बदन पे सितारे
लपेटे हुए, ए जाने तमन्ना
कहाँ जा रही हो...यह गीत जब कभी रेडियो पर बजता है तब न तो कभी किसी सुकन्या के बदन का ख्याल
आता है और न ही फलक पर चमकते सितारों का...बस, जेहन में एक
चित्र खिंचता है..शम्मी कपूर का
इठलाती और अंग अंग फड़काती व बल खाती शख्शियत...
ऐसे कितने ही गीत
हैं जो कभी सिनेमा के पर्दे, तो कभी टीवी के स्क्रीन पर दिख दिख कर आपके दिलो दिमाग पर
वो छबी अंकित कर देते हैं कि उन्हें रेडियो पर सुनो या किसी को यूँ ही गाते
गुनगुनाते हुए, दिमाग में वही फिल्म का सीन चलने लगता है.
आँधी फिल्म का
गाना- इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त कदम रस्ते..कहीं दूर भी बजता हुआ सुनाई दे जाता है तो
दिमाग में संजीव कुमार और सुचित्रा सेन का वो ही सीन उभर आता है.,,जो आँधी फिल्म
में देखा था.
मगर कुछ ऐसे भी
गीत हैं जो मौका विशेष पर ऐसे बजने लग गये कि उनका मूल सीन ही दिमाग से धुल गया और
मौका विशेष से जुड़ा कोई सीन उसके उपर आकर कब्जा कर गया. जैसे शादी की बारात के
दौरान बैण्ड वालों ने नागिन गाने की धुन बजा बजा कर, इस गाने की ऐसी बैण्ड
बजाई कि अब कहीं दूर दराज से भी नागिन गाने की धुन सुनाई देती है तब न तो १९५४ की
वैजन्ती माला याद आती है और न १९७६ की रीना राय...बस याद आता है
शराब के नशे में धुत, हाथ से नागिन का फन बनाये जमीन पर लोट लोट कर नागिन बना
नाचता हुआ आपका एक दोस्त और मूँह में रुमाल दबा कर उसे बीन की तरह बजाता हुआ सपेरा
बना हुआ आपका दूसरा दोस्त,.. किसी अपने ही खास दोस्त की बरात में नाचते हुए. वैसे ही जैसे कि
’दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात.’..भी किसी मित्र या
रिश्तेदार का चेहरा ही सामने लाता है वरमाला डालते हुए.
इसकी वजह शायद ये
होती होगी कि वो गीत, फिल्म और टीवी के इतर अन्य मौकों पर इतनी बार बजा और सुना गया
है कि फिल्म का सीन अपना अस्तित्व बचा ही नहीं पाया. कौन जाने इसमें दोष उन
गीतों का अन्य मौकों पर अत्याधिक बजा जाना है या उन पर हुए फिल्मांकन का कमजोर
होना. जो भी हो, फिल्म का सीन तो दिमाग से निकल ही गया.
’तुम जिओ हजारों
साल, साल में दिन हो पचास हजार.’.इस गीत को सोच कर देखियेगा कि क्या याद आता है? कोई भाई, बहन,
भतीजा ही न?
अब बात करते हैं
तीसरे आयाम की..जिसमें गीत तो अन्य मौकों पर ही बार बार सुनते आये किन्तु
फिर भी वो अपनी मूल छाप ही छोड़ते आये हैं. हालात ऐसे कि जिस दृष्य की वो याद दिलाते हैं
उसका मुख्य किरदार अपना चेहरा बदल कर मूल किरदार के चेहरे में नजर आता है.
याद करिये हर
बेटी की विदाई के वक्त बजता हुआ वो गीत...’बाबुल की दुआयें लेती जा..जा तुझको सुखी संसार मिले..’ न जाने कितनी
बार कितनी बेटियों की विदाई के वक्त यह गीत सुना होगा..मगर चेहरा वही बलराज
साहनी का याद आता है.. लड़की का चेहरा तो दोस्त की बेटी का उभरता है मगर विदा करता
दोस्त, बलराज साहनी में बदल जाता है मानो अपना यार बलराज साहनी को खड़ा करके बाहर
सिगरेट पीने निकल लिया हो. अब न जाने इसमें किरदार का वजन है या फिल्मांकन का..मगर जिन्दा मूल
किरदार ही रहा. वही १९६८ का नीलकमल फिल्म वाला बलराज साहनी..
बहुत खोजा..शोध किया..बातचीत की मगर एक
ऐसा आयाम खोजने में मैं सफल नही हो पाया जिसमें जब उस गीत के बोल सुनूँ तो न तो
फिल्म का सीन याद आये, न मौके पर अत्याधिक बजने की वजह से उस मौके से जुड़े दृष्य
का..बल्कि कोई नया सा दृष्य उभरे, एक नया सा चेहरा उभरे...
आज तक कोई भी राजनेता
ऐसा न कर पाया कि फिल्म का गीत बजे जिसमें उसका जिक्र न हो और आप के जेहन में उसका
चित्र उभर आये.
मगर अभी अभी कुछ
रोज पहले एक ऐसी घटना हुई कि, सोशल मीडिया में दिलचस्पी रखने वाले इसे अच्छी तरह से समझ
पायेंगे.. बाकी के लोग इस पैराग्राफ को लाँघ कर आगे पढ़ सकते हैं, एक बड़े टीवी चैनल के एक
दिवसीय सरकारी प्रतिबन्ध के मद्दे नजर बने एक कार्यक्रम और हैश टैग ट्रेन्ड की
दुनिया में ट्वीटर पर सबको पछाडते हुए ट्रेन्ड #बागों मे बहार है..ने ऐसा माहौल
बनाया कि..अब जब भी वो गीत सुनाई देता है तो दिमाग में उभरता है..एक फेमस टीवी चैनल का
ब्लैक आऊट हुआ टीवी स्क्रीन और फिर उस ब्लैक आऊट के भीतर से उभरता हुआ मेरे मित्र एक
बड़े एन्कर का चेहरा और साथ में दो चेहरों पर सफेदा पोते एथॉरिटी और लठैत बने माईम कलाकार... वो आराधना फिल्म
के साथ साथ राजेश खन्ना और फरीदा जलाल का चेहरा जाने कहाँ खो गया और कब..समझ ही नहीं आया. ऐसा पहली बार, कम से कम मेरी याद में हुआ.
आपको कुछ ऐसा याद
हो तो बतायें कि जब गाना बजे फिल्म का और आपको याद आये कोई राजनेता या पत्रकार.. या कोई ऐसा चेहरा..जो किसी मौका
विशेष के नाम से आपके दिमाग में हथोड़ान्कित न हो....
शायद राजनेताओं
के लिए ऐसा कुछ प्रयोग करने का समय आ गया है...करना भी चाहिये..कोई एक फेमस गाना..अपनी याद दिलवाने
के लिए...
जोड़ कर देखो न भई
नेता जी..शायद कहीं गुंजाईश बने!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के सुबह सवेरे में ४ दिसम्बर,२०१६ के अंक में प्रकाशित
http://epaper.subahsavere.news/c/15111168
2 टिप्पणियां:
Lekh Padh Kar Aanandit Ho Gyaa Hun .Bahut Khoob !
वाह । जियो :) ।
एक टिप्पणी भेजें