पिछले दिनों वन्दना जी का ईमेल आया कि देर से इत्तला करने की माफी और जल्दी से जल्दी अपनी कोई ऐसी बेवकूफी का प्रसंग भज दें, जो यादगार बन गई हो, होली पर छापना है.
एक बार विचारा तो चारों तरफ अपनी बेवकूफियों का भंडार ही भंडार छितरा नजर आया. शायद नॉन बेवकूफी यादगार पूछी होती तो भेजने में समय लगता. तुरंत भेज दी. छप भी गई. अगर वहाँ न देखी हो तो यहाँ देख लें:
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एक दिन दफ्तर जाने के लिए सुबह सुबह ट्रेन पकड़ी. भीड़ तो काफी थी किन्तु बैठने के लिए सीट मिल गई. अब तक ट्रेन पूरी भर चुकी थी, शायद अगले स्टेशन से पकड़ते तो खड़े खड़े ही जाना पड़ता एक घंटे ऑफिस तक.
अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो बहुत से लोग और चढ़े. अब ट्रेन में भी कुच्च्मकुच्चा हो गई. ऐसे में शिष्टाचारवश लोग किसी बुजुर्ग या गर्भवति महिला या छोटे बच्चों के साथ आई महिला के लिए जगह खाली कर देते हैं और खुद खड़े हो जाते हैं. मेरे बाजू में भी एक महिला आ कर खड़ी हुई. देखा तो गर्भवति महिला थी अतः मैं अपनी सीट से खड़ा होकर उनसे आग्रह करने लगा कि आप बैठ जाईये.
उस महिला ने मुझसे कहा कि नहीं, मैं ठीक हूँ. आप बैठिये.
मैने पुनः निवेदन किया कि आप गर्भवति हैं, आपको इतनी दूर खड़े खड़े यात्रा नहीं करना चाहिये, आप बैठ जाईये. देर तक खड़े रहना स्वास्थय और आने वाले बेबी के लिए ठीक नहीं है.
उसने चौंकते हुए मुझे देखा और बोली- मैं..गर्भवति...यू मस्ट बी किडिंग (आप जरुर मजाक कर रहे होंगे) और वो मुँह बनाकर डिब्बे के दूसरी तरफ चली गई.
मैं झेंपा सा अपने आस पड़ोस वालों को देखने लगा. सभी मुस्करा रहे थे. मैने तो बस उसका पेट देख अंदाजा लगाया था. काश, मैं मोटी महिला और गर्भवति महिला का स्पष्ट भेद जानता होता.
मगर अब हो भी क्या सकता था-बेवकूफी तो कर ही बैठे थे. सो अपना सा मुँह लिए वापस बैठ गए सर झुकाये और राम-राम करते रहे, कि जल्दी से जल्दी मेरा स्टेशन आये और मैं उतर कर गुम हो जाऊँ भीड़ में.
आज भी जब यह वाकिया याद आता है तो अपनी बेवकूफी पर एक बार फिर शरम आ जाती है.
चलते चलते:
कभी न रहा शर्मिंदा मैं, नमालूम वाणियों की सूफियों से
मगर मैं बच नहीं पाया, गुजर कर अपनी बेवकूफियों से...
और फिर:
खाली बैठा
आज
रोजानामचा (ट्रायल बैलेन्स) बनाता रहा
अपनी समझदारी
और
बेवकूफियों का...
बेवकूफियों का पलड़ा
भारी निकला...
और
अपने हल्केपन को भूल
समझदारियाँ
भरती रहीं
अपनी समझ की
दंभ भरी
उड़ान......
-कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे
जो चंद साँसों में फूल जाते हैं....
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं... (शायर नामालूम)
-संस्मरण द्वारा समीर लाल ’समीर’
85 टिप्पणियां:
कम से कम एक बात के लिए शुक्र मनाइए की मार नहीं लगी। सरजी ऐसी लगती दुबारा नहीं करीएगा। हां बेबकुफियांे का खाता लंबा है इस लिए आज जिंदा है।
कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे
जो चंद साँसों में फूल जाते हैं....
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं.
.
इसी लिए तो कुछ देर मैं ही फट जाते हैं
.
समीर जी आप मुंबई मैं होते तो अपने स्टेशन के पहले ही उतर जाते :) , अब यह कौन समझाए कि हमारी आंखें सोनोग्राफी के लिए काफी नहीं हैं.
कोई गर्भवती हो या मोटापे के कारण ऐसी लगती हो - दोनों ही अवस्थाओं में उसे "बेवकूफियों का पुलिंदा" कहा जा सकता है |
गुरुदेव,
यू मस्ट बी किडिंग...
