गुरुवार, मार्च 31, 2011

ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

पिछली भारत यात्रा के दौरान सायंकालीन महफिलों में लाल और बवाल की संगत नित का नियम सा थीं. उसी माहौल में एक शाम यह रचना लिखी गई और फिर बाद में बवाल ने इसे गा कर जब सुनाया तो सभी झूम उठे. रिकार्डिंग तो उस वक्त नहीं हो पाई मगर बवाल का वादा था कि आप कनाडा पहुँचो और बस, रिकार्डिंग आपके ईमेल में होगी.

तब से ईमेल में आँख गड़ाये बैठे हैं. चलिये, कोई बात नहीं.

वाकिफ तो हूँ उनकी आदत से, मुकर जाने की,
न जाने क्यूँ फिर भी इन्तजार किये जाता हूँ मैं..

रिकार्डिंग फिर कभी आ जायेगी और तब सुना दी जायेगी. अभी तो आप पढ़्कर इस रचना का आनन्द लें.

drink

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

तौल रहा है लिए तराजू, किन बातों में कितना दम है...
जा बैठा मधुशाला में वो, सोच रहा ये कितने गम हैं...
भूल गया था शायद वो यह, इस गम का कारण भी हम हैं...

अपने ही कर्मों के फल का
ये अभिशाप न टाला जाए!!

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

क्यूँ उसका दिवानापन है, भला किसी की वो अपनी है..
जग जाहिर सी यह बात रही कि वो तो बस एक ठगनी है...
होश लूट कर ले जायेगी, इतनी ही उसकी करनी है....

मदहोशी की राह दिखा कर
कब वो गुम हो बाला जाए!!

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

जाने कितने गम के मारे, इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी, फिर अपना गम बांच रहे हैं..
अब तक किसका गम हर पाई, क्यूँ न इसको जांच रहे हैं...

दर्देगम जो और बढ़ा दे
वो मर्ज ही न पाला जाए!!

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

फूलों की जो गंध चुरा ले, और भौरों सा झूम रहा हो..
गम से जिसका न (कु)कोई नाता, खुशियाँ देने घूम रहा हो..
देखी जो गैरों की खुशियाँ, अपनी किस्मत चूम रहा हो..

उसी प्याले में पैमाना
भर भर करके ढाला जाए!

ओ साथी! वो मधुशाला आए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

-समीर लाल ’समीर’

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87 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय समीर लाल जी
नमस्कार !
वाकिफ तो हूँ उनकी आदत से, मुकर जाने की,
न जाने क्यूँ फिर भी इन्तजार किये जाता हूँ मैं..
पूरी रचना शानदार... लेकिन ये पंक्तियाँ डायिरेक्ट अपने दिल में घुस गईं............शानदार रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!
....कमाल की पंक्तियाँ हैं....
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

आज तो समीर जी, मधुशाला की गगरी छलक रही है, बहुत सुन्दर !

संजय भास्‍कर ने कहा…

जाने कितने गम के मारे, इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी, फिर अपना गम बांच रहे हैं..
अब तक किसका गम हर पाई, क्यूँ न इसको न जांच रहे हैं...

.........वाह क्या दिलकश अन्दाज़ है…………दिल मे उतर गये है भाव्…………बहुत पसन्द आयी ये......शानदार रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

फूलों की जो गंध चुरा ले, और भौरों सा झूम रहा हो..
...समीर जी बहुत ही खूबसूरत रूमानी अंदाज है, आपकी रचना का.....शानदार शानदार शानदार शानदार शानदार

abhi ने कहा…

कमाल है :)

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

@ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

जीवन का सार यही है,

अमृत घट से न छलके,व्यर्थ न हाला जाए।
बूंद बूंद का रस लें,जो मेरी मधुशाला आए॥


आज तो दादा आपने मयसागर में ही उतार दिया। आनंद में गोते लगा रहे हैं। एक एक पंक्तियाँ गहरे उतर गई। गर जीवन को मयसागर जाने तो सारी कठिनाईयाँ सरल हो जाती हैं।

गुड्डोदादी ने कहा…

समीर सुपुत्र
चिरंजीव भवः

जाने कितने गम के मारे, इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी, फिर अपना गम बांच रहे हैं..

