मंगलवार, दिसंबर 26, 2006

चिट्ठाकारों के लिये गीता सार

मित्रों, यह बात तो मुझे कहने की जरुरत ही नहीं कि मैं आप सबके लिये कितना विचारता और चिंतित रहता हूँ. :)
जो कुछ भी करता हूँ, पढ़ता हूँ, लिखता हूँ, बस हर वक्त आपका ख्याल रहता है और आजकल तो कुछ ज्यादा ही, पता नहीं क्यूँ. :)
अब देखिये, गीता पढ़ी, सार पढ़ा और आप याद आये, तो आप भी पढ़ें, चन्द पंक्तियों में पूरी गीता का सार:

चिट्ठाकारों के लिये गीता सार

क्यूँ व्यर्थ परेशान होते हो, किससे व्यर्थ डरते हो
कौन तुम्हारा चिट्ठा बंद करा सकता है.
चिट्ठाकार न निकाला जा सकता है और न ही निकलता है
.
(भले ही नाम बदल ले, मगर रहेगा जरुर-यह एक लत है)

कल टिप्पणी नहीं मिली थी, बुरा हुआ.
आज भी कम मिली, बुरा हो रहा है.
कल भी शायद न ही मिले, वो भी बुरा होगा.

व्यस्तता का दौर चल रहा है...
(चुनाव का समय चल रहा है..किसी के पास समय नहीं है)

वैसे भी तुम्हारा क्या गया, कोई पैसा देकर तो लिखवाये नहीं थे, जो तुम रो रहे हो.
वैसे भी बहुत अच्छा तो लिखे नहीं हो, जो दुखी होते हो.
(वरना तो अखबार में छपते, यहाँ क्या कर रहे होते)
तुमने ऐसा लिखा ही क्या था जो पढ़ा जाता.

तुम्हें तो यूनिकोड में लिखना भी नहीं आता था
जो कुछ सीखा, यहीं से सीखा
जो कुछ सीखा, यहीं लिख मारा.

कम्प्यूटर लेकर आये थे, यूनिकोड सीखकर चले
जो आज तुमने सीखा, कल कोई और सिखेगा
(कोई तुम्हारा पेटेंट तो है नही)

जो टूल लिखने को इस्तेमाल करते हो, वो भी तुम्हारा नहीं है .
आज तुम इस्तेमाल कर रहे हो, कल कोई और भी करेगा और परसों कोई और.

ब्लाग का पन्ना भी तुम्हारा नहीं है, या तो ब्लाग स्पाट का है या वर्डप्रेस का
और तुम इसे अपना मान बैठे हो और खुश हो मगन हो रहे हो.

बस यही खुशी तुम्हारे टेंशन का कारण है.

ब्लाग, ब्लागर बीटा से होता हुआ न्ये ब्लागर पर चला गया
तुम्हारा टेम्पलेट चौपट हो गया और अब तुम रो रहे हो.

जिसे तुम बदलाव समझ रहे हो, यह मात्र तुमको तुम्हारी औकात बताने का तरीका है.
जिसे तुम अपना मानते रहे वो तुम्हारा नहीं.

(अब फिर बैठो और टेंम्पलेट ठीक करो, और जो पुरानी टिप्पणियों के नाम गये वो तो ठीक भी नहीं कर सकते)

एक पोस्ट पर ढ़ेरों टिप्पणियां मिल जाती है,
पल भर में तुम अपने को महान साहित्यकार समझने लगते हो.
दूसरी ही पोस्ट की सूनी मांग देख आंख भर आती है और तुम सड़क छाप लेखक बन जाते हो.

टिप्पणियों और तारीफों का ख्याल दिल से निकाल दो,
बस अच्छा लिखते जाओ... फिर देखो-
तुम चिट्ठाजगत के हो और यह चिट्ठाजगत तुम्हारा है.

न यह टिप्पणियां तुम्हारे लिये हैं और न ही तुम इसके काबिल हो

(वरना तो किसी किताब में छपते)
यह मिल गईं तो बहुत अच्छा और न मिलीं तो भी अच्छा है.

कम से कम छप तो जाता है, फिर तुम्हें परेशानी कैसी?