जय हिंद...
हा हा हा .... सोच कर ही आपकी स्थिति समझ में आ रही है. इस तरह की बेवकूफियां सभी के जीवन का हिस्सा होती हैं. :-)
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं...
सटीक :)
अपने जीवन में हम बहुत सी ऐसी हरकतें कर जाते हैं जिन्हें बाद में याद करने करने पर झेंप होती है...
यही लगता है "कित्ता गधा था मै"
मान गए सर... आपकी पारखी नज़र... और निरमा सुपर ........!!! :)
अरे वाह!
यहाँ भी गच्चा का गये मिस्टर!
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बेवकूफी अब अपनी बात से उड़न तश्तरी पर भी आ गई!
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बढ़िया रहा आपका संस्मरण!
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चर्चा मंच में भी इसका लिंक लगाया है!
बड़ी शरीफ महीला थी जो आपको यूँ ही छोड़ दिया
या फिर आपने ही असली बात यहाँ गोल कर दिया!
...हा..हा..हा..।
मैंने तो कभी नहीं देखा कि किसी महिला ने अपने से किसी बुजुर्ग महिला के लिए भी कभी सीट छोड़ी हो। सीट छोड़ना तो मानो पुरुषों का ही कर्तव्य है। पुरुषों को अब यह मौगपन बंद करना चाहिए।
ये बेवकूफियां जो न करवाएं।
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
ब्लॉगवाणी: अपने सुझाव अवश्य बताएं।
कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे
जो चंद साँसों में फूल जाते हैं....
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं.
वाह! आपकी पारखी नज़र.....
मैं भी आप की तरह ही हूँ अक्सर फंस जाता हूँ !जो अपना होगा वह इसे "सरलता" और गैर, "गधा" कहते हुए हँसते हैं !शुभकामनायें !!
:-))
इसे आप बेवकूफी नाम दे रहे है।
मन में भरा परहित का भाव, परहित करने में असफल रहा बस।
क्यों ठगे से महसुस करें
शुभकामनाएँ
-
अस्थिर आस्थाओं के ठग
देवेन्द्र जी का सवाल वाजिब लगता है. क्या इसका ज़िक्र अगली होली में करने का इरादा है.
लेकिन यह सही कहा की बेवकूफियां एक हो तो बताएं. यह तो डेली सोप है कभी न खत्म होने वाला.
बढ़िया संस्मरण.
ऐसी या इस से मिलती जुलती बेवकूफियाँ तो हम से भी हुई हैं और हो जाती हैं।
महिला की शराफत का संस्मरण लग रहा है यह कि उन्होंने बुरा नहीं माना (संभव है कुंवारी रही हों) और सीट नहीं लपकी उन मोहतरमा ने.
ये बेवकूफियां जो न करवाएं।
आप की इस बेवकूफी में भी एक सुन्दर व्यक्तित्व की झलक आयी है.
पर वो महिला बैठी क्यों नहीं.
आपने यह क्यों नहीं कहा कि अगर आप गर्भवती नहीं हैं तो भी बैठिये.
कुछ मोटापे को भी सम्मान दीजिये.
सलाम.
अक्सर लोग (ना)समझदारी के भ्रम में ही बेवकूफियाँ करते है.
कभी न रहा शर्मिंदा मैं, नमालूम वाणियों की सूफियों से
मगर मैं बच नहीं पाया, गुजर कर अपनी बेवकूफियों से... hahaha
अपने हल्केपन को भूल
समझदारियाँ
भरती रहीं
अपनी समझ की
दंभ भरी..
विचार करने योग्य बात कही है ... और संस्मरण पर तो पहले ही आनंद ले चिके :)
हा हा हा हा हा हा हा
यू मस्ट बी किडिंग... हा हा हा हा
अब कोई आपको कहे '''' आई सी यू ... तो
मुझे ऐसी किसी घटना पर मीट द पेरेंट्स की पूरी सीरीज याद आ जाती है...
हा हा हा हा .... आई सी यू...
-कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे
जो चंद साँसों में फूल जाते हैं....
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं.. :):)
bahut achcha laga yah hasymay sansmaran.
ऐसी बेवकूफियां तो हम सब करते हैं. चलता है जी :)
:) :)
वहाँ ही पढ़ ली थी... :)
बेवकूफियां : करते समय सही लगती हैं, हो चुकने पर बेवकूफी लगने लगती है ।
agar aapne koi haseen galti ki hoti, to shaayad uski achchi pratikriya milti.