जी कर लिखी है रचना मोतिओं की माला में पिरो कर

Ashok Pandey ने कहा…

क्यूँ उसका दिवानापन है, भला किसी की वो अपनी है..
जग जाहिर सी यह बात रही कि वो तो बस एक ठगनी है...
होश लूट कर ले जायेगी, इतनी ही उसकी करनी है....

बहुत खूब समीर भाई.. बिना रिकार्डिंग के भी रचना झूमा देनेवाली है।

Khushdeep Sehgal ने कहा…

अब इतनी मय भी न बची मयख़ाने में,
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में...

जय हिंद...

गुड्डोदादी ने कहा…

समीर सुपुत्र
आशिर्वादफूलों की जो गंध चुरा ले, और भौरों सा झूम रहा हो..
गम से जिसका न (कु)कोई नाता, खुशियाँ देने घूम रहा हो..


सुंदर रचना बार बार पढ़ी
कभी किसी ने बुझे दिए पर शमा जलाते देखा
जले दीये पर शमा को मौज मानते देखा

केवल राम ने कहा…

जाने कितने गम के मारे, इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी, फिर अपना गम बांच रहे हैं..

यही तो इसकी खासियत है लेकिन जैसे ही नशा उतरता है फिर गम - गम रह जाता है जीवन का यह क्रम अनवरत चलता रहता है , गंभीर और सार्थक पंक्तियाँ ..आपका आभार

राहुल सिंह ने कहा…

और दिन बीतने दें, 'और पुरानी हो कर मेरी और नशीली मधुशाला'

Satish Saxena ने कहा…

आज फर्स्ट अप्रैल को मधुशाला और मधुबाला की याद ??
क्या बात है भाई जी :-)

Vandana Pushpender Yadav ने कहा…

समीर लाल जी,
आप की रचना "ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!" पढ़ी, मन में बस गई है यह ग़ज़ल इस की रेकॉर्डिंग भी उपलोड करें इंतज़ार रहेगा | शुभ कामनाओं के साथ - वंदना पुष्पेन्द्र

बवाल ने कहा…

अहा महाराज क्या कहना है बहुत ख़ूब !
लाजवाब !!
कल ही तो हाला जाये का कागज लेकर धुन शुन शब्द वब्द देख रहा था कि भाई एडवर्ड मैथ्यूस (आयकर विक्रय कर वाले) का फ़ोन आ गया कि "बड्डे आपका खुद का रिटर्न ए.वाय. २००९-१० का टाइम बार्ड होने वाला है यू बेहोशोहवास विथ किल्लतोकस्रत"
तो बस सिर पर पैर रखकर भाग लिए उनके दफ़्तर। अब जानते तो हो आप भी कि हमें देखकर हमारे विभिन्न मित्र (आपको छोड़कर) न जाने क्यों हरदरया से जाते हैं। राम रटके रिटर्न बना और ३० सेकंड बाक़ी रहते इन्कम टैक्स के दफ़्तर में दाख़िल किया गया। हा हा।

अब आपै बतैयो, के जौन के ऐंसे जमाने चल लै हौं, बौ तो खुदै टाइम-बार्ड टाइप को हो गओ है, ओ से का उम्मीद करैं ? हा हा।

आचार्य ज्योति-प्रकाश, रिछारिया जी, डॉ. अश्विनी पाठक, डी.एक्स.एन. वाले अनूप श्रीवास्तव और बैरागी जी आदि ने हमारे साथ एक पैनल बना ली है इसी काम की फ़ण्डिंग के लिए।
जिसमें "लाल-और-बवाल जुगलबंदी" के बैनर तले, इस जुगलबंदी की कुछ चुनिंदा ग़ज़लें रिकार्ड करके तमाम आलम में पेश की जाएँगी की जायेंगी। धुनों में थोड़ा आधुनिक फ़्यूज़न की ज़रूरत महसूस की जा रही है, दर‍अस्ल।
खै़र तब तक के लिए .................
हा हा।