तुम अपने आपको चिट्ठे को समर्पित करो
यही एक मात्र सर्वसिद्ध नियम है

और जो इस नियम को जानता है
वो इन टिप्पणियों, तारीफों और प्रतिपोस्ट की टेंशन से सर्वदा मुक्त है.


-स्वामी समीर लाल 'समीर'

<< कभी कहीं इसी वातावरण की बातचीत साफ्टवेयर इंजिनियरों के बारे में भी पढ़ी थीं, उसी से प्रभावित>> Indli - Hindi News, Blogs, Links

22 टिप्‍पणियां:

पंकज बेंगाणी ने कहा…

प्रभु मै कृतज्ञ हुआ।

धर्मपथ पर चलते रहना ही नियती है। बिना सोचे लिखते जाने से मेरा तात्पर्य है। क्या था, क्या है और क्या होगा, यह कौन जानता है? क्या पाया है क्या खोना है। सब हमारे हैं सबके हम हैं। सब चतुर हैं सब चंगे हैं। हमाम में सब नंगे हैं।

हमें तो कर्तव्यपथ पर चलना है।
फल की आशा के बिना कर्म करना है।
मझदार में नैया भले डूब जाए।
हंसते हंसते भवसागर तरना है।

जय हो ज्येष्ठ जय हो।

बेनामी ने कहा…

धन्य है गुरूदेव आपने आँखे खोल दी. मैं मुरख-खलगामी खाँमखाँ टिप्पणीयों के पीछे अपने ब्लड-प्रेशर को ऊपर-नीचे करता रहा.
आपको साधूवाद देता हूँ जो आप चिट्ठाजगत में अवतरे.
महाराज ऐसे आनन्द दायक प्रवचन देते रहें, आत्मा प्रसन्न रहेगी.

Jitendra Chaudhary ने कहा…

बहुत सही प्रभु, आपने तो सच्चे ज्ञान के दर्शन करा दिए। यह शरीर नश्वर है, ब्लॉग, टिप्पणी तो सब मोह माया है, इन सबसे ऊपर उठो, जागो, नया सवेरा तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा है।

जाते जाते, एक गीता सार यहाँ भी।

बेनामी ने कहा…

सच कहा गुरूदेव.

हमें तो आज फिर से गीता की याद सताने लगी है. आपको पता है क्या वो आजकल कहाँ है?

कृपया अन्यथा न लें.

रवि रतलामी ने कहा…

वाह! ऐसे गीता सार तो और लिखे जाने चाहिएँ.

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद प्रभू, आपने इस मोह माया से बचा लिया। वरना टिप्पणियां क्या हम तो पुरस्कार की भी उम्मीद रख रहे थे। अब यदि पुरस्कार न भी मिला तो आपकी यह पोस्ट मेरे समेत बहुतों के बहुत काम आयेगी :D

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

गीता की नवीनतम व्‍याख्‍या के लिये श्री श्री श्री 007 समीर लाल जी महाराज के चरणो मे उनके भक्‍त श्री 420 प्रमेन्‍द्रानन्‍द के द्वारा उनके चरण कमलो मे उनके ज्ञान द्वारा एक तुच्‍छ व्‍यायाख्‍या........

तुम क्‍यो खडे हो किसके लिये खड़े हो।
यहॉं तुम्‍हारा कौन है। कभी खुद से चिन्‍तन किया कि कभी किसी को टिप्‍पणी की नही दूसरे से क्‍या अपेक्षा रखते है। कभी अपने घर का वोट पाया है, क्या तुम्‍हारी बात को तुम्‍हारे सगे सम्‍बन्धियों ने तुम्‍हारा सर्मथन किया है तो बीच बाजार आ कर वोट मागने खडे हो गये हो। अपने आप को देखो तुम्‍हे नही लगता कि अपनी कविताओं को सुना कर तुमने कितने अनगिनत पाप किये है। कितने अबोध विद्याथियों का श्राप (अपना तो लिख गये, और हमारे सिर पर मढ गये)तुम्‍हारे सिर उठाये हुये हो, उनके मुँह से निकली एक एक आह तुम्‍हे चैन से नही मरने देगी।

प्रेमलता पांडे ने कहा…

"बिनु सत्संग विवेक ना होई।"

बेनामी ने कहा…

"जो टूल लिखने को इस्तेमाल करते हो, वो भी तुम्हारा नहीं है .
आज तुम इस्तेमाल कर रहे हो, कल कोई और भी करेगा और परसों कोई और."