आपके साथ ट्रेन में होने वाले हादसे बड़े दिलचस्प होते हैं, "देख लूँ तो चलूँ" के एक किस्से को पढ़ने के बाद तो ऐसा ही लगा कि आपकी जगह में होता वहाँ
अब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!
-कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे
जो चंद साँसों में फूल जाते हैं....
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं.
कमाल की बात कही है जिसने भी कही है.
आपकी बेबकूफी वंदना जी के ब्लॉग पर ही पढ़ ली थी.वहां भी हंसी नहीं रुक रही थी यहाँ भी नहीं रुक रही है :):)
MAHILA KO AAPKA SHUKRGUZAAR HONA
CHAHIYE THA AAPKEE BEWAQOOFEE PAR.
ये तो मासूमियत है.
रामराम.
सही में कितना अच्छा लगता है, अपनी बेवकूफियों पर फुर्सत में मन ही मन मुस्कुराना... अगर हम ये बेवकूफियां न करें तो अकेले में अपने पर हसने का मौका कोई और न मिलेगे..
कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे
जो चंद साँसों में फूल जाते हैं....
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं..
एक नयी फिलोसोफी के लिए आभार.
पता नहीं किसकी बेवकूफी थी। आप तो एक महिला को सीट दे रहे थे, उसने इस लिये नहीं ली कि वह गर्भवती नहीं थी। बहस का विषय है।
वैसे गे परेड में डांस वाला भी डाला जा सकता था।
ha ha ha ha ha ha ha ha
jabardast hai sir ji....!!
हम ये बेवकूफियां न करें तो अकेले में अपने पर हसने का मौका कोई और न मिलेगे..
jai baba banaras....
बहुत सुन्दर .सार्थक लेख और बेवकूफी ..कभी - कभी ऐसा भी हो जाता है ! धन्य है आप जो उस महिला ने थप्पड़ का इस्तेमाल नहीं किया !
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा अति उत्तम असा लगता है की आपके हर शब्द में कुछ है | जो मन के भीतर तक चला जाता है |
कभी आप को फुर्सत मिले तो मेरे दरवाजे पे आये और अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाए |
http://vangaydinesh.blogspot.com/
धन्यवाद
हटना आप को वहां से था, सरक वो ली :-)
ye sirf aapki hi nahi us mahila ki bhi nek niyati thi ki usne seat nahi li ...aur kya pata agle din se seriously dieting shuru kar di ho....kuchh bhi ho ek panth do kaj ho gaye ye to....
उसने कहा और आपने मान लिया ।
ये भी तो हो सकता है कि --she must be kidding . ha ha ha !
sameer ji aapki upar ki personality dekh ke lagta hai ki niche bhi personalta hoga...shaayad isis liye us mahila ne socha hoga baithne ki zaroorat aap ko zyada hai...vakai bhali mahila thi...zindagi ka luft to bevkoof hi uthate hain...samajhdaar hote to blog ke liye wakt kahan se nikalte...
खुशदीप से सहमत।
केवल हास्य के रूप में लिया है, वर्ना आप ऐसी बेवकूफ़ी करने वालों में से नहीं नहीं है जो गर्भ वती और ....
में फ़र्क़ न समझे।
@ अपने हल्केपन को भूल
समझदारियाँ
भरती रहीं
अपनी समझ की
दंभ भरी
उड़ान......
--- ये उड़ान उड़न तश्तरी कब बनी, उस पर भी प्रकाश डाला जाए।
कभी न रहा शर्मिंदा मैं,
नमालूम वाणियों की सूफियों से
मगर मैं बच नहीं पाया,
गुजर कर अपनी बेवकूफियों से...
अपनी बेवकूफियों को स्वीकार करना ही सबसे बड़प्पन की बात है...और यह खूबी आपमें है...
कोई अक्लमंदी की बात पूछे तो सोचना पड़ता है... :)
वंदना जी की के ब्लाग पर भी पढा तक कल, और आज यहाँ भी,
इंसान अपनी बेवकूफियो से ही तो सीखता है
कविता अच्छी लगी
हो जाता है कभी-कभी ऐसा भी .महिला को आराम से बैठ जाना चाहिये था - वे भी बेवकूफ़ी कर गईँ !
ऐसी मज़ेदार बेवकूफ़ी है न ये, कि क्या कहूं? हंसी के मारे बुरा हाल हो गया.
:-))) you must be kidding.....!
Main us samay ko soch kar aur aap ka chehra yaad kar ke abhi bhi muskura raha hun........
