
'जागे हो अभी तक, संजू के बाबू' लेटे लेटे
कांति पूछ रही है.
'हूँ, नींद नहीं आ रही. तुम भी तो जागी हो?' अंधेरे में ही बिस्तर पर करवट बदलते
शिवदत्त जी बोले.
'हाँ, नींद नहीं आ रही. पता नहीं क्यूँ. दिन में भी नहीं सोई थी, तब पर भी.'
'कोशिश करो, आ जायेगी नींद. वरना सुबह उठने में देरी होयेगी.'
'अब करना भी क्या है जल्दी उठकर. कहीं जाना आना भी तो नहीं रहता.'
''फिर भी, देर तक सोते रहने से तबियत खराब होती है.'
फिर कुछ देर चुप्पी. सन्नाटा अपने पाँव पसारे है.
'क्यों जी, सो गये क्या?'
'नहीं'
'अभी अमरीका में क्या बजा होगा?'
'अभी घड़ी कितना बजा रही है?'
'यहाँ तो १ बजा है रात का.'
'हाँ, तो वहाँ दोपहर का १ बजा होगा.समय १२ घंटे पीछे कर लिया करो.'
'अच्छा, संजू दफ्तर में होगा अभी तो'
'हाँ, बहु साक्षी भी दफ्तर गई होगी.'
'ह्म्म!! पिछली बार फोन पर कह रहा था कि क्रिस को किसी आया के पास छोड़ कर जाते हैं.'
'हाँ, बहुत दिन हुये, संजू का फोन नहीं आया.'
'शायद व्यस्त होगा.
अमरीका में सब लोग बहुत व्यस्त रहते हैं, ऐसा सुना है.'
'देखिये न, चार साल बीत गये संजू को देखे. पिछली बार भी आया था तो भी सिर्फ हफ्ते भर के लिये. हड़बड़ी में शादी की. न कोई नाते रिश्तेदार आ पाये, न दोस्त अहबाब और साक्षी को लेकर चला गया था.'
'कहते हैं अमरीका में ज्यादा छुट्टी नहीं मिलती. फिर आने जाने में भी कितना समय लगता है और कितने पैसे.'
'हाँ, सो तो है. तीन बरस पहले किसी तरह मौका निकाल कर बहु को यूरोप घूमा लाया था. फिर दो बरस पहले तो क्रिस ही हो गये.उसी में व्यस्त हो गये होंगे दोनों. पता नहीं कैसा दिखता होगा. उसे तो हिन्दी भी नहीं आती. कैसे बात कर पायेगा हमसे जब आयेगा तो.'
'
संजू तो होगा ही न साथ. वो ही बता देगा कि क्रिस क्या बोल रहा है.'
दोनों अंधेरे में मुस्करा देते हैं.
'पिछली बार कब आया था उसका फोन?'
'दो महिने पहले आया था.कह रहा था कि १०-१५ दिन में फिर करेगा. और फिर कहने लगा कि अपना ख्याल रखियेगा, बहुत चिन्ता होती है. कहीं जा रहा था तो कार में से फोन कर रहा था. बहुत जल्दी में था.'
'हाँ, बेचारा अपने भरसक तो ख्याल रखता है.'
'आज फोन उठा कर देखा था, चालू तो है.'
'हाँ, शायद लगाने का समय न मिल पा रहा हो.'
'कल जरा शर्मा जी के यहाँ से फोन करवा कर देखियेगा कि घंटी तो ठीक है कि नहीं.'
'ठीक है, कल शर्मा जी साथ ही जाऊँगा पेंशन लेने. तभी कहूँगा उनसे कि फोन करके टेस्ट करवा दें.'
'कह रहा था फोन पर पिछली बार कि कोई बड़ा काम किया है कम्पनी में. तब सालाना जलसे में सबसे अच्छे कर्मचारी का पुरुस्कार मिला है. जलसे में उनके कम्पनी के सबसे बड़े साहब अपने हाथ से इनाम दिये हैं और एक हफ्ते कहीं समुन्द्र के किनारे होटल में पूरे परिवार के साथ घूमने भी भेज रहे हैं.'
'हाँ, वहाँ सब कहे होंगे कि
शिव दत्त जी का बेटा बड़ा नाम किये है. तुम्हारा नाम भी हुआ होगा अमरीका में.'
'हूँ, अब बेटवा ही नाम करेगा न! हम तो हो गये बुढ़ पुरनिया. जरा चार कदम चले शाम को, तो अब तक घुटना पिरा रहा है. हें हें.' वो अंधेरे में ही हँस देते हैं.
कांति भी हँसती है फिर कहती है,' कल कड़वा तेल गरम करके घुटना में लगा दूँगी, आराम लग जायेगा. और आप जरा चना और एकाध गुड़ की भेली रोज खा लिया करिये. हड्डी को ताकत मिलती है.'
'ठीक है' फिर कुछ देर चुप्पी.
'इस साल भी तो नहीं आ पायेगा. दफ्तर की इनाम वाली छुट्टी के वहीं से क्रिस को लेकर पहली बार दो हफ्ते को कहीं जाने वाले हैं.'
'हाँ, शायद आस्ट्रेलिया बता रहा था क्रिस की मौसी के घर. कह रहे थे कि आधे रस्ते तो पहुंच ही जायेंगे तो साथ ही वो भी निपटा देंगे. शायद थोड़ी किफायत हो जायेगी.'
'देखो, शायद अगले बरस भारत आये.'
'तब उसके आने के पहले ही घर की सफेदी करवा लेंगे, इस साल भी रहने ही देते हैं.'
'हूँ'
'काफी समय हो गया. अब कोशिश करो शायद नींद आ जाये.'
'हाँ, तुम भी सो जाओ.'
सुबह का सूरज निकलने की तैयारी कर रहा है. आज एक रात फिर गुजर गई.
न जाने कितने घरों में यही कहानी कल रात अलग अलग नामों से दोहराई गई होगी और
न जाने कब तक दोहराई जाती रहेगी.