Vandana Pushpender Yadav ने कहा…

समीर लाल जी,
आप की रचना "ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!" पढ़ी, मन में बस गई है यह ग़ज़ल इस की रेकॉर्डिंग भी उपलोड करें इंतज़ार रहेगा | शुभ कामनाओं के साथ - वंदना पुष्पेन्द्र

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

हमने तो खुद ही गा कर पढ़ी..

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

दूसरी मधुशाला बन रही है। बधाई।

पद्म सिंह ने कहा…

दर्देगम जो और बढ़ा दे
वो मर्ज ही न पाला जाए!!

वोई तो ... समझता ही नहीं कोई

राजेश उत्‍साही ने कहा…

व्‍यर्थ तो कुछ भी नहीं जाना चाहिए।

Patali-The-Village ने कहा…

जाने कितने गम के मारे, इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी, फिर अपना गम बांच रहे हैं..
गंभीर और सार्थक पंक्तियाँ| धन्यवाद|

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

दर्देगम जो और बढ़ा दे
वो मर्ज ही न पाला जाए!!

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

फूलों की जो गंध चुरा ले, और भौरों सा झूम रहा हो..
गम से जिसका न (कु)कोई नाता, खुशियाँ देने घूम रहा हो..
देखी जो गैरों की खुशियाँ, अपनी किस्मत चूम रहा हो..

उसी प्याले में पैमाना
भर भर करके ढाला जाए!
उपरोक्त पंक्तियाँ !मुझे ऐसा संदेश देती लग रही हैं कि जो मदिरा अपने ग़म को भुला दे वह नहीं बल्कि वह मदिरा ग्राह्य है जो 'देखी जो गैरों की खुशियाँ, अपनी किस्मत चूम रहा हो..' ! वह मदहोश करनेवाली मदुरा क्यों पियेगा होश आने पर फिर उस ग़म की याद तो उस हाला की व्यर्थता की द्योतक है .अपने पैमाने में दूसरों से सुख से आनंदित होने वाला आसव ढालना ही मुझे अभिप्रेत लग रहा है !

Girish Kumar Billore ने कहा…

हां बवाल के झूठे वादे
मैं भी बहुत दु:खी हूं साथी
कुम्भकरण अपना बवाल है
दिखे न इनको हौदा-हाथी
है बवाल वो एक सितारा
चच्चा की आंखों का तारा
इसे जगाओ- ढोल बजाओ
जागा तो होगा उजियारा..!!

Girish Kumar Billore ने कहा…

रही गीत बात समीरा
"गीत-अनोखा" अदभुत अनुपम
तुम भी गज़ब लिखा करते हो
प्यालों से पीते हो शबनम

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

पढ़ कर मज़ा आ गया सर!

सादर

Arun sathi ने कहा…

उम्दा।

बहुत खूब लिखा सर जी।

संजय भास्‍कर ने कहा…

समीर जी
पांच बार पढ़ चूका हूँ पर मन ही नहीं भरता

रश्मि प्रभा... ने कहा…

दर्देगम जो और बढ़ा दे
वो मर्ज ही न पाला जाए!!

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!waah

sanu shukla ने कहा…

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!!

बहुत ही बेहतरीन रचना भाईसाहब ...!!

Rajeysha ने कहा…

समीर जी अप्रेल की पहली तारीख, बधाई हो।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

पहली बार लगा कि बच्चन जी की मधुशाला की पंक्तियाँ हैं... यही इस गीत का जादुई असर है...

