ये स्कैचिंग वाले भी-इनका तो क्या कहें. ये जो न करवा दें, कम ही है.
कितने ही आतंकवादियों की, कितने हत्यारों की, कितने चोरों की स्कैच बना चुके. क्या कोई जानकारी रखता है कि इस आधार पर कितनों को पकड़ पाये आज तक?
इस डिपार्टमेन्ट का औचित्य ही समझ के परे है और इनकी कला का नमूना तो क्या कहा जाये, आप ही देखिये इस उदाहरण से.
अब देखिये, एक प्रदेश की मुखिया. मुखिया हैं तो व्यस्त तो होंगी ही, काहे क्यूँ पूछते हो-बहुत प्रश्न करते हो यार-कथा सुनों न बस!! हाँ तो इतना बड़ा प्रदेश, सो ताकतवर भी होंगी ही और ताकतवर हैं तो गुस्सवर भी होंगी. दुबला पतला कोई क्या दम दिखायेगा, उल्टा मार ही खा जायेगा.
अब व्यस्त है और उस पर भी फोटो खिंचवाई ताकि उसके आधार पर मूर्तियाँ बन जाये तो उसे पार्क में लगवा दें और दलितों का उसके दर्शन प्राप्त कर उत्थान हो जाये. टोटल फंडा पत्थर पूजन वाला. जब केसरिया पत्थर पूज पूज कर लोगों का भला हुआ जा रहा है, सारे संकट मूँच जाते हैं तो यह तो संगमरमरी बनना है. इत्ता मंहगा कि भला तो होना तय ही है, कम से कम तब तक, जब तक की मूर्तियाँ लगी रहती हैं. शायद मुखिया बदले तो मूर्तियाँ बदलें.
चेले फोटो मूर्तिकारों के सरगना को दे आये कि ऐसी ६० संगमरमर की मूर्तियाँ बना कर पार्क में लगनी है. मामला मुखिया का है इसलिये टाईम सेन्सेटिव है और ताकतवर मुखिया है इसलिये कोई मुर्रुव्वत नहीं. सबसे जरुरी बात यह है मामला सीधे दलितों के उत्थान से संबंधित है अतः टॉप प्रियारिटी पर किया जाना स्वभाविक प्रक्रिया है, इसे समझाया जाना आवश्यक नहीं, यह तो खुद ही समझ आ जाना चाहिये.
बड़ा ठेका वो भी सीधे मुखिया के दरबार से. ठेकेदार प्रसन्न हो लिया और इसके इजहार की जैसी सामान्य प्रक्रिया है-मित्रों और अधिकारियों के साथ जम कर पार्टी चली और खूब पी पिलाई गई.
शराब का नशा और उस पर से ऐसे विकट ठेके की मस्ती याने तीन गुना नशा और इस चक्कर में सेंपल में आई फोटो न जाने कहाँ गुम गई?
इतनी बड़ी भूल..कैसे सुधारें. मुखिया से तो कह नहीं सकते कि फिर एक हाथ उठा कर टाटा बाय बाय वाली नजाकत में फोटो खिंचवाओ और कम से कम ऐसी मुखिया से जो ताकतवर भी हो अतः गुस्सवर भी.
साथ पीने पिलाने का फायदा कुछ तो मिलना ही था. नये मित्र अधिकारियों से बात की गई. उस रात पार्टी में सभी ने कनखियों से उस फोटू को निहारा था. एकजुट मिल तय पाया गया कि पुलिस स्कैचिंग डिपार्टमेन्ट से मदद ले फिर से वैसा ही स्कैच बनवा लेते है और मूर्तियाँ तैयार करा लेंगे.
सबने अपने अपने ब्यौरे स्कैचिंग अधिकारियों को दिये और मुखिया की सेवा सुसुर्शा में व्यस्त भये.
