एकाएक ब्लॉगवाणी से गुजरते ’कनाडा से’ शीर्षक पर नजर गई. स्वाभाविक था क्लिक करना. पता चला अंतर्मंथन वाले डॉ टी एस दराल साहब कनाडा पधारे हैं. तुरंत उन्हें ईमेल कर मिलने की जिज्ञासा प्रकट की. जबाबी पोस्ट से फोन नम्बर आ गया. बातचीत हुई और तय हुआ कि ९ तारीख को शाम को हमारे घर खाने पर पधारेंगे.
निश्चित समय पर डॉ दराल अपने मित्र डॉ विनोद वर्मा के साथ आये. मिलकर लगा ही नहीं कि पहली बार मुलाकात हो रही है. ४-५ घंटे गप्प सटाके में यूँ गुजरे कि कब रात के १ बज गये, पता ही नहीं लगा. डॉ दराल दिल्ली हास्य हुल्लड़ २००७ के चैम्पियन रहे हैं तो उत्सुकता थी, कुछ सुनने की. उत्सुकता कुछ यूँ भी बन जाती है कि जब हम कहेंगे कि कुछ सुनाईये तो सामने वाले का भी फर्ज बन जायेगा कि कहे, आप भी कुछ सुनाईये. अंधा क्या चाहे, दो आँखे. बस, जैसे ही उन्होंने सुना कर खत्म किया और हम से निवेदन किया कि आप भी कुछ सुनाऐं, हम शुरु. हम तो बैठे ही इसी इन्तजार में थे. :)
डॉ टी एस दराल |
और
डॉ दराल, समीर, डॉ वर्मा |
खैर, खूब सुना-सुनाया गया. हमें तो आप सब सुनते ही रहते हैं, इसलिए आज आपको डॉ दराल को सुनवाते हैं:
आज शाम डॉक्टर साहब अपने बीस दिवसीय प्रवास के बाद भारत लौट जायेंगे और हम यहाँ बैठे उनसे हुई मुलाकात की याद सहेजे फिर कभी मुलाकात की बाट जोहते रहेंगे. यही सिलसिला है.
संशोधन: जब यह आलेख पोस्ट किया गया तो एक भीषण भूल हुई जो कि क्षमनीय तो नहीं फिर भी भूल सुधार की गई है: दरअसल डॉ टी एस दराल का नाम भूलवश डॉ टी एस दरल टंकित हो गया था, क्षमाप्रार्थी हूँ. भूल सुधार कर ली गई है.
71 टिप्पणियां:
Bahut hee dilchasp. Aapki mehmanavaji aur kavya goshthi bhee.
सुन्दरम्। आनन्दम् महोदय।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सुंदर!डा. साहब की कविता अच्छी लगी। अब लगे हाथ अपनी भी सुना ही दीजिये।
वाह, ये मेहमाननवाजी तो हमें खूब भाई। इसे ही कहते हैं निर्मल ह्रदय।
डा दरल को सुना। उनके भावों की सरलता उनके प्रति दिलचस्पी पैदा कर रही है। प्रस्तुति के लिए आभार।
बहुत बढिया रहा "समीरालय"
पर कविता और मेहमान का आना बहुत भला लगा
स्नेह,
- लावण्या
कोKई आपके शहर आये और समीर बाबा के दर्शन किये बिना लौट जाये ये कैसे हो सकता है आपकी आरती जो उन्हो ने उतारी है वो सुन नहीं पाई पता नहीं क्योण जानकारी के लिये आभार
२ जुलाई को इतनी अहमियत, और ९ जुलाई को कुछ नहीं !
गुरूजी, काश की कनाडा गाजिअबाद या फरीदाबाद होता ...तो देखते आप..रोज आपही के इहाँ खाते आ गाते,,,और सोने से पहले आपको सुन भी लेते ..हम तो सब काम धाम छोड़ के एक थो पान का गुमटी लगा लेते आपके घर के पास ,,जब आते दनादन, सुनना सुनाना होता,, फोटो शोतो , और एक धाँसू पोस्ट ,,मगर हाय कसम उदांछाल्ले की ..कमबख्त कनाडे ने सारी गड़बड़ कर दी...दरल साहब तो पूरे मूड में लगे,
ई कनाडा तक कौनो बस तीरेन नहीं चलती है का..?
