शनिवार, दिसंबर 10, 2016

वापसी के अपवाद



जब कभी वापसी की बात आती है तब सबसे पहले हिन्दी में एक कहावत याद आती है कि धनुष से निकला हुआ तीर और मूँह से निकले शब्द कभी वापिस नहीं लिए जा सकते. ज्ञानी जन सदा से यह कहावत बताते आये हैं ताकि इन्सान अपनी बोली में संयम बरते किन्तु वो हमेशा ही यह बताना भूल जाते हैं कि इसमें अपवाद स्वरुप नेता के बोले वचन आते हैं. नेताओं के द्वारा चुनाव के पहले वादा करते हुए बोले वचनों को चुनाव के बाद जुमला बतला कर वापस लिए जाने का प्रावधान हैं. हर खाते में १५ लाख रुपये पहुँचाने के वादे को जुमले में परिवर्तित होने को अभी देश भूला नहीं है. इस वापसी को आधुनिक राजनीती शास्त्र में यू टर्न कह कर पुकारा गया है.

इस शब्द वापसी की सोच से उबरो तो याद आती है घर वापसी वाली बात. घर वापसी के लिए अनिवार्यतः घर से निकलना जरुरी है तभी तो वापस जा सकते हैं. जो घर से निकला ही न हो उसकी भला वापसी कैसी? मगर नहीं इसमें भी ये नेता अपवाद निकाल कर ले लाये और घर वापसी का देश भर में ऐसा अभियान चलाया कि देश सांप्रदायिकता और असहिष्णुता की आग में जलने लगा. घर और धर्म पर्यायवाची हो गये. जिसे देखो वो अपना राजनेतिक कद बढ़ाने के लिए नित नया परचम लहराने लगा कि फलाने गांव में २००० लोगों की घर वापसी, ढिकाने गाँव में ३००० लोगों की घर वापसी. ये सभी घर लौटने वाले लोग किसी तरह सुबह और शाम की रोटी का जुगाड़ कर रहे थे और राजनीतिज्ञों की नजर पड़ने के पहले उनके लिए उतना ही काफी था. घर से कहीं ऐसे चले जाना कि घर वापसी का जश्न मने और अखबारों में छपे, वो उनकी तकदीर में कहाँ था भला? मगर बस नेतागीरी का अपवाद, बिना हिले डुले, बिना कहीं गये भी घर वापसी हो ही ली.

हर वापसी में इन्हीं नेताओं को क्यूँ अपवाद स्वरुप एक अलग रास्ता दिया जाया है? शायद इसी को वी आई पी कल्चर कहते हैं क्या?

अभी हाल की नोट वापसी का दृष्य देखें. पुराने अमान्य किये गये नोट बैंक को वापस करके नये नोट लेने की जुगत में जब सारा देश कतार में लगे कातर निगाहों से नये नोटों का इन्तजार कर रहा है तब ऐसे में इस वापसी अभियान में कोई भी नेता कतार में लगा नजर नहीं आता और उनके घरों में हो रही शादियों और खर्चों में रुपये की ऐसी नुमाईश, चाहे दक्षिण में बेंगुलुरु में हो या पश्चिम में नागपुर में, कि देखने वाला दाँतों तले ऊँगली दबा ले कि आखिर ये इतने सारे नये नोट ले कहाँ से आये? सारी लिमिट, सारे नियम आम जनता की नोट वापसी के लिए और नेताओं के घर पर डायरेक्ट सप्लाई? बिना इसके ५०० करोड़ और १०० करोड की शादी, ८० लाख, ६० लाख के नये नोट का ठिकाने लगाते हुए पकड़ा जाना बिना मिली भगत के संभव है क्या? इन सब अपवादों का आशीष भी राजनीति के गलियारे से ही बरसता है. जो सुनने में आता है वो अनसुनी घटनाओं का एक छोटा सा प्रतिशत भी नहीं है.

हमने हाल ही में देखा था कि ऋण वापसी में किसान नें आत्म हत्या कर ली और उससे कई लाख गुना ऋण लिया सांसद लंदन जा कर बैठ गया और बैंक है कि उसका ऋण माफ किए जा रही है. गजब अपवाद की ऐसी स्थिती कि अवसाद घेर ले आम जन को.

आज जब मौसम ने ठंड वापसी की दस्तक दी तो मन में एक ख्याल कौंधा कि क्या ठंड का मौसम भी अपनी वापसी में इन नेताओं को अपवाद की श्रेणी में रखेगा? बाकी तो आम जन में न जाने कितने कड़ाके की ठंड में राम नाम सत्य हो जायेंगे.

शायद हाँ क्यूँकि बचपन से सुनते आये हैं कि अरे फलवना तो नेता हैं, उनसे मत उलझना... पावर की गर्मी है उनके खून में. कुछ भी कर सकते हैं.

कर ही रहे हैं!!


-समीर लाल ’समीर’
#Jugalbandi #जुगलबन्दी
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3 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

Full Of Facts . Congratulations.

Satish Saxena ने कहा…

एक दोस्त बरसों पुराना उधार पुराने नोट लेकर बापस देने आये थे , हमने भी उनका कर्ज माफ़ कर दिया और नोट गिफ्ट :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कभी कभी निकले शब्द बड़े मँहगे पड़ जाते हैं।