स्कैच तैयार हो गया. वैसा ही जैसा हर बार तैयार होता है और पुलिस उस स्कैच के आधार पर मशक्कत करके हार जाती है. मूर्तियाँ निश्चित तिथि पर तैयार हो पार्क में पहुँच गईं, आप भी देखें कि क्या तैयार हुआ इन स्कैचिंग वालों की कला के चलते, अब भई जैसा डिस्क्रिप्शन दिया था वैसा बना दिया. मुस्कराने की जरुरत नहीं है, खुद ही जुबानी संरचना देकर स्कैच बनवा कर देख लो, करो जरा जुबानी विवेचना कि क्या बताओगे:
और आप तो जानते ही हैं कि टाईम बॉड में प्रोग्राम में उतना समय तो होता नहीं कि त्रुटियाँ सुधारी जा सके, वो तो बस सनातन सरकारी परंपरा का पालन करते हुए आदतन ढाकीं जा सकती हैं और वो भी एक दो नहीं जब पूरी साठ हों.
अब या तो पूरा प्रोजेक्ट पुनः जारी किया जाये या इनको ही एडजस्ट करें किसी तरह, जिस एडजस्टमेन्ट में तो पूरा मोहकमा सिद्ध हस्त है ही. छः दिन बचे हैं तो उसमें तो एक प्रति दिन के हिसाब से भी लगायें तो छः ही मूर्ति बन पायेगी सो वो फिर से बनाई गईं फोटो खींच कर.
अब ठेकेदार का क्या हुआ और उन अधिकारियों पर क्या गाज गिरी, यह इस आलेख की विषय वस्तु नहीं है और बँधा हुआ लिखना भी तो टाईम बॉउंड प्रोग्राम है, वरना तो लिखते ही रह जायें. स्कैचिंग वाला भी कहाँ बाजू में खड़े आदमी की फोटू स्कैच करता है मात्र मुख्य पात्र के- तो हम क्यूँ लिखें उन ठेकेदारों और अधिकारियों के बारे में.
अब समझे इत्ते सारे कहाँ से आ गये?
सुरक्षा कवच (डिसक्लेमर): यह पोस्ट मात्र स्कैचिंग में हो रही भूल का नमूना प्रदर्शीत करने के लिए है. अन्य किसी आत्मा या परमात्मा से इस पोस्ट का कुछ लेना देना नहीं. अगर कोई फिर भी आहत हो ही जाता है तो सूचित करें, हटाने का प्रयास किया जायेगा.
गुरुवार, जुलाई 16, 2009
इत्ते सारे..बाप रे!!
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88 टिप्पणियां:
सूचना : कोई आहत हुआ है :)
@ विवेक
तुम आहत हुए, पोस्ट अपने उद्देश्य में सफल रही. खुद को साधुवाद दिये देता हूँ. हा हा!!
:) जय स्कैचिंग डिपार्टमेंट की
मामला जरूरत से ज्यादा गम्भीर है नही तो आप इस संवेदन शील मसले पर यह पोस्ट नही लिखते । आपकी यह पोस्ट काफी कुछ कह रही है ।
क्या अब भी आप यही कहेंगे ..स्केचिंग विभाग की जरुरत क्या है ??
क्या गजब ढाया है आपने. एक स्केच के नाम पर कितनों की फोटो उतार दी है आपने. यह टाइम बाउंड कार्यक्रम बहुत ही प्रभावी है. अब आपने मुखिया की सवारी भी दे ही डाली है नाम में क्या रखा है? मजेदार है.
यह किसी मुखिया का मुजस्समा कहाँ है -यह तो मुखिया के मुखौटे का है !
मजेदार!
समीर भाई,
पढ़कर अच्छा लगा आपकी यह पोस्ट काफी कुछ कह रही है .....
हमेशा की तरह रोचक पोस्ट। लेकिन समीर भाई क्या हमलोगों का भी कभी स्क्रैच बनेगा?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
वैसे हिन् धरती पे जगह कम है और इत्ते सारे और आ गए...कोई सोंचता ही नहीं. आप सोंच रहे हैं...साधुवाद इसके लिए.
अजी हम तो पोस्ट पढ़ के आहत हो लिए है.. और देखिये आपको सूचित भी कर रहे है.. अब देखते है कि आप पोस्ट हटाते है या नही..
अब समझ आया असली माजरा.. बहुत अच्छा..