Sushil Bakliwal ने कहा…

दो हफ्ते इस गम में पी की बिछडा है दिलदार मेरा,
दो हफ्ते इस खुशी में पी कि मुझको मिला प्यार तेरा.

सिलसिला चलता रहे. सृजन रंग जमता रहे..

आभार...

Arunesh c dave ने कहा…

पढ़ पढ़ चढ़ती व्यर्थ न ये सुंदर हाला जाए ।

समीर जी इसे किसी पुस्तक रूपी मघुशाला मे डाला जाये ॥

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

वाह वाह, हम भी झूम लिए रचना पढकर !

Arvind Mishra ने कहा…

बच्चन की मधुशाला याद हो आयी !

Unknown ने कहा…

जग जाहिर सी यह बात रही कि वो तो बस एक ठगनी है...
होश लूट कर ले जायेगी, इतनी ही उसकी करनी है....

मदहोशी की राह दिखा कर
कब वो गुम हो बाला जाए!!

sundaram sun-d- ram...

jai baba banaras....

shikha varshney ने कहा…

ओह हो हो मुझे तो इस रचना के खुमार में ये तस्वीर वाली बोतलें भी झूमती सी लग रही हैं:)

मेरे भाव ने कहा…

रचना पढ़कर मन झूमने लगा. निश्चित ही इस गीत की रिकार्डिंग होनी चाहिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जाने कितने गम के मारे, इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी, फिर अपना गम बांच रहे हैं..
अब तक किसका गम हर पाई, क्यूँ न इसको जांच रहे हैं...

दर्देगम जो और बढ़ा दे
वो मर्ज ही न पाला जाए!!

बहुत सुन्दर ...हर छंद अलग बात कहता हुआ

PRAN SHARMA ने कहा…

BAHUT KHOOB ! LAJAWAAB !

ZARAA MERE MUKTAK PAR BHEE

GAUR FARMAAEEYE -

YAAD KARTE DIN RAHE BEETE HUE

LADKHADAATE THE KABHEE REETE HUE

KYA ZAMAANE MEIN HUAA KISKO KHABAR

RAAT SAAREE KAT GAYEE PEETE HUE

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (2.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

Satish Chandra Satyarthi ने कहा…

बढ़िया.... :)
रिकार्डिंग आये तो और मजा आएगा सुनने का..

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

पोस्ट पढ़े बिना उधर हम बजबजा आये थे..
अभी रचना पढ़ मन आनंदित हो गया. बेमिसाल...!!

"गम से जिसका न कुई नाता, खुशियाँ देने घूम रहा हो..
देखी जो गैरों की खुशियाँ, अपनी किस्मत चूम रहा हो.. उसी प्याले में पैमाना
भर भर करके ढाला जाए! ओ साथी! वो मधुशाला आए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए!! "
(अगर मैं यह कहूँ ये मेरी जिंदगी का सच है तो ये गलत नहीं है.)

गुनगुनाने योग्य सुन्दर गीत. रचनाकार को ताज पहनाने की आवश्यकता है. दिल से माला तो पहना ही चूका हूँ.

मनीष सेठ ने कहा…

bahut shandar rachana,jhoom uthe ham padkar

मनोज कुमार ने कहा…

अध्यात्मिक भाव की अनुभूति हुई।
जीवन कभी व्यर्थ न गंवाया जाए, और इसके सार तत्व को निर्माण के लिए लगाया जाए।
अद्भुत, सुंदर।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

क्या बेहतरीन लिखा है, पढ़कर आननद आ गया।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

समीर जी,
हीरे में चमक होनी चाहिए
सोने में दमक होनी चाहिए
फूलों में महक होनी चाहिए
कविता में कसक होनी चाहिए.
आपकी कविता में मैंने कवि के अंतर्मन की कसक पाई इन दो पंक्तियों में......
अपने ही कर्मों के फल का
ये अभिशाप न टाला जाए!!
उम्दा कविता........

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

‘भूल गया था शायद वो यह, इस गम का कारण भी हम हैं...’