ये वाला नियम कुछ लोगों पर फिट नहीं होता स्वामी जी। फोर एक्जाम्पल जब ई-स्वामी 'हग' टूल तथा देवेंद्र परख 'हिन्दीराइटर' प्रयोग कर रहे हों।

धन्य हैं ऋषिवर चुनाव के कारण आजकर आपकी छ्टी-इंद्रियां जागृत होकर नई-नई चीजें खोज रही हैं। ;)

बेनामी ने कहा…

इस 'चिट्ठा-गीता' ने मन के दर्पण पर जम रही सारी धूल पौंछ डाली . प्रवचन से समझ पाया कि यह 'चिट्ठा-जगत' आभासी है और 'चिट्ठा-जीवन' नश्वर . अपने चिट्ठे के प्रति माया-मोह के सारे बंधन कट गये . अब ज्ञान की मुक्तावस्था में विचरण कर रहा हूं . गुरु उड़नस्वामी को प्रणाम!

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

मैने कुछ ज्‍यादा ही अन्‍यथा लखि दिया है कृपया अन्‍यथा मत लीतियेगा

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

* लीतियेगा को पढे़ लिजियेगा। गलती के खेद है।

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

चिट्ठावाधिकारस्ते मा टिप्पणी कदाचन

और
परित्राणाय चिट्ठस्य क्रत्तिकायाय टिप्पणिम
चर्चास्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे

बेनामी ने कहा…

हे पार्थ! इस चिट्ठाजगत में जिन्हें तू समझ रहा है... वे तो बस तेरे हारे हुए प्रतिद्वंद्वी हैं. तू किस धर्मसंकट में है... त्याग दे लोकलाज... कूद पड़ चुनावी रण में... प्रचार कर अपना... बना अपने लिए वोटों का रन... जीत तेरी ही होगी.

आलोक सिंह ने कहा…

जोहार
श्री श्री १००८ समीर जी महाराज को इस तुक्क्ष से निम्न कोटि के चिट्ठाकार का प्रणाम स्वीकार हो ,
गुरुवर हमने तो एक छोटा सा ब्लॉग सार ही लिखा है पर आपने तो पूरी गीता ही लिख डाली थी वो भी तीन वर्ष पहले जब हम इस जगत का नाम भी नहीं जानते थे . धन्य है प्रभु आप , आप की महिमा निराली है .

आपके चरणों में नतमस्तक
एक अबोध बालक
आलोक

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल २३-६ २०११ को यहाँ भी है

आज की नयी पुरानी हल चल - चिट्ठाकारों के लिए गीता सार

यशवन्त माथुर (Yashwant Raj Bali Mathur) ने कहा…

बहुत बढ़िया है सर!

सादर

vandan gupta ने कहा…

जय हो प्रभु…………अद्भुत ज्ञान दिया है इससे तो सारे ब्लोगर्स का बेडापार ही समझो।

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत बढ़िया गीता का सार है ...!!
अच्छा लगा...!!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

स्वामी समीरानंद जी को प्रणाम.
आज के सत्संग ने सांसारिक चिटठा जगत की मोह-माया के बंधनों से मुक्त होने की प्रेरणा दी है.चिटठा लिखे जा,टिप्पणी की चिंता न कर.टिप्पणियां तो मृग-तृष्णा हैं,मिथ्या हैं.इनके चक्कर में भागेगा तो टीपते रह जायेगा.पोस्ट कब लिखेगा ? और जब पोस्ट ही नहीं लिख पायेगा तो टिप्पणियों की अभिलाषा कैसी ? वाह स्वामी जी,आँखें खोल दी आपने.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

uff bhaiya jee...kitna sochte ho aap ham sab ke liye:D

kuldeep thakur ने कहा…


सुंदर प्रस्तुति...
मुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक 12-07-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल पर भी है...
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं तथा इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और नयी पुरानी हलचल को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी हलचल में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान और रचनाकारोम का मनोबल बढ़ाएगी...
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।



जय हिंद जय भारत...


मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...