कनाडा में बैठकर मजे ले रहे हैं? कभी इधर आइए तो पता चले। जब SC/ST Act डण्डा पड़ेगा तो सारी स्केचिंग भूल जाएगी। यह सब माफ़ी के लायक नहीं रह जाएगा। :)
rochak:)ye skechingwale bhi na:):)...
aapke ishaare ko najar andaaj nahi kiya jaana chahiye magar kaun sochataa hai is taraf .... bakayadaa aur tasvire lijayenge.....
badhaayee
arsh
लगता है यह पोस्ट उन्हीं को पढ़्वा देनी चाहिये ;)
रोचक ...हटाने का प्रयास जारी रखे :) सूचित कर दिया गया है आपको ...वोट गिनते जाए इस सिलसिले के :)
हटाने का प्रयास किया जायेगा...हा हा हा बहुत मेहनत करनी पड़ती है हटाने में :) :) कौन से सरकारी विभाग के मुखिया हैं आप? :) :)
सबने कहा मुख्या हाथी जैसा है, ट्स से मस नहीं होता. ऐसे में कलाकार का क्या दोष?
इत्ते सारे हाथी बाप रे बाप । मुझको तो ये सोचते हुये भी डर लगता है कि अगर ये सब एक दिन पागल हो गये तब क्या कहर ढायेंगे । झकास-----
कुछ कुछ समझ गया लेकिन फिर भी इत्ते सारे। थोड़ा थमकर दोबारा पूछ तो लिया होता। :)
इस इक लेख में कई सारी पोले खोल दी हैं समीर जी आपने !
बहुत खूब
अगले लेख का इंतज़ार रहेगा :)
सही कहा आपने समीर जी दलितों का उत्थान सिर्फ और सिर्फ मूर्तियाँ लगवाने से ही हो सकता है जितनी ज्यादा मूर्तियाँ लगेंगी उतना ज्यादा उत्थान होगा . अभी तो बस शुरुआत ही हुई थी उत्थान की कि लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया ( इनका उत्थान देखके जलते हैं ना सब ) वरना ये इतना दलित उत्थान करवाते कि फिर कभी दलितों को उत्थान कि जरुरत ही नहीं पड़ती .
सही है .. सत्य तो लिखना ही पडता है .. कोई आहत हों तो क्या किया जाए ?
समझ गया गुरूदेव्।
आहत हुए क्योकि सुप्रीम कोर्ट ने भी हथियार डाल दिए इन बुतपरस्तो के सामने . अपनी ख़ुशी के लिए आज के सुलतान सिर्फ २००० करोड़ खर्च नहीं कर सकते पहले के भी तो ताजमहल जैसी फालतू चीजे बनवा चुके है
मुझे ये आजतक समझ नहीं आया की हम अपनी या महा-पुरुषों की मूर्तियाँ बनवाते ही क्यूँ है...क्या बहिन जी ये को नहीं मालूम की कुछ सालों के बाद उनकी मूर्तियों पर कव्वे और कबूतर बैठ कर इतनी बींट गिराएंगे की ये बताना मुश्किल हो जायेगा की ये मूर्ती है किसकी...कुछ और सालों बाद मूर्तियों की नाक और कान लोग तोड़ डालेंगे...जब हमने एलोरा और खजुराहो की कलात्मक मूर्तियों को नहीं बख्शा तो ये मूर्तियाँ किस खेत की मूली हैं....कौन समझाए...सोते को जगाया जा सकता है लेकिन जागे को कौन जगायेगा...????
नीरज
Mudda ye hai ki kya ye haq humare rajneetigyon ko hai ki wo jeete ji apne aadesh se apni moortiyan ya apni party ke chinhon ko is terah pradarshit karne ke liye sarkari dhan ka prayog karein ?
Mujhe to ye sahi nahin lagta. Par ye jawab UP ki dalit janta hi degi ki iska kitna phaida vastav mein unhein pahunch raha hai.
स्केत्च कारों को आहत होने की कोई जरूरत ही नहीं ! समीर भाई आप ये भी तो देखिये की जो चित्र तैयार किया गया है !कितना एक्यूरेट है ! वही हाथ हिलाते हुए अभिवादन, वही कद काठी | हा...हा..
स्केच बनाने वाले के रोजगार/पेट पर लात मारना कोई अच्छी बात नहीं है।
हम तो आहत नही बल्कि घायल होगये जी.:)
रामराम.