तो फिर, बवाल क्यों :)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत बढ़िया ....कमाल के शब्द ...
बेमिसाल बन पड़ी है रचना

Ashok Pandey ने कहा…

समीर भाई, बहुत सही जगह और सही शब्‍दावली में ऑप्‍शन लगाया है आपने। हम भी ऐसा ही करेंगे। ..इस शानदार आइडिया के लिए आभार :)

ज्योति सिंह ने कहा…

वाकिफ तो हूँ उनकी आदत से, मुकर जाने की,
न जाने क्यूँ फिर भी इन्तजार किये जाता हूँ मैं..

जाने कितने गम के मारे, इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी, फिर अपना गम बांच रहे हैं..
bahut khoob

डॉ टी एस दराल ने कहा…

पढ़कर हरीवंशराय बच्चन याद आ गए । और उनकी मधुशाला , अमिताभ की आवाज़ में ।

बवाल ने कहा…

प्यारे लाल साहब,
अभी अभी राइट टाउन से आ रहे हैं। सारे रस्ते रोते हुए और आप को याद करते हुए। हमें अपने साथ ले चलो यार, वरना अगले बार तुम्हारा बवाल तुम्हें जीता न मिलेगा। बहुत रोये आज आपको याद करके और खूब गाये चचा को याद करके।

डाक्टर भंडारी कहते हैं कि अब दिल ज़्यादा साथ नहीं देगा। रोक लो मुझे रोक लो यार।

mridula pradhan ने कहा…

दर्देगम जो और बढ़ा दे
वो मर्ज ही न पाला जाए!!
bahut sundar likha hai....

किलर झपाटा ने कहा…

मीनाक्षी जी ब्लॉग के लिंक से आप तक चला आया। समीर जी, सच कहूँ, आप शायद ब्लॉगजगत के लिए एक वरदान हो। एक बहुत ही सुन्दर रचना। बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर कल्पना। आप और बवाल भाइजान की जोड़ी अमर रहे।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

छिः!! शराब की गंदी बातें करते हैं आप... बच्चों को बिगाड़ रहे हैं... बहुत गलत बात है सर.. :P

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

आदरणीय समीर जी ,
बच्चन जी की मधुशाला पढ कर जो आनन्द आता है उस आनन्द को ही पुन: महसूस किया !
बहुत सुन्दर लिखा है .....
सादर.

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर शायरी है .
हर एह लफ्ज़ दर्द-ए - दिल बयां कर रहा है -

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

फूलों की जो गंध चुरा ले, और भौरों सा झूम रहा हो..
गम से जिसका न (कु)कोई नाता, खुशियाँ देने घूम रहा हो..
देखी जो गैरों की खुशियाँ, अपनी किस्मत चूम रहा हो..

क्या बात है...कविता तो बहुत अच्छी लगी....धन्यवाद समीर जी

विष्णु बैरागी ने कहा…

तनिक बताइए कि आप कर क्‍या रहे हैं? खुद कन्‍फ्यूजिया गए हैं या हमें कन्‍फ्यूजिया रहे हैं? साफ-साफ बताइए कि आप 'इसकी' तरफदारी कर रहे हैं या मुखालफत?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

फूलों की जो गंध चुरा ले, और भौरों सा झूम रहा हो..
गम से जिसका न (कु)कोई नाता, खुशियाँ देने घूम रहा हो..
देखी जो गैरों की खुशियाँ, अपनी किस्मत चूम रहा हो..

उसी प्याले में पैमाना
भर भर करके ढाला जाए!

बहुत खूब !

