सुनहरा मौका
बात सुर में चली है, चले आईए
महफिल अबकी जमीं है, चले आईए
झूमती है निशा, गीत की ताल पर
आपकी बस कमी है, चले आईए.
आईये, सुनिये और बात करिये:
भारत से पधारे जाने-माने कविगण:
डॉ. सोम ठाकुर
डॉ. कुँवर बैचेन
श्री सुरेन्द्र सुकुमार
डॉ.अनिता सोनी
हम अमेरिका (न्यूयार्क) के समय के अनुसार बुधवार दिनांक १४ मार्च, २००७ की रात के ८ बजे से याहू मैसेन्जर पर इन कवियों से बात करेंगे । उस समय भारत में गुरुवार को सुबह के ५:३० बजे होंगे । हम करीब ३ घंटे तक उपलब्ध रहेंगे । हम चारों कवियों से उन की कविताएं सुनेंगे और बात भी करेंगे । आप उन्हें सुन पायेंगे और देख भी पायेंगे । याहू मैसेन्जर (Yahoo Messenger) पर आप anoop_bhargava@yahoo.com को जोड़ लें । पूरा वायदा तो नहीं कर सकते कि कामयाब होंगे लेकिन एक सार्थक कोशिश ज़रूर होगी । अमेरिका और कनाड़ा से अगर आप फोन के माध्यम से कांन्फ्रेंस में जुड़ना चाहें तो आप उन्हें 605-990-0001 PIN 156678 पर भी सुन सकेंगे । तकनीकी सहायता के लिये 609-275-1113 पर बात करें या अनूप भार्गव जी को anoop_bhargava@yahoo.com पर लिखें ।
नोट:
१.बहुत अल्प सूचनावधि देने हेतु क्षमा चाहूँगा.
२. यह क्षमा-वमा बाद में करते रहना, अभी तो इतने बड़े बड़े कवियों को सुन लो, ऐसे मौके बार बार नहीं आते. :)
लौट कर:
इस पोस्ट पर राकेश खंडेलवाल जी की टिप्पणी के द्वारा कवि परिचय:
डॉ.अनिता सोनी
सोहनी की कहानी को इतिहास गाता रहा
आज इतिहास यहां गाने लगी सोहिनी
वाणी में विहाग लिये और अनुराग लिये
स्वर को सजाने लगी आज मनमोहिनी
आपके समक्ष आके मंच से जो काव्य पढ़े
गीत में करे है आज गज़लों की बोहनी
सोनी है कवित्री बड़ी लोग कहें अनिता है
पर आप मानिये , ये कविता है सोहिनी
डॉ. सोम ठाकुर
चन्दन की शाखों से गा कर नाग पाश के बंध हटाये
भैया को रसभरी खीर, भाभी को खट्टी अमिया लाये
शपथ दिला कर याद प्रीत को न्यौता सुबह शाम भिजवाये
शत शत नमन करूँ भारत को, पल पल सोम मंच से गाये
श्री सुरेन्द्र सुकुमार
ज़िन्दगी है चार दिन की जानते हैं सभी हम
इसीलिये ज़िन्दगी में प्यार होना चाहिये
बात जो भी कोई कहे साफ़ साफ़ कही जाये
नौ नकद,तेरह न उधार होना चाहिये
स्वर्ण के आभूषणोंकी कामना हो आपको तो
गढ़ने को एक फिर सुनार्होनाचाहिये
शिष्ट हास्य सुनना जो चाहें अगर आप सब
मंच पर कवि सुकुमात होना चाहिये
डॉ. कुँवर बैचेन
एडीसन जायें आप इडली खायें,डोसा खायें
साथ साथ भेलपूरी खायें ये जरूरी है
आपकी पसन्द वाला गीत कोई गुनगुनाये
साथ साथ आप उसके गायें ये जरूरी है
जर्सी में जायें आप कविता के नाम पर तो
भार्गवजी चाय भी पिलायें ये जरूरी है
और जब बेचैन कुँअर जी गीत गायें
आप झूमें तालियां बजायें ये जरूरी है.
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7 टिप्पणियां:
सोहनी की कहानी को इतिहास गाता रहा
आज इतिहास यहां गाने लगी सोहिनी
वाणी में विहाग लिये और अनुराग लिये
स्वर को सजाने लगी आज मनमोहिनी
आपके समक्ष आके मंच से जो काव्य पढ़े
गीत में करे है आज गज़लों की बोहनी
सोनी है कवित्री बड़ी लोग कहें अनिता है
पर आप मानिये , ये कविता है सोहिनी
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चन्दन की शाखों से गा कर नाग पाश के बंध हटाये
भैया को रसभरी खीर, भाभी को खट्टी अमिया लाये
शपथ दिला कर याद प्रीत को न्यौता सुबह शाम भिजवाये
शत शत नमन करूँ भारत को, पल पल सोम मंच से गाये
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ज़िन्दगी है चार दिन की जानते हैं सभी हम
इसीलिये ज़िन्दगी में प्यार होना चाहिये
बात जो भी कोई कहे साफ़ साफ़ कही जाये
नौ नकद,तेरह न उधार होना चाहिये
स्वर्ण के आभूषणोंकी कामना हो आपको तो
गढ़ने को एक फिर सुनार्होनाचाहिये
शिष्ट हास्य सुनना जो चाहें अगर आप सब
मंच पर कवि सुकुमात होना चाहिये
-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०
एडीसन जायें आप इडली खायें,डोसा खायें
साथ साथ भेलपूरी खायें ये जरूरी है
आपकी पसन्द वाला गीत कोई गुनगुनाये
साथ साथ आप उसके गायें ये जरूरी है
जर्सी में जायें आप कविता के नाम पर तो
भार्गवजी चाय भी पिलायें ये जरूरी है
और जब बेचैन कुँअर जी गीत गयें
आप झूमें तालियां बजायें ये जरूरी है.
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कविताओं के लिए हम थोडे अनाडी हैं. रूचि भी कम है. आप लोग इंज्योय करिए.. :)
समीरजी,
आज आपसे बात करने का सुख भी अर्जित कर ही लिया । आपको एवं अनूपजी को इतना अच्छा ई-कार्यक्रम आयोजित एवं प्रचार प्रसार करने के लिये साधुवाद ।
ई-कविता की कडी अवश्य दीजियेगा, वैसे कविता की विधा में हमारा हाथ बहुत तंग है लेकिन फ़िर भी हाथ चलाकर तो देखेंगे ।
साभार,
उपवास तोड़ने की अपनी विधि होती है, उसे समय आने पर अपनो के हाथो तोड़ा जाता है.
मैंने भी अपना टिप्पीयाने का व्रत आपको कोमेंट कर तोड़ने का निर्णय लिया.
सम्भव हुआ तो कवियों को जरूर सुनेंगे.
'हिंदी मेरी पहचान' का आपका प्रतीक चिह्न मैंनें तो आज ही देखा। यह एक रचनात्मक कदम है। पिछले दिनों एक कान्फ्रेंस में हिंदी चिट्ठाजगत में व्यक्त भाषिक पहचान पर आपके उदाहरण से ही प्रस्तुति शुरू की थी। ....और लोगों की घंटी झट से बज गई थी।
हमें कवीताएं आती नहीं, हम तो आपके परस्तार हैं आपकी वाह वाह कहेंगे
समीर जी...कवि सम्मेलन का आयोजन बढ़िया था! एक बार फ़िर हो जाए।
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