"जब केसरिया पत्थर पूज पूज कर लोगों का भला हुआ जा रहा है, सारे संकट मूँच जाते हैं तो यह तो संगमरमरी बनना है."....यही तो अंतर है मनुवादी और गजवादी में:)
डिस्केमर: हम नहीं सुधरेंगे, हम नहीं हटेंगे:)
वाह भाई वाह...
मुझे भी स्केत्चिंग पसंद है...
मीत
जय भीम जय भारत,
कोऊ हमाओं का उखारत।
हम कुछ नहीं कहेगे ."नो कमेन्ट "
achhi rachna
aapka likha bahut pasand ata hai.
Your humour filled posts are filled with serious concerns.
But dsnt it feel like handicapped,we can only see things being deaf and dumb,we know wts really going on,but no one even thinks to speak out louder.
India-Democratic nation.
Do we really know the meaning of democracy.
Thats all fallacy here.
Tell you ,I belong to UP,and I do feel like a handicapped soul.
aap hamse milne aaye bahut ACHCHHA lagaa.
AASHIRWAD sadaa chahiye.
aapki
माया माया सब कहैं, माया लखै न कोय
जो मन में ना उतरे, माया कहिए सोय।।
कबीरदास जी फरमा गये हैं कि माया-माया कहकर उसके पीछे हाथ धोकर तो सब के सब पड़े हैं। परन्तु उसका वास्तविक स्वरूप कोई नहीं जानता("माया" महाठगनी हम जानि:))। सभी एक दूसरे को सन्देश देते हैं कि "माया" के चक्कर में मत पडो पर फिर भी सभी उसके इर्द-गिर्द जिन्दगी भर घूमते हैं।
जै हो!!!
:)
शुक्र है मूर्तियां पत्थर की हैं अगर मैडम टैस्सोट की तर्ज़ पर मोम की बनतीं तो आने वाली सरकारें मूर्तियां हटवाती नहीं...कार्टूनिस्ट बुलवा कर बस alter करवा देतीं
काजल कुमारजी की बात ध्यान देने लायक है जी. एक कायदा बना दिया जाये मोम के बुत बनाने का..जब जो भी सरकार आये अपने हिसाब से आळ्टरेशन करवा ले..इस गरीब राष्ट्र गाढी कमाई बचेगी.
रामराम.
आपने शायद इस पर ध्यान न दिया हो कि एक बार मेरे ‘उल्टे प्रदेश’ की माननीया(?) मुख्य मंत्री महोदया ने कहा था कि वे अंबेडकर पार्क बनवाकर और अपनी (महापुरुष? नहीं, महास्त्री? नहीं, महान् आत्मा? हां) मूर्ति लगवाकर विकास कार्य करवा रही हैं । इससे लोगों को रोजगार मिल रहा है । कोई भी व्यक्ति चाहे तो एक श्रमिक को रोजगार दे सकता है । उससे अपने घर के अहाते में गड्ढा खुदवाए और फिर उसको पटवा दे । सुबह से शाम यह सिलसिला चलता रहे, हर रोज । विकास होता रहेगा । हर राजनेता (राजा-नेता) मौका मिलने पर पूर्ववर्ती के बुत हटा खुद की लगवाने की नीति अपना ले तो बहुत से हाथों को काम मिले । काश! ऐसी अक्ल खुदा सबको देता । - योगेन्द्र जोशी
कोई हताहत/आहत हुआ करे तो हुआ करे,हम तो अति आनंदित हुए....हंस हंस कर पेट में बल पड़ गए...लाजवाब नजर है आपकी समीर भाई...एकदम लाजवाब !!!
लेकिन मुझे नहीं लगता कि स्केच बनाने वाले से कोई गलती हुई है....बेचारे ने जो विवरण सुना होगा,उसके हिसाब से उसने सटीक स्केच बनाया.......
वैसे चलिए भला ही हुआ...भविष्य में इन मूर्तियों को देखकर ही कम से कम बच्चे पहचान पाएंगे कि एक प्राणी ऐसा भी हुआ करता था पृथ्वी पर.
jai ho...