गड़कने का चाहे तू अभ्यर्थ न हो,

किन्तु एक भी बूँद उसकी व्यर्थ न हो,

हाथों से छूट, टूटकर बिखर प्याला जाए ,

ओ साथी! व्यर्थ न मगर हाला जाए!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शिकवा वाजिब है!
रचना बेहतरीन लिखी है आपने!

vandana gupta ने कहा…

वाह समीर जी वाह्……………मज़ा आ गया…………सच संगीतबद्ध होने के बाद तो आनन्द दोगुना हो जायेगा…………बहुत ही पसन्द आयी।

सञ्जय झा ने कहा…

lakh piye.....do lakh piye kabhi nahi thakne wala.......hala nahi......apki kavita .........kasi hue......aur....
mast.....

pranam.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मान्यवर बच्चन जी के बाद आपकी रचना ही याद रखी जाएगी...क्या खूब लिखते हैं आप...कमाल...

नीरज

मीनाक्षी ने कहा…

प्रतिभाजी की टिप्पणी ने मन शांत कर दिया...

Vaanbhatt ने कहा…

अपने ही कर्मों के फल का
ये अभिशाप न टाला जाए!!

madhushala ya madhubala bechari kya kar lengi...

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

apne saath na koi saaqi, apne haath na koi pyala.
pataa nahin kab jana hoga , yaron hamko madhushala !

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

जाने कितने गम के मारे,
इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी,
फिर अपना गम बांच रहे हैं..

बहुत सुन्दर ... हर शब्द में गहराई....

सहज साहित्य ने कहा…

बहुत खूब समीर लाल जी !बेहतरीन क़्लाम के लिए बधाई !

मथुरा कलौनी ने कहा…

समीर जी
मदहोश कर दिया आपने।

कुछ इस तरह पिलाई जालिम ने
कि बस इतना ही होश रहा कि
होश खो बैठे हैं हम

रचना दीक्षित ने कहा…

अमृत घट से न छलके,व्यर्थ न हाला जाए।
बूंद बूंद का रस लें,जो मेरी मधुशाला आए॥

बहुत ही बेहतरीन रचना मन आनन्दित करती शानदार पोस्ट.

Amrita Tanmay ने कहा…

Bahut khubsurat..behtareen...sunne ka intjar hai..badhai

شہروز ने कहा…

umda!!! mubarakbad lijiye dil se!!

kumaratul453@gmail.com ने कहा…

SIR KYA LIKHA HAIN APNE BAHUT HI BADHIYA.

Patali-The-Village ने कहा…

नवसंवत्सर 2068 की हार्दिक शुभकामनाएँ|

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

समीर लाल जी, नवसंवतसर की हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी रचना लाजवाब है.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut acchhi lagi aapki ye madhushala.
badhayi.

rashmi ravija ने कहा…

जाने कितने गम के मारे, इसकी धुन पर नाच रहे हैं
जैसे ही मदहोशी टूटी, फिर अपना गम बांच रहे हैं..

क्या बात है...बढ़िया रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ओ साथी! क्यूँ मधुशाला जाए, ओ साकी! व्यर्थ न हाला जाए ...

Sameer bhai .... kyon chalka rahe ho aaj ...

virendra sharma ने कहा…

jahaan kahin mil baithhe hamtum vahin rahi ho madhushaalaa ,
laal suraa kee dhaar lapat si kehnaa ise denaa haalaa ,
hai nir madiraa kah n ise denaa ur kaa chhaalaa ,
dard nashaa hai is madiraa kaa ,vigat smritiyaan saakee hain ,
peedaa me aanand jise ho ,aaye meri madhushaalaa .
yaad aagai samirji madhushaalaa kee .sundar rachnaa .veerubhai .

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut khubsurat...

Vivek Jain ने कहा…

Wah!
Vivek Jain vivj2000.blogspot.com

seema gupta ने कहा…

फूलों की जो गंध चुरा ले, और भौरों सा झूम रहा हो..
गम से जिसका न (कु)कोई नाता, खुशियाँ देने घूम रहा हो..
देखी जो गैरों की खुशियाँ, अपनी किस्मत चूम रहा हो..

"कमाल बेमिसाल "
regards

Anita kumar ने कहा…

Bahut khoob har sher badhiyaa hai