अब तो आप बाकायदा बाबा समीरानंद हो गये हैं । और अब ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आये और आपके दर्शन किये बिन ही लौट जाये ।
अब ऐसे लोग हमारे पास हैं जो अब तक हमारी नेचर के होते हुए भी एक पर्याप्त दूरी पर थे। संचार साधनों का विकास हुआ लेकिन सही प्लेटफार्म ब्लॉगिंग ने ही दिया है। आपकी मोहक शाम के लिए बधाई।
और हां दो श्रोताओं के मिलने की भी। :)
yah post aapke vyaktitv mein chaar chaand lagati hai . bahut achchha laga.badhai mere bhai!
डा साहेब ने फोटो लगाई और आपने लपक ली.. बहुत खुब..
बहुत ही खूब और यादगार मुलाक़ात....
regards
is tarah se lagta hai ki aaj bhi milna-julna hota rahta hai.
सिलसिले चलते रहे...यही जिन्दगी है....
ब्लॉग कितना अच्छा संग्राहक है, आपने इसमें यादगार पलों को दर्ज किया है, कभी भविष्य में इस तरह के पन्ने पलटते हुए अच्छा लगेगा।
बेचारे डॊ. विनोद वर्मा जी दो पाटक [कवि] के बीच गा रहे होंगे- एक मैं हूं और एक मेरी बेबसी की शाम है....:-)
बेहतरीन ।
डा. दारल जी को हमने भी सुन लिया. अच्छा लगा.
बहुत खूब
हास्य का फूल दिल मे खिल गया,
आप के वजह से दरल जी का,
दर्शन मिल गया,
बधाई हो बड़े अच्छे समय,
गुज़ारे आप उनके साथ,
खूब जम कर हुई होगी हास्य रस की बात,
मुझे भी मिल गया सौभाग्य उन्हे देखने का
आपके कृपा से उन्हे सुनने का,
कभी हमे भी दर्शन मिले,
आप जैसे महान लोगो का,
फरियाद करते है.
और आपको हार्दिक धन्यवाद करते है.
आ. समीर जी ,आपकी मेहमान नवाजी और कविता के साथ आपकी ..अपने देशवासियों के लिए जो स्नेह प्रेम और अपनापन है वो झलकता है इस पोस्ट मैं ..डॉ दरल काभी धन्यवाद जो उन्होंने आपको समय दिया इस कारण हमारा भी उनसे परिचय हो गया ..आभार
बहुत ही दिलचस्प......
साभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......
चलिए इस हसीन मुलाक़ात के लिए आप सब को बधाई.
मुलाकातों की यादो का एहसास बेहद ही प्यारा होता है...
इसे संजोये रखना...
मीत
वाह अति सुन्दर सिख्षा प्रद और हास्यप्रद मजा आगया कितने ऐब पालेंगे !! सिक्स पग ऐब !! और अंतिम पंकियां तो लाजवाब !!
बहुत सुंदर लगा आप का यह मिलन, ओर कविता भी बहुत सुंदर लगी.
धन्यवाद
yahi ham BHARTIIYON ki pahchan hai. apne to apne hain ham to gairon ki bhi sewa karte hain.
desh ki sanskriti ki jhalak milti hai aapse.
बढिया!!!
आपकी भी कविता यूं ही सुना देते तो, क्या ही अच्छा होता.
आखिर आपने महफ़िल जमा ही ली..
दरल साहब से मिलवाने के लिए धन्यवाद.
dilchashp bahut dilchashp
मजा आ गया समीर भाई.............. मैं imagin कर सकता हूँ आपकी मेहमान नवाजी .......... शुक्रिया
nice
जब दो दिग्गज लिक्खाड़ मिलते हैं
तो समय हार ही जाता है।
दोनों के जज्बे को नमन।
Maja aa gaya sunkar.vyangya ki nafasat aur hasya ka tadka dono mil gaye
कवीता अच्छी लगी, क्या बात है इस बार आपने बहुत छोटा लेख लिखा ;)
खूब जमी होगी जोड़ी!
bahut badhiya,shaam badi rangin aur mohak thi.
हा हुसैन हम न हुए...आप खुशकिस्मत हैं की इतनी दूर बैठ कर भी भारत के नामी गिरामी लोगों को घर बुला कर उनकी संगत का आनंद ले लेते हैं...एक हम हैं की भारत में रह कर भी इस सब से महरूम हैं...अपनी अपनी किस्मत है भाई...
नीरज
वाह..वाकई जिंदगी जीने का सलीका कोई आपसे सीखें. यार दोस्तो के साथ सुनना और सुनाना किस्मत वालों को मिलता है. डाक्टर दरल साहब को हमारी शुभकामनाएं दिजियेगा.
