नया साल आते ही
एक नया प्रश्न मूँह बाये खड़ा हो जाता है कि इस साल क्या संक्ल्प लिया जाये? हालांकि नया साल एकाएक नहीं आता. पिछली बार जब नया साल आया था तब से पता था कि
अगली बार नया साल कब आयेगा मगर नये साल में क्या नया किया जाये, यह प्रश्न नया साल आते ही एकदम नया हो कर फिर
से खड़ा हो जाता है.
फिर लोग बहुत सोच
समझ कर किन्तु भगदड़ में इस नये प्रश्न के जबाब में तरह तरह के संकल्प करते हैं. एक बहुत बड़ी आबादी का निरंतर साल दर साल का
संकल्प होता है कि इस साल सेहत पर ध्यान देना. वजन कम से कम ३० पोण्ड कम करना है. कोई इस साल शादी कर के मानेगा तो किसी को इस
साल कार लेना है. कोई मकान खरीदेगा
तो कोई हम माह एक नई किताब पढ़ेगा. किसी का कहना कि
अब बस बहुत हुआ, अब से बस १ घंटा देंगे फेस बुक को रोज.
किसी के पास बचत
की योजना है तो किसी को यूरोप घूमना है.
कोई अपनी
दिनचर्या में बदलाव करेगा तो कोई नई नौकरी पाने के लिए जी जान लगा देगा.
याने कि संकल्पों
की एक फौज खड़ी हो जाती है नया साल आते ही और ९९.९ प्रतिशत संकल्पों की नियति एकदम ठीक चुनावी
वादों की तरह कभी न पूरा होना है. हर संकल्पकर्ता
हर वर्ष अपने नये के जबाब में एक नया संकल्प यह भी जोड़ देता है कि इस बार पहले की
तरह नहीं होगा, इस बार तो पूरा
करके ही मानूँगा. पुनः जैसा हर
नेता हर चुनाव में अपने चुनावी वादे के लिए कहता है इस बार यह जुमला नहीं वादा है. मगर वक्त के साथ फिर से वादा जुमले में तब्दील
हो जाता है.
२०१७ कुछ अलग सा
है. इसमें नये प्रश्न के उतत्तर में कुछ नये संकल्प भी जुड़ेंगे मसलन किसी को आप
कहते सुनेंगे कि इस साल तो काला धन आते ही ठिकाने लगाना है, नगद रखने का तो
सवाल ही नहीं. कोई कह रहा था कि सारी प्रापर्टी गलानी है इसके पहले की इस दिशा में कोई दीमक
पकड़ने निकले. चुहिया तो पकड़ा गई जो नोट कुतरती थी. एक सज्जन अजब सा संकल्प लेते दिखे कि इस साल
अजगर बनना है. हम पूछने को मजबूर हो गये कि ऐसा क्यूँ? तो कहने लगे कि अजगर कुतरता नहीं, निगलता है और
उसके साथ साहेब की संगाबित्ती है, बीन सपेरा डांस खेलने की. अजगर को सजा का
प्रवधान नहीं है. मानो अजगर न हुआ..राजनितिक दल हो गया हो.
सरकार के संकल्प
हैं कि चुन चुन कर मारुँगा. कोई नहीं बचेगा सिवाय उनके जिन्हें हम बचाना चाहेंगे और आम जन के संकल्प हैं
कि काश!! किसी तरह उस श्रेणी में आ जायें जिसे वो बचाना चाहते हैं.
पता है कि संकल्पों
का क्या हश्र होना है मगर फिर भी, कुछ अपवाद स्वरुप, संकल्प पूरे भी तो होते हैं.
#Jugalbandi #जुगलबन्दी
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-01-2017) को "नए साल से दो बातें" (चर्चा अंक-2575) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नववर्ष की शुभकामनाएं :)
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