"हेलो,पंकज बैंगाणी बोल रहा हूँ, तुरंत ऑफिस आ जाओ."
अभी हमने पूछा ही था कि "क्या हुआ, सब ठीक ठाक तो है.कुछ काम है क्या?"
कि पंकज बाबू झल्ला गये, "क्या कोई नाच की पार्टी तो रखी जायेगी नहीं. काम ही होगा, तभी बुलाया जा रहा है. बिना बुलाये तो झांकने की फुरसत आप लोगों को है नहीं."
और उन्होंने फोन ही काट दिया.
हम भी तैयार हुये और टैक्सी करके निकल पड़े तरकश के दफ्तर की तरफ.
मन में कई विचार आ रहे थे और सोच रहा था कि आखिर पंकज "आप लोगों" कैसे बोले. हमारे सिवाय कोई भी और निष्क्रिय दिमाग में आ ही नहीं रहा था. ऐसा नहीं कि हम पूरी तरह निष्क्रिय हों. कभी कभी ईमेल से संपर्क करते रहते हैं. मगर वह उतना काफी नहीं है कि सक्रिय कहा जायें.
हमारे सिवाय और भी कोई निष्क्रिय दिमाग में आ ही नहीं रहा था. ऐसा नहीं कि हम पूरी तरह निष्क्रिय हों. कभी कभी ईमेल से संपर्क करते रहते हैं. मगर वह उतना काफी नहीं है कि सक्रिय कहा जायें.
दफ्तर पहूँचे तो काफी गहमा गहमी लग रही थी. मगर संजय भाई अपने कमरे में चुपचाप चिर परिचित मुस्कान चेहरे पर लिये बैठे थे. हमने भी सोचा कि पहले इनसे मिल लिया जाये.
बहुत गरम जोशी से मिले. कहने लगे, पहले कॉफी पी लिजिये, फिर चलते हैं मिटिंग में. हम भी सुबह से चाय नहीं पिये थे सो मान गये.
संजय भाई ने मुन्ना चपरासी को आवाज लगाई, " मुन्ना, है क्या तू". वाह, इतनी पतली और सुरीली आवाज..हमें लगने लगा कि मुन्ना न हो और ये आवाज लगाते रहें और हमें लता जी टाइप संगीत का आनन्द मिलता रहे."
"मुन्ना है तू, मेरा राजा है तू...
तू मेरी आँखों का तारा है तू...."
जो लोग संजय भाई से नहीं मिले हैं या आज तक बात करने से वंचित रहे हैं, उनकी जानकारी को बता दूँ कि इनकी कलम जितनी तीखी और पैनी है, आवाज उतनी ही मधुर और सुरीली.
खैर, कुछ देर बाद मुन्ना आये. मगर सुनने नहीं, सुनाने. आ कर बता गये कि "फालतू काम के लिये समय नहीं है, पंकज साहब का जरुरी काम कर रहा हूँ."
संजय भाई शर्मिंदा होते, इसके पहले ही हमने उनसे कहा कि चलिये नीचे चल कर पी आते हैं. वो भी तुरंत तैयार हो गये जैसे हमने उनके मन की बात कर दी हो.
जब तक हम लोग कॉफी पीकर लौटे, तरकश मिटिंग शुरु हो गई थी और मुन्ना बाहर ही मिल गया कि पंकज साहब आप दोनों को कब से बुलवा रहे हैं.
संजय भाई तेज तेज चले और हम पीछे पीछे. मिटिंग रुम में पहूँचे. चार पाँच २० से २७ साल के युवाओं को पंकज साहब कुछ बड़े जोशिले अंदाज में समझा रहे थे. हम दोनों को देखकर मूँह बनाया और बोले, "अब खड़े ही रहेंगे कि बैठेंगे भी"
सारी कुर्सियों पर तो यह युवा बैठे थे. हम लोग कहाँ बैठेते. पंकज साहब की घूमने वाली कुर्सी के बाजू में एक बैंच पड़ी थी, उसी ओर पंकज जी इशारा कर के फिर बातों में मशगुल हो गये.
हम और संजय भाई उसी बैंच पर बैठ गये. ३/४ पर हम और १/४ पर संजय भाई और तीन लोगों वाली पूरी बैंच हम दो से भर गई.
सचिव ने घोषणा की कि अब सभापति जी का भाषाण होगा.
हम बस उठने वाले ही थे कि पंकज साहब मुस्कराकर खड़े हो गये माईक के सामने. हम आधे उठे से फिर बैठ गये.
भाषाण शुरु भी हो गया:
"मेरे युवा साथियों,
मुझे नाज है आप लोगों के जोश पर. आपके जोश के चलते आज से हम तरकश पर नया कॉलम शुरु कर रहे हैं "जोश".
अनुभवी लोगों का कमाल हम सब देख चुके हैं. अगर हम अब भी अनुभवी लोगों की तरफ ही ताकते रहे, तो तरकश भी कुछ दिनों में भारतीय संसद हो जायेगा.
आज जरुरत है युवाओं को आगे आने की. अपना जोश दिखाने की. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अंग्रेजी में अपने विचार लिखें या रोमन में या फिर देवनागरी में. फरक पड़ता है तो लिखने से.