रामराम.
kaafi dino baad aa paai ..aapki baba vaali tasveer badi majedaar lagi ........aur itani chhoti post kyon likhi ?
bura mat maaniyega , achha aur dher sara padhne ke lalach se aapke blog par ati hoon isliye aisa likha :)
aapki mehmaan navaaji se laga hai ki aapko bhi logon ka saath khoob bhata hai :)
क्या बात कही दरल साहब ने........
अंतिम पंक्तियाँ तो ऐसी हैं जो कभी जेहन से नहीं उतर पाएंगी....
मुझे तो लग रहा है की काश हर आदमी यह सोच पाता .....तो जो जूठन अमीरों की थाली की शोभा बढाती है,वह कितने भूखों का निवाला बन उनके प्राण बचा जाती....
बहुत बहुत आभार आपका इस्तनी सुन्दर कविता सुनवाने के लिए....
आपकी मेहमाननवाजी के हम भी कायल हो गये।
चचा को गुस्ताख़ का सलाम..वापस आ गया हूं गांव की कवरेज से पूरब के दिल को धड़कते हुए महसूस किया। वैसे अब आपकी उड़ान को कायदे से पकड़ पाऊंगा..रेगलर पढ़के.. जारी रहे।
Baba Samiranand Ji! Apki to har blog majedar hoti hai. achha likhna, jyada padhna aur dhansu comment karna koi apse seekhe...Kabhi hamare yahan bhi ayen to khushi hogi.
मेहमान नवाज़ी हो तो ऐसी..
हमने सुना है कि सत्ता लोगों के सिर चढ़ कर बोलती है। बुतों की कीमत जितनी होगी, उतने में कई हज़ार दलित परिवारों का भला हो सकता था। इस पर किसी तरीके के अध्ययन की ज़रुरत है। अच्छा, वाजपेयी जी, हमने सुना है आप गोड्डा के हैं। हैं??
मुझे तो आपकी पोस्ट से भी अधिक अच्छे आपके फोटो लगते हैं..
बधाई हो समीर जी, वह इसलिए कि बड़ा दिल रखते हैं और जाहिर है कि दिलवालों की संगत हरेक पसंद करता है. चाहे फिर वह भारत हो कि विदेश. आगामी जबलपुर यात्रा में भोपाल रुककर गरीब की कुटिया में भी पधारें तो हम भी बहुत कुछ सुनाने का मंसूबा बाँधे हुए हैं.
बहुत बढ़िया गोष्ठी रही ....आनंद आ गया ...
वाह दरल साब को सुनकर आनंद आ गया . खूब महफ़िल जमी . आभार
फिलहाल तो देख नहीं पाया। नेट की स्पीड स्लो है।
डॉ दरल और डॉ विनोद वर्मा से परिचय अच्छा लगा। सुन तो न पाये उन्हे अपने नेट की कछुआ गति के चलते!
धन्यवाद।
अच्छा लगा सुनना -डॉ साहब को कुछ उम्दा खिलाया पिलाया भी तो होगा समीर भाई आपने !
हमारे नये ब्लॉग चर्चा पर आपका स्वागत है।
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श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग
टेक्नोलोजी देखिये कितनी आगे बढ़ गयी है....दो तीन लोगो की उस लम्हे की दुनिया को सारी दुनिया से रूबरू करा देती है .....
क्या कहने क्या कहने।
आपने दरल साहब को हम सबको भी सुनवाया, धन्यवाद.
आभासी दुनिया का कोई भी वास्तविकता में मिल जाये तो क्या खुशनुमा अहसास होता होगा.
'गरल जी ' की कवितायेँ सुनी..उन्हें हमारा प्रणाम.
दरल जी को सुनवाने के लिये बहुत धन्यवाद।
दिलचस्प लगी यह मुलाकात फोटो बढ़िया है
आपके ब्लोग पर टिप्पणी देने के लिये तो बहुत बडी स्क्रोलिंग करनी पड़ती है । कोई एसा सोफ़्टवेयर कनाडा से भेजिए कि इधर आप पोस्ट लिखे और उधर दन्न से टिप्पणी भी हो जाये । आपकी मेहमान नवाजी किशमत वालों को ही मिलती है ।
दरल साहब को सुनना सुखद लगा .....ऐसी महफिले दिलवालों के यहाँ ही जमती हैं ....यहाँ से इतनी दूर केनेडा में बैठ भी आपने महफ़िल जमा ली ....बहुत खूब ......आप तो लाजवाब इंसान हैं.....!!
arse baad mohak shaam ko padhna achha laga.......