मुझे दु:ख तो इस बात का है कि इस प्रसंग मे बेचारे हाथियों का नाम बदनाम हुआ। आखिर उनकी भी तो कुछ इज्जत है।
सब माया है ! मुर्तियो का नशा छाया है .
पर अपने तो गजब कर दिया
क्या खूब स्केच बनवाया है !
इतनी टिप्पणियाँ बटोरे हैं आप । हमहूँ एक भेज देते हैं।
जरा अपना हाथ अभिवादन में उठाइए और उस स्केच वाले को बुलाइए। कसम से इस बार भी मूर्तियाँ वैसी ही बनेंगीं।;)
अच्छे को डायनासोर किसी ने नहीं अपनाया!
तभी तो मैंने लिखा था कि इस बार मूर्ति देवी पुरस्कार सिर्फ कायावती को जाता है
कितना बुरा ज़माना आ गया है. हम हैं कि दलितों के उत्थान में दुबले हुए जा रहें हैं, और इनको मूर्तियां आंखों में चुभ रही है. दलित याने गिरे हुए. अब और कैसे समझाऊं.
सब मायाजाल है. मूर्ती के पर्स का स्केच रह गया है, उसे भी नाप लें. दलितों के लिये जन्मदिवस पर इकठ्ठा किया गया माल है. अब दलितों में से जिसको भी उठना होगा उसे लाईन में आना होगा.
लाईन में है:
अ. स्वयम भेनजी प्रथम
ब. भेनजी के सभी ’ भाई’ लोग
स. प्रेरणा देती हुई मूर्तियों और स्मारकों के प्रेरणा स्रोत - ठेकेदार,अफ़सरशाह, और मज़दूर..
द. बाकी असली दलित..
(कृपया मज़दूर को इस लाईन से हटा दें, क्योंकि उनकी बारी आते आते माल खतम हो जाने वाला है)
और रहे असली दलित, तो उन्हे अगले चुनाव में देखेंगे...
Lagta hai apki udan tashtri hathiyon wale luknow ke park ke upar hi kahin ghum rahi hai...majedar !!
अजी साहब , छोडिये ना इन मूर्तियों के चक्कर मे किसी को नेतागिरी ओर किसी को कलाकारी दिखाने का मोका तो मिला ,
हम भी आहत नही हुए। वैसे बहुत कुछ कहती हुई पोस्ट।
हम भी आपकी मूर्ती बनवाने की सोच रहे थे पर मूर्तीकार ने बताया उत्ते मे हमारी पांच बन जायेगी सो बनवा तो ली अब लगाने की जगह ढूंढ रहे है . कनाडा मे लगवाओ तो भेज दें क्या ? :)
व्यंग्य है तो तेज़ धार!
---------
और-- कवच (डिसक्लेमर) भी बहुत मज़बूत लगा है!
समग्र दृष्टि...और वर्तमान विषय पर यथोचित व्यंग। कोई भी मुस्कुराये बिना नहीं रह सकता ....साधू ।
दिल के अरमां हाथियों से दब गए
मेरे नेता वोट ले के सब गए...
समीर JI मजा आगया ...
प्रकाश
{एक प्रदेश "की" मुखिया. मुखिया हैं तो व्यस्त तो हों"गी" ही}
इससे अच्छा तो सब कुछ खुल्लम खुल्ला कहाँ होता आप तो गले लगा कर थप्पड़ मार रहे हो :)
धांसूं पोस्ट है
बहुत गहरी बात कही आपने
हम तो ये ही कहेंगे सब माया मिथ्या है और कुछ नहीं
वीनस केसरी
:-) बहोत खूब !
स्नेह सहीत,
- लावण्या
तेरे घर के सामने मुर्ता लगाऊंगा, तेरे घर के सामने....
क्यो न स्कैचिंग विभाग की कमी को दूर करने के लिये एडजस्टिंग विभाग भी बन जाये -----
मुखिया के मुखौटे के आगे तो केवल मास्क है , पीछे न जाने कितने लोग है, स्कैचिंग डिपार्टमेंट कितने लोगो का चेहरा दिखा पायेगा ।
मतलब ठीकरा इस बार भी किसी डिपार्टमेंट पर?