इन दोनों महारथियों को देखिये, हिन्दी हिन्दी चिल्लाते रहते हैं और लिखते कुछ नहीं. पिछले कितने समय का तरकश उठा कर देख लें कि इन दोनों ने कितना लिखा है. बहुत हुई इनकी रहनुमाई. यह जरुर है कि बाजार में इनकी अलग साख है तो बस वही वजह भी है कि हम इन्हें तरकश में सजा कर रखे हैं मगर भरोसा आप युवाओं पर है.
आप हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें. जोश में अपना पूरा जोश उडेल दें. फिर देखिये, हम तरकश को किन ऊँचाईयों पर ले जाते हैं."
आज जरुरत है युवाओं को आगे आने की. अपना जोश दिखाने की. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अंग्रेजी में अपने विचार लिखें या रोमन में या फिर देवनागरी में. फरक पड़ता है तो लिखने से. इन दोनों महारथियों को देखिये, हिन्दी हिन्दी चिल्लाते रहते हैं और लिखते कुछ नहीं. पिछले कितने समय का तरकश उठा कर देख लें कि इन दोनों ने कितना लिखा है.
मिटिंग रुम युवाओं की जोशिली तालियों की गूँज से गूँजायमान हो उठा. ताली हमने और संजय भाई ने भी हल्के से बजायी. मगर सर झुकाये झुकाये ही.
सभापति महोदय का भाषाण खत्म हुआ. सब चले गये. हम और संजय भाई वहीं बैंच पर बैठे रहे जबकि सारी कुर्सियाँ अब खाली हो गई थी.
हम और संजय भाई ने एक दूसरे को इस तरह देखा, मानो कह रहे हों कि " अभी भी होश में आ जाओ, तरकश के लिये फिर से सक्रियता से लिखना शुरु करो. वरना तो तरकश अपनी रफ्तार पकड़ ही लेगी इन युवाओं के साथ. हम दोनों छूट जायेंगे और अभी तो बैंच मिल भी गई. अगली मिटिंग में जमीन पर बैठना पडेगा और आगे शायद मिटिंग रुम में ही न घुस पायें."
आप भी देखे जोश की जोशिली शुरुवात और उत्साह बढ़ायें युवाओं का. आगे से हम और संजय भाई भी मेहनत करेंगे, यह मौन रहते हुये भी व्रत लिया है.
तरकश टीम को जोश की शुरुवात पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें.
12 टिप्पणियां:
सही है। लेकिन आपके तो जोश बरकरार हैं।
हमने भी कोशिश की हमको जोश जरा सा आ जाये
इसी बहाने कोई हमको काफ़ी आकर पिलवाये
तरकश हो या धनुष, जोश तो सबमें ही है साथ रहा
जोश आपका ही है सबसे चिट्ठे निशिदेइन लिखवाये
आपको तथा तरकश की टीम को बधाई।
व्यंग के साथ सीधी बात, मेरे समीर लाल जी के साथ
जोश तो आपका पढ़ने काबिल है।
सरे बजार वो बेंच पर बैठने वाली बात बतानी जरूरी थी क्या? :)
जोश भर दिया है आपने. अब देखो कैसे दलादन लिखते है हम भी.
जोश के लिए बधाई। आप लोगों का संगठित प्रयास हिंदी को एक आकाश दे, ऐसी शुभकामनाएं।
वाह खूब रही मीटिंग की दास्तान, हर खबर को मजेदार तरीके से पेश करना आपकी खासियत है।
अच्छा रहा आपका जोश नामक प्रोग्राम।
ह्म्म्म, गुड जोब मेन!!!
लगता है आपको पद्दोन्नति देकर पब्लिक रिलेशन ऑफिसर बनाया जाए. ह्म्म.. विचार किया जाएगा बोर्ड मिटिंग में। फिलहाल आप अपनी जिम्मेदारी पर ध्यान दें।
एक बात और ध्यान दें आई.बी.एम. और एयरबस जैसी कम्पनीयाँ भी छँटनी में लगी है...तो यह एक ग्लोबल प्रोसेस है, हर फिल्ड में है, हर जगह है.
समय रहते चेत रे मन, चेतने से सबकुछ होय, भावना चाहे जैसी भी हो, जस कर्म तस फल होय, ... :)
वैसे आप भी युवा हैं... कर्मठ हैं, माशा अल्लाह, पील पडे तो अच्छे अच्छे पानी मांगने लग जागते हैं.. आप को युँ ही थोडे ही राष्ट्रपति बनाकर रखे हैं.. ;-)
खैर लालाजी, पायँ लागिँ, भूल चूक माफ... तरकश के तीर तो चलते रहेंगे, नये नये अस्त्र जुडते रहेंगे, और फिर समीरास्त्र तो है ही... :)
बधाई हो ! लगे रहें ...
बहुत बढ़िया ! तीर चलाते रहिए !
घुघूती बासूती
तीर (जोश के साथ) निकला है तो दूर तलक जाएगा ....बधाई और शुभकामनाएं
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