शनिवार, दिसंबर 24, 2016

दिसम्बर में देश


वह रजाई में घुसा हुआ सड़क के किनारे लगभग बुझते हुए सरकारी अलाव के पास न जाने किस बात का इन्तजार कर रहा था, कोई नहीं जानता था. रजाई के बाहर कतार में खड़े लोग बस अनिश्चितता के बादल छँटने का इन्तजार कर रहे थे.. कड़ाके की ठंड और कोहरे की धुंध से ज्यादा धुँधलका वातावरण में अनिश्चितता का था. उसने रजाई में लेटे लेटे न जाने कितनी बार पूछा होगा कि ईज इट देयर? (आया क्या या आई क्या? पूछ रहा था शायद). भीड़ में जो सुनता वो उसे अपनी समझ के हिसाब से जबाब देता कि नहीं, अभी नहीं..और वो फिर रजाई ढ़ाप कर लेटे रहता. किसी ने उससे यह पूछा ही नहीं कि वो जानना क्या चाहता है. अक्सर अपनी परेशानी में उलझा व्यक्ति दूसरे की समस्याओं पर ध्यान हीं नहीं दे पाता और उसे लगता है कि शायद सामने वाला भी उसी समस्या का जबाब चाह रहा है जिससे वह जूझ रहा है.
हर सुनने वाला उसे अपने हिसाब से समझता, मगर जबाब एक ही होता..नहीं, अभी नहीं!
किसी ने समझा कि वो एटीएम में कैश आने के लिए पूछ रहा है..ईज इट देयर? किसी ने समझा कि ठंड से परेशान होकर सूरज के आने के इन्तजार में है..किसी ने समझा कि वो कैश लैश इण्डिया का इन्तजार कर रहा है तो किसी ने समझा कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत का..
कोई समझता रहा कि उसे अच्छे दिनों का इन्तजार है तो किसी ने समझा कि अपने मोबाईल में नेटवर्क आने के इन्तजार में है. कोई समझ रहा था कि शायद कोहरे के चलते अब तक न आई किसी बस का इन्तजार कर रहा है तो कोई समझ रहा था कि कल शाम से गुल बिजली के आने का इन्तजार है. एक की नजर नल पर थी कि शायद वह पानी आने का इन्तजार कर रहा है.
चाहे जिसने जो भी सोचा या जो भी समझा -हर बार जबाब एक ही कि नहीं, अभी नहीं आया या नहीं आई!!
अजब विड़ंबना थी. उसने देर रात ही एटीएम की कतार में खड़े खड़े सीने में दर्द का अहसास किया था और जमीन पर लेट गया था. कतार छोड़ता तो शायद कल फिर रुपये न निकाल पाता. पड़ोस से न जाने कौन उसे रजाई उठा कर डाक्टर लाने का वादा करके चला गया था. वो उसी के आने का इन्तजार कर रहा था. घंटो बाद अभी वह व्यक्ति लौटा किसी डॉक्टर को लिवा कर जिसने आते ही उसकी नब्ज टटोल कर उसके मृत होने की घोषणा कर दी.
एक लम्बे इन्तजार के बाद, जिसमे हर आने का जबाब न में था, मौत हाँ बन कर आई.
सरकारी बयान है कि मृत्यु का कारण एटीएम की लम्बी कतार नहीं, हृदयधात है जिसकी एक पत्रकार वार्ता मे सरकारी डॉक्टर ने पुष्टी भी कर दी है.
कुछ ऐसा हाल रहा इस दिसम्बर में देश का...याद रहेगा यह दिसम्बर भी देश को बहुत बरसों तक... जैसे याद दिलाता है दिसम्बर देश को बावरी मस्जिद की या भोपाल गैस काण्ड की,,,

-समीर लाल ’समीर’  
#व्यंग्यकीजुगलबंदी
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2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह :)

कविता रावत ने कहा…

एक याद बनकर रहेगी कुछ साल तक फिर सब धीरे भूल जाते हैं या भुला दिए जाते हैं, यही दस्तूर है आज का ..