बड़ा मस्त लिखा है आपने.. बाप रे बाप...
बहुत मस्त लिखा है सर आपने.. बाप रे बाप... मज़ा आ गया
बहुत मस्त लिखा है सर आपने.. बाप रे बाप... मज़ा आ गया
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…
कनाडा में बैठकर मजे ले रहे हैं? कभी इधर आइए तो पता चले। जब SC/ST Act डण्डा पड़ेगा तो सारी स्केचिंग भूल जाएगी। यह सब माफ़ी के लायक नहीं रह जाएगा..............
इस बात में दम है सर जी इसपे जरा गौर फरमाएं.
Mujhe to post padh kar bahut maza aaya .....par agar galti se hamari CM "Bahin Ji" ne padh li ya phir unke kisi chamce ne to phir unki vakri drishti se khud ko kaise bataiyega sirji ......Log shani ki sadhesaati se nahi ghabrate jitna bahir ji ki drishti se ghabratein hain:-)
सावधान: यहाँ दिया गया सुरक्षा कवच (डिस्क्लेमर) पोस्ट हटाने के अनुरोध की पूर्ति के लिए नहीं है वरन आहतों की गणना के लिए है.....ताकि पोस्ट की उद्देश्य-पूर्ति का अनुमान लगाया जा सके.....इसलिए भूलकर भी पोस्ट हटाने का अनुरोध न करें....हा हा हा....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
भाई साहब मुझे तो अब आपकी बहुत चिन्ता होने लगी है। मगर थोड़ी राहत है सुना है आप यू.पी. में नही है।
बाप रे!
हाथी आयी हाथी आयी हाथी आयी बम ।
ब्लॉग सम्राट की जय, स्कैट सम्राट की जय..
"शराब का नशा और उस पर से ऐसे विकट ठेके की मस्ती याने तीन गुना नशा और........"
...................................
Please explain the calculation of "तीन गुना".
Please............
बाप रे इत्ते सारे हाथी लाइओं में खड़े है . मूर्तियाँ लगाने का सरकारी रिवाज एक फैशन सा बन गया है . जो सत्ता में आवेगा वही अपनी मूर्ती लगवाएगा . बहुत ही उम्दा .
mere hisab se sketch banane wale ki kya galti jaisi dimaand thi wahi to banaya, use kya pata mukhiya kaisa he
भाई साहब हमें तो मूर्तियाँ असल से ज़्यादा असल लग रही हैं, बोले तो... दो सौ टक्का.
समीर भाई एक व्यंग्य की कीताब भी पब्लिश करवा ही लीजिये...बहुत अच्छा लिखते हैं आप।
समीर जी,
अधूरा सा लग रहा है। इसको जारी रखें और कम से कम दो तीन किश्तें और लिखें। आइना दिखाना बहुत ज़रूरी हो गया है।
समीर जी,
अधूरा सा लग रहा है। इसको जारी रखें और कम से कम दो तीन किश्तें और लिखें। आइना दिखाना बहुत ज़रूरी हो गया है।
इशारों-इशारों में अच्छी चोट कर गये गुरू! शुक्र है आप उस प्रदेश में नहीं हैं!
स्कैचिंग ड़िपार्टमेंट को स्क्रैच कर दिया हुज़ूर आपने तो...
समीर बाबा ये कौन सी माया रचने लगे बहिन जी से डरो नहीं तो आपको लाईन मे खडा कर देंगी वैसे कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना बडिया रहा बधाई
समीर भाई ........आपकी हर पोस्ट कुछ बोलती हुईए होती है........... आज भी गहरे अर्थ छिपे हैं...........
Abhi kal hi to ye park lucknow men dekha hai.ap to sab dur se hi dekh lete hain.
Wishing "Happy Icecream Day"...
See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"
kya likha hai aapne...... bahut sahi.....
main kavvon kabootaron kee or se dhanyavad deta hoon ki giddhon kee murti par beet kar sakenge .
समीर जी अच्छा है आप कनाडा मैं हैं, नहीं तो .... |
बहुत मजेदार लिखा है आपने | धन्यवाद |
aalishaan likha hai !!!!
in netaon ko kuch to samajh me
aayega !!!
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