Your language often reminds me of Alok Tomar's prose. Subtle, lucid and piercing. I am sure you are unable to respond to so many of your readers, but may I know -- through your profile -- what do you do for a living. I gather from your writing skill that you could have made a decent living and name in your homeland as well. ((Please cut down on self-promotion in the blog site. Too many of self-portraits and agrandisement -- be it in form of pix, illustration or written word -- speak of a Narcissm that can put off gentle readers. I am sorry if it pinched.
बहुत खूब, जिन लोगों को नियमित पढ़ा जाता है उनसे पहली बार मिलने पर प्रायः लगता ही नहीं कि पहली बार मिल रहे हैं! :)
जब २ वर्ष पहले आपसे पहली बार मिलना हुआ था तो कहाँ लगा था कि आपसे पहली बार मिल रहे हैं! :)
समीरजी !!!
नमन।
विशेष मैने आज सहज ही महसुस किया की वास्तव मे 'लालाजी' आप भारत के सच्चे लाल हो कि विदेश मे भारतीय सस्कृति के आप असली प्रतिनिघि हो। आपके बारे मे अक्सर पढ लेता हू कि समीरजी अच्छे स्वभाव,मिलनसार वाले व्यक्तितत्व के धनी है , आज यह बात मै महसुस कर रहा हू। अंतर्मंथन वाले डॉ टी एस दराल साहब, डॉ वर्माजी से आपकी मुलाकात, आपकी मेहमाननवाजी, एवम आपका अपने लोगो के प्रति अथहा स्नेह देख भाई समीरजी मे आत्मविभोर हुआ। समीरभाई! लिखना या किसी को सीख देने वाले तो बहुत देखे है, पर आप ने जो लिखा वो जीवन जिया है। उसे आपने अपने जीवन मे सन्जोया है। यह बात मेने आज आप मे पाई है। प्रेममय,सहृदय,मिलनसार,सुन्दर व्यक्तितत्व के गुणो के मालिक है समीरजी आप!
हे प्रभु यह तेरापन्थ आपका इस बात के लिए अभिवादन करते है।
डॉ दरालजी, समीरजी, डॉ वर्माजी का मिलना अच्छा लगा।
आपने दारल साहब का जिन भारतीय संस्कारों से स्वागत किया , कबीले तारीफ है.
दारल साहब की पोस्ट से आपकी इस भेट की कुछ ज्यादा ही जानकारी आपके बारे मैं मिली, सो उनको प्रेव्षित टिप्पणी मैं यंहा भी चिपका रहा हूँ, आखिर आप और आप का परिवार ही तो असली हकदार है इस टिपण्णी का....
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"लाल दंपत्ति से मिलकर यही लगा की हमारे अप्रवासी भारतीय मित्र कहीं न कहीं हम स्वदेश में रहने वालों से ज्यादा भारतीय हैं. शायद अपनेपन की क़द्र वही जानते हैं जो अपनों से दूर रहते हैं. यहाँ दिल्ली में रहकर हम कितने स्वकेंद्रित हो गए हैं, इसका अंदाजा आप मेरी एक कविता की इन चाँद पंक्तियों से लगा सकते हैं:
मेरी दिल्ली मेरी शान,
पर कैसी दिल्ली, कैसी शान
यहाँ पडोसी पडोसी अनजान
पर ऊपर सबकी जान पहचान
झूठी आन बान,
शान बने वी आई पी महमान
और तेरी गाड़ी मेरी गाड़ी से बड़ी कैसे,
सब इस बात से परेशान
फिर भी मेरी दिल्ली मेरी शान. "
आपके विचार से हालातों को देखकर सहमत होना ही पड़ेगा, किन्तु आर्श्चय इस बात पर कि जो संस्कार हम अपने देश में रह कर त्याग रहे हैं वही संस्कार विदेशों में रह रहे भारतीय बखूबी निभा रहे हैं.......
कितना बदल गया देश में देश का इन्सान
"संस्कार-झलक" परदेश में पा रहा इन्सान
फिर भी समवेत गाते रहे मेरा भारत महान
मिलन और यात्रा के बहाने ही सही एक उच्च स्तरीय विषय पर प्रश्न उठाने का हार्दिक आभार.
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समीर जी, आपका और आपके परिवार का हार्दिक आभार भारतीय संस्कारों को विदेश में रह कर भी जीवित रखने हेतु
सुंदर आलेख के साथ प्रभावशाली काव्यपाठ। बहुत सुंदर!
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