Sir aap apni be.....fiyan chalu rakhiye aur ham logon se batate rahiye.....baki kaam ham log samhal lenge...
विचार करने योग्य बात
सुन्दर सार्थक लेख
vah sir such main its funny
bahut khoob
holi aur rangpachami ki dher saari subhkamnaye...
visit
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
सीट के मामले में महिलाएं एकदम ढीठ होती हैं। फिर भी,पुरुषों को अपनी सदाशयता जारी रखनी चाहिए।
just think of what she must be thinking about her...must have started exercising on the same day...
हा हा हा हा हा .... हँसते हँसते लोटपोट हो गयी हूँ... हा हा हा ...
pata nahi wo alag dibbe me gayi ya aap...........
waise lekh majedaar hua hai
अपनी बेवकूफियो से ही इंसान सीखता हैऔर बहुत सुन्दर बेवकूफी...........
समीर जी ,
ये बेवकूफ़ी नहीं ,अपितु मानवता अभी दुर्लभ नहीं है बताता है ।
बेवकूफ़ी तो उस महिला ने की थी मिली सीट को छोड कर ...
सादर !
कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे
जो चंद साँसों में फूल जाते हैं....
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं... (शायर नामालूम)
बहुत ही जोरदार प्रस्तुति . अंतर की सोच पर बहुत ही हंसी आ रही है ......आभार
ऐसी यादगार बेवकूफियां अनायास ही चेहरे पर हंसी ले आती हैं. पर यह बेवकूफी नहीं किसी के लिए सद्भावना थी.
इस क्रम को यहीं रोक दीजिएगा। प्लीज। वर्ना होगा यह कि हम पढ रहे होंगे आपकी लिखी हुई और लग रही होगी अपनी की हुई।
बहुत मज़ेदार लगा! वाह क्या बेवकूफी है! सुन्दर कविता!
बहुत ही मनोरंजक संस्मरण ! पढ़ कर आनंद आ गया ! होली की शुभकामनाओं के लिये तो कुछ विलम्ब हो गया है लेकिन होली की खुमारी अभी कम नहीं हुई है उसीकी शुभकामनायें स्वीकार कर लीजिए ! बधाई एवं आभार !
हा हा हा ......... पर ये कोई गलती तो नहीं थी ...........
यू मस्ट बी किडिंग...
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जब भी खिलखिलाकर हंसने का मौका मिला है , वो मुझे अपनी और मित्रों की बेवकूफियों पर ही मिला है । संजो कर रखने वाले होते हैं ऐसे अनमोल और यादगार पल ।
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aap bhi na...aise kahte hain kya...!!
कभी कभी ऐसा भी होता है |
यह बहुत मज़ेदार है मगर जो समलैंगिकों की बारात में शामिल होने वाला संस्मरण था, और भी मज़ेदार था।
muskurahat deney ke liye shukriya :)
ha ha ye bhi khub rahi:)magar anjani mein huyi galati.
कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे
जो चंद साँसों में फूल जाते हैं....
थोड़ा ऊपर उठ जायें तो
औकात भूल जाते हैं.
बढ़िया है
जाट देवता की राम राम,
अब दुबारा कुछ करने से पहले सोच जरुर लेना ।
समीर जी
हिमाकत शेयर करने के लिये धन्यवाद।
आपके साहस की दाद देते हैं।
बहुत सुन्दर बेवकूफी| धन्यवाद|
ha ha ha ha ha ! :) bahot khoob !
:D
हा हा हा हा। बच गए गुल्फाम।
very nice...
आदरणीय सर जी, नमस्कार आपकी बेवकूफी को मैंने अपने साहब श्री अनूप शुक्ला जी की अनुकम्पा से आदरणीय वन्दना जी के ब्लॉग पर पढ़ा, पढ़ कर बहुत अच्छा लगा, वाकई पूरी मासूमियत के साथ आपने अपने द्वारा कीगई बेवकूफी बयान की है बहुत बहुत धन्यवाद.....
:-)
बेवकूफीयोंका पुलिंदा हमेसा ऐसा सहज तवर से आता नही ।
समीर लाल जी नमस्कार आप की उड़न तश्तरी में बैठ हमने भी सुन्दर , अद्भुत रंगों वाली
दुनिया देखी बहुत अच्छा प्रयास अच्छी रोचक मस्ती भरी होली मोटापा -चर्वी -आनंद आया
हम भी आप सब के साथ अपना भ्रमर का दर्द और दर्पण ले बढ़ चले हैं आशा है आप इस पर भी आ
हिंदी को अपना समर्थन मार्ग दर्शन देंगे
सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर५
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